Saturday, November 23, 2024
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कभी PPE किट की कमी तो कभी वेंटिलेटर्स में खोट: जानिए कैसे मीडिया गिरोह ने चीन के लिए की खुलेआम बैटिंग

चीन का गुणगान करने वालों को अब ज्ञात होना चाहिए कि वहाँ 12 करोड़ को दोबारा लॉकडाउन में डाल दिया गया है। आखिर जिस देश से सीमा पर भी हमारे रिश्ते तनावपूर्ण ही रहे हैं, उसका गुणगान करने के लिए हमारा मीडिया बेचैन क्यों है? इसमें कहीं उनका कुछ व्यक्तिगत फायदा तो नहीं?

भारत में मीडिया के एक खास वर्ग का चलन है कि वो पहले किसी चीज में कमी निकालता है और बाद में पता चलता है कि उस कमी को (अगर है तो) दूर कर लिया गया है तो वो कहने लगता है कि ये ऐसे नहीं बल्कि वैसे होना चाहिए था। भारत में कोरोना वायरस से निपटने के उपायों पर चर्चा करें तो रवीश कुमार सरीखे पत्रकारों ने यही काम किया है। हर चीज में कमी निकालना, सरकार को बदनाम करना और असली दोषी चीन का बचाव करना।

जब कोरोना वायरस का संक्रमण शुरू हुआ था, तब मीडिया के एक ख़ास जमात ने टेस्टिंग किट की कमी का हल्ला मचाना शुरू कर दिया था। बताया गया कि 25 करोड़ लोग बीमार होने वाले हैं। ये सब इसीलिए, ताकि सरकार पर दबाव बने और वो विदेश से टेस्टिंग किट ख़रीदे। टेस्टिंग किट बस एक ही देश बेच रहा था और वो था चीन। रैपिड टेस्टिंग किट का थोड़ा बहुत इंपोर्ट चीन से हुआ, उसमें भी ज़्यादातर ख़राब निकले।

अभी रोज़ क़रीब 1 लाख टेस्ट हो रहे हैं और ज़्यादातर टेस्टिंग किट भारतीय कंपनियाँ बना रही हैं। चीन का माल नहीं बिक पाया। मीडिया गिरोह का दुष्प्रचार फेल हो गया। फिर वेंटिलेटर का शोर मचाया गया। ऐसा लगा मानो इसके बिना आफ़त आ जाएगी। बताया गया कि देश में सिर्फ़ 45 हज़ार वेंटिलेटर है और मई तक 10 लाख चाहिए। इतने वेंटिलेटर सिर्फ़ चीन ने पहले से बनाकर रखे हैं। वो भी डबल रेट यानी भारतीय रुपये के हिसाब से एक क़रीब 10 लाख का।

जो देसी कंपनियाँ कल तक मशीनरी टूल्स बनाती थीं, उन्होंने वेंटिलेटर बनाना शुरू कर दिया। राजकोट की कंपनी ने 1 लाख रुपए का बेसिक वेंटिलेटर बनाकर लॉन्च भी कर दिया। पहले 100 सरकार को फ़्री में दिए। कहा कि कुछ पार्ट्स जापान से आने हैं, उसके बाद इसे उन्हें अपग्रेड कर दिया जाएगा। मारुति, ह्यूंडई और महिंद्रा जैसी कार कंपनियाँ भी वेंटिलेटर बनाने लगीं। अब ‘अहमदाबाद मिरर’ में छपवाया गया कि राजकोट की कंपनी का वेंटिलेटर नक़ली है।

इसी बहाने ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की खिल्ली उड़ाई गई। जबकि वो फ़ौरन ज़रूरत के लिए बेसिक मॉडल था, जिसे कंपनी अपग्रेड कर रही है। भारतीय मीडिया जिस वेंटिलेटर को नक़ली बता रही है, उसे स्पेन और कुछ यूरोपीय देशों से ऑर्डर मिलने शुरू हो चुके हैं। वैसे इन चीजों का मजाक बनाया जाना कोई नई बात नहीं है। राहुल गाँधी सरीखे नेता पहले भी ‘मेक इन इंडिया’ का मजाक बनाते रहे हैं।

अभी की ज़रूरत के हिसाब से वेंटिलेटर की थोड़ी कमी पैदा हुई तो अमेरिका ने 200 मुफ़्त में दे दिए। अब भारतीय मीडिया में चीन के सेल्समैनों ने शोर मचाया कि अमेरिका फ़्री में नहीं दे रहा बल्कि 20 करोड़ रुपए ले रहा है। मात्र दो महीने में भारत पीपीई किट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। तो अब पीपीई किट की क्वालिटी को लेकर बाजा बजने लगा कि वो चावल की बोरी जैसे हैं। जबकि ये वो किट हैं, जो शुरू में बने थे।

बता दें कि अपनी आदत के मुताबिक़ हमेशा नकारात्मक और विपरीत दिशा में बात करने वाले रवीश कुमार ने प्राइम टाइम में बैठ कर अपने कार्यक्रम में चीन का स्तुति गान किया। जिस वायरस की बात पर आज सारा विश्व चीन पर उँगली उठा रहा है, उस वायरस पर रवीश जी चीन को क्लीन चिट भी दे रहे हैं और कुछ विजुअल्स भी दिखा रहे की देखिए सब कुछ सामान्य है यहाँ। उन्होंने चीन को ‘निर्दोष और बेचारा’ साबित करने के लिए पूरा जोर लगा दिया।

रवीश ने 2 बार प्राइम टाइम कर के चीन का बचाव किया। एक बार 20 अप्रैल को और एक बार 24 अप्रैल को, जिसकी चर्चा हमने ऊपर की है। उन्होंने चीनी राजदूत के ट्वीट की व्याख्या करते हुए उसे ‘महान’ साबित करने का प्रयास किया। उन्होंने दावा किया कि मीडिया के पास ख़बरों का अकाल है और उन्हें कोई दुश्मन चाहिए, इसीलिए चीन को चुन लिया गया। इस बेहूदे लॉजिक के साथ रवीश ने चीन का बचाव किया था।

हाल ही में एक खबर आई थी कि चीन अब हर देश में अपने मेकओवर पर जुट गया है। इसके तहत ऐसे मीडिया संस्थानों को चिह्नित किया जा रहा है, जो उसके खिलाफ लिखते हैं। उन्हें किसी तरह हैंडल किया जा रहा है। साथ ही हर देश में चीन ने कुछ पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को सिर्फ इसीलिए हायर किया है, ताकि वो उसके बारे में सकारात्मक बातें लिख-लिख कर उसका महिमामंडन कर सकें। रवीश ऐसा क्यों कर रहे हैं, ये अंदाज़ा आप खुद लगाइए।

भारत में अब पीपीई किट उसी स्टैंडर्ड से बन रहे हैं, जिससे दुनिया के दूसरे देशों में बनते हैं। इस मामले में भी चीन को बहुत नुक़सान हुआ है। ये तीनों मामले बताते हैं कि भारतीय मीडिया में चीन के सेल्समैन कोशिश तो बहुत कर रहे हैं लेकिन कुछ ख़ास कर नहीं पा रहे। आखिर जिस देश से सीमा पर भी हमारे रिश्ते तनावपूर्ण ही रहे हैं, उसका गुणगान करने के लिए हमारा मीडिया बेचैन क्यों है? इसमें कहीं उनका कुछ व्यक्तिगत फायदा तो नहीं?

बकौल रवीश कुमार, जिन्होंने पूरा 2020 पहले ‘टेस्टिंग नहीं हो रहे’, फिर ‘वेंटिलेटर नहीं है’, ‘पीपीई किट नहीं मिल रहे’ का शोर करने में एक तिहाई से ज़्यादा साल तो निकाल ही दिया, लेकिन उनका एक प्रोपेगेंडा नहीं चल पाया। न तो भारत में ऐसे ‘शर्तिया इलाज’ बेचने वाले पत्रकारों को अब कोई सुनता है, न ही इनके बिकाऊ अजेंडे में कोई तथ्य दिखता है। जिस हिसाब के आँकड़े ये दे रहे थे कि भारत अब तबाह हो जाएगा, वैसा कुछ नहीं हुआ और लाख जतन करने के बाद भी चीन की थू-थू जारी है।

साथ ही, चीन का गुणगान करने वालों को अब ज्ञात होना चाहिए कि वहाँ 12 करोड़ को दोबारा लॉकडाउन में डाल दिया गया है। 20 अप्रैल को रवीश प्राइम टाइम में पूरी तरह से चीन की बैटिंग करते नजर आए कि दुनिया ‘चायना बैशिंग थ्योरी’ पर चल रही है जबकि चीन ने तो ये कर दिया, वो कर दिया। रवीश ने यहाँ तक कहा कि खबरों के अकाल के कारण चीन पर निशाने साधे जा रहे हैं और ऐसे समय में सरकार अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए चीन के नाम का दुश्मन जनता को देना चाहती है।

चीन को बचाने के लिए रवीश की ‘बकैती’

रवीश ने अपने प्राइम टाइम में चीन को न सिर्फ मासूम और दयनीय हालत को झेलने वाला बताया बल्कि उसे सबसे सक्षम महामानव भी कहा। रवीश के गैंग में से एक कथित वैश्विक एक्स्पर्ट न केवल वुहान से वायरस फैलने को सम्भावना कह रहे हैं बल्कि वुहान से 1100 किलोमीटर उत्तर में बसे बीजिंग की क्लिप दिखाकर वो स्थिति को सामान्य बता रहे। इसी तरह उन्होंने चीन को क्लीन-चिट देने के लिए एड़ी-चोटी एक की।

सवाल यह है कि भारत को कब ऐसी जरूरत पड़ गई? अगर भारत की हालत खराब होनी होती तो चार महीने की ‘बेकार व्यवस्था’ एक लम्बा समय है। आखिर, भारत बर्बाद क्यों नहीं हो गया? वो इसलिए कि भारत का प्रारब्ध रवीश कुमार की फेसबुक के हिसाब से नहीं चलता। भारत ने फरवरी के पहले सप्ताह से तमाम बचाव के प्रयास किए, घेराबंदी शुरू की, लॉकडाउन लगाया और काफी हद तक बीमारी के तीसरे चरण ‘कम्यूनिटी फैलाव’ को नियंत्रित रखने में सफलता पाई।

ये मीडिया का वही वर्ग है, जो चाहता था कि यहाँ ज्यादा से ज्यादा लाशें गिरे, ताकि उसे सरकार को कोसने का एक बढ़िया मौक़ा मिले। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। कोरोना के मृत्यु दर का मामला हो या फिर इससे निपटने के लिए हुई तैयारियों का, मीडिया द्वारा बदनाम किए जाने की लाख कोशिशों के बावजूद भारत सरकार ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया। आर्थिक पैकेज को लेकर भी हंगामा मचाया गया, बाद में यही लोग पूछने लगे कि पैसा कहाँ से आएगा?

(ये पोस्ट चन्द्र प्रकाश के फेसबुक पोस्ट से प्रेरित है)

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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