Friday, November 22, 2024
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चीन से पैसा क्यों लिया… दलाल झुण्ड में अकेले घुस पत्रकार ने दिखाया आईना: अभिजीत मजूमदार के पीछे लगी तमिलनाडु पुलिस तो चुप्पी, मनी लॉन्ड्रिंग का समर्थन

ऑपइंडिया से बात करते हुए सागर मलिक कहते हैं, "अगर इन दलाल चीनी पत्रकारों का चीन प्रेम इतना उभर कर बाहर आ रहा है तो मैं उनसे निवेदन करूँगा, जो चीन की गुलामी कर रहे हैं, अगर उन्हें भारत देश में कोई समस्या है तो जब चाहें चीन या पाकिस्तान के पास जा रहे हैं, वहाँ के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले हैं।

दिल्ली पुलिस ने मीडिया संस्थान ‘Newsclick’ के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और HR हेड अमित चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया है। संस्थान से जुड़े अन्य तथाकथित पत्रकारों अभिसार शर्मा, उर्मिलेश और परंजॉय गुहा ठाकुरता से भी पूछताछ की गई। मामला है चीन से फंडिंग का। इसका खुलासा किसी भारतीय मीडिया संस्थान ने नहीं, बल्कि अमेरिकी अख़बार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ (NYT) ने की। आरोप साफ़ हैं – चीन के अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस मीडिया पोर्टल को 38 करोड़ रुपए की फंडिंग की गई।

सबसे बड़ी बात, मामला अवैध लेनदेन का है, मनी लॉन्ड्रिंग का है। चीन और भारत की कंपनियों में कई करार हुए होंगे, लेकिन ये सरकार से छिपा कर पिछले दरवाजे से हुई डील थी। इन सबके पीछे है करोड़पति नेविल रॉय सिंघम, जो कि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी की प्रोपेगंडा शाखा से जुड़ा हुआ है। सिर्फ ‘न्यूज़क्लिक’ ही नहीं, इसने दुनिया भर में कई मीडिया संस्थानों को पैसे खिलाए। श्रीलंकाई-क्यूबा मूल के सिंघम के साथ प्रबीर पुरकायस्थ की ईमेल के माध्यम से हुई बातचीत भी सामने आई थी।

भारत की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ ‘Newsclick’ का चीनी प्रोपेगंडा

अब आप सोचिए, भारत-चीन सीमा विवाद हो या फिर दोनों देशों के सैनिकों के बीच संघर्ष, चीन का पैसा खाने वाले भारत में बैठे दलालों की वफादारी किस तरफ रहती होगी? जवाब आप जानते हैं। तथ्य भी जान लीजिए। असल में प्रबीर और सिंघम के बीच यही बातचीत हो रही थी कि भारत-चीन सीमा विवाद को कैसे रिपोर्ट किया जाए। उत्तर-पूर्वी राज्यों पर चीन अपना दावा ठोकता रहा है। भारत में बैठे उसके दलाल चीन के लिए माहौल बनाते हैं। बात देश की संप्रमुखता और अखंडता की है, कार्रवाई क्यों नहीं की जाए?

‘न्यूज़क्लिक’ पर छपेमारी के बाद मीडिया गिरोह रोने लगा। गिरोह, मतलब चंद लोग जो 2014 से पहले निर्धारित करते थे कि देश में किस चीज की चर्चा होगी, किस एंगल से होगी और कौन सा नैरेटिव चलेगा। इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्रिमंडल तक यही गिरोह निर्धारित करता था। आज उस गिरोह के लोग रोते हैं। ‘इंडिया टुडे’ के राजदीप सरदेसाई ने पूछ डाला कि आखिर पत्रकार देश के दुश्मन कैसे हो गए? उसी तरह, जैसे कोई बाकी देशद्रोही हो जाता है। वो पत्रकार है या नहीं है, इससे क्या फर्क पड़ता है? गद्दार तो किसी भी व्यवसाय में हो सकता है?

वहीं ‘द वायर’ की आरफा खानुम शेरवानी ने भारत पर ‘लोकतंत्र की जननी’ वाला तंज कसा। ऐसे ही ये गिरोह भारत पर ‘विश्वगुरु’ वाला भी तंज भी कसता है। सार ये कि देश की हर उपलब्धि पर तंज कसना इनकी आदत है। AltNews वाले प्रतीक सिन्हा का क्या कहना। उन्होंने सरकार पर हद पार करने का आरोप मढ़ दिया। ये वही संस्थान है, जो मुस्लिम अपराधियों के बचाव में दिन-रात एक कर देता है। इसी तरह रोहिणी सिंह ने लिखा कि पत्रकारिता इस देश में अपराध हो गई है। रोहिणी सिंह को जानना चाहिए कि अपराध पत्रकारिता नहीं, बल्कि देश से गद्दारी है।

पत्रकारों की तो छोड़ दीजिए, पत्रकारों के संगठनों तक ने इस मामले में ‘न्यूजक्लिक’ के समर्थक में घोड़े खोल दिए। ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (PCI)’ का उदाहरण ले लीजिए। उसने छापेमारी के दौरान ही ‘न्यूज़क्लिक’ के साथ खड़े होने का ऐलान कर दिया। PCI में आनन-फानन में बैठक बुलाई गई। फिर अगले दिन बड़ी संख्या में पत्रकारों को जुटाया गया और विरोध प्रदर्शन किया गया। परंजॉय गुहा ठाकुरता को बुलाया गया पत्रकारों को संबोधित करने के लिए।

इतना ही नहीं, इस संगठन ने पत्रकारों की तरफ से एक लंबा-चौड़ा पत्र लिख कर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश DY चंद्रचूड़ को भेजा और आरोप लगाया कि देश की जाँच एजेंसियों को पत्रकारों के खिलाफ हथियार बनाया जा रहा है। क्या गौतम नवलखा जैसे अर्बन नक्सलियों, जो भीमा-कोरेगाँव हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं, उनके साथ गठजोड़ कर चीनी प्रोपेगंडा फैलाना पत्रकारिता है? उन्हें इससे भी दिक्कत है कि जाँच एजेंसियों के पास ‘इतनी शक्तियाँ’ क्यों हैं।

इलीट गिरोह के झुण्ड में घुसा एक आम पत्रकार, पूछा – ‘क्यों लिया चीन से पैसा?’

लेकिन, इस दौरान एक पत्रकार ने PCI में ही इन्हें आईना दिखा दिया। उस पत्रकार का नाम है – सागर मलिक। सागर मलिक अकेले ‘चीन के दलालों को जेल भेजो’ वाला बैनर लेकर गिरोह विशेष के पत्रकारों की भीड़ में पहुँच गए। ये ऐसा ही था, जैसे भेड़ियों की झुण्ड में घुस कर कोई शेर चहलकदमी कर रहा हो। इसके बाद हलचल तो मचनी ही थी, मच गई। सागर मलिक से पूछा जाने लगा कि वो PCI में कैसे घुस गए। सवाल जायज है। है ना? आखिर कोई आम पत्रकार इस प्रबुद्ध समूह में कैसे घुस सकता है? ये तो बड़े हैं, देश की जाँच एजेंसियों से बड़े हैं, सरकार से बड़े हैं, आम जनता से बड़े हैं।

सागर मलिक का एक ही सवाल था उस झुण्ड से – चीन से पैसा क्यों लिया? इस पर झुण्ड की एक महिला पत्रकार उलटा उनसे पूछने लगी, “तुम कौन हो?” अब भला कोई आम पत्रकार कैसे इलीट पत्रकारों से सवाल पूछ सकता है? कैसे उनके बीच जा सकता है? उसे अपना धर्म, जाति, कुल, गोत्र, फंडिंग सब बतानी होगी न? आम के लिए ख़ास के बीच जगह कहाँ! सागर मलिक का लॉजिक सिंपल था – जैसे आप अब पोस्टर-बैनर लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, मेरा भी अधिकार है कि बैनर लेकर खड़े होकर सवाल पूछूँ।

बस अंतर इतना था कि इनका सवाल थोड़ा कड़वा था, सच्चा था, जो इलीट ग्रुप को हजम नहीं हुआ। लेकिन, आखिर एक अकेले पत्रकार इस इलीट समूह से पंगा लेने की हिम्मत कैसे की? ऑपइंडिया से बात करते हुए सागर मलिक इसका जवाब देते हैं, “जब बात मेरे देश की आएगी तो मैं ऐसे दलाल पत्रकारों को जवाब अवश्य दूँगा। मेरा सवाल केवल इतना था कि चीन से पैसा लिया क्यों? अगर आप राष्ट्रवादी पत्रकार हैं तो चीन से पैसा लिया क्यों? अगर मेरे इस सवाल का जवाब ये पत्तलकार दे दें, तो मैं आगे की बात करूँ।”

उनका कहना है कि अगर आप देशप्रेमी हैं तो आपने हमारे दुश्मन देश चीन से पैसा क्यों लिया? वो कहते हैं, “अगर इन दलाल चीनी पत्रकारों का चीन प्रेम इतना उभर कर बाहर आ रहा है तो मैं उनसे निवेदन करूँगा, जो चीन की गुलामी कर रहे हैं, अगर उन्हें भारत देश में कोई समस्या है तो जब चाहें चीन या पाकिस्तान के पास जाकर रहें, वहाँ के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले हैं। अगर टिकट के पैसे नहीं हैं तो मैं इनका टिकट कटाने के लिए भी तैयार हूँ।”

उन्होंने सीधा ऐलान किया कि अगर ये देश के साथ गद्दारी करेंगे तो इनके घर में घुस कर, इनके ऑफिस में घुस कर इनकी छाती पर प्रहार किया जाएगा। यहाँ सोचने वाली बात है कि आखिर क्या कारण है कि एक युवा पत्रकार को इस गिरोह के बीच में घुस कर ये सवाल पूछना पड़ा? सागर मलिक ‘शाश्वत न्यूज़‘ नामक YouTube चैनल चलाते हैं। गुजरात दंगों में निर्दोषों को फँसाने वाली जिस तीस्ता सीतलवाड़ पर सुप्रीम कोर्ट तक कड़ी टिप्पणी कर चुका है, उससे भी इस ‘न्यूज़क्लिक’ के संबंध थे। सोचिए, क्या ये नेटवर्क देश के लिए काम कर रहा था?

अभिजीत मजूमदार के पीछे पड़ी तमिलनाडु पुलिस, गिरोह ने साधी चुप्पी

अब बात करते हैं यहाँ एक और पत्रकार की। थोड़ा और पीछे जाएँगे, लेकिन ज़रा ठहर कर। ताज़ा घटना पहले। अभिजीत मजूमदार का नाम सुना होगा आपने? वो ‘Earshot’ नामक पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म चलाते हैं। आजकल ‘Firstpost’ से जुड़े हुए हैं, जो ‘नेटवर्क 18’ के अंतर्गत आता है, जो चैनल ‘न्यूज़ 18’ चैनल को भी संचालित करता है। अभिजीत मजूमदार ‘एशियानेट न्यूज़’ के भी एडिटर-इन-चीफ रहे हैं। ट्विटर पर आधे मिलियन से ज़्यादा की फॉलोविंग है, कई मुद्दों पर बेबाक राय रखने के लिए जाने जाते हैं।

उनकी चर्चा से पहले एक घटना की याद ताज़ा कर लें। भारत के दक्षिणवर्ती राज्य तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी DMK के मुखिया हैं एमके स्टालिन, जो राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं। उनके पिता कई दशकों तक राज्य की राजनीति के केंद्र रहे। अब एमके स्टालिन हैं। उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन को भविष्य के लिए तैयार किया जा रहा है। उदयनिधि न सिर्फ पार्टी के यूथ विंग के महासचिव हैं, बल्कि राज्य के खेल मंत्री भी हैं। उदयनिधि स्टालिन ने सनातन धर्म को डेंगू-मलेरिया बताते हुए इसे खत्म करने बात की और इसी मंशा के साथ आयोजित एक कार्यक्रम में हिन्दू विरोधी भाषण दिया।

अभिजीत मजूमदार ने ‘फर्स्टपोस्ट’ में लिखे गए अपने लेख में इस बयान की आलोचना की। इस लेख में अभिजीत मजूमदार ने याद किया था कि कैसे 70 के दशक में पेरियार की रैली में हिन्दू देवी-देवताओं की तस्वीरों को जूते-चप्पल से मारा गया था और ‘ब्राह्मणों द्वारा निचली जातियों पर अत्याचार’ के विरोध के नाम पर ये सब किया गया था। उन्होंने ध्यान दिलाया कि कैसे चोल, पल्लव और परांतक के हिन्दू साम्राज्यों का स्थल रहे तमिलनाडु में अब हिन्दुओं के खिलाफ घृणा सामान्य हो गई है।

चूँकि उदयनिधि स्टालिन की माँ एक आस्थावान हिन्दू हैं, अभिजीत मजूमदार ने अपने लेख के जरिए सनातन धर्म की हत्या को मातृहत्या के समान बता दिया। इसके बाद क्या हुआ? वो जिस मीडिया संस्थान से जुड़े हुए हैं, वहाँ तमिलनाडु पुलिस के अधिकारी पहुँचे उन्हें उठाने के लिए। वो उस दौरान यात्रा में थे, इस कारण बच गए। उनके खिलाफ FIR दर्ज कर ली गई। ये सब क्यों? सिर्फ एक लेख के लिए, बाकी कोई आरोप नहीं। उनके समर्थन में लिबरल गिरोह का एक कुत्ता भी खड़ा नहीं हुआ, मालिकों की बातें तो छोड़ ही दीजिए।

हमने इस पूरे मामले को लेकर अभिजीत मजूमदार से बात की। उन्होंने इस पर दुःख जताया कि जहाँ चीन की पैरवी करने वालों का समर्थन किया जा रहा है, वहीं जो सही में फासीवाद का शिकार हो रहे हैं उनके पक्ष में आवाज़ नहीं उठाई जा रही। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे जब बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप को गिरफ्तार किया गया और उन पर NSA लगा दिया गया, तब भी उनके लिए आवाज़ नहीं उठी पत्रकारों के समूह में से। उन्होंने बंगाल और कर्नाटक पुलिस द्वारा पत्रकारों पर कार्रवाई का मुद्दा भी उठाया।

अभिजीत मजूमदार ने ध्यान दिलाया कि कैसे हमारा देश एक तरह से चीन के साथ अगर युद्ध नहीं तो संघर्ष और प्रॉक्सी वॉर के दौर से गुजर रहा है। ऐसे समय में पत्रकारों का एक गिरोह खुल कर उस मीडिया संस्थान के समर्थन में आ जाता है, जो चीन की पैरवी करता है, वहाँ से फंडिंग लेता है। अभिजीत मजूमदार कहते हैं कि फासीवाद-फासीवाद चीखने वाले इस गिरोह को फासीवाद की परिभाषा का शायद भान नहीं है, तभी विपक्ष शासित राज्यों में पत्रकारों के खिलाफ हो रही कार्रवाई पर इनका मुँह नहीं खुलता।

वरिष्ठ पत्रकार ने ऑपइंडिया से बात करते हुए ये भी याद दिलाया कि ये वही गैंग है जिसने I.N.D.I. गठबंधन द्वारा 14 पत्रकारों पर ‘बैन’ लगाए जाने पर चूँ तक नहीं किया। उन्होंने पूछा कि क्या एक लेख लिखना इतना बड़ा अपराध है कि एक पत्रकार को पकड़ने के लिए पुलिस लगा दी जाए? उन्होंने कहा कि इसकी तो चीन की दलाली से तुलना भी नहीं की जा सकती। उनका सवाल जायज है। दुश्मन देश की दलाली के लिए किसी पर कार्रवाई होना और सिर्फ आलोचना के लिए किसी को उठवा लेना – दोनों में अंतर है। लेकिन, ये पत्रकारों का गिरोह विशेष है। इनके लिए सागर मलिक या अभिजीत मजूमदार पत्रकार की श्रेणी में नहीं आते, क्योंकि वो मोदी सरकार का अंधविरोध नहीं करते।

अभिजीत मजूमदार ने महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार द्वारा अर्णब गोस्वामी को गिरफ्तार कराए जाने का मामला भी उठाया। इस मामला का जिक्र हो ही गया तो एडिटर्स गिल्ड के दोहरे रवैये की भी चर्चा आवश्यक है। पश्चिम बंगाल में ‘न्यूज़ 9’ के पत्रकारों पर हमले का मामला हो या राजस्थान पुलिस का अमन चोपड़ा के घर पर पहुँच जाना, एडिटर्स गिल्ड चूँ तक नहीं करता। लेकिन, जब कार्रवाई चीन के दलाल गिरोह पर होती है तो यही एडिटर्स गिल्ड कहता है कि ‘प्रेस फ्रीडम’ के खिलाफ आपराधिक कानूनों का इस्तेमाल किया जा रहा है।

एडिटर्स गिल्ड का भी ऐसा ही दोहरा रवैया

‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ एक बयान जारी कर के पुलिस-प्रशासन पर प्रक्रियाओं का पालन न करने का आरोप मढ़ता है, साथ ही इस बात पर चिंता जताता है कि कहीं ये मीडिया को चुप कराने की कोशिश तो नहीं। ये अलग बात है कि जब एक न्यूज़ रिपोर्ट के लिए सुधीर चौधरी पर कर्नाटक की कॉन्ग्रेस सरकार FIR कर देती है, तब ये संगठन चुप बैठ जाता है। मणिपुर हिंसा पर तो ये ‘फैक्ट फाइंडिंग मिशन’ चलाता है, लेकिन राजस्थान में महिलाओं के खिलाफ अपराध की बात आती है तो इसे एक भी फैक्ट नज़र नहीं आता।

हमें आज मीडिया के इस गिरोह को पहचानने की ज़रूरत है। आज इनके इशारे पर सरकार नहीं चलती, सोशल मीडिया पर आम आदमी इनके झूठ का पर्दाफाश कर देता है और आम पत्रकार इनके बीच घुस कर आईना दिखाते हैं – इससे ये तिलमिला उठे हैं। आज जम्मू कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश को भारत से अलग बताने की साजिश रचने वालों का समर्थन हो रहा है। जब बात देश की संप्रभुता और अखंडता की आएगी, जनता हर कार्रवाई का समर्थन करेगी। अब वो ज़माना गया, जब मुट्ठी भर पत्रकारों का गिरोह दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव को प्रभावित करता था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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