वामपंथी मीडिया पोर्टल द वायर, द स्क्रॉल में बतौर लेखक योगदान देने वाले किरण कुंभार ने IMA अध्यक्ष डॉ. जेए जयलाल के समर्थन में आवाज उठाई है। ऑपइंडिया द्वारा ईसाई धर्मांतरण के मुद्दे को प्रकाश में लाने के कुछ ही दिन बाद किरण ने डॉ. जयलाल का समर्थन किया। पिछले दिनों हमने आपको बताया था कि कैसे IMA अध्यक्ष डॉ. जयलाल धर्मांतरण के लिए अस्पतालों को एक मंच की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
अपने ट्वीट में कुंभार ने जयलाल की मंशा को सामान्य दिखाने का प्रयास किया। उनके अनुसार ये सब हिंदुओं का पागलपन है जो IMA अध्यक्ष पर आरोप लगा रहे हैं कि वो डॉक्टरों, छात्रों और मरीजों को ईसाई बनाना चाहते हैं।
कुंभार ने कहा कि वह डॉ. जयलाल के साक्षात्कार से सहमत नहीं हैं। उसे देख उन्हें ये भी नहीं लगता है कि वे मेडिकल संस्थानों में धर्मांतरण करवाना चाहते हैं। किरण के अनुसार, ये सब सिर्फ़ भ्रम है।
इसके बाद कुंभारर ने पिछले 90 सालों में मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष बने सभी लोगों की सूची शेयर की, सिर्फ़ ये बताने के लिए इतने समय तक काउंसिल में हिंदुओं का वर्चस्व रहा। उन्होंने आरोप लगाया कि डॉ. जयलाल के विश्वास को गलत बताया जा रहा है, क्योंकि हिंदू बहुसंख्यक देश में आईएमए हमेशा से एक हिंदू बहुल संघ रहा।
किरण की सारी बहस सिर्फ़ डॉ. जयलाल पर लग रहे इल्जामों को खारिज करने के लिए है। जाहिर है कि इन सब कुतर्कों से ये पता चलता है कि उनका मानना है कि चूँकि लंबे समय से IMA में हिंदू अध्यक्ष रहे, इसलिए अब जब कोई ईसाई चुना गया है तो उसका अन्य लोगों को धर्मांतरण के लिए उकसाना बिलकुल जायज है। हालाँकि, वामपंथी लेखक शायद भूल गए हैं कि जिस संस्था में तमाम हिंदू अध्यक्ष रहे, वहाँ उन सबने कभी वर्तमान अध्यक्ष की तरह गैर हिंदुओं को हिंदू बनाने का प्रयास नहीं किया, जैसा कि डॉ. जयलाल करने की कोशिश कर रहे हैं।
बता दें कि हिंदुओं के बहुसंख्यक होने और उनपर धर्मांतरण का कोई खतरा न होने वाले दावे करके कई बार इस्लामवादी भी हिंदुओं की चिंता को बेवजह बताने का प्रयास करते रहे हैं और किसी भी रूप में ये नहीं स्वीकारते कि उनमें कट्टरपंथ कितनी तेजी से फैल रहा है, जिसका एक मात्र उद्देश्य या तो धर्मांतरण करवाना है या फिर गैर मजहबी लोगों को बर्बाद करना।
सबसे मुख्य बात ये है कि हिंदू कभी इस बात में यकीन नहीं करते कि उन्हें किसी का धर्मांतरण करवाना है। ये सब इब्राहिम विश्वास रखने वाले ही करते हैं। ये लोग धर्मांतरण को अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं और दूसरे धर्म के लोगों को उसी में रचाने-बसाने की सोचते हैं।
कुंभार के सभी तर्क निराधार हैं, जो स्पष्ट बताते हैं कि वह सिर्फ़ जयलाल का समर्थन करना चाहते हैं। द वायर के लेखक दावा करते हैं कि आईएमए के अध्यक्ष को ईसाई धर्म में झुकाव होने के लिए नहीं, बल्कि उनका आयुर्वेद को लेकर जो आलोचानात्मक नजरिया था उसके लिए टारगेट किया गया है।
अपने ट्वीट में किरण, IMA अध्यक्ष का बचाव करने के लिए उस भाषा का इस्तेमाल करने से भी नहीं चूकते जिसे इस्लामी आतंकी हिंदू घृणा जाहिर करने के लिए बोलते रहे हैं। किरण, हिंदुओं को IMA अध्यक्ष की बात (धर्मांतरण की) दोहराने के लिए दोषी मानते हैं और गोबर शब्द का इस्तेमाल कर बताते हैं कि कैसे वह भीतर ही भीतर हिंदुओं से घृणा करते हैं।
इंटरव्यू में डॉ. जयलाल ने दिए थे ईसाई धर्मांतरण को लेकर बयान
हाल ही में ‘Haggai इंटरनेशनल’ पर डॉ. जयलाल ने एक इंटरव्यू में कहा था कि कोरोना वायरस संक्रमण मेडिकल छात्रों, डॉक्टरों और रोगियों को ईसाई में धर्मांतरित करने का उनके लिए एक अवसर बनकर आया है।
उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि IMA ‘जीसस क्राइस्ट के प्यार’ को साझा करे और सभी को भरोसा दिलाए कि जीसस ही व्यक्तिगत रूप से रक्षा करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि चर्चों और ईसाई दयाभाव के कारण ही विश्व में पिछली कई महामारियों और रोगों का इलाज आया।
उन्होंने ईसाई संस्थाओं में भी गॉस्पेल (ईसाई सन्देश) को साझा करने की ज़रूरत पर बल दिया। उन्होंने IMA में अपने अध्यक्षीय भाषण में भी कहा था कि आज जो भी हैं वह ‘सर्वशक्तिमान ईश्वर जीसस क्राइस्ट’ का गिफ्ट है और कल जो होंगे, वे भी उनका ही गिफ्ट होगा।
उन्होंने इस दौरान मदर टेरेसा के उद्धरण का जिक्र किया, जिन पर पहले से ही ईसाई धर्मांतरण के आरोप लगते रहे हैं। ‘क्रिश्चियन टुडे’ के इंटरव्यू में भी उन्होंने बताया कि कैसे महामारी के बावजूद ईसाई मजहब आगे बढ़ रहा है।
वे कोरोना के प्रकोप के कम होने के लिए भी जीसस को ही क्रेडिट देते हैं। उन्होंने कहा था कि जीसस की कृपा से ही लोग सुरक्षित हैं और इस महामारी में उन्होंने ही सभी की रक्षा की है। उन्होंने कहा कि फैमिली प्रेयर्स और नाइट प्रेयर्स की मदद से ईसाई अब स्वर्ग की अनुभूति कर रहे हैं, न कि भौतिकतावादी दुनिया की। इस तरह से भारत के सबसे बड़े मेडिकल संगठन के मुखिया के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन या टीकाकरण का कोरोना से लड़ने में कोई रोल नहीं है।
मालूम हो कि डॉ, जयलाल सिर्फ़ ईसाई धर्मांतरण करवाना ही नहीं चाहते, बल्कि वे आयुर्वेद की आलोचना भी मुखर होकर करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार इसलिए आयुर्वेद में विश्वास करती है, क्योंकि उसके सांस्कृतिक मूल्य और पारंपरिक आस्था हिंदुत्व में है। उन्होंने दावा किया कि पिछले 3-4 वर्षों से आधुनिक मेडिसिन की जगह आयुर्वेद को लाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेद, यूनानी, होमियोपैथी और योग इत्यादि की जड़ें संस्कृत में हैं, जो हिंदुत्व की भाषा है।
उन्होंने आरोप लगाया कि इन सबके जरिए सरकार लोगों के दिलो-दिमाग में संस्कृत भाषा को घुसाना चाहती है। डॉक्टर जयलाल ने बताया कि उन्होंने डॉक्टरों और मेडिकल छात्रों के जरिए देश भर में सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन करवाए थे। उन्होंने हिन्दुओं में काफी देवताओं के होने की बात करते हुए एक बार कहा था कि उन्हें अब जीसस और मुहम्मद को ईश्वर मान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये हर ईसाई का कर्तव्य है कि वे बाइबिल का संदेश सभी तक पहुँचाए।