“आपका नाम क्या है? जी मनोज, पूरा नाम? जी मनोज मिश्रा” या ऐसा कोई भी नाम जो सामाजिक खाँचे में सवर्ण के नाम से जाना जाता है और इस प्रकार जाति का पता चलते ही किसी प्रोफ़ेसर की शिक्षा देने की शैली ही नहीं बल्कि व्यवहार भी बदल कर अपने ही छात्र के साथ दोयम दर्जे का हो जाए या सौतेला व्यवहार करता हुआ, पढ़ाते-पढ़ाते आपकी जाति को लेकर फिकरे कसे, ताने दे, उसका मजाक बनाए तो कैसा लगेगा? उम्मीद है बुरा लगना स्वाभाविक है। शायद ऐसे शिक्षक के प्रति सम्मान भी पूरी तरह ख़त्म हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं!”
ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ बल्कि ऐसा माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के उन छात्रों का कहना है जो न सिर्फ पत्रकारिता के छात्र हैं बल्कि संयोग से सवर्ण भी और ये सौतेला या नकारात्मक घृणित व्यवहार करने वाले हैं, स्वघोषित जाति के खिलाफ लड़ने वाले अनुबंध पर जुलाई में नियुक्त प्रोफ़ेसर दिलीप सी मंडल एवं मुकेश कुमार।
जाति की लड़ाई में शायद ये प्रोफ़ेसर इतने रसातल में चले गए है कि ये भूल गए हैं कि जिसकी जो भी जाति है वो उसने खुद नहीं चुनी बल्कि जहाँ, जिस घर में वह पैदा हुआ उसके नाम के साथ जुड़ गया और धर्म के साथ भी ऐसा ही है। लेकिन अगर कोई अपनी व्यक्तिगत कुंठा के कारण छात्रों से सौतेला व्यवहार करे तो क्या ऐसे किसी शिक्षक को शिक्षा देने का हक़ होना चाहिए? जब शिक्षा के मंदिर में ही छात्रों से भेदभाव हो। उनके बीच के आपसी सौहार्द को बिगाड़ने की कोशिश हो! जातिगत राजनीति हो तो भला छात्र पढ़ने कहाँ जाएँ? क्या पार्लियामेंट में या सड़क पर?
क्या है पूरा मामला:
मामला कुछ यूँ है कि माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अनुबंध के आधार पर कुछ माह पहले ही नियुक्त दो प्रोफ़ेसर दिलीप सी मंडल एवं मुकेश कुमार द्वारा सोशल मीडिया के माध्यम से और कक्षाओं में भी जाति के आधार पर छात्रों के बीच विभाजन पैदा करने एवं भेदभाव किए जाने को लेकर पत्रकारिता के उन्हीं के छात्रों ने इन प्रोफेसरों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। छात्रों का आरोप है कि ये दोनों प्रोफ़ेसर पहले पूरा नाम के बहाने जाति पूछते हैं फिर सवर्ण जाति के छात्रों को प्रताड़ित करते हैं।
MP: Students of Makhanlal Chaturvedi National University of Journalism&Communication, in Bhopal protest against 2 visiting professors, Dilip Mandal&Mukesh Kr, alleging that they create caste divide among students. Say “VC has formed committee,we’ve also demanded their suspension” pic.twitter.com/NCtK5Sh11O
— ANI (@ANI) December 13, 2019
बता दें कि पत्रकारिता की पढ़ाई के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान रखने वाले विश्वविद्यालय में प्रोफेसर दिलीप मंडल और मुकेश कुमार को जुलाई में अनुबंध के आधार पर फैकल्टी के रूप में नियुक्त किया गया। सालों से दिन भर लोगों से उनकी जाति पूछते और जातिगत टिप्पणी करने वाले ये धुरंधर जातिवादी पुरोधा एक तरफ छात्रों से उनका पूरा नाम पूछकर भेदभावपूर्ण व्यवहार कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ उन्हीं पर मनुवादी होने से कई आरोप मढ़कर खुद को विक्टिम दिखाने की भी कोशिश कर रहे हैं।
छात्रों के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से खासतौर से दिलीप सी मंडल सोशल मीडिया में मीडिया के एक वर्ग विशेष (सवर्ण) को लेकर लगातार पोस्ट कर रहे हैं। उन्होंने जाति विशेष आधारित मीडिया को लेकर एक हैशटैग भी चला रखा है। मंडल के हिसाब से मीडिया में 70% से अधिक सवर्ण ही क्यों है? क्यों निचली जातियों को मीडिया में नौकरी नहीं मिलती? अपने ऐसे कुछ बेतुके प्रश्नों को सदी का महान प्रश्न बनाकर तथाकथित दलित-पिछड़ा अस्मिता की लड़ाई का प्रश्न बनाकर हर जगह जहर बोने वाले मंडल के कारनामों को प्रोफेसर मुकेश कुमार भो बढ़ावा देते हैं। उन्होंने भी सवर्णों को लेकर सोशल मीडिया में टिप्पणी की है। इस वजह से भी पत्रकारिता के छात्रों में उन्माद के स्तर तक घोर जातिवादी इन दोनों अनुबंध पर नियुक्त प्रोफेसरों लेकर नाराज़गी है।
Protesters: We’d given a memorandum to Vice Chancellor. They ask castes of students on social media&in class& misbehave with those who are of upper castes. It creates caste divide among students. We’ve demanded their suspension. False statements are being made about our protest. https://t.co/rCkI0dhb05 pic.twitter.com/gVbhCOvWvn
— ANI (@ANI) December 13, 2019
इनके जातिवादी व्यक्तिगत टिप्पणियों और भेदभाव से तंग आकर ऐसे घोर जातिवाद का जहर बोने वाले प्रोफेसरों के खिलाफ छात्र-छात्राओं को प्रदर्शन के लिए मजबूर होना पड़ा। जिसके लिए छात्र कुलपति ऑफिस के बाहर धरने पर बैठ गए।
छात्रों की बात सुनने की बजाय, शांतिपूर्ण तरीके से संविधान रख, रघुपति राघव राजाराम गाते हुए दिलीप सी मंडल और मुकेश कुमार जैसे प्रोफेसर्स के खिलाफ प्रदर्शन को देखते हुए विश्वविद्यालय ने पुलिस बुला लिया। जो शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे है छात्र-छात्राओं को पाँचवे तल से घसीट कर बाहर ले जाने लगे। पुलिस के बल प्रयोग करने और लाठी भाजने के कारण कई छात्र-छात्राओं को चोटें भी आई है।
प्रदर्शन करने वाले छात्रों ने ऑपइंडिया को बताया, “हमने इस बारे में कल कुलपति दीपक कुमार को ज्ञापन सौंपा है और कुलपति को अपनी शिकायत में बताया कि दिलीप सी मंडल और मुकेश कुमार सोशल मीडिया पर और क्लास में छात्रों की जाति पूछते हैं और उन लोगों के साथ दुर्व्यवहार करते हैं जो उच्च जाति के हैं। इससे छात्रों में जाति विभाजन पैदा होता है। हमने उनके निलंबन की माँग की है। ऐसे दुराग्रही लोगों को शिक्षक होने का कोई हक़ नहीं है।”
हालाँकि, बात मीडिया में आने से मामला बिगड़ता देख कुलपति ने मामले की जाँच के लिए एक कमेटी बना दी है, लेकिन छात्र चाहते हैं कि इन दोनों प्रोफ़ेसरों की सेवाएँ तत्काल प्रभाव से निलंबित की जाएँ। साथ ही छात्रों ने कहा कि उनके विरोध प्रदर्शन के बारे में गलत अफ़वाहें भी उड़ाई जा रहीं हैं। उसका विश्वविद्यालय प्रशासन स्पष्टीकरण भी दे। कल को हम कहीं नौकरी के लिए जाएँगे तो हमें इस झूठ का खामियाजा न भुगतना पड़े।
अफवाह उड़ाना और झूठ बोलना वामपंथियों के मूल हथियार हैं तो मामला अपने खिलाफ जाता देख दिलीप मंडल ने खुद फेसबुक पोस्ट लिखकर ऐसे छात्रों को AVBP का घोषित कर दिया। साथ ही अपने ही छात्रों को मनुवादी कहने में भी नहीं हिचके तभी तो उन्हें साँची स्तूप पर शास्त्रार्थ का निमंत्रण दे डाला। इस सुझाव के साथ कि आप लोग मनुस्मृति लेकर आइए मैं संविधान और अपना पूरा पुस्तकालय ले आऊँगा। वहीं फैसला हो जाएगा। वह रे प्रोफ़ेसर लड़ाई और युद्ध का तरीका भी खुद ही तय कर दिए वो भी गैर बराबरी के स्तर पर। बहस या तर्क-कुतर्क करनी ही है तो इन छात्रों से क्यों? क्या इसलिए कि जाति के नाम पर आपने इन्हें कुछ पढ़ाया ही नहीं है तो ये आपकी बराबरी कहाँ से करेंगे? तभी तो छात्र माँग कर रहे हैं कि उन्हें पढ़ाने वाला प्रोफ़ेसर चाहिए जातिगत दुराग्रह फ़ैलाने वाला नहीं।
जबकि सच्चाई यह है कि ना ही इनमें से कोई छात्र वहाँ AVBP से जुड़ा है और न ही ऐसे किसी बैनर पोस्टर के साथ पत्रकारिता के छात्रों ने प्रदर्शन किया। अगर ऐसा होता तो अब तक मंडल खुद ही इनकी फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डाल चुके होते। लेकिन जब चोरी पकड़े जाने पर झूठे आरोप ही लगा के चिल्लम-चिल्ली करना है तो किसी प्रमाण की जरुरत क्या है। आप कहो आम तो हम जामुन की बात करेंगे और इतनी जोर से करेंगे कि आप उसमे कूदो ही नहीं।
जबकि, पत्रकारिता के छात्रों ने ऑपइंडिया को यह भी बताया कि ABVP के लोग तब आए जब हम लोगों को पुलिस ने मारा-पीटा-घसीटा और गिरफ्तार किया। वो भी वे कैंपस में नहीं थे गेट के बहार से ही हमारा समर्थन कर रहे थे।
छात्रों ने ऑपइंडिया से बात करते हुए खुद ही ऐसे कई वीडियो फुटेज दिए हैं जिसमें मंडल और मुकेश कुमार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे छात्रों को पुलिस घसीट कर ले जा रही है। हाथापाई कर रही है।
कल शास्त्रार्थ की फेसबुक पर चुनौती देने वाले मंडल ने अपने समर्थन में भी कुछ छात्रों को यह कहकर कि सवर्ण अनुवादी छात्र हमारा विरोध कर रहे हैं। आज अपने समर्थन में भी पाँच-छ छात्र बैठा दिए हैं। जो मंडल के समर्थन में नारे बाजी में लगे हैं। पत्रकारिता के छात्रों का कहना है कि चूँकि अन्य छात्रों को भी इनकी हरकत पता है इसलिए अलग-अलग विभागों से यही कुछ छाँट के OBC-SC-ST लाएँ हैं कि देखों मनुवादी यहाँ भी एक दलित प्रोफ़ेसर को पढ़ाने नहीं दे रहे हैं। जबकि हम आपस में ऐसे बाँट कर एक दूसरे को कभी नहीं देखते। इस तरह के भेदभाव के बीज यहाँ जब से आए हैं यही दिलीप मंडल डाल रहे हैं।
इस मामले में छात्रों ने पुलिस के व्यवहार और उनके मारपीट करने पर भी आपत्ति जताई। लेकिन पुलिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बाद इन दोनों प्रोफेसरों के निलंबन की माँग पर एएसपी संजय साहू ने अपने बयान में कहा, कुलपति के चेंबर के बाहर छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। रजिस्ट्रार ने उनसे उनकी शिकायतों के बारे में भी बात की। वे दोनों प्रोफेसरों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई चाहते हैं। एक समिति बनाई गई है। कमेटी 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट देगी।
पहले छात्रों को जाँच कमेटी से दूर रखकर कुलपति की तरफ से यह कहा गया कि यदि जाँच कमेटी को उचित लगेगा तो परिणाम बता देगी। जब छात्रों ने इस पर हंगामा किया तो उन्हें भी जाँच कमेटी में रखने पर सहमति बनी है। इस मामले में छात्रों ने ही बताया कि रजिस्ट्रार दीपेंद्र बघेल ने कहा, “मैंने उनकी माँग स्वीकार कर ली है, जाँच के लिए बनाई गई समिति में उन्हें भी शामिल किया जाएगा। जाँच पूरी होने तक दिलीप मंडल और मुकेश कुमार विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं करेंगे।
हालाँकि, छात्रों की माँग है कि एक हफ्ते के भीतर इन दोनों प्रोफेसरों के खिलाफ कार्रवाई हो। लेकिन प्रशासन की तरफ से ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है।
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