Thursday, November 14, 2024
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गौरी लंकेश मामले में हिंदुत्व को हत्यारा बताने वालो, कमलेश तिवारी की हत्या का जश्न मना रहे कौन हैं?

गौरी लंकेश के समय सक्रिय लिबरल समूहों ने कमलेश तिवारी की हत्या का जश्न मनाने वाले किस पार्टी से जुड़े हुए थे, ये पता करने की कोशिश की? उन्होंने नहीं की क्योंकि हत्यारोपित मुस्लिम हैं।

सितम्बर 5, 2017 की तारीख। यही वो दिन है, जब गौरी लंकेश की हत्या कर दी गई थी। गौरी लंकेश की हत्या को लेकर एक ‘सनातन संस्था’ नामक किसी संगठन का नाम आया था। चूँकि, गौरी लंकेश अपने हिंदुत्व-विरोधी विचारों के लिए जानी जाती थीं (कई मीडिया संस्थानों ने ऐसा लिखा है कि वो अपने एंटी-हिंदुत्व विचारधारा के लिए लोकप्रिय थीं), उनकी हत्या पर ख़ूब बवाल मचा। अगर आप ये समझते हैं कि ये बवाल हत्यारों को सज़ा दिलाने के लिए मचा था तो आप ग़लत हैं। गौरी लंकेश की हत्या को लेकर पीएम मोदी तक पर निशाना साधा गया। इसे लेकर एक विचारधारा विशेष को गाली दी गई। गौरी लंकेश के आलोचकों को खोज-खोज कर निकाला गया और उन्हें फॉलो करने वालों को भी निशाना बनाया गया।

हिंदूवादी नेता कमलेश तिवारी की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई। उन्होंने 2015 में पैगम्बर मुहम्मद पर कुछ टिप्पणी की थी, जो मुस्लिमों को आपत्तिजनक लगी और उन्हें लेकर कई फतवे जारी हुए। आखिरकार कुछ मुस्लिमों ने उन्हें मार डाला। उनका गला रेत दिया। एनडीटीवी ने उन्हें ‘कट्टरवादी हिन्दू नेता’ बताते हुए उनकी हत्या की ख़बर प्रकाशित की। कमलेश तिवारी की हत्या के बाद ओवैसी समर्थक ग्रुप सहित फेसबुक पर कई मुस्लिम ग्रुपों में जश्न मनाया गया। गौरी लंकेश के समय यह सब पता करने के लिए सक्रिय लिबरल समूहों ने क्या कमलेश तिवारी की हत्या का जश्न मनाने वाले किस पार्टी से जुड़े हुए थे, ये पता करने की कोशिश की? उन्होंने नहीं की क्योंकि हत्यारोपित मुस्लिम हैं।

भाजपा के 18 करोड़ सदस्य हैं। भारत के किसी न किसी व्यक्ति का कोई न कोई रिश्तेदार या परिचित भाजपा का सदस्य निकल आएगा। ऐसे में मीडिया यह कह सकता है कि आरोपित भाजपा से जुड़ा था, क्योंकि उसका फलाँ परिचित मिस्ड कॉल मार कर भाजपा का सदस्य बना है। लेकिन नहीं। कमलेश तिवारी के मामले में उनकी हत्या का जश्न मना रहे लोगों का कोई मज़हब नहीं है। वो किसी नेता के समर्थक नहीं हैं। वो किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हैं। वो किसी विचारधारा से नहीं जुड़े हैं। लेकिन हाँ, मारे गए कमलेश तिवारी को ‘कट्टरवादी’ साबित करने में मीडिया ने कोई कसर नहीं छोड़ी। अगर गौरी लंकेश अपनी वामपंथी विचारधारा के लिए बुद्धिमान थीं तो कमलेश तिवारी अपनी हिंदूवादी विचारधारा के लिए ‘कट्टरवादी’ कैसे?

गौरी लंकेश की हत्या के बाद ‘हफ़्फिंगटन पोस्ट’ ने नरेंद्र मोदी की ट्विटर टाइमलाइन खंगालनी शुरू कर दी। मीडिया पोर्टल ने दावा किया कि जो भी लोग गौरी लंकेश की हत्या का जश्न मना रहे हैं, वे राइट विंग से जुड़े हैं। हफ़ ने तो इस मामले को खंगालने के लिए अलग ट्विटर अकाउंट तक बना डाला, जिसमें केवल उन्हीं लोगों को फॉलो किया गया, जिन्हें पीएम मोदी फॉलो करते हैं। इसके बाद उन्होंने क्या लिखा, क्या रिप्लाई दिया, क्या रीट्वीट किया- यह सब देखने के बाद स्क्रीनशॉट्स लेकर दावा किया गया कि वो लोग गौरी लंकेश की हत्या से ख़ुश हैं। कमलेश तिवारी मामले में शायद ही किसी मीडिया पोर्टल ने इतनी ज्यादा मेहनत की हो।

फ़िल्म निर्माता अशोक पंडित ने पूछा कि गौरी लंकेश की हत्या पर चिल्लाने वाले आज कमलेश तिवारी की हत्या पर चुप क्यों हैं? राजनीतिक विश्लेषक सुनंदा वशिष्ठ कहती हैं कि जब तक गौरी लंकेश और कमलेश तिवारी की हत्या को एक नज़र से नहीं देखा जाएगा, तब तक हम एक लिबरल लोकतंत्र नहीं बन सकते। लेखिका शेफाली वैद्य ने ध्यान दिलाया कि गौरी लंकेश का अंतिम दर्शन करने ख़ुद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पहुँचे थे और पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। क्या कमलेश तिवारी के मामले में ऐसा संभव है? सोनम महाजन लिखती हैं कि गौरी लंकेश ने अपने अंतिम पोस्ट में नक्सलियों से मतभेद की बात की थी, लेकिन फिर भी उनकी हत्या के लिए हिंदूवादियों को ज़िम्मेदार ठहराया गया।

अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने उनलोगों की आलोचना की, जो कमलेश तिवारी की हत्या के लिए उन्हें धमकी देने वालों को ज़िम्मेदार ठहरा रहे थे। महाजन ने स्वरा से पूछा कि क्या तिवारी को धमकी देने वाले मौलवियों ने उन्हें फोन कर बताया है कि उन्होंने तिवारी को नहीं मारा? आज हजारों ट्विटर और फेसबुक एकाउंट्स कमलेश तिवारी की हत्या का जश्न मना रहे हैं, उनके पीछे कोई न कोई व्यक्ति तो बैठा होगा। जो हज़ारों लोग खुश हैं, हाहा रिएक्ट कर रहे हैं- उनकी पहचान दिख रही है और उनका मजहब भी दिख रहा है। लेकिन फिर भी, वो घृणा नहीं फैला रहे। जबकि, गौरी लंकेश पर एकाध कमेंट्स के कारण पूरे हिन्दू समाज, राइट विंग और भाजपा, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री मोदी तक को भी लपेट लिया गया था। यह दोहरा रवैया नहीं चलेगा।

गौरी लंकेश की हत्या के समय कथित दलित नेता जिग्नेश मेवानी ने तो यहाँ तक दावा कर दिया कि जिन प्रमोद मुथालिक ने गौरी लंकेश की हत्या को लेकर ‘एक कुत्ता मारा गया’ वाला बयान दिया है, वो भाजपा के सदस्य हैं। इसके बाद भाजपा नेता सीटी रवि (फ़िलहाल कर्नाटक के पर्यटन मंत्री) ने उन्हें याद दिलाया कि मुथालिक भाजपा के नहीं हैं। इससे आप समझ सकते हैं कि गिरोह विशेष के लोगों को कितनी जल्दी थी गौरी लंकेश के ख़िलाफ़ बयान देने वाले हर एक व्यक्ति का भाजपा से जुड़ाव साबित करने की। हर ‘हिंदुत्ववादी संगठन’ भाजपा से जुड़ा नहीं होता और हर भगवाधारी भाजपाई नहीं होता, ये उन्हें कौन समझाए?

गौरी लंकेश के लेख काफी शेयर किए गए। उन्होंने मोदी सरकार को लेकर क्या आलोचना की थी, अल्पसंख्यकों के बारे में क्या कहा था, उन्होंने राइट विंग पर क्या आरोप लगाए थे, सब कुछ शेयर किया गया। क्या यही ईमानदारी कमलेश तिवारी के मामले में दिखाई जाएगी? कमलेश तिवारी ने जाते-जाते अपने सोशल मीडिया पोस्ट्स में कई बातें कही हैं। उन्होंने हिन्दू समाज को एक ‘सोया हुआ और मृत’ समाज बता कर जागने की अपील की है। क्या लिबरलपंथी उनके पोस्ट्स को शेयर करेंगे? वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि कमलेश तिवारी हिंदुत्ववादी थे। गौरी लंकेश की लाश पर भांगड़ा करने वाले वामपंथी शायद कमलेश तिवारी के हत्यारों की निंदा करने से भी कोसों भागें।

लेकिन, जब जनता सब कुछ देख रही है तो दोहरे चरित्र वाले गिरगिटों को उनकी करनी याद दिलाई ही जाएगी। तुमने गौरी लंकेश की हत्या को लेकर पीएम मोदी, उनके समर्थकों, भाजपा और राइट विंग- इन सभी को हत्यारा साबित करने की कोशिश की, क्योंकि लंकेश की विचारधारा तम्हारे अनुरूप थी। लेकिन, कमलेश तिवारी की गला रेत कर की गई हत्या और पकड़े गए आरोपितों की पहचान उजागर होने के बावजूद तुम्हारे मुँह से चूँ तक न निकलेगा, क्योंकि मरने वाला हिन्दू नेता था और मारने वाले मुस्लिम, जिसमें एक मौलवी भी शामिल है। लेकिन हाँ, हत्याओं का विचारधारा के आधार पर राजनीतिकरण करने वालों की पोल ज़रूर खुल गई।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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