झारखंड विधानसभा चुनाव के अब तक के रूझानों में भाजपा और झामुमो गठबंधन के बीच काँटे की टक्कर दिख रही है। जब भाजपा की सीटें बढ़नी लगती है तब रवीश कुमार जनता को कोसने लगते हैं। वहीं जब झामुमो गठबंधन आगे निकल जाता है तो रवीश का चेहरा खिल उठता है। एनडीटीवी के स्टूडियो में एक अलग ही माहौल है, जहाँ ख़ुशी और गम इस आधार पर तय हो रहा है कि भाजपा हारती दिख रही है या फिर आगे निकलते। रवीश कुमार ने जैसे ही देखा कि भाजपा आगे बढ़ रही है, उन्होंने युवाओं को कोसते हुए कहा कि उन्हें अब रोज़गार से कोई मतलब नहीं रह गया है।
सुबह के रुझानों में कॉन्ग्रेस-झामुमो-राजद गठबंधन को बढ़त मिलती दिख रही थी, तब NDTV के स्टूडियो में एक अलग माहौल था। लेकिन जैसे ही भाजपा की तरफ काँटा बढ़ना शुरू हुआ, रवीश ने सुर बदल लिया और मतदाताओं के विवेक पर ही सवाल उठाने लगे।
रवीश बार-बार यह बात भूल जाते हैं कि लोकतंत्र में एक आम आदमी के वोट की कीमत वही होती है जो उनके जैसे परम ज्ञानियों के वोट की है। शायद यही अभिजात्यता और घमंड उन्हें हर मतदान के बाद यह कहने पर मजबूर कर देता है (भाजपा की जीत की स्थिति में) कि युवाओं को रोजगार से मतलब नहीं। उनका पूरा एजेंडा पूरे लोकतंत्र में चुनावी प्रक्रिया और एक वोट के महत्व को बेकार साबित करने पर टिका हुआ है।
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— Prabhat Khabar (@prabhatkhabar) December 23, 2019
परिणाम जब भाजपा के खिलाफ जाते हैं तब रवीश को यह याद आता है कि युवाओं ने समझदारी दिखाई है। इससे सीधा दिखता है कि रवीश और रवीश जैसों के लिए गैरभाजपा सरकार कितनी आवश्यक दिखती है। यह विचित्र बात है कि जब जनता भाजपा के खिलाफ जाती है तभी वो रवीश को समझदार दिखती है अन्यथा वो मजे लेने लगते हैं कि युवाओं को तो मतलब ही नहीं, वो तो भावनात्मक मुद्दों पर वोट दे रहे हैं।
सवाल यह है कि बदलते रुझानों के साथ रवीश-छाप लोगों के लिए जनता की प्रकृति और प्रवृत्ति भी मिनट-दर-मिनट क्यों बदलती जाती है? क्या लोकतंत्र का हर पहलू रवीश कुमार के लिए बेकार हो चुका है।