ग्रैगोरियन कैलेंडर के हिसाब से नव वर्ष आ चुका है, शुभकामनाएँ! इस साल की जनवरी का पहला दिन, पिछले साल की जनवरी के पहले दिन की तरह ‘आंदोलन’ शब्द के सामूहिक शीलहरण के साथ हमें मिल रहा है। आम नागरिक इस नौटंकी से उब चुका है, लेकिन विवश है क्योंकि जिन लोगों को इस कैंसर को हटाने के लिए चुना है, वो इसे ले कर वैसे ही उदासीन हैं, जैसे पिछले साल थे।
जज साहब सर्दियों की छुट्टियाँ मना रहे हैं, यहाँ किसान के नाम पर मुफ्त की दारू बाँटने से ले कर डीटीएच और आम लोगों के टैक्स के पैसे का फ्री वाइ-फाइ दिया जा रहा है ताकि उन्हीं आम लोगों का जीवन झंड बना रहे।
ख़ैर, नई शुरुआत आशावान होनी चाहिए। कल से कोरोना वैक्सीन के लिए राज्य सरकारें तैयारी में जुट जाएँगी और इस वैश्विक महामारी से भारत एवम् विश्व को मुक्ति दिलाने की ओर एक और सार्थक कदम उठाया जाएगा। आर्थिक क्षति हुई, लोगों की नौकरियाँ गई, हमारे सोचने-समझने का तरीका बदला, हमारी जीवनशैली बदल गई। यह पूरा साल हमें यह बता गया कि प्रकृति से बलवान कुछ भी नहीं।
कोरोना की लड़ाई में उत्तर प्रदेश विशेष बधाई का पात्र है। चाहे श्रमिकों को ले कर, वामपंथी गैंग की करतूतों को कारण डर का वातावरण तैयार करने के बाद, अराजकता फैलाने की कोशिश हो, या फिर इतनी बड़ी जनसंख्या को लगातार टेस्टिंग के साथ बचाव हेतु तैयार रखना, योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सराहनीय कार्य किया है। वरना, हमने केरल के मॉडल पर किताबें भी देखी हैं, जो मई के बाद से मिसमैनेजमेंट का एक मॉडल बन कर सामने आया।
कोरोना के आने से पहले इस देश ने दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों को झेला था। कुल 53 लाशें गिरी थीं, जिनमें हिन्दुओं की लाशें सिर्फ बेजान शरीर नहीं थे, बल्कि इस्लामी घृणा की विस्तृत तहरीर थे। किसी को जलती आग में फेंकने से पहले हाथ-पाँव काटा गया, तो किसी को छः-सात लोग मिल कर चार घंटे तक, चाकुओं से गोदते रहे। हमें ऐसी विचारधारा से, इस घृणित हिन्दू-विरोधी सोच से छोटी से छोटी बात पर भी सँभल कर रहना होगा।
पिछले साल ने भारतीय संस्कृति की रक्त, मज्जा और फेफड़ों की वायु में बसे श्री राम भगवान के जन्मस्थान पर भूमिपूजन का भी शुभ उपहार हमें दिया। यह क्षण इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा और हमें उसी भगवान का आशीर्वाद प्राप्त हुआ है कि हमारा जन्म इस समय में हुआ। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं है, बल्कि हिन्दू आकांक्षाओं का, उनकी लगातार तोड़ी जाती रही सभ्यताओं का, उनकी वैचारिक लड़ाई की परिणति का वह प्रतीक है जिसके साकार होने का स्वप्न लिए हमारे माता-पिता, दादा-दादी स्वर्गलोक चले गए। हमारी आँखों से उन्होंने भी इस दैवीय क्षण को देखा है।
ऑपइंडिया के लिए 2021 के मायने
सर्वप्रथम, आभार आप सारे पाठकों का, यूट्यूब के दर्शकों का और स्नेही मित्रों का जिन्होंने अपना समय हमें दिया, धन दे कर हमारा सहयोग किया और इस पोर्टल को नई ऊँचाइयों तक ले गए। यह गौरव की बात है कि ऑपइंडिया हिन्दी के पहले साल पूरे होने के समय से ही, हमने वामपंथी पोर्टलों को लगातार पीछे रखा है। इस दूसरे साल में भी हमें आपका सहयोग अपेक्षा से अधिक मिला, और हमने वामपंथी गैंग के नैरेटिव को लगातार काटा, अपने नैरेटिव बनाए।
पिछले साल में हमारी लड़ाई गूगल, फेसबुक और ट्विटर से लगातार चली। कहीं किसी दुष्ट ने हमारे विज्ञापन हटवाने की कोशिश की, तो कभी फेसबुक ने स्वतः, अकारण ही हमारी रीच घटा कर दस प्रतिशत कर दी। ट्विटर तो खैर वामपंथियों की गोद में खेलने का अभ्यस्त हो चुका है। इसलिए भी, हमारी आवाज को और प्रबल करने का समय आ गया है। अब आपसे अपेक्षित है कि आप हमारे तीसरे साल में हमें इतना आगे बढ़ाएँ कि हमें वामपंथी प्लेटफॉर्म्स की नौटंकियों से प्रभाव न पड़े।
इस साल हमने स्वयं में कुछ सुधार भी किए। हमने दिल्ली के हिन्दू-विरोधी दंगों की ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी, जो कि बाद में दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय के लिए एक गंभीर दस्तावेज के रूप में सामने आया। ऑपइंडिया को अपनी टीम पर गर्व है जिन्होंने दंगों के थमते ही लगातार वीडियो और टेक्स्ट के माध्यम से वामपंथियों के ‘विक्टिमहुड’ वाले नैरेटिव को काटने का काम किया।
फरवरी में दंगों की ग्राउंड रिपोर्टिंग के बाद अक्टूबर-नवम्बर में हमने बिहार चुनाव के दौरान एक महीने, अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से ग्राउंड रिपोर्ट्स किए। साथ ही, ऑपइंडिया को छोड़ कर किसी भी बड़े या छोटे संस्थान ने चुनावों के परिणाम का सही आकलन नहीं किया। हम एक छोटी संस्था होते हुए भी बिलकुल सही अनुमान लगाते हुए, सारे एग्जिट पोल्स की पोल खोल गए।
नए वर्ष में हमारी योजना है कि लम्बे आलेख, ज्यादा ग्राउंड रिपोर्ट्स, विषयों में विविधता, वीडियो में बेहतर तकनीकी गुणवत्ता लाई जाए। वीडियो को ले कर हमारी योजना पिछले साल के अप्रैल की ही थी, लेकिन कोरोना के कारण शूटिंग, स्क्रिप्टिंग, लाइटिंग, एडिटिंग, अपलोडिंग आदि सारे काम मुझे स्वयं ही करने होते हैं। जबकि ये कार्य सामान्यतया तीन लोगों का है। लेकिन, हम सब एक विचित्र समय में हैं, और हमें उसी में से बेहतर विकल्प तलाशने हैं।
एक-दो बातें हैं जो पाठकों के तौर पर आपसे माँगना चाहता हूँ। पहली माँग यह है कि एकजुट होने पर ध्यान दीजिए, और अपने बीच के लोगों को माफ करना सीखिए। हम कई बार छोटी बातों पर, अपनी आशाओं का भार लाद कर, सामने वाले से ऐसी उम्मीद करने लगते हैं कि वो हमारी ही तरह व्यवहार करे। यह सर्वथा अनुचित है। हर व्यक्ति की हर बात आपको सही नहीं लग सकती, लगनी भी नहीं चाहिए, इसलिए उसे ट्रोल करने, अपशब्द कहने से पहले एक बार पूछिए स्वयं से कि यह कहाँ तक उचित है।
जहाँ थोड़ी देर के लिए मुँह फेरने, आँख बंद करने से आपका काम बन रहा है, वहाँ माफ कीजिए और आगे चलिए। अगर आप ऐसा नहीं करेंगे तो वामपंथी लम्पट इसका फायदा उठाएँगे और आपको तोड़ेंगे। दूसरी बात यह है कि हमें अपने तरह के विचार के लोगों को प्रत्यक्ष सहयोग देना होगा। हम इस भरोसे नहीं बैठ सकते कि कोई और यह कार्य करेगा। आपसे सहयोग का तात्पर्य, आपका पाठकधर्म है। आप हमें, हमारे जैसे लोगों को पढ़िए, शेयर कीजिए, आगे ले जाइए।
वस्तुतः, हम एक संवेदनशील समय में हैं। ऑपइंडिया सिर्फ पत्रकारिता नहीं है, यह एक मुहिम है जो सनातन आस्था की प्रतिरक्षा के लिए है। यह सिर्फ रिपोर्टिंग का काम नहीं है, बल्कि वामपंथियों के कैंसरकारी नैरेटिव को काटने के लिए अपना नैरेटिव बनाने का काम है। यह पत्रकारिता से आगे वैचारिक युद्ध का उद्घोष है, जिसके भागीदार हम सब हैं। हमें अपने पात्रों को समुचित रूप से निभाना होगा, वरना जहरीले कुकुरमुत्तों की तरह वामपंथी गिरोह हावी हो जाएगा और भारत को बर्बाद कर देगा।
एकजुट होइए, सार्थक चीजें पढ़िए, विचारों में लोच रखिए लेकिन वामपंथियों की हर बात को नकारिए। हमें एक साथ आगे बढ़ना है, एक साथ कई सीढ़ियाँ चढ़नी हैं। ऑपइंडिया आपके स्नेह के लिए सदैव आभारी है।
ऑपइंडिया परिवार की तरफ से आपके अच्छे स्वास्थ्य, आपकी समृद्धि, आपके परिवार की उन्नति और राष्ट्र को नई ऊँचाइयों तक ले जाने की कामना के साथ, इस नव वर्ष की बधाई!