गुजरात में मुंद्रा पोर्ट पर हेरोइन का एक कन्साइनमेंट पकड़ा गया। चूँकि मुंद्रा पोर्ट का प्रबंधन अडानी ग्रुप के पास है इसलिए सोशल मीडिया पर अडानी ग्रुप के विरुद्ध एक दुष्प्रचार चलाया गया। इस दुष्प्रचार की शुरुआत कॉन्ग्रेस पार्टी के ट्विटर हैंडल से की गई जिसमें पूछा गया कि; देश में और भी तो पोर्ट हैं लेकिन ड्रग्स स्मगलर केवल गुजरात को ही क्यों इस्तेमाल करना चाहते हैं?
एक और ट्वीट में सवाल किया गया कि; क्या कारण हैं कि 3000 किलो ड्रग्स की बरामदगी उस राज्य से हुई जिस राज्य से प्रधानमंत्री आते हैं, गृह मंत्री आते हैं और वो भी एक निजी पोर्ट पर बरामद होना। आखिर क्या कारण है कि यहाँ सब चुप हैं? बाद में सोशल मीडिया पर सक्रिय लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम ने उसे आगे बढ़ाने का काम किया।
There are several ports across the Indian coast line, yet drug smugglers only want to use Gujarat. The all important question being, do they consider it safer? #BJPGujaratDrugsModel pic.twitter.com/qJ8JudsYb0
— Congress (@INCIndia) September 21, 2021
तरह-तरह के प्रश्न उठाए गए। उद्देश्य एक ही था; हमेशा की तरह गुजरात और अडानी की मानहानि की जाए। प्रश्न इस तरह से उठाए गए जैसे व्यापार के लिए सदियों से प्रसिद्ध गुजरात में केवल ड्रग्स का व्यापार होता है या फिर वहाँ का प्रशासन ड्रग्स के इस व्यापार को एक तरह की सुरक्षा प्रदान करता है।
– क्या कारण है कि 3000 किलो ड्रग्स उस राज्य से बरामद होना, जिस राज्य से प्रधानमंत्री आते हैं, गृहमंत्री आते हैं और वो भी एक निजी पोर्ट पर बरामद होना?
— Congress (@INCIndia) September 22, 2021
– आखिर क्या कारण हैं कि यहाँ सब चुप हैं?
: श्री @PawanKhera pic.twitter.com/kZEKv5PhEF
गुजरात लगभग ढाई दशकों से लेफ्ट-लिबरल इकोसिस्टम को राजनीतिक कारणों से खटकता रहा है। इसके पीछे का कारण यह है कि पिछले लगभग पच्चीस वर्षों से कॉन्ग्रेस के पास गुजरात की सत्ता नहीं रही है। इसलिए कभी मोदी को आगे रखकर राज्य की आलोचना की जाती है तो कभी भाजपा और हिंदुत्व को आगे रखकर, कभी गुजरात मॉडल के नाम पर तो कभी अर्थवाद के नाम पर। विरोध का माहौल इतना घिनौना है कि गुजरात और गुजरातियों पर शाकाहार के नाम पर भी आसानी से निशाना साध लिया जाता है और इस आलोचना को सामान्य बनाने की कोशिश होती है। एक लेफ्ट-लिबरल बुद्धिजीवी ने तो गुजरात की आलोचना यह कहते हुए भी की थी कि गुजरातियों के नाम पर सेना में कोई रेजिमेंट नहीं है। तब उनकी बात सुनकर यह लगा था कि सेना में एक शायर रेजिमेंट होता तो गुजरात रेजिमेंट न रहने को लेकर उनकी शिकायत को उचित ठहराने के लिए पूरा इकोसिस्टम महीनों तक लड़ता।
गुजरात के विरुद्ध इस दुष्प्रचार की शुरुआत प्रदेश को हिंदुत्व की प्रयोगशाला घोषित करने के साथ हुई थी। लगभग ढाई दशक पहले राज्य को मीडिया डिस्कोर्स में हिंदुत्व की प्रयोगशाला बताना आम बात थी। हाल यह था कि अर्थव्यवस्था और फ़िल्म सम्बंधित बहस में भी किसी न किसी बहाने लेफ्ट-लिबरल-सेक्युलर संपादक यह एक वाक्य बोलना नहीं भूलते थे और दिन में कम से कम दो बार राज्य को हिंदुत्व की प्रयोगशाला बताते थे। इसके साथ ही हिंदुत्व को हिंदुइज्म से अलग करने के प्रयासों की शुरुआत हुई थी जिसमें दोनों के बीच एक बनावटी अंतर बता हिंदुत्व को राजनीतिक सत्ता के साथ जोड़कर आम हिंदुओं से अलग करने की एक पूरी नीति अपनाई गई थी।
मीडिया डिस्कोर्स में गुजरात के विरुद्ध की गई यही शुरुआत आगे चलकर अलग-अलग रूप में सामने आती गई। मुंद्रा पोर्ट पर राजस्व खुफिया निदेशालय (DRI) द्वारा ड्रग्स की बरामदगी को लेकर कॉन्ग्रेस पार्टी ने जो दुष्प्रचार किया, वह लगभग ढाई दशक से गुजरात के विरुद्ध चल रहे दुष्प्रचार का सबसे नया संस्करण है। गुजरात को इतने स्तरों और इतनी बातों के बहाने निशाना बनाने के बावजूद इसे लेकर गुजरात में कोई विशेष विरोध नहीं देखा गया। कारण चाहे जो हो, ऐसे विरोधों को नजरअंदाज कर देने का राज्य और राज्य वासियों का गुण सहज जान पड़ता है। पर क्या किसी और राज्य के विरुद्ध इस तरह का दुष्प्रचार लगातार चलाना किसी भी व्यक्ति, संस्था या राजनीतिक दल के लिए सरल रहता?
इसे लेकर हम सब अपना-अपना अनुमान लगा सकते हैं। जैसे पिछले लगभग डेढ़ वर्षों से केरल के हवाई अड्डों पर शरीर के एक ही अंग में सोना छिपा कर लाने के मामले लगातार होते रहे हैं। उसे लेकर क्या देश की किसी राष्ट्रीय पार्टी द्वारा यह पूछा जा सकता है कि; देश में और तमाम हवाई अड्डे हैं पर केवल केरल के ही हवाई अड्डों पर अंग विशेष में सोना छिपा कर क्यों लाया जा रहा है? क्या वहाँ की सरकार या उसके मंत्री इन स्मगलर से मिले हुए हैं? कल्पना कीजिए कि यदि भारतीय जनता पार्टी यही प्रश्न पूछ लेती तो क्या-क्या हो सकता था?
अडानी ग्रुप द्वारा एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी गई है पर कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा शुरू किया गया यह दुष्प्रचार जल्द खत्म हो जाएगा, इसकी संभावना कम ही है। यह कॉन्ग्रेसी और लेफ्ट-लिबरल प्रोपेगेंडा का चरित्र रहा है कि उसे तथ्यों के सार्वजनिक होने के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ता। पार्टी की यह रणनीति हम कई और मामलों में देख चुके हैं। सर्वोच्च न्यायालय में रफाल को लेकर हुए मुक़दमे और उसका फैसला आने के बाद माफी माँगने वाले राहुल गाँधी बीच-बीच में फिर वही बातें दोहराने लगते हैं जिनके लिए उन्होंने माफी माँगी थी। ऐसे में कॉन्ग्रेस पार्टी दुष्प्रचार को लेकर अपने उस रिकॉर्ड की रक्षा के लिए सबकुछ करेगी जिसमें तथ्यों से उसका कुछ लेना-देना नहीं होता। दुष्प्रचार की यह कॉन्ग्रेसी मशीन चलती रहेगी और प्रोपेगंडा का उत्पादन होता रहेगा।