पिछले एक वर्ष में भाजपा के तीन ऐसे बड़े नेताओं का निधन हो गया, जो पार्टी के लिए संकटमोचक की भूमिका में थे। अनंत कुमार, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज- तीनों ने ही केंद्रीय मंत्री के रूप में मोदी कैबिनेट की शोभा बढ़ाई। जहाँ अनंत कुमार बिना मोदी सरकार का कार्यकाल पूरा हुए दुनिया को अलविदा कह गए, सुषमा और जेटली ने स्वास्थ्य कारणों से दूसरी बार बनी मोदी सरकार का हिस्सा बनने से मना कर दिया। अनंत कुमार के रूप में भाजपा के पास कर्नाटक में एक बहुत बड़ा चेहरा था। सुषमा स्वराज ने विदेश मंत्रालय को ह्यूमन टच देकर मोदी सरकार की साख बढ़ाई। जेटली ऑल राउंडर थे और पार्टी के लिए सभी किरदारों में फिट बैठे।
ये तो रही इन तीनों नेताओं की बात। अब बात जम्मू कश्मीर की। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को ख़त्म किए जाने व राज्य का पुनर्गठन करने के बाद विपक्षी दलों ने नाराज़गी जताई। कश्मीर में ख़ूनख़राबा जैसी वारदातें न होने को लेकर अधिकतर विपक्षी दल व गिरोह विशेष के पत्रकार आश्चर्य में हैं। कश्मीर की सड़कों पर ख़ून देखने व हिंसा भड़काने के अदि रहे नेताओं को राज्य की शांति नहीं पच रही है क्योंकि उन्हें मोदी सरकार पर आरोप लगाने का मौक़ा ही नहीं मिल रहा है। इसीलिए नेताओं ने रट लगाना शुरू कर दिया कि वहाँ सबकुछ ठीक-ठाक नहीं है।
कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी विपक्षी नेताओं का एक जत्था लेकर श्रीनगर पहुँचे ताकि अपनी आँखों से देख सकें कि घाटी में सब ठीक है या नहीं। अफ़सोस कि इन सभी नेताओं को श्रीनगर एयरपोर्ट से वापस दिल्ली भेज दिया गया। राहुल गाँधी को एयरपोर्ट से निकलने नहीं दिया गया तो वे वहाँ तैनात पुलिस अधिकारियों को कहने लगे कि राज्यपाल ने उन्हें बुलाया है। उन्होंने दावा किया कि उनके साथ आए नेताओं को बस यहाँ के स्थानीय निवासियों से बातचीत करनी है। हालाँकि, अधिकारियों पर उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ।
The govt is saying everything is okay here & everything is normal. If everything is normal why are we not allowed out?: Shri @RahulGandhi
— Congress (@INCIndia) August 24, 2019
Was it not Governor Satya Pal Malik that invited Mr. Gandhi to come to J&K and assess the situation for himself? #RahulGandhiWithJnK pic.twitter.com/jneIkpOJve
इससे पहले जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद भी श्रीनगर जाने की कोशिश कर चुके हैं लेकिन उन्हें भी एयरपोर्ट से ही वापस दिल्ली भेज दिया गया था। इस बार भी सीताराम येचुरी और मनोज झा जैसे नेताओं के साथ वह राहुल गाँधी के प्रतिनिधिमंडल में मौजूद थे। इन नेताओं को सरकार, राज्यपाल और सुरक्षा बलों की बातों पर भरोसा नहीं है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने साफ़ कर दिया कि राहुल गाँधी का यह दौरा पूरी तरह राजनीतिक था। उन्होंने पार्टियों को देशहित में राजनीति से ऊपर उठ कर सोचने की सलाह दी।
हमनें यहाँ अनंत कुमार, सुषमा स्वराज और अरुण जेटली की बात की। उसके बाद हमनें देखा कि कैसे राहुल गाँधी को जम्मू कश्मीर के नाम पर राजनीति करने का मौक़ा न देते हुए श्रीनगर एयरपोर्ट से वापस भेज दिया गया। अब बात भाजपा की एकता यात्रा की, जो जनवरी 2011 में हुई थी। भाजपा की एकता यात्रा को जम्मू कश्मीर के लखमपुर सीमा पर रोक दिया गया था। उस समय अरुण जेटली राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष थे तो सुषमा स्वराज लोकसभा में यही ज़िम्मेदारी निभा रही थीं। अनंत कुमार बैंगलोर साउथ से 5 बार लोकसभा चुनाव जीत चुके थे।
भाजपा के तीनों बड़े नेताओं को जम्मू कश्मीर पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया। उन्हें पुलिस ने जम्मू कश्मीर में घुसने नहीं दिया। भाजपा युवा मोर्चा के तत्कालीन अध्यक्ष अनुराग ठाकुर भी उनके साथ थे। ठाकुर अभी केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री हैं। उस समय सुषमा स्वराज ने पूछा था कि आखिर भाजपा नेताओं को किस अपराध के तहत गिरफ़्तार किया गया है? एक शांतिपूर्ण मार्च के बदले गिरफ़्तारी को लेकर भाजपा के नेतागण नाराज़ थे। क्या आपको पता है उस समय जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री कौन था? उमर अब्दुल्ला। वही उमर अब्दुल्ला जो अभी अपने पिता फारुख अब्दुल्ला सहित गिरफ़्तार हैं।
In 2011, Sushma Swaraj, Arun Jaitley and Ananth Kumar were arrested while trying to travel to Kashmir to unfurl the national flag at Lal Chowk on Republic Day.
— Abhishek (@AbhishBanerj) August 24, 2019
All three leaders are no more with us.
We shall never forget. The nation salutes you all. pic.twitter.com/fS02JXcyjm
जम्मू कश्मीर के नेता मिल कर जनता को उकसा सकते थे, इसीलिए सरकार ने समय रहते इन नेताओं को हिरासत में ले लिया। लेकिन, उस समय उमर अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री रहते क्या कहा था? उन्होंने कहा था कि भाजपा नेताओं के राज्य में घुसने का अर्थ हुआ अलगाववादियों को उकसाना और यह सही नहीं है। अरुण जेटली ने इसे राज्य सरकार द्वारा अलगाववादियों के समक्ष आत्मसमर्पण करार दिया था। ये वो समय था जब जम्मू कश्मीर को लेकर होने वाले हर छोटे-बड़े निर्णयों पर पाकिस्तान का गुणगान करने वाले उन अलगाववादियों की छाप रहती थी, जिनमें से अधिकतर आज टेरर फंडिंग के मामले में एनआईए की गिरफ़्त में हैं।
उस वक़्त अरुण जेटली ने दो घटनाओं का जिक्र किया था। पहले घटना में दिल्ली में कुछ लोग जमा हो गए। सभी अलगाववादी थे, जिन्होंने भारत विरोधी नारे लगाए और भड़काऊ भाषण दिए। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। वहीं जब भाजपा के नेताओं ने लाल चौक पर तिरंगा फहराने के इरादे से कश्मीर में घुसने की कोशिश की तो उन्हें रोक दिया गया और गिरफ़्तार कर लिया गया। इन नेताओं में अरुण जेटली, अनंत कुमार और सुषमा स्वराज शामिल थीं। आज ये तीनों ही नेता हमारे बीच नहीं हैं। पिछले एक वर्ष के भीतर इन तीनों का जाना न सिर्फ़ भाजपा बल्कि देश के लिए बड़ी क्षति है।
अब यह जानना ज़रूरी है जनवरी 2011 में भाजपा नेताओं को गिरफ़्तार करवाने वाली जम्मू कश्मीर सरकार का कॉन्ग्रेस भी हिस्सा थी। उस समय राज्य में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कॉन्ग्रेस की गठबन्धन वाली सरकार चल रही थी। केंद्र में भी कॉन्ग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार थी। ऐसे में, आज जब सुरक्षा व्यवस्था को देखते हुए इन कॉन्ग्रेसी नेताओं को जम्मू कश्मीर में नहीं जाने दिया जा रहा है तो इतनी हाय-तौबा क्यों? सवाल यह है कि जब अलगाववादियों के डर से विपक्षी नेताओं को राज्य में घुसने नहीं दिया जाता था, तब यही कॉन्ग्रेस सत्ता भोग रही थी। आज जब पार्टी विपक्ष में है और राज्य में पूरी तरह शांति है तो इसमें खलल डालने की कोशिश क्यों?
जम्मू कश्मीर में ख़ूनख़राबा क्यों नहीं हो रहा है ताकि हमे मोदी सरकार को घेरने का मौक़ा मिले? विपक्षी दलों के मन में बस एक यही सवाल है। भाजपा के तीनों दिवंगत नेताओं को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि राज्य में शांति बनी रहे और जो भी नेता या अलगाववादी इस शांति में खलल डालने या जनता को उकसाने की कोशिश करें, उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया जाए। अरुण जेटली ने भी अपने आखिरी ब्लॉग में जम्मू कश्मीर को लेकर सरकार द्वारा लिए गए निर्णय का स्वागत किया था। सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिया था कि उन्हें जीते जी जम्मू कश्मीर पर लिए गए ऐतिहासिक निर्णय के साक्षी बनने का मौक़ा मिला।
कॉन्ग्रेस उस पाप में बराबर की हिस्सेदार थी क्योंकि तीनों भाजपा नेताओं को गिरफ़्तार कर जबरन पंजाब भेजने का निर्णय अब्दुल्ला सरकार ने केंद्र से विचार-विमर्श के बाद ही लिया था। अंतर इतना ही है कि तब अलगाववादियों और आतंकियों के डर से ऐसा किया गया था, आज सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए विपक्षी नेताओं को वापस भेजा गया है। कॉन्ग्रेस ने जो बोया है, उसे पूरी तरह काटना अभी बाकी है। अभी तो पार्टी शुरू हुई है।