दिल्ली की हवाओं और पानी की तासीर में ऐसी जरूर कोई बेग़ैरती है कि उसके हिस्से अक्सर धूर्त, बर्बर और विखंडनकारी शासक आए। एक बड़े समय तक यह ढिल्लिका इस्लामिक आक्रांताओं और औपनिवेशिक राज का गवाह बनी, लेकिन इसके बाद भी इसके भाग्य में सुकून नहीं था। जब तक इतिहासकार अपनी राय बदलते, 2013 में एक ऐसा समय आया जब दोबारा दिल्ली में धूर्त और कपट से लोगों की भावनाओं से छल कर के एक इंसान ने सत्ता को हथिया लिया और यह क्रम जारी रखा।
दिल्ली इस बार इस अति महत्वाकांक्षी शासक के हाथों बर्बाद होने के कगार पर खड़ी है। कल शाम दिल्ली के आनंद विहार की जो तस्वीरें सामने आई हैं, कम से कम उन्हें देखने के बाद तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तुलना मध्यकालीन भारत के इतिहास के बर्बर मुस्लिम आक्रांताओं से करने में कोई झिझक नहीं हो सकती है। लेकिन केजरीवाल ने गरीब लोगों को बिना व्यवस्था के बॉर्डर पर छोड़ आने का जो ऐतिहासिक कांड इस बार किया है, उससे उनकी तुलनाओं का दायरा और बड़ हो जाता है।
कारण यह है कि पूरे विश्व के मानचित्र पर अपने पैर पसार चुके जिस चाइनीज कोरोना वायरस की महामारी के लिए चीन के शी जिनपिंग को कई लोग अपराधी मान रहे हैं तो वहीं दिल्ली में रोजगार के लिए गए हुए UP-बिहार के कामगारों के साथ धोखा कर उनकी जिंदगी को खतरे में डालने के लिए अरविंद केरजीवाल और उनकी ही सरकार के विधायक राघव चड्ढा जैसे लोग अपराधी हैं।
मुफ्त बिजली और पानी का सपना दिखाकर दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार की संवेदनहीनता और उनकी जनता के प्रति जवाबदेही की हकीकत कोरोना की महामारी के दौरान सामने आ गई है।
चुनाव जीतने के समय अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को लंदन बनाने की बात कही थी लेकिन प्रतीत होता है कि लंदन से पहले केजरीवाल पूरे भारत को ही चीन के वुहान प्रान्त में तब्दील करने की योजना बना चुके हैं। खास बात यह है कि पहले जहाँ वो अपनी नाकामयाबी के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराया करते थे, इस बार उन्होंने कोरोना वायरस में दिल्ली सरकार के इंतजाम के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को दोषी ठहराने का फैसला कर लिया है।
आनंद विहार में अपने घर जाने के लिए उमड़ी इस भीड़ से किस स्तर की त्रासदी जन्म ले सकती है, इसका हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं, और उससे भी बड़ी बात यह है कि घर जाने की उम्मीद लगाए बैठे ये लोग किस मानसिक तनाव से गुजर रहे होंगे।
केजरीवाल की इस योजना में उनका साथ देने के लिए देश की मीडिया का वह ‘आदर्श लिबरल’ गिरोह तो हमेशा से ही उनके साथ खड़ा रहा है। दी क्विंट जैसे प्रपंचकारियों ने कल रात केजरीवाल सरकार के MLA राघव चड्ढा का धूर्त चेहरा सामने आते ही यह कोशिशें शुरू भी कर दी और निरंतर यह साबित करने का प्रयास कर रहा है कि दिल्ली के आनंद विहार में जमा UP-बिहार के कामगारों की यह भीड़, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कहने पर वहाँ जमा हुई थी।
वास्तव में हक़ीक़त यह है कि लॉकडाउन के दौरान जिस विराट स्वरूप का प्रदर्शन योगी आदित्यनाथ ने किया है, वह पूरे देश के नेताओं और नीति निर्माताओं के लिए आदर्श है। 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद सबसे पहले योगी आदित्यनाथ ने ही गरीबों के लिए सरकारी खजाने खोले। यहाँ तक कि कल रात ही दिल्ली से UP की ओर पलायन कर रहे लोगों को कोई समस्या न हो, इसके लिए 1 लाख लोगों के आइसोलेशन का बॉर्डर पर ही इंतजाम की घोषणा कर दी है। योगी आदित्यनाथ की तत्परता और सेवाभाव के सामने अरविंद केजरीवाल कितने बौने साबित हो चुके हैं!
21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के बाद दिल्ली और नजदीकी इलाकों से लोग उत्तर प्रदेश और अपने गृह राज्य की तरफ पैदल निकलने लगे हैं। दिल्ली से उत्तर प्रदेश पहुँचे इन लोगों ने बताया कि दिल्ली सरकार ने बिजली-पानी के कनेक्शन काट दिए, और लॉकडाउन के दौरान उन्हें भोजन, दूध नहीं मिला। भूखे लोग सड़कों पर उतरे। यहाँ तक कि दिल्ली सरकार के अधिकारी बक़ायदा एनाउंसमेंट कर अफ़वाह फैलाते रहे कि यूपी बार्डर पर बसें खड़ी हैं, जो उन्हें यूपी और बिहार ले जाएँगी।
यह अरविंद केजरीवाल बाबा भारती और खड़ग सिंह की कहानी वाला खड़ग सिंह ही है, यह बात देर से ही सही लेकिन खुद केजरीवाल साबित करते जा रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी देखा जा रहा है कि जब सभी बड़े और छोटे समूह गरीब लोगों को होने वाली अव्यवस्थाओं में उनकी मदद करने का प्रयास कर रहे हैं, उस समय केजरीवाल सरकार के मंत्री और वो मीडिया, जिसने केजरीवाल को गोद में बिठाकर पाला है, सिर्फ और सिर्फ दिल्ली में केजरीवाल सरकार को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे हैं।
ध्यान देने की बात यह है कि जिन लोगों को मुफ्त बिजली-पानी का सपना दिखाकर अरविंद केजरीवाल तीसरी बार सत्ता में लौटे हैं, कोरोना की आपदा में सबसे पहले उन्हीं को बिजली-पानी से वंचित कर उन्हें यह सोचने पर विवश किया गया कि ऐसे में उनके पास अब सिर्फ दिल्ली छोड़कर अपने मूल को लौटना ही एकमात्र विकल्प शेष रह गया है।
उम्मीद है कि कोरोना के कहर पर समस्त देशवासी मिल जुलकर लगाम लगा देंगे, लेकिन कम से कम यह तय है कि अभिशप्त दिल्ली अभी और कई वर्षों तक केजरीवाल जैसे निरंकुश विखंडनकारियों के कपट का शिकार बनती रहेगी।