हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले बिहार में जातीय जनगणना के आँकड़े जारी किए गए थे। इसके आसपास ही बीजेपी के खिलाफ लामबंद हुई राजनीतिक पार्टियाँ ‘सामान्य वर्सेज ओबीसी-एससी-एसटी’ के नाम पर जातीय राजनीति को हवा दे रही थी। वो भी उस समय, जब अगले साल लोकसभा चुनाव हैं। उससे पहले देश के सभी हिंदुओं को एकजुट करने वाले भगवान राम के जन्मस्थल पर भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होना है।
चूँकि ये जातीय कार्ड इसीलिए उछाले जा रहे थे, ताकि हिंदू एकजुट न हो सकें, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने सभी जातिगत पार्टियों की हवा निकाल दी है। भाजपा ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मुख्यमंत्रियों और उप-मुख्यमंत्रियों के नाम पर उन 9 नामों की घोषणा की है, जिसका अंदाजा किसी को भी नहीं था। इन 9 नामों ने विपक्षी गठबंधन की हिंदुओं की एकता को खंडित करने की साजिश को एक झटके में चकनाचूर कर दिया है।
इन राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले सड़क से लेकर संसद तक कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी खुलेआम ओबीसी-ओबीसी की रट लगाए हुए थे, तो I.N.D.I. गठबंधन की अन्य पार्टियाँ जैसे सपा, आरजेडी, जेडीयू भी ‘जिसकी जितनी संख्या भारी’ के नाम पर जातिगत कार्ड खेल रही थीं। ये सभी राजनीतिक दल पूरे देश के हिंदुओं को जातीय रूप से राजनीतिक तौर पर खंड-खंड करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन 3 दिसंबर, 2023 को जब इन राज्यों में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए, तो I.N.D.I. गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी और दो राज्यों में सत्ता संभाल रही कॉन्ग्रेस पार्टी की बुरी तरह से हार हुई।
इसके बाद से एक सप्ताह से अधिक समय तक भाजपा ने तीनों ही राज्यों में मुख्यमंत्रियों के नामों की घोषणा नहीं की और जब 10, 11 और 12 दिसंबर को छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के नामों की घोषणा हुई, तो विपक्षी गठबंधन के नेताओं के सारे दाँव-पेंच एक झटके में स्वाहा हो गए।
BJP ही सोशल इंजीनियरिंग की असली मास्टर
बीजेपी ही राजनीति में सोशल इंजीनियरिंग लेकर आई थी। गोविंदाचार्य, उमा भारती, राम प्रकाश गुप्ता जैसे नामों को आगे बढ़ाया और अब इस बार तीन राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद सभी राज्यों में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पदों के लिए ऐसे नाम सामने रख दिए हैं, जिनका विरोध करते विपक्षी पार्टियों को कुछ सूझ ही नहीं रहा है। बीजेपी ने जनजातीय, ओबीसी और ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए, तो दलित, राजपूत, ब्राह्मण, ओबीसी वर्ग के नेताओं को उप-मुख्यमंत्री बनाकर फिर से अपनी सोशल इंजीनियरिंग वाली छाप छोड़ दी है।
इसका असर सोशल मीडिया पर भी दिख रहा है। राजस्थान में दशकों बाद ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाकर, मध्य प्रदेश में यादव मुख्यमंत्री बनाकर और छत्तीसगढ़ जैसे जनजातीय बहुल राज्य में जनजातीय व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने के बाद सोशल मीडिया तक में बीजेपी का समर्थन बढ़ा है। कई ऐसे सोशल मीडिया हैंडल, जो अब तक ओबीसी हितैषी और I.N.D.I. गठबंधन के हितैषी बने नजर आते थे, वो भी बीजेपी के इन मास्टरस्ट्रोक्स के चलते खामोश हो गए हैं। आइए, बताते हैं कि बीजेपी ने तीनों राज्यों में किन-किन लोगों को कमान सौंपी है।
छत्तीसगढ़ : भारतीय जनता पार्टी ने छत्तीसगढ़ में प्रचंड जीत हासिल की। संख्याबल के हिसाब से जनजातीय राज्यों में सबसे बड़े राज्यों में से एक छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने वरिष्ठ जनजातीय नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाया। बीजेपी ने 10 दिसंबर को छत्तीसगढ़ में सोशल इंजीनियरिंग का असली पाठ विपक्षी दलों को पढ़ाया। यहाँ जनजातीय मुख्यमंत्री के बाद ब्राह्मण चेहरे विजय शर्मा को उप मुख्यमंत्री बनाया, तो राज्य के सबसे बड़े वोटर वर्ग ओबीसी से अरुण साव को भी उप-मुख्यमंत्री बनाया। यही नहीं, अरुण साव ही इस समय छत्तीसगढ़ बीजेपी के अध्यक्ष भी हैं। इससे भी आगे बढ़ते हुए बीजेपी ने तीन बार के मुख्यमंत्री रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष बनाया। वो छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ विधायक भी हैं। इस समय से छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने जनजातीय, ओबीसी और सामान्य तीनों ही वर्गों को सम्मान दिया।
मध्य प्रदेश : बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन किया। इस बार बीजेपी ने दो तिहाई से भी अधिक सीटों पर जीत हासिल की। 11 दिसंबर को बीजेपी ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री, उप-मुख्यमंत्री के नामों की घोषणा की। बीजेपी ने ओबीसी चेहरे शिवराज सिंह चौहान को ओबीसी चेहरे डॉ मोहन यादव से रिप्लेश किया। पार्टी ने दलित नेता जगदीश देवड़ा को उप-मुख्यमंत्री बनाया, तो ब्राह्मण चेहरे राजेंद्र शुक्ला को भी उप-मुख्यमंत्री बनाया। यही नहीं, बीजेपी ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर को विधानसभा अध्यक्ष बनाया। इस तरह से एक बार फिर से बीजेपी ने अपने सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले से विपक्षियों को चौंका दिया।
खास बात ये है कि डॉ मोहन यादव उस यादव समाज से आते हैं, जो पड़ोस के उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ओबीसी राजनीति की अगुवाई करती है। इन्हीं राज्यों में विपक्ष ओबीसी-ओबीसी का खेल खेलने की कोशिश में थी, लेकिन डॉ मोहन यादव के नाम की घोषणा कर बीजेपी ने सपा, RJD, JDU जैसी पार्टियों की राजनीतिक जमीन ही खिसका दी। खास बात ये है कि डॉ मोहन यादव की ससुराल यूपी के सुल्तानपुर (अवध क्षेत्र) में है। ऐसे में इटावा से पूरे राज्य के यादव वोटबैंक को साध रही अखिलेश की सपा के लिए डॉ मोहन यादव का नाम ही बड़ी चुनौती बन गया है।
चूँकि ओबीसी और खासकर यादव-मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति करने वाली सपा के सामने अब भाजपा का सोशल इंजीनियरिंग वाला हिंदुत्व खड़ा हो गया है, ऐसे में उनकी बोलती बंद हो गई है।
राजस्थान : बीजेपी ने 12 दिसंबर को तीसरे राज्य राजस्थान में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री पद के लिए नामों की घोषणा की। बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया है। वो पहली बार विधानसभा के लिए चुने गए हैं, लेकिन लंबे समय से RSS से जुड़े हुए हैं। भजन लाल के साथ दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा को उप-मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया है। दीया कुमारी जहाँ आमेर राजघराने से आती हैं, वहीं प्रेमचंद बैरवा राजस्थान में भाजपा का दलित चेहरा हैं। इस तरह से राजस्थान में भी बीजेपी ने सोशल इंजीनियरिंग का अच्छा उपयोग किया है।
इन 9 नामों में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व तो है ही, साथ ही उन ब्राह्मणों के लिए भी संदेश है कि पार्टी उन्हें अनदेखा नहीं कर रही है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में ब्राह्मणों को उप-मुख्यमंत्री पद मिला है, तो राजस्थान में मुख्यमंत्री पद। कई सालों पर ऐसा हुआ है, जब हिंदी पट्टी में बीजेपी ने किसी ब्राह्मण को मुख्यमंत्री पद सौंपा हो। खास बात ये है कि अगले साल लोकसभा चुनाव है। ऐसे में राजनीतिक तौर पर सबसे ज्यादा जागरुक ब्राह्मणों की तरफदारी अब बीजेपी को काफी फायदा देने वाली है। वहीं, डॉ मोहन यादव के दम पर वो यूपी और बिहार की जातीय पार्टियों को खुली चुनौती पेश कर पाएगी। जबकि विष्णुदेव साय के होने का फायदा बीजेपी को झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा जैसे जनजातीय राज्यों में मिलने वाला है।
किन बातों के दम पर मजबूत होती जा रही बीजेपी?
हिंदुत्व विचारधारा: बीजेपी की मूल विचारधारा हिंदुत्व एक एकजुट हिंदू पहचान पर जोर देता है, जो जातिगत अंतरों से ऊपर है। यह कथा कई हिंदुओं के साथ प्रतिध्वनित होती है जो अपनी सांस्कृतिक विरासत को वापस पाने और भारत में अपनी बहुसंख्यक स्थिति का दावा करने का प्रयास करते हैं।
विकास का एजेंडा: बीजेपी का आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित विभिन्न हिंदू समुदायों से समर्थन आकर्षित किया है, चाहे जाति कुछ भी हो। यह समावेशी दृष्टिकोण समाज के विभिन्न स्तरों से समर्थन प्राप्त कर रहा है।
रणनीतिक गठबंधन: बीजेपी ने विभिन्न जातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन किए हैं, जिससे इसकी अपील बढ़ गई है और इसके चुनावी आधार को मजबूत किया गया है।
जाति-आधारित दलों का कमजोर होना: पारंपरिक जाति-आधारित दलों का पतन एक ऐसी शून्यता पैदा कर चुका है जिसे बीजेपी ने प्रभावी ढंग से भर दिया है, खुद को एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में पेश कर रही है। बीजेपी ने जाति आधारित पार्टियों के लिए अपनी सोशल इंजीनियरिंग से ऐसी चुनौती पेश की है, जिसकी काट निकाल पाना इन दलों के लिए आसान नहीं रहने वाला।
बीजेपी का दूरदर्शी और सक्षम नेतृत्व, करिश्माई नरेंद्र मोदी
नरेंद्र मोदी का नेतृत्व बीजेपी के लिए दूरदर्शी और सक्षम रहा है। उन्होंने भारत को दुनिया की एक प्रमुख ताकत के रूप में स्थापित करने में मदद की है। उनके नेतृत्व में भारत ने आर्थिक विकास, बुनियादी ढांचे के निर्माण और सामाजिक कल्याण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। मोदी एक करिश्माई नेता हैं जो लोगों को प्रेरित करने में सक्षम हैं। उन्होंने भारत को एक अधिक मजबूत और समृद्ध देश बनाने के लिए एक स्पष्ट दृष्टि प्रदान की है। उनकी नीतियों ने भारत में विकास और परिवर्तन को प्रेरित किया है।
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने भारत में एक नई राजनीतिक युग की शुरुआत की है। उनकी नीतियों ने भारत को एक अधिक मजबूत, समृद्ध और समावेशी देश बनाने में मदद की है। वहीं, दूसरे दलों के पास अब भी नरेंद्र मोदी का कोई तोड़ नहीं दिखता।
इंडी गठबंधन के पास नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई प्लान ही नहीं!
अब लोकसभा चुनाव 2024 में महज कुछ माह का ही समय बचा है। चूँकि अभी तक जातिगत जनगणना और मंडल की राजनीति कर एकजुट होने की कोशिश कर रही राजनीतिक पार्टियों के पास कोई मुद्दा ही नहीं बचा है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को रोकने के लिए अब इंडी गठबंधन व अन्य राजनीतिक दलों को नए सिरे से रणनीति बनानी पड़ेगी। फिर इन दलों की रणनीति जो अब तक नरेंद्र मोदी को रोकना तो दूर, उनकी चुनावी जीत की रफ्तार तक को धीमा नहीं कर पाई, वो सिर्फ कुछ माह में किस तरह की नई रणनीति बनाएंगे, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।
साफ है, भारतीय जनता पार्टी ने इन तीन राज्यों में मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री पदों पर जिन नामों को बैठाया है, उनका असर लंबे समय तक रहने वाला है। वैसे भी, बीजेपी को पसंद करने वाली जनता हर तरफ से बीजेपी के साथ ही खड़ी दिखाई दे रही है, ऐसे में तीन राज्यों के माध्यम से पूरे देश के हिंदुओं को एकजुट करने वाले बीजेपी के इस कदम से उसके लिए लोकसभा चुनाव 2024 में जीत की हैट्रिक और नरेंद्र मोदी का तीसरा बाद प्रधानमंत्री बनना लगभग तय ही हो गया है।