Friday, November 22, 2024
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जाति है कि जाती नहीं… यूपी में अब विकास दुबे और फूलन देवी भी नायक? चुनावी मेंढक कर रहे अपराधियों का गुणगान

आश्चर्य तब होता है जब राजेंद्र नाथ त्रिपाठी जैसे नेताओं को विकास दुबे तो याद आते हैं लेकिन DSP देवेंद्र मिश्रा नहीं। श्रीप्रकाश शुक्ला ने भी पहला खून जिस व्यक्ति का किया था, उनका नाम राकेश तिवारी था।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब मात्र लगभग 6 महीने का समय ही बचा है, ऐसे में अब सभी क्षत्रप एक-एक कर जाति के नाम पर राजनीति खेलने में लग गए हैं। जाति के नाम पर भी उन्हें कोई अच्छे लोग नहीं, बल्कि अपराधी ही याद आ रहे हैं। किसी को ब्राह्मण के नाम पर विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला तो किसी को निषाद के नाम पर फूलन देवी याद आ रही है। आगे बढ़ने से पहले कुछ ताज़ा घटनाक्रम देखते हैं।

उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब जब मायावती की ‘बहुजन समाज पार्टी (BSP)’ ब्राह्मणों को रिझाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है और हर जिले में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित करवा रही है, उधर कुछ अन्य गुट भी ब्राह्मणों का वोट पाने के लिए बेताब हैं। ‘अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा’ के अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी ने कानपुर के चौबेपुर स्थित बरुआ गाँव में भगवान परशुराम मंदिर के भूमि पूजन एवं शिलान्यास कार्यक्रम में विकास दुबे और श्रीप्रकाश शुक्ला का महिमामंडन किया।

आगे बढ़ने से पहले बता देते हैं कि ये दोनों कौन थे। विकास दुबे कानपुर का एक ऐसा अपराधी था, जिस पर उत्तर प्रदेश के विभिन्न थानों में 60 से भी अधिक मामले दर्ज थे। उस पर एक मंत्री की हत्या का आरोप था। जुलाई 2020 में उसने 8 पुलिसकर्मियों को मार डाला था। 90 के दशक में उसने बसपा जॉइन की थी और स्थानीय चुनाव भी जीते थे। उस पर बल-प्रयोग के आरोप लगे। हालाँकि, बिकरू गाँव में पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद वो बच नहीं सका और एक एनकाउंटर में मारा गया।

वहीं श्रीप्रकाश शुक्ला की बात करें तो वो एक शार्प शूटर था, जिसने कई हत्याएँ की थीं। और तो और, उसने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी ले ली थी। 1998 में पटना में मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या में उसका नाम आया था। उससे पहले वो कई हत्याएँ व फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं को अंजाम दे चुका था। उसकी तलाश में यूपी पुलिस को 1 करोड़ से अधिक रुपए खर्च करने पड़े थे और 1 लाख किलोमीटर खाक छाननी पड़ी थी।

सितंबर 1998 में गाजियाबाद स्थित वसुंधरा में STF के साथ एनकाउंटर के दौरान उसकी मौत हो गई। आश्चर्य तब होता है जब राजेंद्र नाथ त्रिपाठी जैसे नेताओं को विकास दुबे तो याद आते हैं लेकिन देवेंद्र मिश्रा नहीं। वही DSP देवेंद्र मिश्रा, जो विकास दुबे को गिरफ्तार करने गए थे। उन्हें दुबे व उसके गुर्गों ने बेरहमी से मार डाला था। त्रिपाठी जैसे लोगों को राकेश तिवारी नहीं याद आते। ये वही व्यक्ति थे, जिनकी सबसे पहले श्रीप्रकाश शुक्ला ने हत्या की थी।

क्या इन अपराधियों ने हत्या से पहले देवेंद्र मिश्रा और राकेश तिवारी की जाति पूछी? नहीं। फिर दर्जनों निर्दोषों को मार गिरा चुके इन अपराधियों के लिए जाति के ठेकेदारों के मन में प्यार क्यों उमड़ता है? जब बात ब्राह्मणों की ही हो तो इन्हें बलिया में जन्मे मंगल पांडे क्यों नहीं याद आते? लेकिन नहीं, ये तो वोट की राजनीति है और स्वतंत्रता सेनानियों का नाम लेकर उन्हें लगता है कि वोट नहीं मिलेंगे और अपराधियों का महिमामंडन कर पब्लिसिटी और फुटेज, दोनों मिलेगी।

इन स्वयंभू ठेकेदारों ने कभी जाकर देवेंद्र मिश्रा के परिवार का हाल नहीं लिया होगा। अगर जातिवाद करना ही है तो इन्हें उन निर्दोषों के हित में करना चाहिए, जो अपराध का शिकार हो गए – न कि अपराधियों के लिए। इसी तरह विकास दुबे के मारे जाने के बाद भी उसके समर्थन में माहौल बनाया गया था और योगी आदित्यनाथ की सरकार को बदनाम करने के प्रयास हुए थे। विकास और श्रीप्रकाश के बारे में त्रिपाठी का कहना है कि वो महापुरुष और वीरता के प्रेरणास्रोत थे।

ये भी कहा गया कि इन दोनों के साथ अन्याय हुआ। साथ ही पूछा गया कि अगर वो दोषी थे तो फिर न्यायालय सज़ा देती, सरकार ने क्यों दी? कोई इनसे पूछे कि जो अपराधी पुलिस की पकड़ में नहीं आते थे, जिन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था और जो तमाम तरह के तिकड़म कर के न्यायपालिका की आँखों में धूल झोंकते थे, उन्हें कैसे कोई कोर्ट सज़ा दे सकते है? पकड़ कर तो पुलिस ही लाएगी। इन्होंने हथियार उठाया, ये मारे गए।

इसी तरह खुद को ‘सन ऑफ मल्लाह’ कहने वाले बिहार के नेता और ‘विकासशील इंसान पार्टी (VIP)’ के अध्यक्ष मुकेश सहनी भी सोच रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में डकैत फूलन देवी की प्रतिमा लगा कर ही वोट मिलेंगे। फूलन देवी के साथ शुरुआत में जो अत्याचार हुआ, उसे लेकर अक्सर जातिवादी माहौल बनाने की कोशिश होती है। वो मिर्जापुर से 2 बार सांसद ज़रूर रही, लेकिन उस पर एक गाँव में 22 लोगों के नरसंहार सहित 48 आपराधिक मामले दर्ज थे।

वाराणसी से लेकर बाँदा तक, VIP ने फूलन देवी की प्रतिमा लगा कर माहौल बिगाड़ने की साजिश रची थी, लेकिन पुलिस ने समय रहते इन्हें रोका। मुकेश सहनी वही हैं, जो बिहार में एक अदद विधानसभा चुनाव में भी अपनी सीट से हार गए थे। इसी तरह जालौन के कालपी तहसील के शेखपुर गुड़ा गाँव में फूलन देवी की मौत की बरसी पर श्रद्धांजलि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा सांसद विशम्भर प्रसाद निषाद पहुँच गए

उन्होंने फूलन देवी की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और शॉल ओढ़ाकर उनकी माँ और बहन का सम्मान किया। उन्होंने फूलन देवी को ‘शहीद’ बताते हुए कहा कि सपा की सरकार आते यहाँ की समस्याओं का समाधान किया जाएगा। इसी तरह निषाद पार्टी के राज्य महासचिव और 2018 बुलंदशहर हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक शिखर अग्रवाल पर लोगों के एक समूह को फूलन को गोली मारने वाले व्यक्ति को मारने के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया है। ये घटना बुलंदशहर की है।

कुछ दिनों पहले कॉन्ग्रेस नेता जतिन प्रसाद भाजपा में शामिल हुए, जिसके बाद से ही अन्य दलों ने रिझाने की राजनीति शुरू कर दी है क्योंकि उन्हें डर है कि जिस तरह से भाजपा को हिन्दुओं का हाथ मिल रहा है, ब्राह्मणों को तोड़े बिना वो उसे नहीं रोक पाएँगे। अब तो सपा ने भी बलिया से ब्राह्मण सम्मेलन शुरू करने का ऐलान कर दिया है। पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इससे पहले 5 ब्राह्मण नेताओं से मुलाकात भी की।

ओमप्रकश राजभर पहले से ही अपनी पार्टी को राजभर समुदाय का ठेकेदार मानते हैं। साथ ही वो असदुद्दीन ओवैसी के साथ उस गाजी मियाँ की मजार पर भी जाते हैं, जिसे राजा सुहेलदेव ने मार गिराया था। राजभर समुदाय राजा सुहेलदेव को अपने समाज का मानता है और उनका अत्यधिक सम्मान करता है। ओवैसी भी मुस्लिम वोटों की जुगत में हैं। सपा किस तरह यादवों और बसपा दलितों से खुद को जोड़ती रही है, ये छिपा नहीं है।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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