राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में CAA/NRC के ख़िलाफ़ हुए विरोध-प्रदर्शन का अंजाम फरवरी 2020 आते-आते क्या हुआ था, इससे सब भली-भाँति वाकिफ हैं। आज सबको मालूम है कि आखिर किन कारणों से उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़की। दिल्ली पुलिस की चार्जशीट हो या फिर सामने आए तमाम प्रमाण… हर तथ्य इस बात को साबित करते हैं कि दिल्ली का माहौल कुछ ऐसे पढ़े-लिखे नासमझों के कारण पूरे साल संघर्ष करता रहा, जिन्होंने आम जनता को समझाने की बजाय उन्हें बरगलाया और प्रदर्शन के नाम पर उनमें केंद्र सरकार के साथ-साथ एक समुदाय, एक विचारधारा और एक संस्कृति के प्रति घृणा भरने का काम किया।
आज इस साल का आखिरी दिन है। कई लोग खुश हैं कि 2020 का अंत हुआ। लेकिन इस बीच कुछ लोग ऐसे हैं जो साल के अंत में भी अपने एजेंडे को हवा देने से बाज नहीं आ रहे। कॉन्ग्रेस को ही देखिए, आज एक ट्वीट किया है और इस ट्वीट में वह अपने दोहरेपन की पराकाष्ठा को एक बार फिर पार करते हुए दिखे। ट्वीट में कॉन्ग्रेस ने लिखा, “शांतिपूर्ण ढंग से अपने विरोध को जता कर दिलों को जीता जाता है, नफरत से सिर्फ चुनाव जीते जाते हैं। बीजेपी ने देश को नफरत की आग में झोंका है।”
इस ट्वीट के साथ उन्होंने दो तस्वीर लगाई। दोनों तस्वीर जनवरी 2020 की है। एक ट्वीट में महात्मा गाँधी की तस्वीर हाथ में लिए सीएए का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी हैं, जिसका बैकग्राउंड नीला है और उस पर लिखा है- “राष्ट्र ने एक साथ होकर शांतिपूर्ण ढंग से सीएए का विरोध किया।” दूसरी तस्वीर में लाल बैकग्राउंड में शाहीन बाग में गोली चलाने वाला नाबालिग लड़का है, जिसने कथित तौर पर कासगंज में कट्टरपंथी भीड़ के हाथों मारे गए चंदन गुप्ता की मौत से परेशान होकर इस काम को अंजाम दिया और उसकी तस्वीर पर कैप्शन लिखा है, “उग्र दक्षिणपंथी ने जामिया विश्वविद्यालय के बाहर गोली चलाई।”
अब सीएए/एनआरसी प्रदर्शन के दौरान हिंदुओं द्वारा गोलीबारी करने की ऐसी घटना कितनी घटी या उनके उद्देश्य क्या थे, इसे आप उंगलियों पर गिन सकते हैं। मगर जो शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन के नाम पर जहर समाज में तैयार किया गया क्या उसे आप आँक पाएँगे? या क्या कॉन्ग्रेस कभी उन पर खुल कर बात कर पाएगी?
आज कॉन्ग्रेस के ट्वीट में दक्षिणपंथी शब्द के साथ ‘उग्र’ विशेषण बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल किया गया है। लेकिन जो सवाल उठाने वाली बात है वो यह कि क्या कभी आपने कॉन्ग्रेस को जामिया में हुई हिंसा और उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुए दंगे करवाने वाले दंगाइयों के लिए ‘कट्टरपंथी’ शब्द का इस्तेमाल करते देखा है? इसी कॉन्ग्रेस ने क्या कभी शरजील इमाम की उस स्पीच पर बात की है, जिसमें वह असम को भारत से काटने की बात कर देता है और देश के लिबरल गिरोह को उसमें एक क्रांति नजर आई थी?
वास्तविकता में कॉन्ग्रेस न तो कभी दिल्ली पुलिस पर फेंके गए पत्थरों पर बात करती है और न ही विरोध के नाम पर सार्वजनिक संपत्तियों को पहुँचाए गए नुकसान पर। आग में जलती बसें उन्हें देश की संपत्ति नजर नहीं आती। बाधित आवागमन उन्हें चिंता का विषय नहीं लगता। सबसे अजीब बात शाहीन बाग का हिंदू लड़का कॉन्ग्रेस को साल के आखिर तक याद आता है, मगर उत्तर पूर्वी दिल्ली में पुलिस पर बंदूक तानने वाला शाहरुख उनकी स्मृतियों से बिलकुल गायब हो जाता है। उसे जामिया में गोली चलाने वाले नाबालिग का चेहरा दिखाने से उसे गुरेज नहीं है। उन्हें वो शरजील उस्मानी देश का दुश्मन नहीं लगता जो शाहरुख पठान की हरकत पर गौरवान्वित होता है बल्कि वो आरएसएस लगती है जो मुश्किल की घड़ी में लाखों घर में बुनियादी जरूरतों का सामान पहुँचाती है।
वर्तमान में कॉन्ग्रेस फिलहाल किसान आंदोलन के जरिए अपनी पृष्ठभूमि बचाने के लिए प्रयासरत है। उससे पहले उन्हें हाथरस केस के बहाने अपनी राजनीतिक जमीन बचाने का मौका मिला था। इसी तरह जून जुलाई में उन्हें चीन के ख़िलाफ़ उठाए गए भारत के कदमों पर सवाल ख़ड़ा करना महत्तवपूर्ण समझा था। अप्रैल-मई के महीने में लॉकडाउन पर सवाल उठा कर कॉन्ग्रेस वामपंथियों की प्रिय बनी थी। उससे पहले दिल्ली दंगे और सीएए/एनआरसी के विरोध प्रदर्शन ने उन्हें 2020 में जीवन दान दिया था
मगर, इन सबके के बीच एक सवाल यह है कि कॉन्ग्रेस साल दर साल अलग-अलग मौकों पर ये सब क्यों कर रही है? आज उन्हें हिंदू घृणा फैलाने के लिए ये ट्वीट करने की क्या आवश्यकता थी? जाहिर है लोकतांत्रिक देश में विपक्षी पार्टी होने के लिहाज से तो बिलकुल नहीं, क्योंकि 2014 के बाद से ही केंद्र सरकार के विशुद्ध विरोधी कॉन्ग्रेस ने कभी खुद को विपक्ष नहीं समझा। उनकी हरकतों को देखकर यही लगा है कि उन्हें बस विपक्ष की कुर्सी पर बैठकर सरकार की आलोचना करनी है। उनके प्रति अपनी कुंठा निकालनी है। बात चाहे जनता की भलाई की हो या देश के फायदे की। उनके हर बयान बताते हैं उनका वाबस्ता राष्ट्रहित से ज्यादा केंद्र सरकार की आलोचना रहा है।
जो पार्टी बालाकोट एयरस्ट्राइक होने पर अपने सिपाहियों के साहस पर उंगली उठा दे, उनसे यदि हम उम्मीद रखते हैं कि साल 2020 में वो हकीकत पर बात करेंगे, तो ये हमारी मूर्खता है। इस वर्ष मौकापरस्त कॉन्ग्रेस का असली चेहरा खूब सामने आया है। लेकिन साल के अंत में आज उनका ये ट्वीट बताता है कि कहीं न कहीं वो ये बात स्वीकार चुके हैं कि राजनीति में उनका करियर आखिरी दम भर रहा है और केवल वामपंथी-कट्टरपंथी ही इसे ऑक्सीजन देकर बचाए रखने का काम कर सकते हैं।