महाराष्ट्र में नवंबर 2024 में विधानसभा चुनाव होना है। भाजपा लोकसभा चुनाव में राज्य में झटका मिलने के कारण ज़रूर तनाव में होगी, लेकिन उधर झूठ को हथियार बना कर I.N.D.I. गठबंधन वालों ने सत्ता हथियाने के लिए अपना अभियान शुरू कर दिया है। इसके लिए न सिर्फ छत्रपति शिवाजी महाराज जैसे युगपुरुष, बल्कि दलितों में पैठ बनाने के लिए बाबासाहब भीमराव आंबेडकर के नाम का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। साथ ही मनोज जरांगे के नेतृत्व वाले मराठा आरक्षण आंदोलन को भी इसके लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
महाराष्ट्र में क्षेत्रवाद की आग बालासाहब ठाकरे के ज़माने से ही भड़कती रही है, जब यूपी-बिहार वालों के खिलाफ शिवसेना-मनसे घृणा फैलाती थी। राज्य में जब भाजपा की सरकार बनी, तब इसमें कमी आई। हालाँकि, अब साजिश है कि फिर से राज्य को आंदोलनों में झोंक दिया जाए और केंद्र व प्रदेश सरकारों के खिलाफ जनता को सड़क पर लाकर अशांति व अराजकता का माहौल बना दिया जाए। I.N.D.I. गठबंधन वालों ने देख लिया है – दुष्प्रचार और अराजकता उनकी सफलता की गारंटी बन रही है।
महाराष्ट्र: 2019 और 2024 के चुनावी आँकड़ों का विश्लेषण
हम बात करेंगे कि कैसे कॉन्ग्रेस पार्टी ने अपना दुष्प्रचार अभियान शुरू कर दिया है, लेकिन उससे पहले डेटा देखना ज़रूरी है। ताज़ा लोकसभा चुनावों की बात करें तो महाराष्ट्र की 48 में से 30 सीटें जीत कर I.N.D.I. गठबंधन उत्साह में है। चुनाव में एक निर्दलीय की जीत हुई है, लेकिन सांगली से चुने गए विकास प्रकाशबापू पाटिल कॉन्ग्रेस के ही बागी हैं। अगर वो लौटते हैं तो महाराष्ट्र में I.N.D.I. गठबंधन की सीटें 31 तक पहुँच जाएगी और देश में कॉन्ग्रेस तिहाई आँकड़े को छुएगी।
महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस को 13, शिवसेना (UBT) को 9 और NCP (SP) को 8 सीटें आई हैं। वहीं NDA की बात करें तो भाजपा को मात्र 9 सीटें ही मिली, वहीं उसके सहयोगी दलों बालसाहेबांची शिवसेना ने 7 और NCP (अजीत पवार गुट) मात्र 1 सीट ही जीत सकी। शिवसेना और NCP टूट चुकी है और इसका एक-एक धड़ा सत्तापक्ष और विपक्ष के साथ है। कुल मिला कर राज्य में I.N.D.I. गठबंधन 30 और NDA ने 17 सीटें अपने नाम की। अब देखते हैं 2019 में क्या हुआ था।
2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने अकेले 23 सीटें अपने नाम की थी, जबकि अखंडित शिवसेना ने तब 18 सीटें जीती थीं। इस तरह NDA का आँकड़ा तब 41 का था, जो अब 17 हो गया है। वहीं कॉन्ग्रेस को सिर्फ 1 सीट ही मिल सकी थी, जबकि अखंडित NCP ने 4 सीटें अपने नाम की थीं। इस तरह I.N.D.I. गठबंधन सीधा 5 से 31 तक पहुँच गया। यानी, महाराष्ट्र में पासा पलट गया है। लेकिन, हमें इससे पहले ये भी देखना होगा कि वोट शेयर क्या कहते हैं।
अगर हम वोट शेयर पर नज़र डालें तो 10 सीटें ऐसी हैं जहाँ NDA को 5% या उससे कम अंतर से हार मिली है। अमरावत, बीड, धुले और मुंबई नॉर्थ-सेन्ट्रल में हार का आँकड़ा 2% से भी कम रहा। 26.18% वोट शेयर के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, जबकि कॉन्ग्रेस 16.92% के साथ दूसरे स्थान पर है। कुल वोट शेयर की बात करें तो I.N.D.I. गठबंधन और NDA के वोट शेयर का अंतर मात्र 1.18% ही है। सतारा और रत्नागिरी, इन दोनों सीटों पर भाजपा पहली बार जीती। शिवसेना के गढ़ रहे कोंकण में भाजपा ने 6 में से 5 सीटें अपने नाम की।
दुष्प्रचार और अराजकता के सहारे कॉन्ग्रेस का विधानसभा अभियान
कॉन्ग्रेस पार्टी ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। कॉन्ग्रेस के मीडिया एवं पब्लिसिटी विभाग के अध्यक्ष पवन खेड़ा ने दावा किया कि भाजपा ने महाराष्ट्र में हार की खीझ में संसद भवन परिसर से छत्रपति शिवाजी महाराज और बाबासाहब भीमराव आंबेडकर की प्रतिमाओं को हटा दिया है। क्या कोई भी पार्टी इतनी मूर्ख हो सकती है कि इन दोनों हस्तियों की मूर्तियाँ हटा दें, वो भी चुनाव से पहले? लेकिन नहीं, कॉन्ग्रेस ने भाजपा को लेकर नकारात्मक माहौल बनाने के लिए ऐसा दावा किया।
जबकि सच्चाई यह थी कि इन मूर्तियों को पुराने संसद भवन से नए संसद भवन परिसर में स्थानांतरित किया जा रहा था। सितंबर 2023 में ही नए संसद भवन की इमारत का उद्घाटन हुआ है, ऐसे में वर्षों से चल रही पुरानी संसद भवन परिसर से चीजों को नए संसद भवन में लेकर रखा जा रहा है। न सिर्फ छत्रपति शिवाजी महाराज, बल्कि महाराणा प्रताप और बिरसा मुंडा की मूर्तियाँ भी नए संसद भवन में लाई गईं। कॉन्ग्रेस के कम्युनिकेशन इंचार्ज जनरल सेक्रेटरी जयराम रमेश ने इसे अत्याचार करार दिया।
लोकसभा सेक्रेटेरिएट ने भी बयान दिया कि इन महान हस्तियों की मूर्तियों को सम्मानपूर्वक नए संसद भवन में लाया जा रहा है। सोचिए, जब तक सच्चाई सामने आती है झूठ मीलों का सफर तय कर चुका होता है। छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म पुणे के जुन्नर में हुआ था, जबकि BR आंबेडकर का परिवार मूल रूप से रत्नागिरी के आंबडवे से था। बॉम्बे नॉर्थ और भंडारा से उन्होंने चुनाव भी लड़ा था। छत्रपति शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की नींव रखी। ऐसे में महाराष्ट्र में ये दोनों बहुत ही सम्मानित हस्ती हैं।
Fake News propaganda will not work. They are shifting to new Parliament building. Don't overdo uncle. One wrong move and you will end up in a cell next to Kejriwal for spreading fake news.
— Arun Pudur (@arunpudur) June 6, 2024
अब कॉन्ग्रेस अपनी ये सच्चाई तो लोगों को बता नहीं सकती कि 1952 में बॉम्बे नॉर्थ से उसी ने बाबासाहब भीमराव आंबेडकर के निजी सचिव रहे नारायण सदोबा काजरोलकर को उतार कर उन्हें लोकसभा पहुँचने से रोक दिया था। जबकि 1957 में भंडारा से कॉन्ग्रेस के ही भाऊराव बोरकर ने उन्हें हराया था। वहीं जनसंघ (अब भाजपा) ने दोनों ही चुनावों में भीमराव आंबेडकर का समर्थन किया था। इस सच्चाई को छिपाने के लिए कॉन्ग्रेस को झूठ बोलना ही पड़ेगा कि भाजपा ने बाबासाहब की मूर्ति हटवा दी।
बार-बार उखाड़ा जाता है मराठा आरक्षण का मुद्दा
मराठा आरक्षण एक ऐसा मुद्दा है, जिसे लेकर कई बार आंदोलन हो चुके हैं। अभी नई सरकार का गठन हुआ नहीं कि एक बार फिर से आंदोलन शुरू कर दिया गया है। इस बार आंदोलन का नेतृत्व मनोज जरांगे पाटिल कर रहे हैं, जो पिछली बार भी धरने पर बैठे थे। अप्रैल के बाद अब जून में उन्होंने पुलिस से अनुमति न मिलने के बावजूद आमरण अनशन शुरू कर दिया है। उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया है।
ऐसा नहीं है कि इस माँग को लेकर भाजपा हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, महाराष्ट्र सरकार ने फरवरी 2024 में ही एक विशेष सत्र बुला कर 10% मराठा आरक्षण की व्यवस्था की थी, लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट में इसे चुनौती दे दी गई। फरवरी में भी मनोज जरांगे पाटिल ने 17 दिनों का अनशन किया था। अब उनका कहना है कि OBC कोटा के अंतर्गत आरक्षण दिया जाए। मराठा आरक्षण के नाम पर हुई हिंसा की जाँच के लिए महाराष्ट्र सरकार SIT का गठन भी कर चुकी है।
इसे संयोग कहें या कुछ और, ‘संघर्ष योद्धा मनोज जरांगे पाटिल’ नामक फिल्म भी 14 जून को आने वाली है। इसे महाराष्ट्र में जगह-जगह दिखाए जाने की योजना है। महाराष्ट्र के बड़े थिएटर कलाकार मकरंद देशपांडे को इसमें लिया गया है। फिल्म का एक गाना भी आ चुका है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज पर है। फिल्म के क्रू ने सेंसर बोर्ड पर फिल्म की रिलीज रोकने का भी आरोप लगाया था, जबकि राजनीतिक कंटेंट होने के कारण आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण इसे रोका गया।
अक्टूबर 2018 में भी जब महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा की सरकार थी, तब औरंगाबाद में मराठा आरक्षण के लिए बड़ा मार्च निकाला गया था। उससे पहले जब कॉन्ग्रेस-NCP की सरकार थी तब 16% रिजर्वेशन की व्यवस्था की गई, लेकिन उच्च न्यायालय ने इसे रोक दिया। देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने भी विधानसभा में बिल पारित कराया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय पीठ ने इस पर स्टे लगा दिया। महाराष्ट्र में इसके लागू होने से आरक्षण 68% हो जाएगा, जो 50% की सीमा से अधिक है और संविधान के खिलाफ बताया जाता है।
अब विधानसभा चुनाव से ऐन पहले फिर से ये मुद्दा उखाड़ा गया है। क्या मराठा आंदोलन के नाम पर एक बार फिर से हिंसा की तैयारी है? इसके लिए फंडिंग कहाँ से आ रही है? कॉन्ग्रेस पार्टी को अराजकता से कोई गुरेज नहीं, इसमें उसे अपना फायदा ही दिखता है। अगर हम दिल्ली में हुए किसान आंदोलन और शाहीन बाग़ को देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि इन्हीं अराजक आन्दोलनों के सहारे पार्टी सत्ता में अपनी वापसी की राह देख रही है। क्या जनता इतना समझ पाएगी, या इनकी साजिश सफल होगी?
महाराष्ट्र: जनता को भ्रम में रखने की साजिश में कॉन्ग्रेस
अब देखिए, कॉन्ग्रेस की योजना क्या है। केंद्र में 300 से भी अधिक सीटों के साथ NDA की सरकार है। नीतीश कुमार की JDU और चंद्रबाबू नायडू की TDP ने साफ़ कर दिया है कि उनका नरेंद्र मोदी को पूर्ण समर्थन है। 7 सीटों वाली शिवसेना (शिंदे गुट) और 5 सीटों वाली RLJP है ही। लेकिन, महाराष्ट्र में कॉन्ग्रेस के प्रभारी रमेश चेन्निथला ने नेताओं को जनता में ये भ्रम फैलाने का आदेश दिया है कि केंद्र में एक अस्थिर सरकार है और वो कभी भी गिर सकती है।
ये उस पार्टी का नेता कह रहा है, जिसने 2004 में 145 और 2009 में 206 सीटों के साथ सरकार चलाई थी। कॉन्ग्रेस के नव-निर्वाचित सांसदों को महाराष्ट्र में ये अनिश्चितता फैलाने के लिए लगा दिया गया है कि केंद्र सरकार कितने दिन चल पाएगी इस पर संशय है। भ्रम, संशय, अशांति, अराजकता, झूठ – अब यही महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि पूरे देश में कॉन्ग्रेस के हथियार बन गए हैं। भाजपा को इससे निपटना होगा। महाराष्ट्र में वैसे भी राजनीति खिचड़ी हो गई है – 2 दल टूटे हैं जिनके एक का परिवार भी टूटा है, सत्ताधारियों को मात मिली है, विपक्ष जीता है।