मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के जवाब में बना I.N.D.I. गठबंधन लोकसभा चुनाव से पहले मिलकर जोर-आजमाइश कर कर रहा था, लेकिन कॉन्ग्रेस पार्टी ने समाजवादी पार्टी को धकिया दिया। कॉन्ग्रेस ने सीधे कह दिया कि यहाँ तुम्हारी जरूरत नहीं है, जब यूपी में होगी तो देख लेंगे।
गुस्साए अखिलेश यादव खूब तमतमाए और बोले- अगर पहले पता होता कि ये गठबंधन सिर्फ पीएम मोदी को लोकसभा चुनाव में रोकने के लिए बना है तो हम मध्य प्रदेश में कदम भी नहीं रखते। अब तो हम लड़ेंगे। समाजवादी पार्टी ने कहा था कि कॉन्ग्रेस ने एमपी में 6 सीटें देने पर हामी भरी थी, लेकिन दी एक भी नहीं। ऐसे में वो जितनी सीटों पर हो सकेगा, वो चुनाव लड़ेंगे। इसके बाद करीब 3 दर्जन सीटों पर समाजवादी पार्टी ने अपने उम्मीदवार उतार दिए।
ये तो बात हुई मध्य प्रदेश की, लेकिन मध्य प्रदेश की लड़ाई उत्तर प्रदेश में दिखनी शुरू हो गई। कमलनाथ ने समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के ‘अरे छोड़ो यार अखिलेश-वखिलेश’ कहा था, लेकिन उससे पहले ही उत्तर प्रदेश कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने अखिलेश यादव को उनकी हैसियत दिखानी शुरू कर दी थी।
उन्होंने कह दिया कि समाजवादी पार्टी का मध्य प्रदेश में कोई जनाधार ही नहीं है, तो काहे का गठबंधन? ये बात सपाइयों को बुरी लग गई। बुरी लगी तो लगी, सपाइयों ने सीधे लखनऊ में ही पोस्टर लगा दिया कि 2024 में मोदी तो छोड़ो, राहुल गाँधी क्या चीज हैं। और काहे का गठबंधन? अखिलेश भईया बनेंगे प्रधानमंत्री…
ये पोस्टर अभी लगे ही थे कि राजनीतिक गलियारों में सुगबुगाहट की शुरुआत हो ही रही थी कि कॉन्ग्रेस ने नहले पर दहला मार दिया। कॉन्ग्रेस की ओर से और करारे और भयंकर पोस्टर लगाए गए। कॉन्ग्रेस ने तो 2024 में राहुल गाँधी के लिए प्रधानमंत्री पद का दावा तो ठोका ही, 2027 में यूपी के मुख्यमंत्री पद पर भी दावा ठोक दिया।
नाम भी किसका लिया, अजय राय का, जो पिछले कई चुनाव खुद हार चुके हैं। अजय राय लोकसभा का चुनाव भी हारे कई बार और विधानसभा का तो खैर कहना ही क्या… बाकी मुख्यमंत्री बनना है, किसी का मन है तो दूसरा कैसे रोके। यही बात राहुल गाँधी पर भी लागू होती है। वो खुद अपनी अमेठी की लोकसभा सीट हार गए। वो तो भला हो वायनाड की जनता का, जिसने राहुल गाँधी को लोकसभा भेज दिया।
अरे, वायनाड का जिक्र आया तो ये भी बता दें कि राहुल गाँधी को वायनाड से शायद कोई लगाव नहीं रहा, क्योंकि वायनाड की जनता को कई महीनों तक बिना एमपी के ही रहना पड़ा। कारण तो सब जानते हैं कि राहुल गाँधी सजायाफ्ता हो गए थे। खैर, वो मामला दूसरा है।
हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश से दो अन्य नेताओं के प्रधानमंत्री बनने के दावों की। अब देखिए, उत्तर प्रदेश से ही नरेंद्र मोदी सांसद हैं। उनकी पार्टी के पास अब 64 सांसद (तीनों सीटों पर उप चुनाव हुए, जो सपा के कब्जे में थी, उसमें से एक पर सपा जीत पाई, बाकी दो सीटों को भाजपा ने जीत लिया। कन्नौज-सपा जीती, रामपुर और आजमगढ़ भाजपा)।
बात उत्तर प्रदेश की हो रही है तो आँकड़े भी बता ही देते हैं
इस समय उत्तर प्रदेश की कथित तौर पर सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी (भाजपा को छोड़कर) समाजवादी पार्टी है। अखिलेश यादव इसी पार्टी के मुखिया हैं। उनकी पार्टी के पास विधानसभा में 109 सीटें हैं। इससे पहले साल 2017 के चुनाव में पार्टी के विधायकों की संख्या 47 ही थी, जबकि 2012 में इनकी सरकार थी।
खैर, अभी लोकसभा में समाजवादी पार्टी के पास 3 सीटें बची हैं। क्योंकि पार्टी उप-चुनाव में दो पारिवारिक सीटें गँवा चुकी है। खुद अखिलेश यादव ने जो आजमगढ़ की सीट खाली की थी, वो भी समाजवादी पार्टी नहीं बचा पाई। आजम खान की रामपुर लोकसभा सीट भी भाजपा ने जीत ली। लोकसभा छोड़िए, विधानसभा सीट भी सपा नहीं बचा पाई थी। लेकिन अखिलेश भैया को बनना प्रधानमंत्री है और 2027 में फिर से विधायकी का चुनाव लड़कर मुख्यमंत्री बनना है?
खैर, क्या सोच रहे हैं अखिलेश और अखिलेश के करीबी, ये वही जानें… लेकिन लोकसभा में 3 सांसदों वाली पार्टी के पास 3 ही सांसद राज्यसभा में भी हैं। जया बच्चन उनमें से हैं, तो प्रोफेसर राम गोपाल साहब के लिए एक सीट मानो हमेशा रिजर्व ही रहती है। बाकी तीन लोकसभा सांसदों में उनकी पत्नी डिंपल मैनपुरी की अपनी घरेलू सीट से उप-चुनाव जीतकर लोकसभा पहुँची हैं तो दो सीटें मुस्लिम बाहुल्य वाली मुरादाबाद और संभल उनके पास बची हैं। संभव वाले बर्क साहब किसी को खाक कुछ नहीं समझते, वो शरिया के आगे अखिलेश की क्या ही सुनेंगे। तो भईया, 3 लोकसभा सांसद लेकर प्रधानमंत्री पद का सपना तो देख ही सकते हैं।
अब बात कॉन्ग्रेस की कर लेते हैं। वैसे कॉन्ग्रेस की बात करने के लिए बचा ही क्या है? कॉन्ग्रेस के पास उत्तर प्रदेश से कोई राज्यसभा सांसद नहीं है। लोकसभा सांसद सिर्फ सोनिया गाँधी ही हैं। वह भी साल 2024 में चुनाव लड़ेंगी भी या नहीं, ये अभी तय नहीं है। बाकी प्रधानमंत्री पद के दावेदार राहुल भईया की बात तो निराली है ही। अपनी ही लोकसभा सीट अमेठी को वो गँवा चुके हैं। 2024 में अमेठी से वो खड़े भी होंगे या नहीं, ये भी किसी को पता नहीं है।
अगर बात विधानसभा की करें तो अखिलेश की पार्टी के कुल 2 ही विधायक 2022 में चुने गए थे। कितने अब भी पार्टी का झंडा थामे हुए हैं, ये बात मैं पक्के से नहीं कह सकता। भाई, इंसान हूँ, सब कुछ याद कैसे रखूँगा? बाकी रही बात अखिलेश यादव और राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बनने की तो दोनों ही कोशिश तो कर रहे हैं। ये अलग बात है कि न दोनों के पास ही ना सूत है और न ही कपास है, लेकिन लट्ठम-लट्ठा भयंकर मचाए हुए हैं।
कहाँ तो दोनों मिलकर चुनाव लड़ने वाले थे मोदी को हराने के लिए, कहाँ अब दोनों आपस में ही लड़ रहे हैं। वह भी सिर्फ उम्मीदवारी पाने के लिए। दोनों ही पार्टियों का उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में सिर्फ 4 सीटों पर कब्जा है। ये गिनती उन्हें प्रधानमंत्री कैसे बनाएगी, अभी यही नहीं समझ आ रहा। बाकी राहुल गाँधी अगले लोकसभा चुनाव में कहाँ से चुनाव लड़ेंगे ये भी बड़ा सवाल है।