Friday, November 22, 2024
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कभी ज़िंदा जलाया, कभी काट कर टाँगा: ₹60000 करोड़ का नुकसान, हत्या-बलात्कार और हिंसा – ये सब देश को देकर जाएँगे ‘किसान’

इन घटनाओं को देख कर साफ़ है कि 'किसान आंदोलन' को कभी जाट, कभी सिख और कभी किसानों की प्राइड से जोड़ कर इन सभी को भाजपा के खिलाफ भड़काने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध इन लोगों के मन में घृणा भरने के प्रयास किए गए।

दिल्ली की सीमाओं पर पिछले एक साल से चल रहे ‘किसान आंदोलन’ से देश को खासा नुकसान हुआ है। जहाँ एक तरफ लाखों लोगों को रोजाना दफ्तर जाने और बच्चों को स्कूल जाने में परेशानी हुई, वहीं दिल्ली की सीमाओं पर स्थित गाँव वालों को भी कम परेशानी नहीं हुई। इस ‘किसान आंदोलन’ में हिंसा, बलात्कार और हत्या जैसी घटनाएँ हुईं। 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली में हुई हिंसा को कौन भूल सकता है? अब जब इसे खत्म किए जाने की बातें चल रही हैं, आइए जानते हैं कि कैसे इस तथाकथित आंदोलन में इस तरह की क्या-क्या हरकतें हुईं।

चर्चा चल रही है कि ‘किसान आंदोलन’ अब ख़त्म हो सकता है और ‘संयुक्त किसान मोर्चा (SKM)’ जल्द ही इसका ऐलान कर सकता है। कुल 32 किसान संगठनों की एक बैठक भी हुई है, जिसमें तय किया गया कि 1 दिसंबर, 2021 को अंतिम फैसला किया जाएगा। पंजाब के किसानों का कहना है कि हम जीत हासिल कर चुके हैं और हमारे पास अब कोई बहाना नहीं है। पराली और बिजली एक्ट से किसानों को निकाले जाने पर भी वो खुश हैं। वहीं अब मृत किसानों के आँकड़े देकर मुआवजे की भी माँग की जा रही है।

जबकि इसके उलट राकेश टिकैत कहते आए हैं कि उनके पास तो 700 माँगों की सूची है और उनमें से सभी पूरे नहीं होंगे, तब तक आंदोलन ख़त्म नहीं होगा। कोई नेता कुछ बोल रहा है, कोई कुछ। अलग-अलग जगहों पर राकेश टिकैत अलग-अलग बयान दे रहे हैं। इसमें खालिस्तानी गुट अलग है, जाट कार्ड खेलने वाला समूह अलग है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भले ही माफ़ी माँग ली हो, लेकिन किसान नेता नहीं चाहते कि उनके समर्थक किसानों के मन में भाजपा के लिए घृणा कम हो।

किसान आंदोलन के कारण देश को 60,000 करोड़ रुपए का घाटा

‘किसान आंदोलन’ के कारण देश को 60,000 करोड़ रुपए का घाटा सहना पड़ा। कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने एक आँकड़े में बताया है कि 12 महीनों में देश को इसके कारण इतना नुकसान हुआ। व्यापारियों के संगठन ने कहा है कि ये घाटा मुख्यतः इस आंदोलन के शुरुआती स्टेज में हुई। यानी, नवंबर-दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 में ये घाटा हुआ। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली में आवश्यक वस्तुओं की आवाजाही में काफी दिक्कतें आईं।

हालाँकि, व्यापारिक संगठनों के प्रयास ने जब प्रयास किया तो इन रास्तों से सामान की आवाजाही शुरू कर दी गई। लेकिन, तब भी इसमें काफी दिक्कतें आ रही थीं। सप्लाई चेन को ठीक किया गया। साथ ही सरकारों ने भी दिल्ली के रास्ते वस्तुओं को ढोने वाले ट्रक्स को भी अन्य वैकल्पिक रूट उपलब्ध कराए गए। दिल्ली में रोज 50,000 ट्रक्स सामान लेकर आते हैं। इस हिसाब से सोचा जा सकता है कि किस कदर देश को नुकसान हुआ है, जिसका आकलन करना भी मुश्किल है।

‘किसान आंदोलन’ के सहारे परवान चढ़ा खालिस्तानी एजेंडा

अक्टूबर 2021 में

‘सिख्स फॉर जस्टिस’ नाम की कट्टरवादी सिख संस्था ने तथाकथित खालिस्तान का नक्शा जारी किया। उसने कहा हैथाकि भारत को काट कर इस क्षेत्र को सिखों का अपना मुल्क बनाया जाएगा। अक्टूबर 2021 के अंत में इसके लिए उसने लंदन में रेफेरेंडम आयोजित करने का भी निर्णय ले लिया। ‘क्वीन एलिजाबेथ सेंटर’ में ये भारत विरोधी कार्यक्रम आयोजित किया गया। जब ये आंदोलन शुरू हुआ, तभी से इसमें खालिस्तानियों की हिस्सेदारी सामने आने लगी थी और भिंडरवाला के पोस्टर्स इसमें नजर आने लगे थे।

आज के माहौल की बात करें तो अब भी प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस (SFJ)’ एक बार फिर से इसका फायदा उठाने की फिराक में है और अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए वह लगातार युवाओं को भड़काने की कोशिश कर रहा है। इसमें गुरुपवंत सिंह पन्नू को यह कहते सुना जा सकता है कि देश को आजाद कराने के लिए भगत सिंह ने पार्लियामेंट में बम फेंका था। वो कहता है कि ट्रैक्टर को हथियार बनाकर तुम 29 नवंबर को खालिस्तान के केसरी झंडे को भारत की संसद पर चढ़ा दो।

सबसे बड़ी बात तो ये है कि इस आंदोलन को जिस तरह से कृषि के नाम पर सिख कट्टरवाद और खालिस्तानी अलगाववाद से जोड़ा गया, वो एक बहुत बड़ी साजिश थी। अचानक से लंदन में सिखों के अलग मुल्क के ली रेफरेंडम होने लगा, प्रतिबंधित संगठन SFJ का पन्नू वीडियोज जारी करने लगा, कनाडा के नेताओं ने इस आंदोलन का समर्थन शुरू कर दिया और ISI ने पंजाब में इस आंदोलन को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी – इस बात ने ख़ुफ़िया एजेंसियों तक के कान खड़े कर दिए थे।

पन्नू ने 4 अक्टूबर को एक वीडियो और एक पत्र जारी किया था। इसमें उसने सिखों को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 9 अक्टूबर को ड्रोन और ट्रैक्टर का इस्तेमाल करने के लिए उकसाया था। अपने बयान में पन्नू ने कहा था, “आज यूपी के लखीमपुर में चार किसानों की हत्या कर दी गई। किसानों के विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं। अब खालिस्तान ही एकमात्र रास्ता है। किसान हल खालिस्तान।” अब आप समझ सकते हैं कि किस कदर ये सिख कट्टरवाद इस आंदोलन में घुसा रहा।

सिख फॉर जस्टिस ने भारतीय मूल वाले सभी 18 वर्ष के ऊपर वाले लोगों से वोट देने को कहा था। ये वोटिंग वेस्टमिंनस्टर के एलिजाबेथ 2 सेंटर में हुई। इस दौरान लोगों ने न केवल भारत विरोधी नारे लगाए, खालिस्तान जिंदाबाद कहा बल्कि इन लोगों के हाथों मे खालिस्तानी झंडे भी जगह-जगह दिखाई दिए। रिपोर्ट बताती है कि बैलट पेपर पर लिखा था कि क्या भारत शासित पंजाब को एक स्वतंत्र देश बनना चाहिए? संगठन के संस्थापक खालिस्तानी पन्नू ने कहा था कि 30 हजार सिखों ने जनमत संग्रह पर अपना वोट दिया।

ये कैसा आंदोलन, जहाँ बलात्कार और हत्याएँ भी

अक्टूबर 2021 में आपने भी ये खबर देखी होगी, जब लखबीर सिंह नाम के एक दलित युवक की आदिग्रन्थ की बेअदबी के आरोप में हाथ-पाँव काट कर हत्या कर दी गई थी। लखबीर के घर वालों ने भी कहा था कि वह सिंघु बॉर्डर तक जाने में सक्षम ही नहीं था। कुछ अज्ञात लोग उसे वहाँ लेकर गए थे। परिवार ने इन आरोपों पर आपत्ति जताई थी कि लखबीर ने धर्मग्रंथ का अपमान किया था। उनके अनुसार लखबीर एक धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था। वो किसी धर्म का अपमान कर ही नहीं सकता था।

आरोपित निहंग सरबजीत मात्र 6 वर्ष की ही उम्र में अपने मामा के साथ उनके गाँव गुरुदासपुर स्थित खुजाला में रहने लगा था। सरबजीत के पिता की उम्र 75 वर्ष और माँ की आयु 70 वर्ष है। ये दोनों बगल के गाँव विठवां में रहते हैं। कक्षा 10 पास कर सरबजीत दुबई चला गया था। वहाँ वो लगभग 5 वर्ष रहा। इस मामले में कई निहंगों की गिरफ़्तारी भी हुई, लेकिन सिख कट्टरपंथियों ने बार-बार कहा कि वो इस हत्याकांड को लेकर फख्र महसूस कर रहे हैं और उन्हें इसका कोई मलाल नहीं।

जैसा कि हम जानते हैं, केंद्र सरकार के कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर ‘किसानों’ का प्रदर्शन एक साल तक चला। इसी में शामिल होने के लिए बंगाल से आई 25 वर्षीय युवती के साथ टीकरी बॉर्डर पर गैंगरेप का मामला सामने आया। इस मामले में पुलिस ने पीड़िता के पिता की शिकायत पर 2 महिला आरोपितों समेत 6 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया था। पीड़िता के साथ हुई घटना के बारे में आंदोलन से जुड़े बहुत से लोगों को पता चल चुका था, मगर इस मामले में कार्रवाई की पहल नहीं की गई। उसने पीड़िता की आपबीती का वीडियो भी बनाया था।

अब एक और घटना को याद कीजिए। जगदीश चंद्र की तीन संतानों में 42 साल का मुकेश सबसे बड़ा था। लॉकडाउन में काम छूट गया था तो ज्यादातर समय गाँव में ही रहता था। इसी दौरान अपने गाँव से सटे बाइपास पर कब्जा जमाए कुछ प्रदर्शनकारियों के संपर्क में वह आया था। 16 जून की रात करीब 9 बजे परिजनों को उसे जिंदा जलाने की खबर मिली थी। मुकेश की माँ शकुंतला ने ऑपइंडिया को बताया था कि वह घर में खाना बनाने के लिए कहकर निकला था। बाद में उन्हें पता चला कि उनके बेटे को शराब पिलाकर कुछ लोगों ने जिंदा जला दिया।

किसान आंदोलन, इसमें कुछ भी ऐसा नहीं था जिससे इसे आंदोलन कहा जाए

इन घटनाओं को देख कर साफ़ है कि ‘किसान आंदोलन’ को कभी जाट, कभी सिख और कभी किसानों की प्राइड से जोड़ कर इन सभी को भाजपा के खिलाफ भड़काने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरुद्ध इन लोगों के मन में घृणा भरने के प्रयास किए गए। कभी राकेश टिकैत ने भड़काऊ बयान दिया, कभी गुरनाम सिंह चढूनी कॉन्ग्रेस नेताओं के साथ करार के आरोपों में फँसे तो कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अपशब्दों का प्रयोग कर के उन्हें हत्या तक की धमकी दी गई।

हालाँकि, अभी देखना ये है कि ‘किसान आंदोलन’ ख़त्म होता भी है या नहीं पूरी तरह। अब इसमें भी अलग-अलग गुट हो गए हैं। हर गुट के अलग-अलग हित हैं और उन्हें साधने के लिए भी वो अलग-अलग रुख अख्तियार कर सकते हैं। कोई पंजाब में उम्मीदवार उतार रहा है तो किसी पर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक दल डोरे डाल रहे हैं। पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में भाजपा के विरुद्ध चुनाव प्रचार कर ये पहले ही दिखा चुके हैं कि इनकी घृणा किस दल और किस व्यक्ति से है। इसमें किसानों का कोई हित नहीं।

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