NRC को लेकर देश के कई हिस्सों में लोग गुट बनाकर विरोध में उतर रहे हैं, प्रदर्शन कर रहे हैं। दरअसल वो प्रदर्शन कर रहे हैं हिंसा का, वो प्रदर्शन कर रहे हैं संख्या बल का। वो दिखा रहे हैं कि “देखो, जहाँ-जहाँ हम जैसे लोगों की संख्या थोड़ी भी अधिक है वहाँ-वहाँ हम तोड़-फोड़ कर सकते हैं, सार्वजनिक संपत्तियों में आग लगा सकते हैं, पुलिसकर्मी को मार सकते हैं, परिवहन और यातायात को रोक सकते हैं, जान-माल को नुकसान पहुँचा सकते हैं।” कुल मिलकर उनका स्पष्ट संदेश यह कि वो अगर संख्या बल में कहीं भी अधिक हैं तो उस स्थान पर पुलिस और लोक व्यवस्था को बर्बाद कर सकते हैं।
अव्वल तो इनका कोई नेता नहीं है फिर भी छिटपुट, सड़क छाप नेताओं की भी बात करें, जो इन हिंसक प्रदर्शनों को सपोर्ट कर रहे हैं तो आपको इसमें सबसे पहले बुद्धिजीवियों का वो धड़ा दिखेगा, जिनकी दुकान सरकार बदलने के साथ ही बंद होने के कगार पर पहुँच चुकी है। इसको समझने में बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। जैसा कि पूरा देश जानता है कॉन्ग्रेस और सपा जैसी पार्टियाँ पारिवारिक पार्टियाँ हैं, यहाँ उन्ही लोगों को पद या प्रतिष्ठा (?) मिलती है जो चाटुकार किस्म के होते हैं, जो राजा द्वारा दिन को रात कहने पर खुद भी ‘रात है, रात है’ की माला जपने लगने हैं।
अफ़सोस कि बीजेपी ‘नेपोटिज्म’ को सपोर्ट नहीं करती इसलिए बीजेपी की सरकार बनने के कारण उनकी चाटुकारिता की दुकान बंद होने लगी, सरकारी खर्चों पर पलना ख़त्म हो गया, उनके बेटे-बेटियों, सगे-संबंधियों को लाभ मिलना बंद हो गया और कोई व्यक्ति कब तक अपने लाभों से समझौता करते हुए अपने घर मुँह बंद करके बैठा रहे! लेकिन इनकी मजबूरी यह कि सरकार ऐसा कोई मौका दे नहीं रही जिसकी आड़ में ये अपना फ्रस्ट्रेशन निकाल पाएँ। तो इस बार इन्होंने अपने लिए मौका बनाया और NRC के बहाने लोगों में गलत प्रचार कर, चालाकी से सिर्फ एक पक्ष दिखाकर और दूसरे पक्ष को छुपा कर उन्हें भड़काना शुरू किया। न सिर्फ रियल लाइफ में बल्कि सोशल मीडिया पर भी इनका यह एक सूत्री कार्यक्रम चलता रहता है। इनके भड़काने की प्रक्रिया कुछ ऐसी है कि ये लोग गुट बनाकर दो धड़ों में बँट जाते हैं। जहाँ एक गुट सोशल मीडिया पर NRC/ CAB या अन्य बेहतर क़दमों पर सरकार के साथ दिखने वाले लोगों के बारे में झूठी बातें फैलाकर चरित्र हनन करते हैं, उन पर व्यक्तिगत आरोप लगाते हैं, उन्हें कुंठित, भक्त, आईटी सेल वाले, भाड़े पर बिकने वाले कहकर उनकी गरिमा को धूमिल करते हैं तो वहीं दूसरा धड़ा लोगों को मुद्दे के बारे में झूठी बातें गढ़कर भड़काने में लग जाते हैं। जब एक साथ इतने सियार मिलकर हुआ-हुआ करने लग जाएँ तो आम जनता जिन्हें कमाने-खाने से वक़्त नहीं मिल पाता, वो धीरे-धीरे इनकी बातों में आने लगते हैं।
अब दूसरे प्रकार के सपोर्टर पर आते हैं। ये वो हैं, जो इन हिंसक प्रदर्शनों को जनांदोलन का नाम देकर अपनी बुझ चुकी राजनीतिक करियर की राख में चिंगारी खोजते रहते हैं। ये वो लोग हैं जिनको राजनीति की मुख्यधारा में वापस लौटने के लिए किसी कंधे की जरुरत है क्योंकि ये अपनी योगता से खुद को कहीं स्थापित करने में कामयाब नहीं हो सके तो आम लोगों को गलत बातें बताकर सरकार के खिलाफ भड़का रहे हैं।
तीसरे तरह के सपोर्टर को देखें तो ये आपको एक धर्म विशेष के नज़र आएँगे और वो धर्म है- ‘इस्लाम’। लगभग सारे कथित अल्पसंख्यक NRC का विरोध कर रहे हैं और ये उपरोक्त दोनों प्रकार के लोगों से संख्या में कहीं ज्यादा हैं। मजहबी लोग ही इन हिंसक प्रदर्शनों के फ्यूल हैं। कुछ कट्टरपंथी क्यों इस रजिस्टर का विरोध कर रहे हैं इसके लिए उनके पास कोई तर्क नहीं है। उनके पास है तो केवल एक अंधी दौड़, एक झूठा डर, जो उपरोक्त दोनों प्रकार के लोगों द्वारा उनके मन में भरा गया है और निरंतर ये डर बेबुनियादी बातों और गलत तर्कों की सहायता से बढ़ाया जा रहा है। कुछ छद्म बुद्धिजीवी तो अयोध्या विवाद को हल करने और तीन तलाक जैसे स्त्री विरोधी एवं दकियानूसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने के नाम पर भी लोगों को भड़का रहे हैं। इसमें सिर्फ भड़काने वालों की ही गलती नहीं है बल्कि भड़कने वालों की भी गलती है। अगर आपसे कोई कहे कि कौवा तुम्हारा कान लेकर उड़ रहा है तो पहले अपना कान देखें न कि कौवे को गुलेल मारने में लग जाएँ।
अब फिर ये सवाल उठ जाएगा यहाँ कि NRC है क्या? कैसे ये समुदाय विशेष के विरुद्ध नहीं है? तो इस तरह के सारे सवालों के लिए हमारा ये लेख पढ़ें और फैसला करें कि NRC कितना किसी मजहब के खिलाफ है!
NRC को लेकर सरकार बार-बार बता रही है कि यह एक रजिस्टर मात्र है, जिसमें राष्ट्र के वैध नागरिकों के नाम दर्ज होंगे। ये सबसे पहले और अब तक सिर्फ असम में इसलिए लागू हुआ है क्योंकि पूर्वोत्तर में स्वतंत्रता प्राप्ति के समय, पाकिस्तान-बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) युद्ध के समय बड़ी संख्या में शरणार्थी तो आते ही रहे, साथ ही शरणार्थियों की आड़ में अवैध घुसपैठिए भी आते रहे। जिस कारण वहाँ की ‘डेमोग्राफी’ यानी आबादी के प्रकार में काफी बदलाव आता गया। पूर्वोत्तर में यही घुसपैठिए बहुसंख्यक बनते जा रहे हैं जबकि वहाँ के मूल निवासी अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं, उदाहरण के तौर पर- त्रिपुरा।
ये समझने की कोशिश कीजिए कि भारत जैसे देश में जहाँ पहले से ही विश्व की करीब 17.71 प्रतिशत जनसंख्या निवास कर रही है, जबकि भारत के पास विश्व की भूमि का केवल 2.4 प्रतिशत है वहाँ घुसपैठियों को या अवैध नागरिकों को जगह नहीं दी जा सकती। और तो और, भारत इस समस्या के कारण जब पहले ही एक युद्ध (पाकिस्तान-बांग्लादेश युद्ध, 1971) में भाग ले चुका है फिर क्यों भारत उसी समस्या को बेताल की तरह ढोते रहे? एक युद्ध के बाद भी ये समस्या अगर मौजूद है तो इससे निपटने के लिए भारत जैसे देश को कोई तो कदम उठाना ही पड़ता और यह सबसे बेहतर कदम इसलिए है क्योंकि NRC अपने नेचर में पूरी तरह से सेक्युलर है। दिसम्बर 2014 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद इसे तैयार करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। भारत के वैध नागरिकों को चाहे वो किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय के हों, NRC से कोई दिक्कत नहीं होने वाली है।
इस चीज को हमेशा याद रखा जाए कि मंदिर में दिया जलने से पहले घर में दिया जलाया जाता है। अत: ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ अच्छी चीज हो सकती है, लेकिन स्थानीय पहचान को समाप्त करके नहीं। अपने घर में क्लेश करके पड़ोसियों को रोटी खिलाना किस स्थिति में अच्छा माना गया है? उस पर भी तब तो बिलकुल भी नहीं जब ये अवैध प्रवासी अपने हितों की पूर्ति के लिए स्थानीय लोगों को उनके धर्म, जाति, वर्ग के आधार पर भड़काना शुरू करे, बाँटना शुरू करे और सुरक्षा की दृष्टि से देश के लिए खतरा उत्पन्न करे, कुछ इस तरह से अपना तंत्र फैलाए कि जगह-जगह हिंसा होने लगे और जान-माल को हानि पहुँचे। इसलिए NRC का लागू होना देश के लिए, खासकर पूर्वोत्तर भारत के लिए बेहद जरूरी है। क्योंकि पूर्वोत्तर भारत सुरक्षा और सामरिक दृष्टि से भारत का महत्त्वपूर्ण भाग है।
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