सोमवार, यानी 24 मई 2021 की शाम दिल्ली पुलिस ट्विटर इंडिया के गुरुग्राम ऑफिस पहुँची। दिल्ली पुलिस के इस कदम के पीछे के कारणों को लेकर कयास लगाए गए। अफवाहें; दिल्ली पुलिस ने ट्विटर इंडिया के ऑफिस पर छापा मारा से लेकर सरकार अपने ही जाल में फँस गई है, के बीच उड़ती रहीं। सरकार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कुचलने का भी आरोप लगा। उम्मीद के अनुसार जाने पहचाने लोगों की ओर से सरकार पर लानत भेजी गई।
चूँकि राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ भी राजनीति से अधिक आदत की मारी होती हैं, ऐसे में जो प्रतिक्रियाएँ आई उनमें किसी तरह का कोई आश्चर्य नहीं था। मीडिया के एक वर्ग की ओर से भी आई प्रतिक्रिया आशा के अनुरूप ही रही जो तथ्य की कसौटी पर छोटी और प्रोपेगेंडा की कसौटी पर बड़ी लगी।
बाद में दिल्ली पुलिस की ओर से बयान आया कि उसके ट्विटर इंडिया के ऑफिस जाने के पीछे दो उद्देश्य थे। पहला ट्विटर को एक नोटिस देना और दूसरा, यह पता लगाना कि किसी तहकीकात को लेकर आवश्यकता पड़ने पर दिल्ली पुलिस किसके साथ बातचीत कर सकती है। ज्ञात हो कि दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ने कथित रूप से कॉन्ग्रेस द्वारा बनाए गए एक टूलकिट से जुड़ी आरंभिक जाँच के सम्बन्ध में ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक मनीष माहेश्वरी को 21 मई के दिन एक नोटिस भेजकर 22 मई को दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल ऑफिस में उनकी उपस्थिति के लिए अनुरोध किया था।
Friends look at the #CongressToolKit in extending help to the needy during the Pandemic!
— Sambit Patra (@sambitswaraj) May 18, 2021
More of a PR exercise with the help of “Friendly Journalists” & “Influencers” than a soulful endeavour.
Read for yourselves the agenda of the Congress:#CongressToolKitExposed pic.twitter.com/3b7c2GN0re
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल द्वारा ट्विटर इंडिया के प्रबंध निदेशक को भेजे गए नोटिस का आधार यह था कि भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा के साथ ही कई और पार्टी नेताओं द्वारा शेयर किए गए कॉन्ग्रेसी टूलकिट को ट्विटर ने “Manipulated Media’ लिख फ्लैग कर दिया है। लिहाजा उसके पास इस टूलकिट से सम्बंधित क्या जानकारियाँ हैं जिनके आधार पर उसने इसे Manipulated Media कहा। मूलतः दिल्ली पुलिस ट्विटर से उसके इस फ्लैगिंग के पीछे का कारण जानना चाहती थी। पर जब सबकी निगाहें ट्विटर इंडिया के संभावित जवाब पर थी, ट्विटर ने कोई जवाब न देने का फैसला किया। ऐसे में दिल्ली पुलिस को ट्विटर के ऑफिस तक जाना पड़ा।
यहाँ प्रश्न यह है कि जब पुलिस ने अपनी नोटिस में यह साफ कर दिया था कि उसे ट्विटर इंडिया से भाजपा नेताओं द्वारा शेयर किए गए टूलकिट को Manipulated Media कहने के पीछे का कारण जानना था तो ट्विटर ने इस नोटिस की अनदेखी क्यों की? ट्विटर से उसके एक रूटीन काम को लेकर स्पष्टीकरण ही तो माँगा गया था। दिल्ली पुलिस इतना ही तो जानना चाहती थी कि उस टूलकिट को Manipulated Media कहने के ट्विटर के फैसले का आधार क्या था?
यदि आधार किसी तरह का कोई आधिकारिक फैक्ट चेक था तो भी ट्विटर के लिए यह स्पष्टीकरण देना कठिन तो नहीं होना चाहिए था। यदि ट्विटर इंडिया की ओर से कोई व्यक्तिगत तौर पर इस नोटिस का जवाब देने दिल्ली पुलिस के कार्यालय नहीं जा सकता था तो एक मेल भेजकर स्पष्टीकरण दे देता। ऐसा करना ट्विटर के लिए कितना कठिन था?
या फिर यह मामला स्पष्टीकरण से कहीं और आगे का है? क्या कारण थे कि ट्विटर ने दिल्ली पुलिस के नोटिस का जवाब देना सही नहीं समझा? ये प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ट्विटर पर पिछले कई वर्षों में पक्षपातपूर्ण आचरण के आरोप लगते रहे हैं और ये आरोप केवल भारत तक सीमित नहीं रहे हैं। पिछले वर्ष अमेरिका में राष्ट्रपति चुनावों के समय भी ट्विटर का आचरण पूरी दुनिया ने देखा। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट को डिलीट करने की बात हो या उनकी पार्टी और उनके व्यक्तिगत दृष्टिकोण की, ट्विटर का आचरण न केवल उनके विरुद्ध पक्षपातपूर्ण रहा, बल्कि एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के रूप में आपत्तिजनक था। इन सब के ऊपर ट्विटर ने अपने आचरण सम्बंधित किसी तरह के स्पष्टीकरण की माँग की हमेशा अनदेखी की।
भारत में बाकी सोशल प्लेटफॉर्म की तरह विचारधारा के अनुसार ट्विटर यूजर्स के बीच एक विभाजन साफ दिखाई देता रहा है। विभाजन रेखा के एक ओर खड़े राष्ट्रवादी विचारधारा के लोगों की शिकायत हमेशा से रही है कि ट्विटर का आचरण हमेशा से उनके विरुद्ध रहा है। वामपंथी और तथाकथित लिबरल ट्विटर यूजर्स की शिकायतों पर उनके अकाउंट पर आए दिन प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं, जबकि तथाकथित सेक्युलर, वामपंथी, कॉन्ग्रेसी और लिबरल्स के अकाउंट को लेकर की गई शिकायतों की ट्विटर अनदेखी कर देता है।
ट्विटर इंडिया के लोगों का व्यक्तिगत आचरण भी इसी सोच के अनुरूप रहा है। अभी तक ट्विटर इंडिया में उच्च पदों पर रहने वालों के व्यक्तिगत ट्वीट भी इस बात को साबित करते हैं। Smash the Brahmanical Patriarchy वाले प्लेकार्ड लिए जैक डॉर्सी की फोटो आए अभी उतने दिन नहीं हुए हैं कि लोग उसे भूल जाएँ।
ट्विटर के आचरण के इस रिकॉर्ड को देखते हुए राष्ट्रवादियों की यह चिंता आए दिन सार्वजनिक बहसों में दिखाई देती है कि जिस तरह से ट्विटर ने अमेरिकी चुनावों में एक भूमिका निभाई, वैसा ही कुछ वह भारत में करने की मंशा रखता है। उनके विरुद्ध आए दिन दिखने वाले ट्विटर के पक्षपातपूर्ण फैसले उनके इस विश्वास को और भी पुख्ता करते हैं। पर क्या मामला केवल ट्विटर, राष्ट्रवादियों और उनके द्वारा समर्थित सरकार और उसके नेताओं तक सीमित है? यह मामला उससे आगे का है जिसमें 2019 लोकसभा चुनावों के बाद उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों और इकोसिस्टम की एक बड़ी भूमिका है।
लगता है जैसे 2019 के चुनावों के बाद इकोसिस्टम का विश्वास देसी बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, संपादकों और सोशल मीडिया ऑपरेटिव्स से उठ गया है और वह अब विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, विदेशी विद्वान और विदेशी तौर-तरीकों पर निर्भर रहकर वापसी की कोशिश करना चाहता है। इसके पीछे वही सोच काम कर रही जिसका आधार यह है कि चूँकि विदेशियों ने हमारे ऊपर सैकड़ों साल तक शासन किया है इसलिए आज भी एक आम भारतीय उन्हें अधिक प्रभावशाली, विद्वान या बुद्धिजीवी मानेगा।
यदि ऐसा नहीं होता तो भारतीयों को संस्कृति, संस्कृत, इतिहास और धार्मिक शास्त्रों की समझाइश देने के लिए किसी वेंडी डोनिगर या ऑड्रे ट्रश्के को बार-बार भारत न बुलाया जाता। ऐसे ही इकोसिस्टम द्वारा बार-बार यह विश्वास दिलाया जा रहा है कि ट्विटर ने कुछ कहा या किया है तो वह सही है, इसलिए इस पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं किया जा सकता। ऐसे में ट्विटर के प्रति लिबरल इकोसिस्टम का लगाव यही दर्शाता है कि इनके लिए विदेशी लोग, ज्ञान और चीजें आज भी उनके भारतीय समकक्षों से अधिक पूजनीय हैं।
एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जिसमें इकोसिस्टम बार-बार यह साबित करने की कोशिश कर रहा है कि सोशल मीडिया के विदेशी प्लेटफॉर्म, उनसे सम्बंधित फैक्टचेकर और लेफ्ट लिबरल द्वारा प्रमाणित विद्वानों की हर बात को बिना किसी प्रश्न के स्वीकार कर लिया जाए। वहीं सरकार और उसके समर्थकों का मानना है कि अब पानी सर से ऊपर जा चुका है और अब प्रश्न उठाकर उनके उत्तर लेने का समय है। भारतीय जनता पार्टी, कॉन्ग्रेस, सरकार और ट्विटर इंडिया के बीच आगे क्या होगा, उस पर सबकी नजर रहेगी।
ट्विटर इंडिया के लिए सरकार द्वारा उठाए गए प्रश्नों की अनदेखी न तो कानून सम्मत है और न ही आम भारतीय की अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के पक्ष में है। आवश्यक है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के नागरिकों को पता चले कि कौन कहाँ खड़ा है और उसकी भूमिका क्या है।