कार्ल मार्क्स का जन्म मई 5, 1818 को हुआ था। इस हिसाब से 2018 में उसके जन्म के 200 वर्ष पूरे हुए थे। मार्क्स को वामपंथ का मसीह माना जाता है। वही वामपंथ, जिसने दुनिया में सिर्फ़ ख़ून बहाया। मार्क्स को कई जगह लाखों लोगों की मौत का जिम्मेदार माना जाता है। एक आँकड़े के अनुसार, वामपंथ ने पिछले 100 सालों में 10 करोड़ लोगों को मौत के घाट उतार दिया। एक उदाहरण से शुरू करते हैं। इससे आपको समझने में मदद मिलेगी कि वामपंथ कैसे ख़ूनी और विभाजनकारी है।
जर्मनी की दीवार: विभाजनकारी वामपंथ का नमूना
जर्मनी में हिटलर के शासन का अंत हुआ तो रूस सहित कई देशों ने उस पर कब्जा कर लिया। जहाँ ईस्ट जर्मनी पर रूस का कब्ज़ा हुआ, वेस्ट जर्मनी पर यूनाइटेड स्टेट्स, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने शासन किया। ईस्ट जर्मनी में रूस की वामपंथी सोशलिस्ट सरकार चली। हिटलर के राज को झेल चुके लोग कम्युनिस्ट शासन से इतने ही दिन में इतने ज्यादा तंग आ गए कि वो वेस्ट जर्मनी भागने लगे। 10 सालों में लगभग 26 लाख लोगों ने पलायन किया।
वामपंथ ने अपनी विभाजनकारी बुद्धि लगाई और बर्लिन को विभाजित करते हुए दीवार खड़ी कर दी। वेस्ट जर्मनी प्रगति के पथ पर बढ़ने लगा, ईस्ट जर्मनी पीछे छूट गया। आज भी सरकार से लेकर उद्योग धंधों तक में ईस्ट जर्मनी के इलाक़े तुलनात्मक रूप से पिछड़े हुए हैं। दोनों जर्मनी के बीच वामपंथियों ने दीवार बना दी। उस दीवार को फाँद-फाँद कर लोग भागने लगे। इसमें ईस्ट जर्मनी की वामपंथी सरकार के सैनिकों के हाथों सबसे ज्यादा यहीं के लोग मारे गए।
अंत में जब जर्मनी का एकीकरण हुआ तो दीवार तोड़ दी गई। ये काफ़ी ख़ुशी का माहौल था। दोनों तरफ के रिश्तेदार कई सालों से एक-दूसरे से नहीं मिले थे, उन सबको मिलने-जुलने का मौक़ा मिला। आज यही वामपंथ जब दूसरों को विभाजनकारी बताता है तो उसे जर्मनी की दीवार याद दिलाया जाना चाहिए, जिसने एक ही देश को दो हिस्सों में बाँट दिया था। कैपिटलिज्म तो गया लेकिन उसकी जगह सोशलिज्म और कम्युनिज्म कैसे अच्छा करेगा, इस बारे में मार्क्स ख़ुद कन्फ्यूज्ड थे।
मार्क्स और उसके चेले कास्त्रो और माओ
मार्क्स सालों तक लंदन में रहे थे, जहाँ उन्होंने जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक एंगेल्स के साथ मिल कर अपनी बातों को प्रकाशित करना शुरू कर दिया। सोवियत रूस के वामपंथ की बात करते हुए अनंत विजय अपनी पुस्तक ‘मार्क्सवाद का अर्धसत्य‘ में एक बहुत ही रोचक बात कहते हैं। उन्होंने बताया है कि रूस में जब 1917 में क्रांति हुई तो वहाँ ‘एक ग्लास पानी’ मुहावरा काफी प्रचलित हुआ। इसका मतलब ये था कि जब प्यास लगे तो पानी पी लो और जब शरीर की माँग हो तो किसी के साथ भी बुझा लो। मार्क्सवाद शादी-विवाह, परिवार और सभी समाजिक दायित्वों को नकार देता है। धर्म को अफीम तो इनका पसंदीदा वाक्य है।
अगर हम मार्क्सवाद के दो बड़े चेहरों की बात करें तो क्यूबा के फिदेल कास्त्रो और चीन का माओत्से तुंग, इन दोनों के ही राज में लोकतंत्र नाम की कोई चीज कभी रही ही नहीं। अनंत विजय मार्क्सवाद के इन दोनों बड़े चेहरों की तुलना करने पर अपनी पुस्तक में पाते हैं कि इन दोनों का ही सेक्सुअल लाइफ काफ़ी रहस्यमयी था। इन दोनों तानाशाहों ने विरोधियों को बर्दाश्त नहीं किया और हिंसात्मक तरीके अपना कर उन्हें शांत कराया। एक और बात, ये दोनों ही अपने लिए बेशुमार धन इकट्ठा करने की फिराक में लगे रहे। ये वही मार्क्सवाद है, जो कैपिटलिज्म को गाली देता है और बराबरी की बातें करता है।
पति-पत्नी के रिश्तों तक को मार्क्स ने एकदम पूँजीवादी वाले चश्मे से देखा। उनके मित्र एंगेल्स ने तो यहाँ तक लिखा था कि विवाह का उदय ही इसीलिए हुआ ताकि पुरुषों के हाथ में सत्ता और संपत्ति का केन्द्रीकरण हो और स्त्री से इसीलिए संतान पैदा किया जा सके। यही कारण रहा कि मार्क्सवादियों ने दासता को मुक्त करने के लिए परिवार नामक संस्था को ही नकार दिया। इसे भी दास्ता के भीतर घसीट लिया। मार्क्स समझ नहीं पाए एक स्त्री संपत्ति के लालच से परिवार का हिस्सा नहीं बनती है।
निजी जीवन में भी नहीं निभाया अपना ही सिद्धांत
मार्क्स के निजी जीवन की बात करें तो उनके घर में लम्बे समय तक काम करने वाली हेलेन देमुथ से उसका अवैध सम्बन्ध था और दोनों को एक बेटा भी हुआ था, जिसका नाम था- फ्रेड्रिक देमुथ। अपनी सार्वजनिक छवि को बिगड़ने और शादी को टूटने से बचाने के लिए मार्क्स ने बड़ी चालाकी से अपने इस कृत्य को छिपाने के लिए एक योजना तैयार की थी। मार्क्स ने इसके लिए अपने दोस्त फ्रेड्रिक एंजेल्स की मदद ली थी, जिसने उस बच्चे के पिता होने का दावा किया और हेलेन देमुथ ने इस बात की सार्वजनिक पुष्टि की।
इस तरह से मार्क्स और हेलन का बेटा अब एंजेल्स और हेलेन का बेटा हो गया। 40 वर्षों तक इस राज़ को कोई और नहीं जान पाया। 1895 में जब एंजेल्स मृत्युशैया पर थे, तब उन्होंने मार्क्स की बेटी इलिनर मार्क्स को यह बात बताई। इलिनर यह बात सुन कर सन्न रह गई। हालाँकि, मार्क्स की संतानों में तब तक 2 ही बचे थे, और 3 वर्षों बाद इलिनर ने भी आत्महत्या कर ली। इसी तरह 1911 में मार्क्स की एक अन्य बेटी लौरा ने भी आत्महत्या कर ली।
Remembering today, on his birth anniversary, a man who gave birth to an ideological cult responsible for the MURDER of 100 million people. #KarlMarx pic.twitter.com/0UWaDnmdDZ
— Anand Ranganathan (@ARanganathan72) May 5, 2020
इतिहासकार पॉल जॉनसन अपनी पुस्तक ‘इंटेलेक्टुअल्स’ में लिखते हैं कि कार्ल मार्क्स ने मजदूरों के लिए आवाज़ उठाने का दावा किया, उनके लिए लड़ने का दावा किया, जिन्हें काम के बदले उचित रुपए नहीं मिलते थे लेकिन वो अपने घर काम करने वाली नौकरानी को क्या देते थे? कुछ नहीं। मार्क्स ने अपनी फैमिली मेड हेलेन डेमुथ को एक कौड़ी तक नहीं दी। वो उनके घर का सारा काम करती थी, उनका बजट भी मैनेज करती थी लेकिन उसे उसके काम के एवज में कभी रुपए नहीं मिले। मार्क्स उसके साथ सेक्स भी करते थे।
इस तरह से दुनिया भर के मजदूरों के लिए आवाज़ उठाने और स्त्रियों को संपत्ति का मालिक बनाने का दावा करने वाले ने अपने ही घर में एक महिला को उसके काम के बदले वेतन नहीं दिया और उससे हुए बेटे को उचित सम्मान देना तो दूर, उसे एक राज बना दिया ताकि उसके क्रान्तिकारी छवि को चोट न पहुँचे। मार्क्स के दोनों चेले माओ और कास्त्रो के साथ भी ये चीजें कॉमन थीं। उन्होंने भी स्त्रियों को ‘सेक्स ऑब्जेक्ट’ समझा और कभी सम्मान नहीं दिया। आज भी मार्क्सवादी यही करते हैं।