Tuesday, March 19, 2024
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माफ़ करना योगेश जाटव, तुम्हारा नाम ‘पहलू खान’ या ‘तबरेज अंसारी’ नहीं था: कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की मुस्लिम भीड़ पर सन्नाटा

'राजनीतिक टूर' करने वाले नेता इस बार संवेदना तक नहीं जताएँगे, क्योंकि इससे उनसे सेक्युलर होने का तमगा छिन जाएगा। मुस्लिम वोटों के तुष्टिकरण के लिए ऐसी घटनाओं पर उन्हें आँख मूँदे रहने की आदत है।

आपको पहलू खान याद है? अप्रैल 2017 में उसकी मॉब लिंचिंग का आरोप गोरक्षकों पर लगाते हुए खूब हंगामा किया गया था। तब राज्य में भाजपा की सरकार थी, इसीलिए मामले को अंतरराष्ट्रीय बनाते हुए विदेशी मीडिया तक में हिन्दुओं, गोरक्षकों और हिन्दू धर्म को बदनाम करते हुए लेख लिखे गए थे। अब अलवर में योगेश जाटव नाम के एक दलित युवक की सरेराह मॉब लिंचिंग कर दी गई है। सन्नाटा पसरा हुआ है।

राजस्थान में कॉन्ग्रेस की सरकार है और अशोक गहलोत वामपंथी मीडिया के भी दुलारे हैं (जब तक वो गाँधी परिवार के इशारे पर नाचते रहें, वरना जिस दिन उनका हश्र कैप्टेन अमरिंदर सिंह वाला हुआ, उस दिन से मीडिया का ये गिरोह विशेष उन्हें भी नकार देगा)। दूसरा कारण ये है कि हत्यारे मुस्लिम समुदाय से आते हैं। कॉन्ग्रेस का राज और हत्यारों का मुस्लिम होना – ये दो कारण काफी हैं मीडिया को चुप कराने के लिए।

आइए, सबसे पहले घटना पर एक नज़र डाल लेते हैं कि आखिर हुआ क्या था। घटनाक्रम कुछ यूँ था कि बड़ौदामेव के मीना का बास इलाके में बुधवार (15 सितम्बर, 2021) को भटपुरा निवासी योगेश जाटव बाइक से गाँव की तरफ जा रहे थे। रास्ते में एक गड्ढा था, ऐसे में दुर्घटना हो गई और उनकी बाइक एक महिला से टकरा गई। इसके बाद शुरू हुआ मुस्लिम भीड़ का आतंक। दलित युवक की इतनी पिटाई की गई कि वो कोमा में चला गया।

3 दिन इलाज चला, जिसके बाद जयपुर में शनिवार को योगेश की मौत हो गई। अगले ही दिन आक्रोशित ग्रामीणों ने बडौदामेव में अलवर-भरतपुर रोड पर दोपहर करीब 3 बजे से शाम 6 बजे तक शव रखकर विरोध प्रदर्शन किया। प्रशासन के साथ किसी तरह समझौता हुआ, जिसके बाद शव का अंतिम संस्कार करने को परिजन राजी हुए। आरोपितों को तुरंत गिरफ्तार कर के जेल भेजे जाने की माँग के साथ-साथ ग्रामीणों ने पीड़ित परिजनों को 50 लाख रुपए की सहायता देने के लिए सरकार से माँग की है।

इस घटना के अगले ही दिन परिजनों ने FIR दर्ज करवा दी थी, जिसमें 6 लोगों को आरोपित बनाया गया था। रसीद पुत्र नामालूम, साजेत पठान, मुबीना पत्नी नामालूम तथा अन्य चार लोगों के नाम FIR में शामिल थे। ग्रामीणों के आक्रोश के कारण अलवर-भरतपुर मार्ग घंटों जाम रहा। योगेश जाटव की उम्र मात्र 17 वर्ष ही बताई जा रही है। चार बहनों का वो इकलौता भाई था, ऐसे में परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है।

पुलिस-प्रशासन की निष्क्रियता के कारण ही ग्रामीणों को विरोध प्रदर्शन करना पड़ा। 5 घंटे तक हुए प्रदर्शन से पहले पुलिस ने IPC (भारतीय दंड संहिता) की धारा-336 (उतावलेपन या उपेक्षापूर्वक ऐसा कोई कार्य, जिससे मानव जीवन या किसी की व्यक्तिगत सुरक्षा को ख़तरा हो), 143 (भीड़ द्वारा गैर-कानूनी कार्य), 323 (किसी को चोट पहुँचाना), 379 (छीना-झपटी कर घायल करना) और 341 (किसी को गलत तरीके से रोकना) के तहत मामला दर्ज किया था।

पुलिस ने उलटा विरोध प्रदर्शन में शामिल एक व्यक्ति को ही गिरफ्तार कर लिया और उस पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगाए गए। वो परिजनों की तरफ से बोल रहा था। हालाँकि, बाद में उसे छोड़ दिया गया। SC/ST एक्ट के अलावा अब हत्या की धारा भी लगा दी गई है। प्रशासन दोषियों के विरोध कड़ी कार्रवाई का आश्वासन देते हुए सरकार तक पीड़ित परिजनों की बात पहुँचाने का वादा भी कर रहा है।

हजारों लोगों के सड़क पर उतरने के बावजूद इन पीड़ितों की आवाज़ अब तक मीडिया के कान में नहीं पहुँची है, क्योंकि मृतक का नाम ‘योगेश जाटव’ है, ‘पहलू खान’ नहीं। किसी चोर को रंगे हाथों पकड़े जाने और उसकी पिटाई के बाद मौत होने पर उसके यहाँ ‘राजनीतिक टूर’ करने वाले नेता इस बार संवेदना तक नहीं जताएँगे, क्योंकि इससे उनसे सेक्युलर होने का तमगा छिन जाएगा। मुस्लिम वोटों के तुष्टिकरण के लिए ऐसी घटनाओं पर उन्हें आँख मूँदे रहने की आदत है।

आपको कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए काल याद है, जब संसद में ‘सांप्रदायिक हिंसा बिल’ लाया गया था? इसमें प्रस्ताव था कि दोष किसी का भी हो, हत्या की घटनाओं के लिए बहुसंख्यकों को ही जिम्मेदार माना जाएगा। हिंसा की स्थिति में सीधे केंद्र के दखल की बात कह कर संघीय ढाँचे पर भी प्रहार किया गया था। तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी ने इसके खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए कहा था कि ये बिल धार्मिक और भाषाई आधार पर समाज को बाँटने वाला है।

उनका कहना था कि इससे धार्मिक और भाषाई पहचान हमारे समाज में मजबूत हो चलेगी और आसानी से हिंसा के साधारण घटना को भी सांप्रदायिक रंग दिया जा सकेगा। उन्होंने बताया था कि कैसे यह कानून धार्मिक और भाषाई पहचान वाले नागरिकों के लिए आपराधिक कानूनों को अलग-अलग ढंग से अप्लाई करने का मौका दे सकता है। इससे अधिकारी तक डरे हुए रहते, क्योंकि मुस्लिमों की शिकायत पर उनके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई होती।

इस मामले में पुलिस ने मॉब लिंचिंग वाली धारा भी नहीं लगाई थी। ऐसे में सवाल उठता है कि बहुसंख्यकों को बिना गलती हत्यारा मानने वाले कॉन्ग्रेस के बिल से कितना नुकसान होता? अक्सर देखा गया है कि मुस्लिम भीड़ ने संगठित होकर दंगे किए हैं। हाल की घटनाओं में देखें तो दिल्ली और बेंगलुरु में हुए दंगे इसके उदाहरण हैं। या ऐसी स्थिति में भी हिन्दुओं को ही जेल होती? आरोपित मुस्लिम हैं, इसीलिए कोई नेता/पत्रकार उन्हें जेल भेजने की माँग नहीं करेगा।

राजस्थान भाजपा के पूर्व प्रवक्ता लक्ष्मीकांत भारद्वाज ने इस घटना पर टिप्पणी करते हुए कहा, “राजस्थान के अलवर में शांतिदूतों की भीड़ ने मासूम युवक योगेश को पीट पीट कर मार डाला। सेक्यूलर बिछुओं के कानों तक आवाज़ नहीं पहुँचेगी। क्योंकि मरने वाला योगेश और मारने वाले रशिद, साजित पठान, मूबिना और उसके साथी हैं।’ उनकी बात बिलकुल सही है। आजकल हंगामा मृतकों और आरोपितों का मजहब देख कर होता है।

अंत में दिलीप मंडल, उदित राज और हंसराज मीणा जैसे दलितों के ठेकेदारों से भी सवाल पूछा ही जाना चाहिए कि क्या वो दलितों के विरुद्ध क्रूरता के लिए तब कोई आवाज़ नहीं उठाएँगे, जब ये मुस्लिमों द्वारा किया जा रहा हो? फिर वो खुद को दलितों के ठेकेदार की जगह मुस्लिमों का ठेकेदार क्यों नहीं घोषित कर देते? एक दलित नाबालिग की पीट-पीट कर बेरहमी से हत्या के दी गई और दलित चिंतक चुप्पी साधे हुए हैं?

झारखंड में तबरेज अंसारी के लिए ओवैसी ने आवाज़ उठाई थी। पहलू खान के लिए कॉन्ग्रेस बेचैन थी। हाथरस में मीडिया का जमावड़ा लगा था और राहुल गाँधी व प्रियंका गाँधी वहाँ पहुँचे थे। ये अलग बात है कि रास्ते में वो ठहाके लगा रहे थे। लेकिन, योगेश जाटव का कोई नहीं है। ‘दलित प्रेम’ अब झूठा हो गया है क्योंकि मुस्लिमों के नाराज़ होने की आशंका है उन्हें। इनका दलित प्रेम बनावटी मामलों पर आधारित है, वास्तविक नहीं।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

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