Sunday, November 17, 2024
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मंदिरों की मुक्ति से पाठ्यक्रमों की शुद्धि तक: 2024 से पहले जो काम मोदी सरकार को करने चाहिए पूर्ण

मोदी सरकार के शासन में सैकड़ों सालों से चली आ रही अयोध्या के श्रीराम मंदिर-बाबरी ढाँचा मामले का निपटान हो गया। तीन तलाक जैसी सामाजिक कुरीति और कश्मीर के अलगाववादियों को शह देने वाले आर्टिकल 370, जिसे किसी भी सरकार ने वोटबैंक की राजनीति के कारण छूने की हिम्मत नहीं की, उसे भी मोदी सरकार ने एक झटके में खत्म कर दिया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी- भाजपा (BJP) ने केंद्र में 8 साल पूरे कर लिए हैं। इन वर्षों में मोदी सरकार ने देश की नीति-निर्धारण के तरीके को पूरी तरह बदल कर रख दिया है। सामाजिक जागरूकता से लेकर आधारभूत संरचना के निर्माण और विदेश नीति तक कई बड़े बदलाव हुए हैं। इन वर्षों में ऐसे मामलों का भी निपटारा हुआ है, जिसे तुष्टिकरण के कारण किसी भी सरकार ने हाथ लगाने की कोशिश नहीं की।

विश्व का हर देश भारत को एक बड़ी और उभरती आर्थिक और सामरिक ताकत मान रहा है। आज हम चर्चा करेंगे मोदी सरकार द्वारा उठाए गए उन कदमों की, जिसने देश को बेहद प्रभावित किया। इसके साथ ही हम उन मुद्दों की भी चर्चा करेंगे, जिसे निपटाने की उम्मीद देश का हर नागरिक साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले करता है।

मोदी सरकार की उपलब्धियाँ

कॉन्ग्रेस एवं अन्य सरकारों की तुलना में मोदी सरकार में विदेश नीति बेहद आक्रामक और राष्ट्रहित को लेकर है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत का कद कितना बड़ा हुआ है, इसका अंदाजा अमेरिका के हालिया रुख से पता चलता है। यूक्रेन में हमले के बाद अमेरिका ने भारत से उम्मीद की थी कि वह रुस के खिलाफ उसका साथ दे, लेकिन भारत ने अपनी स्वतंत्र नीति और हित का हवाला देकर किसी भी पक्ष के साथ जाने से इनकार कर दिया। रुस के खिलाफ UN में मतदान नहीं करने के बावजूद अमेरिका ने भारत पर किसी तरह की पाबंदी लगाने की हिम्मत नहीं की।

मोदी सरकार की विदेश नीति का परिणाम है कि हिंदुओं की विरासत का हिस्सा और उनकी अमूल्य धरोहर के रूप में रखे प्राचीन मूर्तियों को विदेशी सरकार वापस करने लगी। मोदी सरकार के शासन में कनाडा और अमेरिका सहित कई देशों से प्राचीन मूर्तियों को भारत लाया गया है।

मोदी सरकार के शासन में सैकड़ों सालों से चली आ रही अयोध्या के श्रीराम मंदिर-बाबरी ढाँचा मामले का निपटान हो गया। तीन तलाक जैसी सामाजिक कुरीति और कश्मीर के अलगाववादियों को शह देने वाले आर्टिकल 370, जिसे किसी भी सरकार ने वोटबैंक की राजनीति के कारण छूने की हिम्मत नहीं की, उसे भी मोदी सरकार ने एक झटके में खत्म कर दिया।

इसके अलावा, सरकार ने आतंकवाद पर जीरो टोलरेंस की नीति अपनाकर देश में आतंकवाद को मृतप्राय सा कर दिया है। भाजपा के शासन में कई खूंखार आतंकियों का एनकाउंटर हुआ और दर्जनों को गिरफ्तार किया गया। इसके कारण देश में कई बड़े हमलों की साजिश को नेस्तनाबूद कर दिया गया।

इसके अलावा, मोदी सरकार ने पड़ोसी खतरों को देखते हुए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद का सृजन किया और कई कमानों की स्थापना की। राफेल जैसे फाइटर जेटों का बेड़ा बनाया गया और कई स्वदेशी लड़ाकू विमानों एवं तकनीकों विकसित कर देश की सीमा को सुरक्षित रखना सुनिश्चित किया गया।

मलेरिया जैसी बीमारी को संभालने में जिस देश में चार दशक लग गए, वहाँ कोरोना जैसी वैश्विक महामारी को अमेरिका और यूरोप जैसे कथित विकसित देशों की अपेक्षा बेहतर तरीके से प्रबंधित किया गया। सरकार ने तीव्र कार्रवाई करते हुए कोरोना का स्वदेशी टीका विकसित और देश की अधिकतम आबादी का टीकाकरण कर दिया। यह भी अपने आप में किसी विकाशील देश के लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है।

इन 8 सालों में केंद्र की भाजपा सरकार ने जनधन, उज्ज्वला, सुकन्या समृद्धि जैसी ना सिर्फ जन कल्याणकारी योजनाएँ शुरू कीं, बल्कि स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसी सामाजिक जागरूकता वाले अभियानों को भी मूर्त रूप दिया। सरकार ने वन रैंक, वन पेंशन जैसी दशकों पुरानी माँग को भी सफलतापूर्वक पूरा किया।

इतना ही नहीं, विनिवेश (Disinvestment), विदेशी निवेश (FI), आत्मनिर्भर भारत, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं के जरिए भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती दी गई। वहीं, इस दौरान देश भर में सड़कों का जाल बिछाया गया। नए IIT-IIM, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोले गए। उड़ान अभियान के तहत देश भर में नए हवाई अड्डों का निर्माण लगातार जारी है।

उपरोक्त तमाम उपलब्धियों के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार से लोगों को कुछ मुद्दों पर विशेष उम्मीद है। ये मुद्दे भाजपा की चुनावी घोषणा-पत्र की प्रत्यक्ष या परोक्ष हिस्सा भी रही हैं। साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा को निम्नलिखित मुद्दों पर भी कदम उठाने की जरूरत है। आइए, इन मुद्दों को जानने की कोशिश करते हैं:

पूजास्थल (विशेष प्रावधान)-1991 का खात्मा

वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर एवं ज्ञानवापी विवादित परिसर और मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि एवं शाही ईदगाह विवादित ढाँचे को लेकर अदालती जंग जारी है। इन मामलों में मुस्लिम पक्ष तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा लाए गए पूजास्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम-1991 को हवाला दे रहा है। हालाँकि, हिंदू पक्ष और अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस कानून की दखलअंदाजी को नकारा है।

लेकिन, यह कानून देश में सैकड़ों मंदिरों को तोड़कर बनाए गए मस्जिदों एवं अन्य इस्लामिक ढाँचों पर हिंदू दावों को कमजोर करता है। इसके साथ ही यह कानून हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख समुदाय के धार्मिक अधिकारों का भी उल्लंघन करता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय का कहना है कि इस कानून को बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है ही नहीं। यह न्यायिक समीक्षा पर प्रतिबंध लगाकर संविधान के मूल तत्वों का उल्लंघन करता है।

हालाँकि, इस कानून को निरस्त करने के लिए एडवोकेट उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल किया है। यदि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय तक लंबित रहता है तो केंद्र की भाजपा सरकार को इस पर कदम उठाना होगा और उसे संसद में बिल के माध्यम से निरस्त करना होगा।

पाठ्यक्रमों से इस्लामी आक्रांताओं का महिमामंडन हटा तथ्यात्मक जानकारी

भारत में इतिहास के पाठ्यक्रमों में मुगलों और इस्लामी आक्रांताओं का महिमामंडन एक बड़ा मुद्दा है। इसको हटाकर सटीक तथ्यों को शामिल करने की माँग हमेशा से उठती रही है। टीपू सुल्तान को स्वतंत्रता सेनानी बताना, अकबर को महान बताना, हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह की अकबर से हार आदि ऐसे हजारों तथ्य हैं, जो आज भारत के स्कूली पाठ्यक्रमों का हिस्सा हैं। NCERT (नेशनल काउंसिल ऑफ एड्यूकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग) खुद कई बार RTI में यह स्वीकार कर चुका है कि पाठ्यपुस्तकों में बहुत से ऐतिहासिक तथ्यों और घटनाओं को वह बिना किसी सबूत के पढ़ाता है।

मोदी सरकार पर दबाव है कि वह इन पाठ्यक्रमों में बदलाव करें, ताकि इतिहास की सही जानकारी देशवासियों को पढ़ाई जा सके। हालाँकि, इसको लेकर सरकार ने प्रयास किया है, लेकिन वामपंथी और कथित सेक्युलर गैंग के दबाव में सरकार फूँक-फूँक कर कदम आगे बढ़ा रही है। प्रचंड बहुमत प्राप्त भाजपा सरकार को आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इस पर तेजी से काम करना होगा। यह लोगों की ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की भी माँग है।

नौकरशाही को जवाबदेह और पारदर्शी बनाना

साल 2014 में केंद्र में भाजपा सरकार आने से पहले के कॉन्ग्रेस शासन को लकवाग्रस्त नीतियों के जाना जाता है। इस दौरान सरकार ने देशहित में कोई ऐसा बड़ा कदम नहीं उठाया, जिसकी विशेष रूप से देश में चर्चा हो। यही नौकरशाही भाजपा के सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार की सख्ती के बाद ऐक्टिव हो गई। इसलिए सरकार को नौकरशाही व्यवस्था को पारदर्शी और जनता के प्रति जवाबदेह बनाना होगा। जवाबदेही की कमी के कारण नीतियों के क्रियान्वयन में दशकों लग जाते हैं।

इसके साथ ही, नौकरशाहों को सेवा में बहाली को लेकर भी कुछ सख्त नियम तय करने की जरूरत है। इसका उदाहरण कश्मीर कैडर के IAS शाह फैसल हैं। शाह फैसल ने सेवा के दौरान सरकार विरोधी और देश विरोधी बयानबाजी की। इसके बाद त्याग-पत्र देकर कश्मीर की अलगाववादी और कट्टरपंथी राजनीति का हिस्सा बन गए। जब धारा 370 खत्म हुआ और उनकी राजनीतिक पारी असफल हो गई तो वे वापस अपनी सेवा में आ गए। ऐसे मामलों में सरकार को एक स्पष्ट नीति बनाने की भी जरूरत है।

भ्रष्ट और सार्वजनिक आचरण के विरुद्ध कार्य करने वाले नौकरशाहों को लेकर भी सरकार की नीति बहुत स्पष्ट नहीं है। यही हाल, ईमानदार अधिकारियों को लेकर है। भ्रष्ट सरकारों में ऐसे ईमानदार अधिकारी प्रताड़ना का शिकार बन जाते हैं। देश में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए इस पर सरकार को तत्काल कदम उठाने की जरूरत होगी।

CAA और NRC का को लागू करना

देश अवैध शरणार्थियों का स्वर्ग बना हुआ है। आए दिन ऐसे लोग पकड़े जा रहे हैं जो दशकों से देश में अवैध रूप से रह रहे हैं। इनके पास सारे दस्तावेज भी होते हैं और ये सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ भी लेते हैं। ऐसे लोगों की पहचान के लिए सरकार को कड़ाई के साथ पूरे देश में CAA और NRC लागू करने की जरूरत है।

देश में विपक्षी राजनीतिक दलों के लिए ऐसे अवैध तत्व एक मजबूत वोटबैंक का काम करते हैं। इसलिए विपक्षी दल भी CAA और NRC का खुलेआम विरोध करते हैं। वहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे कट्टरपंथी देशों में फँसे हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख एवं ईसाई लोगों के लिए मददगार बना यह कानून अधर में लटक कर रह गया है। ऐसे में सरकार पर आम लोगों का दबाव रहेगा कि लोकसभा चुनाव से पहले इस कानून को सख्ती के साथ पूरे देश में लागू करे।

मंदिरों का सरकारी नियंत्रण से मुक्ति

देश में स्थित मंदिर हिंदुओं के धरोहर हैं। इन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की जरूरत है। सरकार भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर प्रबंधन के नाम पर लंबे तक इसे अपने कब्जे में नहीं रख सकती। इसको लेकर हिंदू संगठनों के साथ-साथ आम लोग भी सजग हो रहे हैं। ऐसे में सरकार को इन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाना होगा।

सरकार इसके लिए एक ऐसी प्रणाली बना सकती है, जिसमें मंदिरों के प्रबंधन में हिंदुओं के हर समुदाय की भागीदारी हो और उसके कार्य-प्रणाली पर समाज की नजर रहे। इसके लिए सरकार अपने नियंत्रण से मुक्त करने के साथ कानूनी प्रावधान कर सकती है। इससे हिंदू समाज स्कूल, अस्पताल आदि बनाने में अपने भगवान की संपत्ति का प्रयोग कर सकता है और गरीबी का दंश झेल रहे हिंदुओं के कुछ तबकों के लिए राहत का काम किया जा सकता है।

धर्मांतरण में संलिप्त संस्थानों पर कठोर निगाह

देश में धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा है। सामाजिक कार्यों के नाम पर विदेशी संस्थान कई माध्यमों से इस्लामी और क्रिश्चियन संस्थानों को पैसे भेजते हैं, जिनका इस्तेमाल हिंदुओं के धर्मांतरण के लिए किया जाता है। देश में धर्मांतरण के लिए वित्तीय सहायता मुहैया कराने वाले संस्थानों पर सरकार को कठोर लगाम लगाने की जरूरत होगी।

सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि ऐसे संस्थान, जो संदिग्ध गतिविधियों में शामिल हैं, उन्हें FCRA का लाइसेंस ना मिले। इसके साथ ही इससे जुड़े लोगों को वीसा आदि देने पर रोके जैसे कठोर कदम उठाए जा सकते हैं। वहीं, देश में ऐसे संस्थानों को किसी भी तरह से मदद करने वाले विदेशी व्यक्तियों एवं संस्थानों को भारत में घुसने पर पाबंदी लगाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। ऐसे कठोर कदमों से धर्मांतरण करने वाले संस्थानों के रीढ़ तोड़ी जा सकती है। लेकिन, हवाला भी एक महत्वपूर्ण कारक है। ऐसे में हवाला कारोबारियों के लिए भी कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।

न्यायिक एवं पुलिस सुधार

इस देश में न्यायिक सुधार की बहुत आवश्यकता है। पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर निर्णय देने वाले जजों के खिलाफ कार्रवाई की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने मैहर के मैहर के अतिरिक्त जिला जज को पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर निर्णय देने के लिए चेतावनी दी थी। ऐसे मामलों में सिर्फ चेतावनी कानून व्यवस्था का सबसे बड़ा लूपहोल है। संवैधानिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति के लिए इस तरह पद के दुरुपयोग पर सर्विस से बर्खास्तगी और इसके साथ कठोर दंड का भी प्रावधान होना चाहिए।

इसके अलावा, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता की घोर कमी है। इसको लेकर लगातार आलोचना होती रहती है। हालाँकि, मोदी सरकार ने ज्यूडिशियल बिल के जरिए इसमें सुधार करने की कोशिश की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्यायपालिका में हस्तक्षेप बताकर खारिज कर दिया था। लेकिन, मोदी सरकार को ऐसे सुधारों की दिशा में आगे बढ़ना होगा। इसी उम्मीद के साथ देश की जनता ने उन्हें प्रचंड बहुमत भी दिया था।

ऐसी ही स्थिति पुलिस सुधार को लेकर भी है। पुलिस की भूमिका सहयोगी की होनी चाहिए, जो कि नहीं है। ब्रिटिश काल में बने पुलिस कानून और दंड संहिता इसमें बड़े अवरोधक का काम कर रहे हैं। देश में आम लोगों को जितना डर अपराधियों से लगता है, उससे कहीं अधिक डर पुलिस से लगता है। ऐसे में पुलिस की भूमिका में बदलाव की सख्त जरूरत है। इसके साथ ही साइबर अपराध, वैज्ञानिक एवं मनोवैज्ञानिक अन्वेषण जैसे विषयों में भी इन्हें प्रशिक्षित करने की जरूरत है।

ये कुछ ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं, जिनमें से कुछ को लेकर देश की जनता को साल भाजपा से उम्मीदें थीं। सत्ता में आए हुए भाजपा को अब 8 साल हो चुके हैं। ऐसे में लोगों को उम्मीद है कि जन कल्याण के लिए इन मुद्दों पर भाजपा सरकार काम करेगी। साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा सरकार को इन मुद्दों पर काम करना होगा, तभी उसकी लोकप्रियता बरकरार रहेगी, अन्यथा बदलते घटनाक्रमों के साथ जनता का मूड और रूख दोनों इस राजनीति में बदलते देखा गया है।

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सुधीर गहलोत
सुधीर गहलोत
प्रकृति प्रेमी

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