Wednesday, November 20, 2024
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अदम्य साहसी नागा रेजिमेंट Vs चीन के बहकावे वाला NSCN-IM: स्थानीय करेंगे 3000 हिंसक समर्थकों की चाल बेकार

वसूली, वर्चस्व, विदेश यात्राएँ, महानगरों की महँगी संपत्तियों का लोभ और चीनी प्रश्रय... NSCN-IM इन्हीं लोभ-लालच में फँसा हुआ है। इसके 3000 समर्थक हिंसा को तैयार हैं जबकि 4 स्थानीय गुट इन्हें कब का नकार कर भारत के साथ...

लम्बे समय से भारत सरकार के समक्ष नागालैंड के स्वयम्भू प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड (NSCN-IM) को किसी भी तरह से नागालैंड का एक मात्र प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता। NSCN-IM वस्तुतः विदेशी शक्ति द्वारा नियंत्रित एक ऐसा संगठन है, जिसमें सभी नागाओं के स्थान पर तांगखुल नागाओं को विशेष प्रभावकारी महत्व दिया गया है।

समस्त नागा जनसमूह का प्रतिनिधित्व करने का छद्म दावा करने वाला यह तांगखुल समूह मुख्यतः मणिपुर की पहाड़ियों तक सीमित है और मणिपुर के अंदर भी इनका प्रभाव केवल सेनापति, उखरुल, चंदेल और तमेंगलोंग चार जिलों तक ही सीमित है।

1966 से ही नागालैंड के पृथकतावादी नेतृत्व और चीन के मध्य स्थित दुरभि-संधि के साक्ष्य देखने को मिलते हैं। मुइवाह के नेतृत्व काल से ही चीन के दक्षिण-पश्चिम स्थित युन्नान प्रान्त में नागा अलगाववादियों को शुरू से ही प्रशिक्षण दिया जाता रहा है।

NSCN-IM के शीर्ष नेतृत्व की चीन की तीन से अधिक यात्राओं के उदाहरण किसी से छुपे नहीं हैं। चीन की बद्लिंग की दीवार पर खिंची गई, इनकी छवि आज भी चीन के साथ इनके प्रगाढ़ संबंधों को स्पष्ट करती है।

चीन आरंभ से ही अलगाववादी नागा गुटों का प्रणेता रहा है। चीन पाकिस्तान के विपरीत, जो जम्मू कश्मीर के अलगाववादियों को प्रत्यक्ष सहायता देता है, पिछले पाँच दशकों से पूर्वोत्तर भारत में, भारत के विरुद्ध पूर्वोत्तर स्थित विभिन्न जन समूहों के मध्य असंतोष को षड्यंत्रकारी रूप से उभार कर, भारत में अव्यवस्था उत्पन्न करने की रणनीति पर कार्य कर रहा है। इस सन्दर्भ में असम, मणिपुर और नागालैंड सदैव से उसके प्रिय लक्ष्य रहे हैं।

भारत के पूर्वोत्तर के अलगाववादी गुट उपरी म्यांमार के प्राचीन पारम्परिक व्यापारी मार्ग का उपयोग चीन तक जाने के लिए करते रहे हैं। अपनी विस्तारवादी नीति का अनुसरण करने के लिए चीन किसी भी सीमा तक जा सकता है। इसका उदाहरण म्यांमार के सन्दर्भ में देखने को मिलता है।

लम्बे समय तक म्यांमार के संसाधनों का दोहन करने के बाद भी चीन, म्यांमार के इस क्षेत्र में दक्षिण कोरिया और भारत के प्रभाव को नियंत्रित करने के उद्देश्य से, अराकान आर्मी जैसे पृथकतावादी समूह को तकनीकी और सैन्य सहायता प्रदान करने की दुर्नीति पर अग्रसर है। चीन ने NSCN-IM की स्थापना के साथ ही उसे सैन्य रूप से सुसज्जित करने में सक्रिय रूप से सहायता की।

चाइना ऑर्डिनेंस इंडस्ट्रीज ग्रुप कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा नागालैंड के इस चरमपंथी अलगाववादी समूह को नियमित रूप से पिछली शताब्दी के सातवें दशक से ही मशीन-गन, मोर्टार और अन्य स्वचालित शास्त्रों की आपूर्ति की जाती रही है।

आज भी चीन द्वारा इस समूह को हथियारों की आपूर्ति की सूचना है। इस समूह के अनेक नेताओं और कैडरों को चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के पश्चिमी कमान द्वारा हथियारों की आपूर्ति के साथ-साथ चीन में सुरक्षित आश्रय और गुप्त सैन्य प्रशिक्षण दिए जाने की पुष्ट सूचना है।

1980 में नागा नेशनल काउंसिल से अलग होने साथ साथ मुइवाह ने अपने नए संगठन का नामकरण नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड किया। इस नाम में सोशलिस्ट प्रत्यय के संयोजन के परोक्ष भी चीन का प्रभाव स्पष्ट है।

चीन का NSCN-IM पर प्रभाव केवल नामकरण में परिवर्तन तक ही सीमित नहीं है, वरना इसके कई और भी आयाम परिलक्षित किए जा सकते हैं। चीन की सरकार के “सत्ता की बागडोर बन्दूक की नली से निकलती है” के आदर्श वाक्य को इस समूह की कार्यप्रणाली में स्पष्टतः अनुभव किया जा सकता है।

NSCN-IM सदैव से हिंसा के बल पर जनप्रतिनिधित्व का छद्म-दावा करने वाला संगठन रहा है। अपने प्रभाव की स्थापना के लिए इस संगठन द्वारा टी सखरी और डॉ इम्कोंग्लिबा आओ जैसे शांतिप्रिय नागा नेताओं की हत्या करवाए जाने के दृष्टान्त किसी से छुपे नहीं हैं।

इस संगठन द्वारा कुग्हतो सुखाई, कैटो सुखाई और स्काटो स्वू जैसे नेताओं को नागा वार्ता-परिदृश्य से बलपूर्वक बाहर किए जाने के उदाहरण भी हैं। यह समूह चीन की किसी भी विषय के शांतिप्रिय समाधान को होने न देने की रणनीति का अनुसरण करता है। यह इसी रणनीति का परिणाम है कि वह आज भारत सरकार को हिंसा के नए दौर का आरंभ होने की गीदड़-भभकी दे रहा है।

भारतीय सन्दर्भ में विदेशी दखलंदाजी को कई घटनाओं द्वारा और सहजता से समझा जा सकता है। फरवरी 2000 में NSCN-IM के शीर्ष नेता को बैंकॉक हवाई अड्डे पर कोरिया के फर्जी पासपोर्ट पर यात्रा करते हुए पकड़ा गया। इस सन्दर्भ में यह देखने को मिला कि इस नेता द्वारा इस यात्रा का आरंभिक बिंदु पाकिस्तान स्थित कराची था। जनवरी 2011 में वांग किंग नामक एक चीनी टीवी पत्रकार को जासूसी के आरोप में दीमापुर से गिरफ्तार किया गया।

विस्तृत जाँच के बाद यह तथ्य सामने आया कि इस पत्रकार का सम्बन्ध चीन की पीपल्स सिक्यूरिटी ब्यूरो से था और उसने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड के मुख्यालय में बंद कमरे में चार घंटे से भी अधिक तक गुप्त वार्ता की। NSCN-IM के शीर्ष नेता शिम्राई ने स्वयं माना है कि उन्हें गुट के शीर्षस्थ नेता ने खोलोसे स्वू सुमी को चीन में सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड के स्थाई प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त करने के लिए पत्र लिखने का आदेश दिया था।

इधर लद्दाख क्षेत्र में भारत-चीन सीमा विवाद के बढ़ने के बाद NSCN-IM ने एक अलग प्रकार का हठधर्मी रूख अपना लिया है। इस गुट का मुखिया अन्थोनी शिम्राई, हेब्रोन स्थित मुख्यालय से लापता है और यह सूचना है कि वह भारत-म्यांमार सीमा पर 3000 समर्थकों के साथ चीन के प्रभाव में पुनः हिंसक गतिविधियों को आरंभ करने के आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है। अरुणाचल प्रदेश के भारत-म्यांमार सीमावर्ती, लॉन्गडिंग जिले में छः नागा चरमपंथियों का मारा जाना भी इसी ओर संकेत करता है।

NSCN-IM के बृहद नगालिम की कल्पना में अरुणाचल प्रदेश के तिराप ,चांगलांग तथा लोंगडिंग जिले हैं। भारत का एक राज्य ,अरुणाचल प्रदेश जिसे चीन विवादित मानता है और इसके उस पार चीनी सेना का सघन जमावड़ा है। किसी भी प्रकार के प्रत्यक्ष संघर्ष में न जाकर, अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भ में पाकिस्तान और आतंरिक सन्दर्भ में पूर्वोत्तर भारत के अलगाववादियों को सैन्य समर्थन देना, चीन की सुपरिचित नीति रही है, जिसमें चीन के अपने जान-माल का कम से कम नुकसान होता है।

नागालैंड के निवासियों ने NSCN-IM की चीन के साथ गुप्त-संधि और हिंसा के दुष्प्रभावों को समझा है और वे भारत सरकार के साथ शांति समझौते के होने की तन्मयता से प्रतीक्षा कर रहे हैं। नागालैंड स्थित सभी गुटों में भारत सरकार के प्रति विश्वास और आशा की भावना जगी है।

इन गुटों में विभिन्न समूह हैं, उदाहरणस्वरूप, नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप (एनएनपीजी), ये 7 सशस्त्र गुटों का समूह है, जो भारत सरकार के साथ संधि कर चुके हैं। दूसरा गुट नागालैंड गाँव बूढ़ा फेडरेशन है, जो 1585 गाँवों के गाँव बुढ़ाओं का संघटन है, जिसके सदस्य नागालैंड के गाँवों के मुखिया हैं। ये NSCN-IM द्वारा अपने किसी भी विरोध को नागा विरोधी घोषित करने और इसकी आड़ में हिंसा को बढ़ावा देने की चिरपरिचित शैली का खुल कर विरोध कर रहे हैं।

तीसरा गुट नागालैंड के 14 जनजातियों की शीर्षस्थ संस्था (होहो) है। चौथा गुट नागा ट्राइबल काउंसिल है। इसी एकता को देखते हुए ही, NSCN-IM ने अलग संविधान और ध्वज जैसी रूढ़िवादी माँगों के प्रति दुराग्रह दिखाना शुरू कर दिया है, जिसे वह पहले छोड़ चुका था।

यह गुट संप्रभुता के जिस विषय से भारत सरकार के हट जाने की बात करता है, वह भारत के संविधान में अन्तर्निहित संघवाद में पहले से ही उपस्थित है। इस गुट का यह कहना कि नागालैंड की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान रही है, तथ्यों से मेल नहीं खाता।

गुट का यह कहना कि वह भारत के साथ मिलकर तो रहेगा लेकिन विलय पर एकमत नहीं होगा, वार्ता के प्रति उनकी दुर्भावना और उनके द्वारा उत्तरदायित्व से पलायन करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। चीन के प्रोत्साहन से नागा शांति वार्ता को अपने आयाम तक न पहुँचने देने के पीछे इस गुट के अपने निहितार्थ हैं।

इस क्षेत्र में भारी फिरौती की वसूली, नागा समाज में अपना वर्चस्व, विदेश यात्राएँ और महानगरों में उपलब्ध महँगी संपत्तियों की सहज उपलब्धता का लोभ और चीनी प्रश्रय, इस गुट को शांति-वार्ता के मार्ग में अवरोध को प्रेरित करने के लिए बाध्य कर रहा है।

आज चीन के उकसावे में, एक अलग झंडे और संविधान की आड़ में वार्ता को भंग करने की इस संगठन की मंशा का पूरे नागालैंड में विरोध हो रहा है। NSCN-IM की जबरदस्ती उगाही और अन्य अवैध गतिविधियों पर लगाई गई रोक और संगठन के एकमात्र स्वयंभू होने के दावे को नागालैंड में चुनौती मिल रही है।

नागालैंड के निवासियों का अलगाववाद में कभी विश्वास नहीं था, इसके साक्ष्य हमें काफी पहले से मिलते हैं। नागा नेशनल काउंसिल (एनएनसी) के सचिव द्वारा 4 दिसंबर 1948 को तत्कालीन प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में माँग की गई थी कि नागा हिल जिले को केंद्रीय प्रशासित प्रदेश घोषित किया जाए तथा इसे नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एरिया नेफा के नाम से जाना जाए।

भारत की स्वाधीनता के ठीक बाद 1948 में लन्दन ओलंपिक खेल में भारत के धवज को थामने का श्रेय डॉ टालिमेरेन आओ को जाता है, जिन्होंने इस स्पर्धा में भारतीय फुटबाल प्रतिस्पर्धा में भारतीय टीम की कप्तानी भी की थी।

फिजो द्वारा सशस्त्र आतंकवाद का विरोध करने वाले नागा समाज के प्रबुद्ध लोगों ने ही नागा पीपल्स कन्वेंशन (एनपीसी) के द्वारा अपने अथक परिश्रम से वर्त्तमान नागालैंड राज्य की संरचना की है। कुछ शांतिप्रिय नागा नेताओं को अपनी जान भी गँवानी पड़ी।

नागालैंड के बारे में NSCN-IM ने, चीन जैसी विदेशी शक्तियों के साथ मिलकर नागालैंड के निवासियों की मिथ्या रूप से हिंसक छवि बनाने में सक्रिय योगदान दिया है। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि नागालैंड के निवासियों का भारतीय लोकतंत्र में गहरा विश्वास है। यही कारण है कि 2014 के आम चुनावों में इस राज्य का मत प्रतिशत 87.82% था, जो देश में किए गए सर्वाधिक मतदान में से एक था।

नागालैंड के ही लोकप्रिय नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री एससी ज़मीर (एनपीसी) के सचिव रहे हैं। वो विभिन्न मंत्रिपदों पर रहते हुए चार अलग-अलग प्रान्तों के राज्यपाल रहे। भारत सरकार ने भी उनके योगदान को देखते हुए उन्हें 2020 में भारत के तृतीय सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म-भूषण से सम्मानित किया। अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए नागालैंड के एक अन्य स्वतंत्रता सेनानी को पद्मभूषण तथा 10 प्रबुद्ध जनों को भी भारत के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया जा चुका है।

आज अनेक नागा युवक भारतीय सिविल सेवा में अपना सक्रिय और उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं। गत दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को उनके देश के पिछले सात दशकों से आतंकवाद, जनसंहार, धार्मिक कट्टरपंथ और परमाणु तस्करी का स्मरण दिलाने का श्रेय मिजिटो विनिटो (स्थाई मिशन में प्रथम सचिव) नाम के जिस भारतीय राजनयिक को जाता है, वह नागालैंड के सुमि जनजाति से हैं।

कारगिल युद्ध में अदम्य साहस और शौर्य के लिए नागा रेजिमेंट पूरे देश में आदर से जानी जाती है। अपनी स्थापना के बाद से इसे 1 महावीर चक्र, 8 वीर चक्र, 6 शौर्य चक्र, 1 युद्ध सेवा पदक, 1 विश्व सेवा पदक और 48 सेना पदकों से सम्मानित किया जा चुका है।

आज अधिकाधिक नागावासियों को इस बात का आभास है कि उन्हें भारत के अन्य हिस्सों में रहने वाले अपने नागरिक भाइयों के साथ संवाद और सम्बन्ध स्थापित करने की आवश्यकता है। वे मानते हैं कि किसी भी तरह की हिंसा के परित्याग द्वारा ही इस क्षेत्र का सर्वंगीण विकास संभव है।

आज नागालैंड के निवासियों में निश्चित ही यह भावना बलवती हुई है कि भारत सरकार और उनके मध्य विश्वास और सहयोग को बनाकर ही इस क्षेत्र का समन्वित विकास किया जा सकता है। इस के साथ ही वे अपने देश के विकास और प्रगति में भी अपना योगदान देना चाहते हैं।

आज साधारण नागा यह मानता है कि किसी एक गुट के स्थान पर सभी नागाओं को अपनी बात कहने का समान रूप से अधिकार है। अब यह NSCN-IM जैसे गुट पर निर्भर है कि वह चीन जैसे विस्तारवादी राष्ट्र के हाथों में खेले या फिर पूर्ण नागा जनमानस की अपेक्षाओं के अनुरूप नागा शांति वार्ता को साकार करने में अपना उल्लेखनीय योगदान दे।

(लेखिका दीपिका सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनैतिक शास्त्र की सह अध्यापक हैं तथा सेंटर फॉर नॉर्थ ईस्ट स्टडीज से जुड़ी हुई हैं)

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