वर्ष 2019 में हुए लोकसभा चुनाव को 3 वर्ष पूरे हो चुके हैं। ऐसा लगता है फिर भी जैसे कुछ महीने पहले ही ये चुनाव हुए हों। कोरोना महामारी ने मानो जीवन की रफ्तार पर ब्रेक-सा लगा दिया, लेकिन इन्हीं 2 सालों में चीजें काफी बदल चुकी हैं। देश काफी आगे निकल चुका है।
भारत में 5.4 मिलियन (54,00,000 लाख) घरों में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत 2020-2021 और 2021-2022 के बीच शौचालयों का निर्माण कराया गया। कोरोना संकट के बावजूद भारत में 6 करोड़ ग्रामीण परिवारों को नल के पानी का कनेक्शन मिला है। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (Pradhan Mantri Garib Kalyan Yojana) के तहत महामारी के दौरान गरीबों को 14 करोड़ मुफ्त एलपीजी सिलेंडर बाँटे गए।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जुलाई 2021 में सिलसिलेवार ट्वीट कर बताया था कि महामारी की अवधि के दौरान भी राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण में काफी वृद्धि देखी गई। उन्होंने यह भी कहा था कि 2020-21 में राजमार्ग निर्माण की गति 36.5 किलोमीटर/प्रतिदिन रही। यह राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में अब तक की सबसे तेज गति थी।
India has also created world record by constructing 2.5 km 4 lane concrete road in just 24 hours and 26 km single lane Bitumen road in just 21 hours. #PragatiKaHighway
— Nitin Gadkari (@nitin_gadkari) July 20, 2021
इसके अलावा जिस वक्त देश कोरोना के प्रकोप से निपटने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा था, उस समय भी भारत ने बुनियादी ढाँचे के विकास को रफ्तार देने के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारत के 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया। उस वक्त भारत की कुल आबादी लगभग 135 करोड़ आँक सकते हैं।
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत केंद्र ने पहले लॉकडाउन (22 मार्च 2020) के कुछ दिनों बाद 26 मार्च 2020 को गरीबों के लिए पहली राहत पैकेज की घोषणा की। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत के गरीब, जिनके सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना थी, उन्हें भोजन के लिए संघर्ष न करना पड़े।
महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन, 8 करोड़ परिवारों के लिए रसोई गैस और 40 करोड़ से अधिक किसानों, महिलाओं, बुजुर्गों, गरीबों और जरूरतमंदों को सीधे नकद राशि उपलब्ध कराई। दो साल तक लगातार केंद्र सरकार ने राशन प्रदान किया, ताकि देश में कोई भी गरीब भूखे पेट न सो सके।
पिछले दो सालों में भारत ने विश्व के साथ-साथ महामारी की भयावहता का सामना किया। इस दौरान केन्द्र सरकार का मुख्य फोकस देशवासियों को सुरक्षा प्रदान करना और महामारी के दौरान उन्हें बुनियादी और बेहतर सुविधाएँ देने पर रहा। इसी क्रम में कोविड-19 से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीन का निर्माण किया गया, जिसमें घरेलू वैक्सीन, कोवैक्सिन भी शामिल है।
विपक्षी नेताओं द्वारा वैक्सीन पर देशवासियों को गुमराह करने और अपनी राजनीतिक लाभ के लिए इसका विरोध करने के बावजूद देश में केवल 8 महीनों में 100 करोड़ से अधिक लोगों को वैक्सीन की डोज दी गई। देशवासियों के साथ-साथ केंद्र सरकार ने वैक्सीन डिप्लोमैसी पर भी ध्यान रखा। विपक्षी दलों ने इस पर भी बवाल किया लेकिन अंततः यह काम भारत और भारतवासियों के ही आया।
यह विगत वर्षों में मोदी सरकार द्वारा अन्य देशों से बनाए गए संबंध ही थे, जब अप्रैल 2021 में भारत में ऑक्सीजन संकट गहराया तो अन्य देश हमारी मदद के लिए आगे आए। कोरोना संकटकाल में उन्होंने हमें ऑक्सीजन सिलेंडर और अन्य जरूरत के सामान भेजकर हमारी मदद की।
मोदी ने हिंदुओं के लिए क्या किया?
पीएम मोदी को लेकर कुछ लोगों की कई शिकायतें हैं। इनमें से एक यह है कि उन्होंने हिंदुओं के लिए ऐसा क्या किया है? खैर, कुछ हिंदू बेशर्मी से अपनी धार्मिक पहचान का मजाक तक बनाते रहे हैं। हम जिस ‘धर्मनिरपेक्षता’ के साथ पले-बढ़े हैं, उसका तमाशा बनाया जा रहा है। अधिकतर लोग यह महसूस कर रहे हैं कि धर्मनिरपेक्षता को दोतरफा होना चाहिए।
‘जय श्री राम’ को आतंकी नारा तक कह रहे ‘उदारवादी’ और इस्लामवादी, जो ठीक नहीं है। मासूम लोगों का सिर काटकर बेरहमी से हत्या कर दी जाती है सिर्फ इस बात को लेकर कि जिन्हें वे अपना ईश्वर मानते हैं, उन्होंने उनके बारे में कुछ कह दिया। एक सभ्य समाज में यह स्वीकार्य नहीं है।
राजनीति सिर्फ चुनाव जीतने भर का नहीं, बल्कि इससे ज्यादा है। नेताओं को एक ऐसा माहौल बनाने की जरूरत है, जहाँ सभ्य समाज बनाने और इससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा की जा सके। देश सिर्फ चुने हुए नेताओं से नहीं चलता। नौकरशाह हैं, सरकारी अधिकारी भी हैं, जो सत्ता में बैठे नेताओं के साथ ही देश की सेवा कर रहे हैं। ऐसा लग सकता है कि उन्होंने हिंदुओं के लिए ‘कुछ नहीं किया’, लेकिन वह निश्चित रूप से एक प्रेरक हैं, जिन्होंने कई मुद्दों को उठाया और उस पर तेजी से काम भी किया।
कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार के 32 साल बाद ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) जैसी फिल्म बनाई गई। पहली बार बहुसंख्यक भारतीयों को यह एहसास कराया गया कि उनका अतीत रक्तरंजित है। हालाँकि, इस तरह की चर्चा भी चली कि कुछ नहीं हो सकता है, लेकिन इसे एक शुरुआत तो कह ही सकते हैं। चर्चा, बहस और बातचीत होती रहती है।
इतिहास को फिर से ठीक किया जा रहा है। यह रातों-रात नहीं होगा। इसमें समय लगेगा, इसलिए हमें उम्मीद नहीं खोनी चाहिए। इसके अलावा भारत में बहुत सारे ऐसे विवादित ढाँचे हैं, जिनकी घर-वापसी जरूरी है।
सिर्फ ‘TINA’ ही नहीं
TINA फैक्टर का मतलब यहाँ किसी लड़की से नहीं है, यह एक राजनीतिक टर्म है। TINA मतलब – There is no alternative, जिसकी हिन्दी हुई – कोई विकल्प नहीं है। पीएम मोदी का भी कोई विकल्प नहीं है – तथाकथित राजनीतिक पंडितों ने इसे गढ़ा।
प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव जीता है। अगर चीजें ऐसी ही चलती रहीं तो तीसरी बार भी यानी 2024 में भी उनका जीतना तय है। इसके अलावा एक और सच यह भी है कि प्रधानमंत्री बनने से पहले उन्होंने लगातार तीन बार गुजरात का विधानसभा चुनाव जीता। यह कहना गलत नहीं होगा कि उन्होंने 2001 के बाद से जितने भी चुनाव लड़े हैं, उन सभी में जीत हासिल की है।
2001 से 2022 – किसी के लिए भी सत्ता में बने रहने के लिए यह एक लंबा समय है। ऐसे में कैसे माना जा सकता है कि यह सिर्फ और सिर्फ इसलिए संभव हुआ क्योंकि कोई दूसरा विकल्प नहीं है, TINA फैक्टर है… There is no alternative to Modi? यह मिथ्या है, गढ़ा गया है। CM से लेकर PM मोदी की उपलब्धियों को कैसे कम से कम दिखाया जा सके – TINA फैक्टर गढ़ने के पीछे की राजनीतिक मंशा सिर्फ और सिर्फ यही है।
नीतीश कुमार, केजरीवाल और ममता बनर्जी का सपना
ऐसा नहीं है कि इन वर्षों में अन्य नेताओं ने खुद को पीएम उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया है। नीतीश कुमार खुद पीएम बनना चाहते थे। वह अभी भी पीएम बनने का सपना देखते हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भी यही सपना है।
2014 में जब सोनिया गाँधी के पूर्व सहयोगी और मौसमी प्रदर्शनकारी योगेंद्र यादव केजरीवाल के करीबी थे, उस वक्त केजरीवाल ने वाराणसी से नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए केवल 49 दिनों में ही दिल्ली के सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। केजरीवाल बेशक चुनाव हार गए, लेकिन उनकी उम्मीद अभी भी जिंदा है। वह खुद को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं।
योगेंद्र यादव की बात करें तो वह फिर से गाँधी परिवार के साथ जुड़ गए हैं। राहुल गाँधी ने उन्हें और अन्य कार्यकर्ताओं को अपनी ‘भारत जोड़ो’ कंटेनर यात्रा में शामिल किया है, जो काफी हद तक पाकिस्तान के पूर्व पीएम इमरान खान की ‘कंटेनर यात्रा’ से प्रेरित है, ऐसा आप देख सकते हैं।
राहुल गाँधी को भी एक न एक दिन भारत का प्रधानमंत्री बनने की उम्मीद है- आखिरकार, उनके पिता, दादी और परदादा भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं। राहुल गाँधी को छोड़ कर, अन्य तीन अपने-अपने राज्यों के मुख्यमंत्री रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले थे। राहुल गाँधी तो चार बार सांसद रह चुके हैं, मोदी से भी ज्यादा बार।
ये सभी विकल्प ही तो हैं। हो सकता है कि आप उन्हें वोट न दें, लेकिन ऐसे लोग भी हैं, जो उन्हें वोट देंगे, देते हैं। सिर्फ इसलिए कि आपको नहीं लगता कि वे पीएम बनने के योग्य हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि दूसरे भी ऐसा ही सोचते हैं। उन लोगों से पूछिए, जिन्होंने इतने सालों में उन्हें वोट दिया है।
इस आर्टिकल को मूल तौर पर निरवा मेहता ने लिखा है, जिसका अनुवाद किया है सुनीता मिश्रा ने।