Friday, April 26, 2024
Homeदेश-समाजनीरव मोदी की गिरफ़्तारी से दुःखी और अवसादग्रस्त कॉन्ग्रेस पेट पर मूसल न मार...

नीरव मोदी की गिरफ़्तारी से दुःखी और अवसादग्रस्त कॉन्ग्रेस पेट पर मूसल न मार ले

आखिर विपक्ष या मोदी-विरोधी क्या चाहते हैं? क्या उन्हें यह बात पता भी है कि वो क्या चाहते हैं? या फिर, उनकी पूरी कैम्पेनिंग सिर्फ इस आधार पर थी कि वो तो भाग गया, अब हाथ आएगा नहीं और नरेन्द्र मोदी अनंतकाल तक कोसा जाता रहेगा?

नीरव मोदी याद ही होगा, वही नकली हीरे बेचने वाला क्यूट टाइप का आदमी जिसमें पंजाब नेशनल बैंक को चर्चा में ला दिया था। फिर नरेन्द्र मोदी के साथ ‘मोदी’ उपनाम शेयर करने के कारण उसे कॉन्ग्रेस वाले, और मज़े लेने वाले पत्रकार, भाई-भाई कहकर भी बुलाने लगे थे, तस्वीरें निकाली जा रही थीं कि मोदी ने माइनॉरिटी रिपोर्ट टाइप भविष्य देखकर उसके साथ फोटो खिंचाने से मना क्यों नहीं किया… रॉबर्ट वाड्रा को दूल्हा बनाकर घर ले आने वाले लोग जब नीरव मोदी और नरेन्द्र मोदी की साथ की तस्वीर पर बवाल करते हैं तो उनका क्यूटाचार चरमसुख देने लगता है।

नीरव मोदी का पैसे लेने वाला घोटाला हो रहा था कॉन्ग्रेस के शासन काल में, पकड़ाया मोदी के काल में, कॉन्ग्रेस ने ऐसे अपराधियों के लिए कोई कानून तक बनाना सही नहीं समझा, मोदी सरकार ने कानून बनाया, और अब कोशिशें जारी हैं कि वो जब लंदन में पाया गया है, तो उसे वापस भारत लाया जाए, लेकिन भ्रष्टाचार का पोषक कौन है? मोदी!

विपक्ष के लिए नीरव मोदी, विजय माल्या आदि बड़े मुद्दे हैं इस बार के चुनाव में। भले ही कांड कॉन्ग्रेस के दौर में हुए, मोदी सरकार ने उन्हें पकड़ा, और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों एवम् संधियों के दायरे में रहकर जितना दबाव बनाया जा सकता था, बनाकर उनकी ‘घरवापसी’ के प्रयत्न चल रहे हैं, लेकिन कॉन्ग्रेस तो राफेल टाइप इसी बात को एक-दो लाख बार बोलेगी ही। काहे कि आदत है। ऊपर से नीचे तक लबरा लोग ही तो है इस पार्टी में। 

अध्यक्ष ही जब बकैत निकल गया हो, और महासचिव बनने तक की इच्छा आप रखते हों, तो कीजिएगा भी तो क्या! प्रलाप करना ही बचता है। इसलिए, अब जो बयान आते हैं, वो आपकी समझ में नहीं आएँगे। आप सोचने लगेंगे कि अगर भारत सरकार नीरव मोदी को भारत लाने की कोशिश कर रही है, तब इसमें गलत क्या हो सकता है?

कॉन्ग्रेस के कुछ नेताओं के हिसाब से ‘टाइमिंग’ गलत है। जिस देश में हर साल पाँच चुनाव होते हैं, उसमें आप सड़क बनवा दीजिए, बल्ब लगवा दीजिए, चोर पकड़ लीजिए, पाकिस्तान पर बम मार दीजिए, सब कुछ ‘चुनाव’ के नाम पर विपक्ष खेल जाती है।

विपक्ष की मजबूरी आप समझ सकते हैं। विपक्ष के पास सच में एक भी मुद्दा नहीं है। उनके जो मीडिया कैम्पेनर्स थे, वो भी आजकल बहकी-बहकी बातें करने लगे हैं। बेचारे जब तमाम सवाल पूछकर थक गए तो दो साल यह बोलते रहे कि सवाल पूछने नहीं दिया जा रहा! अब उनका ये लॉजिक भी नहीं चलता क्योंकि लोगों ने पूछना शुरु किया कि कौन सा सवाल आपको पूछने नहीं दिया जा रहा, तो चुप हो गए। 

पहले टीवी पर ये बोलकर, कोट हैंगर में टाँगते हुए, बाल बिखरा कर, सॉल्ट और पेप्पर लुक में कूल बनकर पत्रकार लोग निकल लेते थे। अब वहाँ से निकलने के रास्ते में होते हैं कि लोग सोशल मीडिया पर घेरकर पूछ लेते हैं, “चाचा, कौन सा सवाल पूछ नहीं पा रहे? इतना जो टीवी पर बोल रहे हैं, वहीं सवाल पूछ लेते!” चचवा के पास जवाब नहीं होता।

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भले ही न रहा हो, लेकिन विपक्ष का दूसरा स्तम्भ तो ज़रूर है। विपक्ष अब सोच नहीं पा रहा कि लोकपाल भी बन गया, घोटाला साबित नहीं हो पाया, मोदी की डिज़ायनर जैकेट का दाम जानने में जनता उत्सुक नहीं है, तो आखिर करें क्या? 

आप जरा सोचिए कि नीरव मोदी चाहे चुनाव की टाइमिंग पर आए, या चुनाव के बाद, आपको क्या चाहिए? आपको एक चोर भारत के कोर्ट में चाहिए, जिसने एक बैंक से पैसे गलत तरीके से लिए और फ़रार हो गया। अगर आपको इस बात से फ़र्क़ नहीं पड़ा था कि ‘मेरा तो पंजाब नेशनल बैंक में खाता भी नहीं’, तो फिर आपके लिए नीरव मोदी आए, न आए, एक ही बात है। लेकिन, अगर आपने नीरव मोदी के, कानून के अभाव में भाग जाने पर मोर्चा संभाला था, तो आप सच-सच बताइए, उसे वापस लाने के प्रयत्न पर आप सरकार से सवाल किस आधार पर पूछ रहे हैं?

या, आपको लगता है कि जिस देश में लोटा लेकर खेत में बैठे आदमी फेसबुक पर वो तस्वीर और इन्स्टा पर सीज़र सैलेड की फोटो हर आधे घंटे में शेयर करता है, फिर भी आधार कार्ड के मामले में प्रायवेसी का बहाना बनाकर सुप्रीम कोर्ट में पहुँच जाता है, वहाँ नीरव मोदी जैसों के कंधे में हॉलीवुड फ़िल्म स्टाइल का चिप फ़िट करके, अपने सेटैलाइट से ट्रैक करता रहे कि वो कहाँ है, और फोन करके राष्ट्राध्यक्षों को बोले, “अरे, वो मोदी जी आपसे गले मिले थे ना, उनका एक काम था। लीजिए बात करेंगे।” किस तर्क से चलते हैं भाई? दो देश क्या व्हाट्सएप्प चैट पर मीम शेयर करके संधियाँ निपटाते हैं?

क्या चोरों को वापस लाने की बात पर आचार संहिता लागू कर दी जाए? या फिर, जो प्रोसेस है, उसके हिसाब से चलते हुए प्रयास करते रहें? आखिर विपक्ष या मोदी-विरोधी क्या चाहते हैं? क्या उन्हें यह बात पता भी है कि वो क्या चाहते हैं? या फिर, उनकी पूरी कैम्पेनिंग सिर्फ इस आधार पर थी कि वो तो भाग गया, अब हाथ आएगा नहीं और नरेन्द्र मोदी अनंतकाल तक कोसा जाता रहेगा?

बात इतनी-सी है कि विपक्ष वालों को अपने चुनावी कैम्पेन का स्क्रिप्ट हर दिन बदलना पड़ रहा है। वो जो कल्पना करके चल रहे थे, वैसा हो नहीं रहा। उन्होंने सोचा था कि पहले साल नहीं, दूसरे साल नहीं, तीसरे साल नहीं, लेकिन चौथे साल तो कोई मंत्री घोटाला कर ही देगा, पाँचवे में तो दो-चार मंत्रालयों से धुआँ निकलेगा, और फिर हम सब मिलकर मोदी को दबोच कर लिंच कर देंगे। 

वो तो हुआ नहीं, उनके दिमाग में जलने वाली आग और धुआँ मानसिक मवाद बनकर, विचित्र बयानों के रूप में बाहर आ रहा है। इसलिए नीरव मोदी भी टाइमिंग के हिसाब से लंदन में पकड़ा जा रहा है। हाल ही में शशि थरूर ने पुलवामा हमले के बारे में बोलते हुए कह दिया कि पुलवामा तक उनकी पार्टी बेहतर पोजिशन में थी, लेकिन भाजपा ने बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद वापसी कर ली है। 

यहाँ कॉन्ग्रेस लगभग दुःखी है कि मोदी के टाइम में सेना ने ऐसा एक्शन क्यों ले लिया। उसी तरह विपक्ष दुःखी है कि इंग्लैंड सरकार माल्या और नीरव मोदी पर एक्शन क्यों ले रही है। कॉन्ग्रेस चिंतित है कि मोदी सरकार कॉन्ग्रेस सरकार की तरह क्यों काम नहीं कर रही जहाँ हर आदमी अपनी पार्टी, परिवार और स्वयं की जेब में पैसे और पावर भर रहा हो?

कॉन्ग्रेस की यही समस्या है कि वो इतना नकारा तो चौवालीस सीट पाने के बाद भी नहीं महसूस कर पाया जितना विपक्ष में कि इतने नेताओं के महागठबंधन के बाद भी मोदी को घेरने के लिए उसके पास सिवाय अहंकार और अभिजात्य घमंड के और कुछ भी नहीं है। आप ज़रा सोचिए कि आप शारीरिक तौर पर तो कमजोर हैं ही, लेकिन आपके नाक में कीड़े घुस जाएँ और आपकी खोपड़ी को भी धीरे-धीरे खाली कर दें, तो कैसा महसूस करेंगे? 

आप भारत की उस पार्टी की तरह फ़ील करेंगे जिसे सत्ता से बाहर रहने का कुछ अनुभव तो था, लेकिन जनता का विश्वास पूरी तरह से खोने का अंदेशा नहीं था। कॉन्ग्रेस अपने सत्तारूढ़ समय के कुकर्मों से संसद और राज्यों से नकारी गई, लेकिन विपक्ष में होकर अपनी मूर्खता, घमंड और जनता से डिस्कनेक्टेड होने के कारण लगातार किए जा रहे प्रलापों से पूरी तरह से एक्सपोज होकर इस स्थिति में पहुँच चुकी है कि उनके अध्यक्ष और नई इंदिरा गाँधी के लिए भी रैलियों की ज़मीन तो छोड़िए, कुर्सियाँ भी खाली रह जाती हैं। 

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अजीत भारती
अजीत भारती
पूर्व सम्पादक (फ़रवरी 2021 तक), ऑपइंडिया हिन्दी

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

लोकसभा चुनाव 2024: दूसरे चरण की 89 सीटों पर मतदान, 1198 उम्मीदवारों का फैसला करेंगे मतदाता, मैदान में 5 केंद्रीय मंत्री और 3 राजघरानों...

दूसरे चरण में 5 केंद्रीय मंत्री चुनाव मैदान में हैं, जिसमें वी. मुरलीधरन, राजीव चंद्रशेखर, गजेंद्र सिंह शेखावत, कैलाश चौधरी और शोभा करंदलाजे चुनाव मैदान में हैं।

कॉन्ग्रेस ही लेकर आई थी कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण, BJP ने खत्म किया तो दोबारा ले आए: जानिए वो इतिहास, जिसे देवगौड़ा सरकार की...

कॉन्ग्रेस का प्रचार तंत्र फैला रहा है कि मुस्लिम आरक्षण देवगौड़ा सरकार लाई थी लेकिन सच यह है कि कॉन्ग्रेस ही इसे 30 साल पहले लेकर आई थी।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe