ममता बनर्जी अपने ही राज्य के डाक्टरों को बाहरी बताते हुए उन पर हमलावर हैं। जबकि, डॉक्टरों की माँग इतनी थी कि हमलावरों-गुंडों पर गैरजमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज किया जाए और उनकी सुरक्षा राज्य सुनिश्चित करे। अलबत्ता, मुद्दा सुलझाने को कौन कहे, ममता ने डॉक्टरों को हड़ताल ख़त्म करने की धमकी देकर, अपनी गैर-जिम्मेदारी का परिचय और गुंडों को समर्थन, दोनों, दे दिया। ममता की धमकी को डॉक्टरों ने न सिर्फ नज़रअंदाज किया बल्कि अपनी सुरक्षा और गुंडों पर कार्रवाई जैसी बुनियादी माँगों के लिए, अपना इस्तीफा तक देने को तैयार हो गए। इतने पर भी ममता का अहंकार शांत नहीं हुआ, उन्होंने उल्टा आरोप लगा दिया की बीजेपी है इन सबके पीछे।
ऐसा करके ममता बनर्जी डॉक्टरों के दोनों जायज़ और बुनियादी माँगों से कन्नी काट गईं। फिर क्या था पूरे देश के डॉक्टरों ने पश्चिम बंगाल के डॉक्टरों को समर्थन देने के लिए शुक्रवार (जून 14, 2019) को ‘ऑल इंडिया प्रोटेस्ट डे’ के रूप में सड़क पर आ गए। हालाँकि, यहाँ भी मीडिया का एक बड़ा धड़ा, इस मुद्दे पर ममता की सनक साफ देखते हुए भी कुछ भी बोलने से कतरा रहा है। क्योंकि, यहाँ भी पीड़ित डॉक्टर हिन्दू और डॉक्टरों को पीटने वाले दबंग गुंडे मजहब विशेष के, आम तौर पर पश्चिम बंगाल में तृणमूल के कोर वोटर हैं। अब ममता उन पर कोई एक्शन ले तो कैसे ले। उन पर एक्शन लेना मतलब अपनी राजनीतिक जमीन में खुद ही सेंध लगा देना, वो भी ऐसे समय में जब वह हाल के ही लोकसभा चुनावों में एक तरह से अपनी आधी सत्ता बीजेपी को सौंप चुकीं हैं।
तो, ममता ने इससे पहले होती बीजेपी कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्याओं की तरह ही इसे भी राजनीतिक रंग देते हुए शोर मचाना शुरू कर दिया कि बीजेपी वर्कर और ‘बाहरी’ ही उनके खिलाफ लगातार प्रोटेस्ट कर रहे हैं।
जबकि, प्रदर्शनकारी डॉक्टरों ने ममता के इस आरोप को सिरे से ख़ारिज करते हुए ममता को यह याद दिलाने के लिए मुखर हो उठे कि वह सभी इसी राज्य के डॉक्टर्स हैं न कि बाहरी व्यक्ति। इस समस्या से खुद को निपटने में अक्षम पाकर उल्टा ममता बनर्जी डॉक्टरों पर ही आरोप मढ़ने लगीं हैं। उन्होंने कल यहाँ तक कह दिया, “जब मैं कल हॉस्पिटल के आपात चिकित्सा में गई तो वहाँ मुझे गालियाँ दी गई लेकिन मैंने उन्हें माफ़ कर दिया।”
ममता बनर्जी के इस स्टेटमेंट से भी साफ है कि वह इस मसले में यह नहीं कह रहीं कि दोषियों पर राज्य करवाई करेगी जबकि कल ही जब राज्यपाल ने सर्वदलीय बैठक बुलाई तो ममता ने राज्यपाल पर ही आरोप लगाते हुए यह कह दिया, “राज्यपाल बीजेपी के आदमी हैं उनका यहाँ के कानून से कोई लेना-देना नहीं। कानून राज्य का विषय है, इसलिए मैं नहीं जा रही, मेरी तरफ से कोई जाएगा, चाय पी के आ जाएगा।”
सही कहा ममता बनर्जी ने कि लॉ एंड ऑर्डर राज्य का विषय है लेकिन यह बताना भूल गईं कि जब राज्य कानून व्यवस्था सम्भालने में अक्षम हो जाए या जानबूझकर राज्य गुंडागर्दी, अराजकता, दंगा और हत्याओं को खुला समर्थन दे तो संविधान में इसका भी प्रावधान राज्यपाल के ही माध्यम से राष्ट्रपति शासन के रूप में किया गया है।
ममता बनर्जी शायद खुद को ही संविधान मानने लगी हैं या संविधान से भी ऊपर की सत्ता साम्राज्ञी, तभी तो अक्सर वह पश्चिम बंगाल में जघन्य से जघन्य अपराधों पर लगातार राजनीति की आड़ ले पर्दा डालती नज़र आती हैं। खुद प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण का बहिष्कार तक कर देतीं हैं, क्योंकि उसमें जिन बीजेपी कार्यकर्ताओं को तृणमूल के गुंडों ने मौत के घाट उतारा था, उनके परिवारों को बुलाया गया था। इसके बाद भी वह राज्य में लगातार हो रही बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या पर मौन हैं क्योंकि उन्हें पता है कि हत्यारे उनकी ही पार्टी तृणमूल कॉन्ग्रेस के गुंडे हैं। जिनका बचाव आजकल यह कहकर किया जा रहा है कि ‘ऐसा तो बंगाल में होता ही रहता है।’ उनके खिलाफ राज्य में कोई भी आवाज उठाता है तो उसे तत्काल बाहरी कहने से नहीं चूकने वाली ममता शायद भूल गई हैं कि बंगाल उनका ‘गणराज्य’ नहीं बल्कि देश का ही एक छोटी-सी इकाई ‘राज्य’ है और देश में किसी भी नागरिक को कहीं भी आने-जाने और व्यवसाय की निर्बाध स्वतंत्रता है।
मीडिया का एक धड़ा जो खुद को लगातार निष्पक्ष बताता आया है, वह इस पर मौन है और तमाम वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इस पर चुप्पी साध ली है, जैसे बंगाल में या तो ‘कुछ हुआ ही नहीं’ या ‘हुआ तो हुआ।’ अब यहाँ किसी अवार्ड वापसी गैंग को अराजकता और तानाशाही नज़र नहीं आ रही, लेकिन इन मौन आवाजों के बीच भी आवाज उन्हीं डॉक्टरों ने उठाई है, जिन पर पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य देखभाल की जिम्मेदारी है, जो आज अपने ही स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उनका एक साथी डॉक्टर गंभीर रूप से घायल है और दूसरा ज़िन्दगी और मौत के बीच झूल रहा है। यहाँ 200 से अधिक लोगों की अराजक और आक्रोशित भीड़ में किसी को भी अपराधी या गुंडे नज़र नहीं आ रहे क्योंकि पीड़ित यहाँ न ‘नज़ीम’ है, न ‘अख़लाख़’ बल्कि यहाँ दंगाइयों और उपद्रवियों के नाम में मोहम्मद या ऐसा ही कुछ जुड़ा है।
डॉक्टरों की न्याय की माँग को नज़रअंदाज करते हुए जब राज्य की मुखिया ही अन्याय के आगे ढाल बनकर खड़ी हो तो ऐसी तानाशाही का मुखर विरोध ज़रूरी है। विरोध में, पश्चिम बंगाल में लगातार डॉक्टरों के इस्तीफे जारी हैं। देश के विभिन्न राज्यों के डॉक्टर्स खुलकर इस अन्याय के खिलाफ खड़े हो गए हैं। सबकी एक ही माँग है दोषियों पर कार्रवाई और डॉक्टरों की सुरक्षा का इंतज़ाम ताकि वे निश्चिन्त हो अपना काम कर सकें। कायदे से वहाँ सुरक्षा तो उन सभी नागरिकों को मिलनी चाहिए जो उनके ही पार्टी के गुंडों के सताए हुए हैं और उनको भी न्याय की दरकार है जो एक सत्तालोलुप मुख्यमंत्री की राजनीतिक दुश्मनी में अपने जान गँवा चुके हैं।
मुखर आवाजों ने विरोध का बिगुल बजा दिया है। ममता के ‘बाहरी’ राग के गुब्बारे की हवा निकाल दी है। रिपब्लिक को दिए अपने बयानों में सबने पश्चिम बंगाल के मौजूदा हालात की पोल खोल दी है।
NRS हॉस्पिटल में न्याय की माँग के लिए आवाज बुलंद करते हुए एक डॉक्टर ने कहा, “मैं अपने मुख्यमंत्री के बयान पर शर्मिंदा हूँ, यदि वह चाहतीं तो समस्या को सुलझा सकती थीं। वह उन पर तुरंत कार्रवाई कर सकती थीं लेकिन वह इसे नज़रअंदाज कर रही हैं। वह न्याय को नकार रहीं हैं। इस प्रतिरोध में कोई भी बाहरी नहीं है, ममता बनर्जी इस पूरे घटनाक्रम को राजनीतिक रंग देना चाहतीं हैं।”
#DoctorsFightBack | ‘We are not outsiders,’ say protesting doctors at NRS Hospital in Kolkata in unanimous response to West Bengal CM Mamata Banerjee. Tune in for #LIVE updates as doctors from across the country show solidarity with them https://t.co/LGCyJUEBn5 pic.twitter.com/Ujz5bHqVeo
— Republic (@republic) June 14, 2019
एक दूसरे डॉक्टर ने ममता बनर्जी के बाहरी के कहने का जवाब दिया कि “हम डॉक्टर्स हैं और आज यहाँ सफ़ेद एप्रन के लिए लड़ रहे हैं, हम बाहरी नहीं हैं, हमारा सी.पी.एम. या बीजेपी से कोई सम्बन्ध नहीं।”
#DoctorsFightBack | ‘We are doctors, we are not CPM, we are not BJP, we are not outsiders, we are doctors!,’ say protesting doctors at NRS Hospital in Kolkata refuting West Bengal CM Mamata Banerjee, even as doctors from across India stand with them https://t.co/LGCyJUEBn5 pic.twitter.com/C0dRZfqxto
— Republic (@republic) June 14, 2019
ममता के आरोपों और धमकियों का विरोध कर रहे, डॉक्टरों के एक दूसरे समूह ने भी ममता के बेतुके बयानों को आड़े हाथों लेते हुए, उन्हें सिर्फ इतना याद दिलाया कि न्याय का गला घोंटकर दोषियों के साथ मत खड़े होइए, जिन्होंने डॉक्टरों पर हमला किया, उन पर तत्काल कार्रवाई किया जाए।
रेजिडेंट डॉक्टरों के एक बड़े संगठन URDA के प्रेजिडेंट डॉ मनु गौतम ने कहा, “हम आज ममता बनर्जी के बयान से केवल नाराज ही नहीं हैं, हम उम्मीद भी खोते जा रहे हैं क्योंकि अब जो हो रहा है वह बहुत ज़्यादा है। हम इसलिए डॉक्टर्स नहीं बने हैं कि इस तरह से पब्लिक द्वारा पीटें जाएँ। लोगों को समझना होगा कि हम भगवान नहीं हैं।” साथ ही यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल में इंटर्न और रेजिडेंट डॉक्टर्स 36-42 घंटे तक लगातार काम करते हैं वह भी बहुत ही अमानवीय स्थिति में….
#EXCLUSIVE – We’re losing hope now, this is too much. We didn’t become doctors to get beaten by the public. People need to understand that we are not Gods: Dr. Manu Gautam (President, URDA) tells CNN-News18’s @sagargupta281. | #SaveTheDoctors #MedicalMayhem pic.twitter.com/WlfCE4lBHU
— News18 (@CNNnews18) June 14, 2019
फ़िलहाल, हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में डॉक्टरों के हड़ताल का समाधान बातचीत से हल करने का निर्देश दे दिया है। लेकिन ममता बनर्जी अभी भी जिद पर अड़ी हैं। एक तरफ राजनीति है तो दूसरी तरफ राज्य का लॉ एंड ऑर्डर और अब इस मुहीम में डॉक्टरों का साथ देने के लिए न सिर्फ पश्चिम बंगाल में बल्कि अन्य राज्यों के भी साथी डॉक्टरों भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं। कोलकाता में अब तक लगभग 69 डॉक्टरों ने अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया है, साथ ही एनआरएस मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा को लेकर बंगाल में दो प्रोफेसरों ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। प्रोफेसर सैबाल कुमार मुखर्जी ने एनआरएस मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल कोलकाता के प्रिंसिपल और मेडिकल सुपरिटेंडेंट के पद से इस्तीफा दिया तो वहीं, प्रोफेसर सौरभ चट्टोपाध्याय ने वाइस-प्रिंसिपल पद से इस्तीफा दे दिया और अब डॉक्टर्स के इस्तीफे की झड़ी सी लग गई है। सीनियर डॉक्टर भी ममता बनर्जी के विरोध में उतर आए हैं।
#DoctorsStrike: Intensifying the protest, at least 69 doctors at Kolkata’s RG Kar Medical College and Hospital submit mass resignation.
— News18.com (@news18dotcom) June 14, 2019
They are demanding an unconditional apology from @MamataOfficial.
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जिस तरह से पिछले पाँच दिनों से यह सब घटित हो रहा है और ममता बनर्जी का अभी तक का जो रवैया रहा है, लगता ही नहीं कि उन्हें सिवाय अपनी राजनीति और वोट बैंक के, डॉक्टरों की सुरक्षा या आम मरीज़ के जीवन की तनिक भी चिंता है। फिर भी, अब देखना यह है कि क्या अब भी ममता चेततीं हैं, इस घटना से सबक लेतीं हैं या अभी भी इस मुद्दे को राजनीति के चश्में से ही देखतीं हैं। उम्मीद कम ही है क्योंकि, अभी भी एक आसान सी माँग पर कुछ भी ढंग का नहीं बोल पाई हैं। सवाल ज्यों का त्यों है, क्या उनकी सरकार डॉक्टरों के काम करने हेतु सुरक्षित माहौल दे सकेगी? क्या बंगाल में बीजेपी कार्यकर्ताओं की नृशंष हत्या का सिलसिला रुकेगा या राजनीतिक जंग के नाम पर बुरे से बुरे और बर्बर कृत्य को भी जायज ठहराने का सिलसिला यूँ ही जारी रहेगा? यह वक्त ही बताएगा।