Sunday, December 22, 2024
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रैली/रोड शो- 209, सीट- 2: प्रियंका गॉंधी ने UP में कॉन्ग्रेस का ऐसे किया काम तमाम

यूपी विधानसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस की साख लौटाने की कोशिश में लगीं प्रियंका गाँधी ने गिनतियों के हिसाब से सबसे अधिक 209 रैलियाँ और रोड शो किए। फिर भी कॉन्ग्रेस का काम जनता ने तमाम कर दिया है।

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का दोबारा मुख्यमंत्री बनना तय हो गया है वह लगभग एक लाख से अधिक वोटों से जीते हैं। यह पिछले 37 साल के इतिहास में पहली बार है जब किसी एक ही पार्टी ने लगातार दो बार सरकार बनाने में कामयाबी पाई हो और यह कारनामा बीजेपी ने किया है। वहीं सूबे में कॉन्ग्रेस का सूपड़ा साफ होगा है। प्रदेश में कॉन्ग्रेस 2 सीटों पर सिमट गई है जो 2017 के 7 सीटों से भी कम है। यूपी की जनता ने प्रियंका गाँधी के नेतृत्व और तमाम चुनावी वादों को नकारते हुए कॉन्ग्रेस को और भी पीछे ढकेल दिया है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस की साख लौटाने की कोशिश में लगीं प्रियंका गाँधी ने गिनतियों के हिसाब से सबसे अधिक 209 रैलियाँ और रोड शो किए। फिर भी कॉन्ग्रेस का काम जनता ने तमाम कर दिया है।

यूपी में चुनाव प्रचार के दौरान इस बार जहाँ कॉन्ग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने अपनी पूरी ताकत झोंकते हुए महिला वोटर्स पर निशाना साधा था, ढेरों चुनावी लॉलीपॉप बाँटे थे। लेकिन अब यह सब बेकार हो गया है। कॉन्ग्रेस के सभी तुरुप के पत्ते फेल हो गए हैं। प्रियंका गाँधी विपक्ष की एक मात्र नेता थीं जो यूपी चुनावों के बहुत पहले से सूबे में सक्रीय नजर आईं थीं। फिर चाहे वो हाथरस का मसला हो या किसानों के मुद्दे, सभी पर उन्होंने योगी सरकार को प्रोपेगेंडा की हद तक घेरने की कोशिश की। यहाँ हम उन बिंदुओं पर बात करेंगे जिससे एक बार फिर PM मोदी का कॉन्ग्रेस विहीन भारत का सपना साकार होता नजर आ रहा है।

वहीं विधानसभा चुनावों की घोषणा होने के बाद प्रियंका गाँधी ने अपनी पार्टी की खोई हुई जमीन हासिल करने के लिए जमकर चुनाव प्रचार किया। फिर भी सूबे में पार्टी की नाजुक स्थिति को देखते हुए सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी को यूपी की राजनीति से दूर ही रखा गया ताकि हार का ठीकरा उनके सिर न फूटे। यूपी में जहाँ कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र में एक आभासी रैली किया वहीं कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने भी चुनाव प्रचार के लगभग अंत में अतिथि के रूप में दो रैलियों को संबोधित किया जिसमें एक अमेठी और दूसरी वाराणसी में थी।

चुनावी अभियान के स्कोर बोर्ड के हिसाब से देखें तो प्रियंका गाँधी ने यूपी में कॉन्ग्रेस उम्मीदवारों की जीत के लिए सबसे अधिक 209 रैलियाँ और रोड शो किए। वहीं CM योगी आदित्यनाथ ने बीजेपी को लगातार दूसरी बार सत्ता में वापस लाने के लिए प्रदेश में 203 रैलियाँ और रोड शो किए। जबकि दूसरी विपक्षी पार्टियों में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सपा गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए 131 रैलियाँ और रोड शो किए। तो वहीं बसपा प्रमुख पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने केवल 18 रैलियों और रोड शो को संबोधित किया।

कॉन्ग्रेस ने क्यों अकेले लड़ने का किया ऐलान?

ऐसा नहीं था कि अकेले चुनाव लड़ना कॉन्ग्रेस की चॉइस थी फिर भी पार्टी ने इसे चयन साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दरअसल, यूपी में योगी आदित्यनाथ की लगातार बढ़ती लोकप्रियता और कामों के मुकाबले विपक्ष में जमीन खो चुकी कॉन्ग्रेस से बड़ा जनाधार सपा के अखिलेश यादव और बसपा के मायावती का है और इसमें से कोई भी कॉन्ग्रेस के साथ एक नाव में सवार होने को तैयार नहीं था। यहाँ तक कि छोटी पार्टियों को कॉन्ग्रेस से जुड़ने में कोई लाभ नजर नहीं आ रहा था बल्कि यह उनकी अपनी पार्टी के लिए भी खतरे की घंटी थी। ऐसे में यूपी चुनाव को लेकर प्रियंका गाँधी ने पहले ही साफ कर दिया था कि कॉन्ग्रेस इस बार अकेले चुनावी मैदान में उतरेगी और महिला वोटरों पर फोकस करेगी।

इसके चलते भले चुनाव में ‘लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ’ नारे के साथ 40% महिलाओं को प्रत्याशी बनाने का ऐलान किया गया। लेकिन यह जितना आसान बोलना था उतना ही यूपी में इसे जमीन पर उतारना नहीं था। तो शुरुआत में ही इस नारे की पोस्टर गर्ल के बाहर होने और खुलेआम बयान देने के साथ इसकी हवा निकलती नजर आई। दूसरी वजह यह भी थी कि यूपी में कॉन्ग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं था जिसपर वह चुनाव लड़े। चेहरे के नाम पर भले कॉन्ग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू लगातार योगी सरकार के खिलाफ जमीन पर थे और उनके जेल जाने की खबरें सुर्खियाँ भी बनी थीं। लेकिन फिर भी प्रियंका के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था, जो मतदाताओं पर जादू चला सके। ऐसे खुद प्रियंका गाँधी को ही मैदान में उतरना पड़ा।

कॉन्ग्रेस के चुनावी ‘लॉलीपॉप’

यूपी चुनावों में कॉन्ग्रेस ने अपने घोषणा पत्र को भी तीन बार में जारी किया। सबसे पहले 8 दिसंबर, 2021 को जारी शक्ति विधान में महिलाओं के लिए 40% सीट की घोषणा थी तो वहीं 21 जनवरी को युवाओं के लिए जारी भर्ती विधान में 20 लाख नौकरियों का चुनावी ‘लॉलीपॉप’ युवाओं को दिया गया था। साथ ही यह भी वादा था कि 40 फीसदी रोजगार महिलाओं को आरक्षण के तहत दिए जाएँगे।

कुछ और प्रमुख वादों की बात करें तो 10 दिन में किसानों का कर्ज माफ होगा। इसके अलावा 2500 रुपए में गेंहूँ-धान और 400 रुपए में गन्ना खरीदा जाएगा। गो-धन योजना के तहत गोबर को 2 रुपए किलो खरीदा जाएगा। इसके अलावा आवारा पशुओं से होने वाले नुकसान पर 3 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाएगा। बिजली का बिल आधा किया जाएगा। इसके अलावा कोरोना काल का बकाया बिजली बिल माफ किया जाएगा। कोविड योद्धाओं को 50 लाख का मुआवजा। कोरोना की आर्थिक मार झेलने वाले परिवार को 25 हजार रुपए की सहायता दी जाएगी।

‘उन्नति विधान’ के तहत कॉन्ग्रेस ने किए कुछ और वादे

  • कोई भी बीमारी होगी तो 10 लाख रुपए तक का इलाज मुफ्त होगा।
  • मध्यम वर्ग को किफायती आवास देंगे।
  • ग्राम प्रधान का वेतन 6 हजार रुपए प्रतिमाह बढ़ाएँगे।
  • स्कूल फीस को बढ़ने से रोकेंगे।
  • शिक्षकों के खाली 2 लाख पद भरे जाएँगे।
  • एडहॉक शिक्षकों, शिक्षामित्रों को अनुभव अनुसार नियमित किया जाएगा।
  • कारीगरों, बुनकरों के लिए विधान परिषद में एक आरक्षित सीट।
  • पूर्व सैनिकों के लिए विधान परिषद में एक सीट।
  • पत्रकारों के खिलाफ दर्ज मुकदमों को खत्म करेंगे।
  • दिव्यांग लोगों के लिए 3 हजार का मासिक पेंशन।
  • महिला पुलिसकर्मियों को उनके गृह जनपथ में पोस्टिंग की अनुमति।

कॉन्ग्रेस के वादों को यूपी की जनता ने नहीं दिया भाव

अब इन वादों को कोई देखे तो खुश हो सकता है। लेकिन कॉन्ग्रेस के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए यूपी की जनता ने प्रियंका गाँधी के इन चुनावी वादों को कोई भाव नहीं दिया। बेशक वामपंथी राजनीतिक विश्लेषकों ने कॉन्ग्रेस के इन वादों को सराहा और बहुत ही जमीनी और क्रन्तिकारी बताया हो लेकिन जनता ने इन वादों को लॉलीपॉप से ज़्यादा कुछ नहीं समझा। इसके पीछे कहीं न कहीं कॉन्ग्रेस का पुराना ट्रैक रिकॉर्ड और मुस्लिम तुष्टिकरण की छवि बड़ी वजह है।

इस चुनाव की शुरुआत में भी कॉन्ग्रेस ने इमरान प्रतापगढ़ी के माध्यम से मुस्लिमों को लुभाने के प्रयास के तहत ही शुरू किया था। लेकिन मोदी-योगी के विकास और प्रचंड हिंदुत्व की आँधी में कॉन्ग्रेस सहित सभी विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के ही मैदान में उतरकर विकास, मंदिर और हिंदुत्व की शरण में जाना पड़ा। जहाँ पहले से ही कॉन्ग्रेस ने अपनी छवि ख़राब कर ली है। आज भी जनता 2014 में मोदी के आगमन से पहले वाली कॉन्ग्रेस की निगेटिव इमेज को ही अपने मन में बसाए बैठी है, यह भी एक बड़ी वजह है कि प्रियंका के प्रयास के बावजूद भी कॉन्ग्रेस को यूपी की जनता ने नकार दिया।

इस प्रकार उत्तर प्रदेश में करीब ढाई दशक से अपनी खोई जमीन तलाश रही कॉन्ग्रेस को 2019 के बाद 2022 ने भी निराश किया है। ऐसे में यदि एग्जिट पोल के रुझान सही साबित होते हैं तो कॉन्ग्रेस 2017 के सपा के साथ गठबंधन वाले प्रदर्शन से भी बुरे हालात में नजर आएगी और रही सही साख भी मिट्टी में मिलती नजर आएगी।

बता दें कि 2012 के विधानसभा चुनाव में कॉन्ग्रेस ने 28 सीटें जीती थीं। वहीं 2014 के दौरान मोदी लहर में लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस सिर्फ दो सीटों तक ही सिमट गई थी। इसके बाद 2017 में कॉन्ग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया और सूबे की सिर्फ 114 सीटों पर चुनाव लड़ा। इनमें से मात्र 7 सीटों पर उसे कामयाबी मिली। उसके बाद यदि 2019 के लोकसभा चुनाव को याद करें तो कॉन्ग्रेस इसमें भी उबरती नजर नहीं आई थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में सिर्फ रायबरेली की सीट बचा सकी। यहाँ तक कि राहुल गाँधी को भी अपनी पारम्परिक सीट अमेठी को स्मृति ईरानी के हाथों हारना पड़ा था।

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रवि अग्रहरि
रवि अग्रहरि
अपने बारे में का बताएँ गुरु, बस बनारसी हूँ, इसी में महादेव की कृपा है! बाकी राजनीति, कला, इतिहास, संस्कृति, फ़िल्म, मनोविज्ञान से लेकर ज्ञान-विज्ञान की किसी भी नामचीन परम्परा का विशेषज्ञ नहीं हूँ!

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