देश में वक्फ संपत्तियों पर लगातार उपजते विवाद और इनसे होने वाले पचड़ों के बाद केंद्र सरकार हाल ही में वक्फ संशोधन अधिनियम विधेयक लेकर आई है। वक्फ में सुधार के उद्देश्य से लाए गए इस बिल को सरकार ने 8 अगस्त, 2024 को मानसून सत्र के दौरान संसद में रखा था। बिल पर विपक्ष के कुछ सदस्यों के विरोध के बाद इसके लिए संयुक्त संसदीय कमिटी (JPC) को भेज दिया गया। बिल वर्तमान में इसी कमिटी के पास है। कमिटी का बिल को लेकर बैठकों का दौर जारी है।
JPC ने इस संबंध में अगस्त माह के अंत में जनता से बिल पर सुझाव माँगे हैं। समिति ने कहा है कि वह इस बिल को लेकर आम जनता, इसके भागीदारों और साथ ही NGO समेत बाकी लोगों की राय जानना चाहती है। कमिटी ने अपने संपर्क सूत्र भी दिए हैं और बताया है कि उसे इस पते पर लोग अपने सुझाव भेज सकते हैं। उसने डिजिटल तरीके से भी सुझाव देने को कहा है। वक्फ बिल को लकर कमिटी चाहती है कि उसके पास सभी भागीदारों की राय उसे मिले, ताकि उसे कानून बनाने में आसानी रहे।
वक्फ में क्या बदलाव का है प्रस्ताव?
इस बिल में सरकार ने वक्फ संपत्तियों को लेकर होने वाले विवादों को सुलझाने के लिए कई बदलावों का प्रस्ताव किया है। इस बिल में कहा गया है कि कोई व्यक्ति तभी अपनी सम्पत्ति को वक्फ बना सकता है जब वह 5 साल से इस्लाम धर्म में मान रहा है। इसके अलावा बिल में यह भी बताया गया है कि किसी सरकारी सम्पत्ति को वक्फ नहीं बताया जा सकेगा। वक्फ घोषित करने से पहले उसका सर्वे करने के लिए वक्फ कमिश्नर की नियुक्ति के लिए भी प्रावधान किया गया है।
नए बिल में यह भी प्रावधान किया गया है कि केन्द्रीय स्तर पर एक वक्फ काउंसिल बनाई जाएगी। इसका काम सरकार और बाकी वक्फ बोर्ड को सलाह देना होगा। इसके चेयरमैन केन्द्रीय मंत्री होंगे। इस काउंसिल में महिलाओं और गैर मुस्लिमों की नियुक्ति का भी रास्ता निकाला गया है। इसके अलावा इस बिल में वक्फ से सम्बन्धित विवादों को निपटाने के लिए ट्रिब्यूनल की व्यवस्था भी की गई है। इस व्यवस्था के अंतर्गत एक क्लास-1 का अधिकारी ट्रिब्यूनल का प्रमुख होगा।
नए बिल में एक बड़ा बदलाव वक्फ ट्रिब्यूनल के फैसले के विरुद्ध अपील को लेकर है। पहले की व्यवस्था में वक्फ ट्रिब्यूनल का फैसला ही अंतिम था और इसके विरुद्ध सामान्य कोर्ट में अपील नहीं हो सकती थी। नए बिल में यह व्यवस्था कर दी गई है। वक्फ बोर्ड की जवाबदेही का प्रावधान भी इस बिल में किया गया है। इस बिल के रूप लेने के बाद CAG वक्फ बोर्ड का ऑडिट करेगा। इसके अलावा शिया-सुन्नी के साथ ही आगाखानी और बोरा मुस्लिमों के लिए भी अलग वक्फ बोर्ड बनाने का प्रावधान किया है।
वक्फ बिल के लिए 9 सुझाव
वक्फ बोर्ड में अलग-अलग भागीदारों ने कई सुझाव दिए हैं। यह 9 सुझाव इस बिल को और मजबूत कर सकते हैं।
1. वक्फ बोर्ड में हो विविधता
भारत मुस्लिम आबादी 14% है। वक्फ बोर्ड भारत में जमीनों का तीसरा सबसे बड़ा मालिक है। लेकिन इस जमीन का पूरा प्रबन्धन केवल मुस्लिमों की निगरानी है। सरकार को अलग-अलग राज्यों में वक्फ के सलाहकार बोर्ड में हिंदू, सिख, जैन, ईसाई और अन्य समुदायों से कम से कम 40% गैर-मुस्लिमों की भागीदारों पर विचार करना चाहिए। इसके अलावा, 60% मुस्लिमों में भी में सुन्नी, शिया, बरेलवी, देवबंदी और अन्य सभी मुस्लिम संप्रदायों के प्रतिनिधि शामिल किए जाने चाहिए।
2. मंत्रालय से हो निगरानी
वक्फ अधिनियम में सबसे महत्वपूर्ण संशोधनों में से एक सलाहकार बोर्ड की जवाबदेही है। उन्हें सीधे एक मंत्रालय को रिपोर्ट करना चाहिए। यदि इस पर निगरानी रखी जाएगी तो इससे किसी भी समुदाय के किसी भी व्यक्ति को नुकसान नहीं पहुँचेगा। हाँ इससे उन लोगों को
3. न्यायिक निगरानी
वक्फ ट्रिब्यूनल को अलग एक स्वतंत्र निकाय बनाने की जगह उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में रखा जाना चाहिए। यह तब और जरूरी हो जाता है जब कई मामले दूसरे धर्म के लोगों से जुड़े हुए हों। इससे एक समानांतर न्यायिक व्यवस्था पर भी रोक लगेगी।
4. टैक्स और सब्सिडी में ना मिले स्पेशल ट्रीटमेंट
वक्फ पर भी उसी तरह के टैक्स लगाए जाने चाहिए जिस तरह के टैक्स बाकी धार्मिक संस्थाओं पर लगाए जाते हैं। इसके साथ ही वक्फ बोर्ड को उसी हिसाब से सब्सिडी, टैक्स में छूट और लोन में सुविधाएँ दी जानी चाहिए, जैसी बाकी धार्मिक संस्थाएँ पाती हैं। इस मामले में स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं होना चाहिए।
5. डिजिटलीकरण
वक्फ की संपत्तियों का जल्द से जल्द डिजिटलीकरण प्राथमिकता के तौर पर किया जाना चाहिए। यह डाटा जनता को भी उपलब्ध करवाया जाना चाहिए। इसके अलावा यदि कोई सामान्य सम्पत्ति वक्फ बनती है, तो इसकी जानकारी भी तुरंत आनी चाहिए उर इनका रिकॉर्ड बाकी स्मप्त्तियों की तरह रखा जाना चाहिए। इसमें पारदर्शिता भी होनी चाहिए।
6. समय से निपटें कानूनी विवाद
वक्फ में सबसे बड़ी समस्या है कि बड़ी तादाद में इसकी संपतियां कानूनी पचड़ों में फंसी हुई हैं। किसी भी कानूनी मामले को एक निश्चित समय के भीतर सुलझाया जाना चाहिए, जो तीन महीने से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों को तीन महीने से ज्यादा खींचने की कोई जरूरत नहीं है।
7. कठोर ऑडिट
सभी वक्फ बोर्डों को CAG या किसी ऐसी ही संस्था के ऑडिट से गुजारा जाना चाहिए। अगर बाकी सभी संस्थाओं को ऑडिट से गुजरना पड़ता है, तो वक्फ के लिए नियम अलग नहीं होने चाहिए। इससे पारदर्शिता भी आएगी और जिम्मेदारी तय करने में भी आसानी रहेगी।
8. विदेशी फंडिंग की करें जाँच
सरकार की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्ति वक्फ बोर्ड को दान देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा उन NGO या विदेशी संस्थाओं के दान देने पर भी रोक लगाई जानी चाहिए जो अपने हित पूरे करने के लिए पैसा भेजती हैं।
9. अब जमीन पर कब्जा करने की कोई गुंजाइश नहीं
सार्वजनिक, सांस्कृतिक, निजी और सरकारी संपत्तियों को वक्फ बता देने की शक्ति को तत्काल प्रभाव से रोका जाना चाहिए। अगर किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करना ही है, तो उसे एक कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाना चाहिए, जिसमें हर कदम पर अलग-अलग विभागों द्वारा कड़ी निगरानी की जानी चाहिए। इससे जमीन पर अवैध कब्जे की संभावना कम हो सकेगी। किसी भी सम्पत्ति को वक्फ घोषित करना मात्र एक चेक भरने जैसा नहीं होना चाहिए।
(यह लेख मूल रूप से अंग्रेजी में अनुराग ने लिखी है, इस लिंक पर क्लिक कर आप विस्तार से इसे पढ़ सकते हैं)