Friday, July 18, 2025
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शोएब जमई मुस्लिमों का प्रतिनिधि और अधिवक्ता सुबुही खान को अपनी बात रखने का भी हक़ नहीं? लिबरल गिरोह नफरती कट्टरपंथी से जमा रहा सहानुभूति

अजीत अंजुम ने शायद इतनी सहानुभूति और चिंता तो अपने बेटे के लिए भी नहीं जताई होगी। लोग अजीत अंजुम को कह रहे हैं कि वो शोएब जमई को भी अपनी तरह यूट्यूब चैनल बनाने की सलाह दे दें।

अधिवक्ता सुबुही खान ने लाइव टीवी शो में इस्लामी कट्टरपंथी शोएब जमई को पीट दिया। हिंसा किसी भी चीज का जवाब नहीं हो सकता है, लेकिन एक पढ़ी-लिखी महिला ने जब मजबूर होकर किसी को शो से भागने के लिए कहा, तो इसके पीछे ज़रूर वाजिब कारण रहा होगा। यहाँ एक मुस्लिम महिला के अधिकारों की चिंता किसी को नहीं है लेकिन एक इस्लामी कट्टरपंथी के लिए आँसू बहाए जा रहे हैं। शोएब जमई जैसे गुंडे को अगर दो-चार हाथ या लात पड़ भी गए तो इसमें हंगामा करने का क्या मतलब है?

शोएब जमई तो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिमों को मिला कर हिन्दुओं पर शासन करने की बातें कर रहा था, क्या इसके लिए उस पर हेट स्पीच का मामला नहीं चलना चाहिए? जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को कहा है कि पुलिस हेट स्पीच का स्वतः संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करे, तो क्या उसमें इस्लामी कट्टरपंथियों की गिनती नहीं होती? शोएब जमई के लिए आँसू बहाने वालों को बताना चाहिए कि क्या वो उसकी विचारधारा का समर्थन करते हैं?

उदाहरण के लिए ‘ज़ेहरा कैलीग्राफी’ नामक कंपनी के CEO का ट्वीट देखिए। उसने दावा कर दिया कि मुस्लिम पक्ष की बात नहीं सुनी गई और उन्हें जलील किया गया। ज़ेहरा खुद एक महिला हैं, ऐसे में उन्हें इसका जवाब देना चाहिए कि क्या सुबुही खान मुस्लिम नहीं हैं? सुबुही खान का पक्ष ‘मुस्लिम पक्ष’ क्यों नहीं हो सकता और शोएब जमई कैसे मुस्लिमों का प्रतिनिधि बन गया? इसके लिए तो न कोई मतदान हुआ है, न ऐसी कोई घोषणा हुई है।

फिर तो मुस्लिम समाज को मतदान कर के आपस में ये निर्णय ले लेना चाहिए कि उनका आधिकारिक प्रतिनिधि कौन है और कौन नहीं। अब पत्रकार से यूट्यूबर बने अजीत अंजुम को देख लीजिए। वो शोएब जमई को ऐसे सलाह दे रहे हैं जैसे वो उनके घर के आदमी हों। अजीत अंजुम ने कह दिया कि शोएब जमई पब्लिसिटी के लिए हो रहे स्टंट का हिस्सा बन कर अपने कौम का नुकसान कर रहे, कुछ महीने उन्हें घर में बैठना चाहिए।

अजीत अंजुम ने शायद इतनी सहानुभूति और चिंता तो अपने बेटे के लिए भी नहीं जताई होगी। लोग अजीत अंजुम को कह रहे हैं कि वो शोएब जमई को भी अपनी तरह यूट्यूब चैनल बनाने की सलाह दे दें। फिर दोनों मिल कर भी प्रोपेगंडा कर सकते हैं। जहाँ अजीत अंजुम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ झूठ फैलाएँगे, वहीं शोएब जमई ISIS जैसे आतंकी संगठनों की विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हिन्दू विरोधी बातें करेंगे।

अगर सुबुही खान को मुस्लिमों या मुस्लिम महिलाओं का पक्ष रखने की अनुमति नहीं है तो फिर किसे है? राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैया लाल तेली का सिर कलम करने वाले दोनों हत्यारों को? दुनिया भर के मुस्लिम युवाओं को कट्टर बनाने के लिए वीडियो बनाने वाले इस्लामी मुबल्लिग ज़ाकिर नाइक को? या फिर पाकिस्तान में बैठे उन आतंकियों को, जो अल्लाह और जिहाद के नाम पर खून बहाते हैं? या फिर सीधे ISIS को, जिसके नाम में ही इस्लाम है।

शोएब जमई का समर्थन करने वाले वही लोग हैं, जिन्होंने कन्हैया लाल तेली और महाराष्ट्र के अमरावती के उमेश कोल्हे की हत्या की निंदा नहीं की थी। ये वही लोग हैं, जो ‘द केरल स्टोरी’ फिल्म की निंदा करते हैं, क्योंकि हिन्दू लड़कियों के साथ ‘लव जिहाद’ करने वाले कट्टरपंथियों का वो समर्थन करते हैं। शोएब जमई के पक्ष में बयान देने वाले वही लोग हैं, जो महिला विरोधी हैं। ये नहीं चाहते कि एक मुस्लिम महिला को खुल कर अपनी बात रखने का अधिकार मिले।

शोएब जमई लगातार नफरत भरी बातें कर रहा है। वो हिंसा भरे बयान दे रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश को मिला कर मुस्लिम PM बनाने के उसके बयान को क्या देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्या? ऐसे देशद्रोही के लिए लिबरल गिरोह के लोग सहानुभूति जता रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो ये कि न्यूज़ डिबेट्स में ऐसे व्यक्ति को बुलाया ही नहीं जाना चाहिए। किसी को नफरत फैलाने के लिए मंच देने का क्या तुक है भला?

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अनुपम कुमार सिंह
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भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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