जिस स्वतंत्रता को हमने मजहब के नाम पर भारत के बँटवारे के बाद पाया, उसकी आयु 75 साल हो चुकी है। पर मुहम्मदवाद और ईसायत के खतरे खत्म नहीं हुए हैं। आज भी हिंदू होना, हिंदुओं की बात करना अपराध है। ऐसे लोगों की खुलेआम हत्या हो रही है। वे कभी रात के अँधेरे में आकर वार करते हैं। कभी ग्राहक बन दुकान में घुसते हैं और गला काट जाते हैं। कभी भगवा पहन मिलने के बहाने आते हैं और चाकुओं से गोद कर चले जाते हैं। घात लगाए बैठे रहते हैं और राह चलते काट जाते हैं।
साधु-संत हों या आस्थावान सामान्य हिंदू, सब एक जैसे ही खतरे में हैं। न घर सुरक्षित हैं, न आश्रम। ओडिशा में एक जगह है कंधमाल। कंधमाल के जलेसपट्टा में ही था, स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती का आश्रम। तारीख थी 23 अगस्त 2008। जन्माष्टमी का कार्यक्रम चल रहा था। स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती अराधना में लीन थे। पहले उन्हें गोली मारी गई फिर मृत शरीर को कुल्हाड़ी से काट दिया गया। उस दिन स्वामी लक्ष्माणानंद सरस्वती सहित कुल 5 साधु की इसी तरीके से आश्रम में हत्या हुई। वजह स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती गो रक्षा की बात करते थे। वनवासी इलाकों में बहला-फुसलाकर धर्मांतरित किए गए हिंदुओं की घर वापसी के लिए अभियान चला रहे थे।
स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती संत थे। जय श्रीराम कहते रहे होंगे, जो अनुराग कश्यप जैसे टुटपुंजिए बॉलीवुडिए के हिसाब से ‘वॉर क्राई’ है। मोहम्मद जुबैर के शब्दों में कहे तो ‘हेट मोंगर्स’ थे।
लेकिन सर्वानंद कौल पूरे सेकुलर थे। सर्व धर्म समभाव वाले। जैसी संस्कृत पर पकड़, वैसी ही फारसी पर। जैसे हिंदी के जानकार, वैसे ही उर्दू के। जैसी अंग्रेजी पर पकड़, वैसी ही कश्मीरी पर। कवि थे। अपने पूजा घर में कुरान रखते थे। एक रात शांतिदूतों ने उनके घर दस्तक दी। बारिश हो रही थी। 66 साल के सर्वानंद कौल और उनके 27 साल के बेटे को साथ ले गए। दो दिन बाद पिता पुत्र की पेड़ से टँगी लाश मिली। जहाँ तिलक लगाते थे, वहाँ की चमड़ी तक छील दी गई थी।
सर्वानंद कौल बुजुर्ग थे। उम्र के अंतिम पड़ाव पर थे। बाल भी बाँका नहीं होने देने का वचन देने वालों ने धोखा दे दिया। लेकिन 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में जो जिंदा जला दिए गए, उनमें 10 तो बच्चे ही थे। कुल 59 लोग जिंदा जले थे। 27 महिला, 22 पुरुष और 10 बच्चे। अयोध्या से लौट रहे थे।
कासगंज में 26 जनवरी 2018 को चंदन गुप्ता की हत्या कर दी गई, क्योंकि उसने तिरंगा यात्रा निकाली। प्रशांत पुजारी फूल विक्रेता थे। मन्नूलाल वैष्णव घर-घर अखबार पहुँचाते थे। सारे मारे गए। आज कोई जीवित नहीं है।
हर्षा, किशन भरवाड, उमेश कोल्हे, कन्हैयालाल, प्रवीण नेट्टारू… ये ताजा नाम हैं। स्वतंत्र भारत में उन नामों की फेहरिस्त काफी लंबी है जो केवल इसलिए मार दिए, क्योंकि वे हिंदू थे। वे हिंदू समाज को एकजुट कर रहे थे। वे धर्मांतरित हिंदुओं की घर वापसी में जुटे थे। वे भारत, तिरंगा, गोरक्षा की बात कर रहे थे।
70 साल की काला देवी को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने वैश्विक कोरोना महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में एकजुटता दिखाने के लिए घर में दीप जला लिया। 12वीं की छात्रा लावण्या से कहा गया कि पढ़ना है तो धर्म बदलो या टॉयलेट साफ करो। दबाव नहीं झेल पाई। खुद ही अपनी जान ले ली। कुछ लव जिहाद के शिकार हुए तो कुछ को इस्लाम के लिए खतरा बता मार दिया गया।
स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव पर लेकर आए हैं, स्वतंत्र भारत के ऐसे 75 नाम/घटना, जो केवल इसलिए मार दिए गए क्योंकि वे हिंदू थे;
- प्रवीण नेट्टारू
- कन्हैया लाल साहू
- उमेश कोल्हे
- हर्षा
- किशन भरवाड
- रुपेश पांडेय
- नीरज राम प्रजापति
- मुकेश सोनी
- कमलेश तिवारी
- स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती
- वी रामलिंगम
- ध्रुव त्यागी
- पालघर: कल्पगिरि महराज, सुशील गिरि महराज, नीलेश तेलगडे
- गौरव-सचिन
- प्रशांत पुजारी
- संजय कुमार
- अंकित सक्सेना
- रतनलाल
- अंकित शर्मा
- गंगाराम सिंह चौहान
- भरत यादव
- विष्णु गोस्वामी
- सुबोध सिंह
- अविनाश सक्सेना
- अमित गौतम
- चंदन गुप्ता
- रविंदर कुमार
- रिया गौतम
- योगेश कुमार
- पंकज नारंग
- काला देवी
- मिथुन ठाकुर
- रवि निंबारगी
- रेवती सिंह
- राजेश कुमार
- निकिता तोमर
- डॉ संजय सिंह
- रिंकू शर्मा
- सन्नी सिन्हा
- राहुल राजपूत
- राहुल सोलंकी
- शंभूलाल
- भरत वैष्णव
- रंजीत बच्चन
- प्रिया-कशिश
- नागराजू
- दिलबर नेगी
- रितिक आदर्श
- बीके गंजू
- सर्वानंद कौल
- विनोद कुमार
- टीकालाल टपलू
- साधु सरवनन
- अजय पंडिता
- सतीश भंडारी
- माखन लाल बिंद्रू
- गिरिजा टिक्कू
- सतिंदर कौर
- दीपक चंद
- हीरालाल गुजराती
- रामेश्वर अंकुश
- आलोक तिवारी
- प्रेम सिंह
- दिनेश
- वीरभान
- बीना झा
- साबरमती एक्सप्रेस में सवार कारसेवक
- कृष्ण राजदान
- पीएन कौल
- नीलकंठ गंजू
- रजनी बाला
- सतीश कुमार टिकू
- एकता देशवाल
- कांति प्रसाद
- संतोला देवी
ऐसे नाम और घटनाओं को केवल 75 के आँकड़े में समेटा नहीं जा सकता। यह एक ऐसी अंतहीन सूची है जिसका पूर्ण विराम न जाने कब आयेगा। तारीख बदलते ही सूची में नया नाम जुड़ जाता है। अमृत महोत्सव के इस साल में ऑपइंडिया सूची में शामिल नाम में से कई के परिवार तक पहुँचा है। हम एक-एक कर उनका हाल आपके सामने लाएँगे।
हम न इन हिंदुओं को भूले थे, न भूलेंगे। आपको भी बार-बार, तब तक इनकी याद दिलाते रहेंगे, जब तक आप इस खतरे में घिरे हैं। जब तक आप काफिर हैं। ताकि आप मुहम्मदवाद और ईसायत के खतरे से सचेत रहें।