Wednesday, October 9, 2024
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आक्रांताओं की हिंसा से बचाने के लिए देवी-देवताओं, महिलाओं को घर में लाया गया… राम मंदिर से महिलाएँ फिर होंगी स्वतंत्र-सुरक्षित

आक्रमण, जबरदस्ती और विनाश के बहुत सारे हिंसक चरणों के समय, सनातन संस्कृति की प्रथाओं और धर्म को बचाने के लिए, हमारे पूजनीय देवताओं के साथ हमारे संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए, हमारे मंदिरों और महिलाओं को घर के अंदर लाया गया।

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर पूरे देश का उत्साह अभूतपूर्व था। इस आयोजन के लिए जिस तरह से भारतवर्ष के सभी भागों के लोग एक साथ आए, वह उन लोगों के लिए एक मजबूत खंडन के रूप में काम कर रहा है, जो संशयवादी थे और मंदिरों के स्थान पर अस्पतालों या विश्वविद्यालयों के निर्माण को प्राथमिकता देते थे या दे रहे हैं।

अयोध्या शहर में तेजी से होती हुई प्रगति और विकास श्री राम लला मंदिर के परिवर्तनकारी प्रभाव को प्रकट करता है। यह सांस्कृतिक पुनुरुत्थान, अयोध्या से भी आगे चारों ओर विस्तृत रूप में फैला हुआ है, जो सम्पूर्ण भारतवर्ष में सनातन धर्म के पुनर्जागरण में अतुलनीय योगदान दे रहा है। यह उद्घाटन और इसका प्रभाव पहले से ही ध्यान देने योग्य है, जो एक बड़े आंदोलन का संकेत है, जो श्री राम मंदिर के पुनःस्थापन के साथ तेजी से गति पकड़ रहा है।

इस सांस्कृतिक और धार्मिक पुनर्जागरण से प्राप्त होने वाले विभिन्न परिणामों का विश्लेषण और उनका अनुमान लगाना अभी बहुत जल्दबाजी होगी। यद्यपि, इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे सनातन सभ्यता का आर्थिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान होगा, लेकिन इस बात पर चर्चा नहीं हो रही है कि भारतवर्ष में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के लिए इसका क्या अर्थ हो सकता है। यह एक ऐसा विषय रहा है, जिसके लिए भारतवर्ष को अतीत में अत्यंत बुरी प्रतिष्ठा का तथाकथित ठप्पा लगाया गया है।

यहाँ तक की नारीवादी, वामपंथी समूह और स्वघोषित उदारवादी भी इसे महिलाओं से नहीं जोड़ रहे हैं। वे इस विकास का विश्लेषण एक स्पष्ट चिंता, हताशा, क्रोध और निराशा की भावना के साथ कर रहे हैं। ये सारे नारीवादी, वामपंथी समूह और स्वघोषित उदारवादी इसे बहुसंख्यकवाद के उदय, फासीवादी राज्य के पुनरुत्थान, लोकतंत्र में गिरावट, धर्मनिरपेक्षता की हानि, महिलाओं की स्थिति में गिरावट और अल्पसंख्यक अधिकारों के दमन के रूप में देखते हैं। वे शायद ही अयोध्या में मंदिर को महिलाओं के खिलाफ हिंसा जैसे मुद्दों के संभावित समाधान के रूप में जोड़ेंगे।

पिछले 20 वर्षों से महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के क्षेत्र में काम करने वाले व्यक्ति के रूप में, मैं भारतवर्ष में इस कार्यक्रम की क्षमता को देख सकती हूँ और मैं यह कह सकती हूँ कि यह घटना, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की रोकथाम के लिए; समाधान खोजने का मार्ग प्रशस्त करेगी।

वैश्विक स्तर पर नारीवादी, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा (जिसमें घरेलू हिंसा के साथ-साथ यौन हिंसा भी सम्मिलित है), से निपटने के लिए समाधान की तलाश में व्यस्त हैं। दुर्भाग्य से, प्रत्येक गुजरते हुए वर्ष में, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का भयावह खतरा बना रहता है, क्योंकि विभिन्न सरकारी या गैर-सरकारी संस्थानों के अभिलेखों में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से सम्बंधित आंकड़े या तो स्थिर रहते हैं या फिर बढ़ते रहते हैं।

उपनिवेशीकरण, मंदिर और महिलाएँ

अयोध्या का राम मंदिर महिलाओं के विरुद्ध हिंसा से निपटने में कैसे सहायता कर सकता है, यह समझने के लिए हमें यह जानना होगा कि उपनिवेशीकरण, मंदिर और महिलाएँ आपस में एक दूसरे से कैसे जुड़े हुए हैं।

विश्व के अधिकांश भागों में उपनिवेशीकरण या आक्रमण का एक पैटर्न, एक तरीका रहा है। जहाँ भी ऐसा हुआ, इसने मूल आबादी की अपनी संस्कृति और धार्मिक प्रथाओं से जुड़ाव को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इसे उपनिवेशवादी के मूल्यों, विश्वासों और धर्म से बदल दिया गया या ये कह लीजिए कि उपनिवेशवादियों या आक्रमणकारियों ने अपने मूल्यों, विश्वासों और धर्म को जबरन स्थापित किया। उदाहरण के लिए, ईरान से पारसी धर्म और अफगानिस्तान से बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म का सफाया किया गया।

यद्यपि इस सन्दर्भ में, भारतवर्ष एक अपवाद रहा है क्योंकि एक हजार साल से भी अधिक समय तक उपनिवेशीकरण और तमाम आक्रमणों के बाद भी यहाँ की सनातन संस्कृति नष्ट नहीं हुई। तुर्की, मंगोल, फ़ारसी, ब्रिटिश, पुर्तगाली, डेनिश, डच, फ्रांसीसी आदि सभी लोगों ने चरणबद्ध तरीके से, एक हजार साल से भी अधिक की लंबी अवधि में मजबूत प्रतिरोध का सामना करते हुए भारतवर्ष पर आक्रमण किए और अपने-अपने उपनिवेश बनाए। इस सभी आक्रमणों और प्रतिरोधों के बावजूद सनातन धर्म बच तो गया, परंतु यह काफ़ी कमज़ोर रह गया और इसका सामाजिक ताना-बाना बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।

भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्र (जिसे आज उत्तरी भारत कहा जाता है) में मंदिरों का बड़े पैमाने पर अपवित्रीकरण, विनाश और लूटपाट का मुख्य उद्देश्य भारत की सभ्यतागत विरासत की जड़ों को हिलाना था। यह एक सर्वविदित और स्थापित तथ्य है कि लगभग आठ सौ वर्षों तक, दिल्ली में इस्लामी और मुगल शासन के समय, कोई भी मंदिर आक्रमणकारियों से बचा ही नहीं था और 1939 में बिड़ला के लक्ष्मीनारायण मंदिर के निर्माण तक नए मंदिरों के जीर्णोद्धार या निर्माण का कोई प्रयास संभव नहीं हो सका था।

दूसरा प्रभाव महिलाओं की स्थिति और उनके हिंसा के अनुभव को लेकर था। इस कथन को संदर्भ देने के लिए अमेरिकी इतिहासकार विल दुरान्ट ने भारत पर इस्लामी आक्रमण को मानव इतिहास की सबसे खूनी घटनाओं में से एक बताया है। यह स्पष्ट है कि उस समय भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और उनकी दुर्दशा अकल्पनीय स्तर पर थी। बलात्कार, अपहरण, यौन गुलामी, जबरन धर्म परिवर्तन जैसी घटनाएँ बड़े पैमाने पर थीं। ऐसा कहा जाता है कि दुनिया भर में लाखों महिलाओं का अपहरण कर उन्हें बाजारों में बेच दिया गया था।

उपनिवेशीकरण का प्रत्यक्ष रूप में और अप्रत्यक्ष रूप में दोतरफा प्रभाव पड़ता है। उपनिवेशीकरण न मात्र महिलाओं के विरुद्ध गंभीर हिंसा सहित स्वदेशी समुदायों के विरुद्ध सीधे तौर पर हिंसा करता है, बल्कि यह उन सुरक्षात्मक कारकों को भी नष्ट करता है, जो महिलाओं की स्वतंत्रता की रक्षा और समर्थन करने वाली स्वदेशी सांस्कृतिक प्रथाओं में विद्यमान हैं। आक्रमणों और उपनिवेशीकरण से उत्पन्न आघातों से हैरान, परेशान और असहाय पीड़ित स्वदेशी समुदाय अक्सर अपनी महिलाओं की स्वतंत्रता पर रोक लगाकर उनको सुरक्षित करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयत्न करते हैं और महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करना अपने आप में हिंसा का कारण बन जाता है, एक ऐसी हिंसा जो आक्रमणकारियों या उपनिवेशवादियों द्वारा नहीं, बल्कि उनके अपने स्वदेशी समुदाय द्वारा की जाती है।

समय की गति के साथ यह प्रवृति समाज में इस तरह व्याप्त हो जाती है कि हिंसा के अंतर्निहित कारणों को भुला दिया जाता है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि स्वदेशी संस्कृति स्वयं हिंसा को स्वीकृति देती है। भारतवर्ष में इसके अनेकों उदाहरण हैं जैसे बेटे को प्राथमिकता देना, बेटी की अपेक्षा बेटे के जन्म पर अधिक जश्न मनाना, प्रौद्योगिकी के आगमन के साथ कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, महिलाओं का पर्दा करना, महिलाओं और लड़कियों की गतिशीलता और शिक्षा पर प्रतिबंध इत्यादि।

अतः यहाँ इस बात पर चर्चा हो रही है कि मंदिर और महिलाएँ कैसे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। आक्रमण और उपनिवेशीकरण के समय मंदिर और महिलाएँ दोनों ही सार्वजनिक रूप से असुरक्षित रहे, लूट, डकैती और बलात्कार जैसे घृणित अपराधों के प्रति संवेदनशील रहे। परिणामस्वरूप आक्रमण, जबरदस्ती और विनाश के बहुत सारे हिंसक चरणों के समय, सनातन संस्कृति की प्रथाओं और धर्म को बचाने के लिए, हमारे पूजनीय देवताओं के साथ हमारे संबंधों को सुरक्षित रखने के लिए, हमारे मंदिरों और महिलाओं को घर के अंदर लाया गया।

सनातन धर्म का पुनरुत्थान और महिलाओं की स्थिति का पुनर्स्थापन

उपनिवेशीकरण का उद्देश्य स्वदेशी संस्कृति, स्वदेशी महिलाओं और स्वदेशी ज्ञान की रक्षा करना बिलकुल भी नहीं रहा है। यदि हम इतिहास को देखें तो पाएँगे कि ऐसा अफ़्रीका, अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी हुआ है। उपनिवेशवादी राज्य कभी भी एक रक्षक के रूप में कार्य नहीं करता है, इसलिए उपनिवेशवादियों की प्रणालियाँ और संरचनाएँ उपनिवेशित आबादी की सुरक्षा और भलाई के लिए नहीं बनी हैं।

यदि हम ऑस्ट्रेलिया का उदाहरण लें तो पाएँगे कि उपनिवेशीकरण के दो सौ वर्षों के अंदर, ऑस्ट्रेलियाई आदिवासी/मूल निवासी हजारों वर्षों की अपनी संस्कृति से पूरी तरह से बेदख़ल कर दिए गए। वर्तमान समय में ऑस्ट्रेलिया की आदिवासी महिलाएँ तुलनात्मक रूप में वहाँ की गैर-स्वदेशी आबादी से अधिक हिंसा का अनुभव करती हैं। सुलह, सामंजस्य और उपचार की प्रक्रिया में, ऑस्ट्रेलिया इस बात को स्वीकार करता है कि आदिवासी/मूलनिवासी समुदायों की महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उपनिवेशीकरण और उनकी संस्कृति से टूटे हुए संबंधों का ही परिणाम है। सभी उपलब्ध अभिलेख और साक्ष्य बताते हैं कि उपनिवेशीकरण से पूर्व ऑस्ट्रलियाई आदिवासी/मूलनिवासी समुदायों में हिंसा उनकी संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं थी। इस हिंसा को संबोधित करने का एक महत्वपूर्ण तरीका यह है कि आदिवासी समुदाय अपनी संस्कृति से टूटे हुए संबंधों को पुनर्स्थापित करे।

पूर्वजों की संस्कृति से जुड़ना और इस बात को प्रकाश में लाना कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को संस्कृति द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था – यह बात महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के समाधान खोजने के हिस्से के रूप में अत्यंत महत्वपूर्ण है। सभ्यता और संस्कृति के साथ वापस जुड़ना वर्तमान में भारतवर्ष में हो रहा है, व्युपनिवेशीकरण प्रक्रिया जिसके परिणामस्वरूप भारतवर्ष में पुनः सनातन धर्म का पुनरुत्थान हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वतंत्रता के सौ साल पूरे होने तक पच्चीस साल के लिए पाँच संकल्प किए हैं।

दूसरे संकल्प में औपनिवेशिक मानसिकता के किसी भी निशान को जड़ से मिटाना है और तीसरे संकल्प में, अपनी मूल जड़ों पर गर्व करने की बात कही गई है। इस तरह, पहली बार, भारतवर्ष में सरकार द्वारा उपनिवेशवाद से मुक्ति पाने की प्रक्रिया की रूपरेखा को प्रस्तावित किया गया है। हमारे मंदिरों, पूजाघरों का पुनर्स्थापन व्युपनिवेशीकरण की प्रक्रिया में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है। उपनिवेशवाद से मुक्ति के साथ महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के साथ-साथ ऐसे अनेकों समाधान भी आएँगे, जो केवल भारतवर्ष ही पूरी दुनिया को दे सकता है।

श्री राम और अयोध्या मंदिर की महत्ता

महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा को रोकने के लिए जन-जन तक पहुँचने और उनसे जुड़ने की आवश्यकता है। लोगों से जुड़ाव को अत्यंत मजबूत बनाने की आवश्यकता है, लोगों से अपील करने की आवश्यकता है और विशेष रूप से महिलाओं के संबंध में उनके मूल्यों पर विचार करने की आवश्यकता है। यही वे मूल्य हैं, जिनके लिए पूरी दुनिया संघर्ष कर रही है, और इनकी रोकथाम के लिए विकसित किए गए विभिन्न कार्यक्रम अभी तक आशाजनक परिणाम नहीं दे रहे पा रहे हैं।

ये सारे कार्यक्रम महिलाओं के प्रति सम्मान की संस्कृति निर्माण पर केंद्रित हैं। मात्र ये कहने से की महिलाओं का सम्मान किया जाए, इससे काम नहीं चलता। ऐसे सामाजिक मूल्य जो जन मानस में गहरे हों व उनकी प्राचीन समय से मान्यता हो, यह अत्यंत जरूरी है। किन्तु संस्कृति में गहराई से अपनी जड़ें जमाए इन मूल्य प्रणालियाँ को मात्र कुछ ही वर्षों में दोबारा नहीं बनाया जा सकता। इनको प्रगाढ़ होने में कई सौ वर्ष लग जाते हैं।

और इसी कारण से श्री राम और श्री राम लला मंदिर का बहुत बड़ा महत्व है। श्री राम और राम राज्य इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि हजारों वर्षों से हिंसा कभी भी सनातन संस्कृति का हिस्सा नहीं थी, हालाँकि अतीत में श्री राम और रामायण के प्रतीकों को धूमिल करने के अनेकों प्रयास लोगों द्वारा किए गए हैं। अनेकों वामपंथी इतिहासकारों, तथाकथित नारीवादियों और कुछ राजनीतिक समूहों ने श्री राम को स्त्रीद्वेषी और जय श्री राम के नारे को आक्रामकता और हिंसा की अभिव्यक्ति के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

यद्यपि, अयोध्या में संपन्न हुई प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम की सहज और झूठी प्रतिक्रिया से पता चलता है कि ये वामपंथी इतिहासकारों, तथाकथित नारीवादियों और कुछ राजनीतिक पार्टियों के समूह अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। पूरे भारतवर्ष और दुनिया भर में सनातनियों द्वारा अपनी सभ्यता और संस्कृति से जो गहरा भावनात्मक जुड़ाव दिखाया जा रहा है, वह आश्चर्यजनक और अप्रत्याशित है। इससे पता चलता है कि इस घटना के विषय में हम जितना सोच सकते हैं, उससे कहीं अधिक बड़े निहितार्थ होंगे।

जब अधिक से अधिक लोग श्री राम से जुड़ेंगे, जो मात्र श्री राम नहीं बल्कि मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम हैं, एक ऐसे भगवान जो शुद्ध चरित्र, अनुशासन, निष्पक्षता और न्याय के अवतार हैं, तो समाज में सकारात्मक बदलाव आना निश्चित है। यह सर्वविदित है कि श्री राम महिलाओं की गरिमा के लिए सदैव खड़े रहे और अपनी पत्नी सीता के प्रति अपमान का बदला लेने के लिए पहाड़ों और समुद्रों को पार किया, उन पर विजय प्राप्त की। यदि भारतवर्ष में पुरुष श्री राम से प्रेरणा लें तो समय के साथ इसका सीधा परिणाम महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में कमी के रूप में सामने आएगा। इसके अलावा, राम राज्य एक आदर्श शासन का प्रतीक है, जहाँ कानून और नियम का शासन है। जब कानून-व्यवस्था सुदृढ़ रहती है तो महिलाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

हालाँकि सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष को महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में अग्रणी देश के रूप में प्रचारित किया गया है, लेकिन विभिन्न कुप्रथाओं को सफलतापूर्वक संबोधित करने का अपना एक लम्बा अनुभव रहा है। उदाहरण के लिए सती-प्रथा, बाल विवाह, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या। भारत में बलात्कार के लिए कड़े कानून हैं और महिलाओं को घरेलू हिंसा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान की जाती है। भारतवर्ष में सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि महिलाएँ सार्वजनिक और राजनीतिक जीवन में स्थानीय शासन और संसद में सार्थक रूप से प्रतिभाग करें।

संसद द्वारा पास नवीनतम महिला आरक्षण, नारी शक्ति वंदन अधिनियम, महिला नेतृत्व को सबसे आगे रखने में एक प्रभावी भूमिका निभाएगा। भारतवर्ष में जो भी प्रयास किए जा रहे हैं, वे मात्र अलंकरण नहीं हैं, बल्कि उनके पीछे हजारों वर्षों की सभ्यतागत पृष्ठभूमि है, जहाँ स्त्री देवत्व को सदैव प्रकृति, शक्ति, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा, काली और देवी के रूप में सम्मान दिया गया है।

अंततः संक्षेप में, जब एक सुंदर चित्रकारी पर वर्षों-वर्ष के दुर्व्यवहार और लापरवाही के कारण धूल की मोटी परतें जमा हो जाती हैं, तो वह बदसूरत लगने लगती है। हमारी सुंदर सनातन सभ्यता पर बाह्य आक्रमणों और उपनिवेशीकरण ने यही काम किया है। परन्तु यदि ठोस प्रयास करते हुए इस धूल को मिटा दिया जाए और उपनिवेशवाद के निशानों को मिटा दिया जाय, तो पुनः वही खूबसूरत चित्रकारी (पेंटिंग) फिर से सामने उभरकर आ जाएगी। एक ऐसी चित्रकारी (पेंटिंग) जिसमें महिलाओं का सम्मान किया गया है और उन्हें हिंसा और किसी भी प्रकार के भेद-भाव से मुक्त रखा गया है।

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Tulika Saxena
Tulika Saxena
Dr. Tulika Saxena is based in Canberra and has worked for women issues, especially violence against women for more than 20 years in India and Australia. She has PhD from Australian National University, Canberra on impact assessment of Indian Protection of Women from Domestic Violence Act.

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