बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले में ज़हरीली शराब से हाहाकार मचा हुआ है। अब तक 30 लोग जान गँवा चुके हैं, जबकि 6 को अपनी आँखों की रोशनी से हाथ धोना पड़ा है। इस मामले में 5 थानाध्यक्ष, 2 ASI और 9 चौकीदारों को निलंबित किया गया है। 60 तस्करों को गिरफ्तार भी किया गया है। 5 FIR दर्ज की गई है। लेकिन, इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का एक चौंकाने वाला बयान सामने आया है, जो निहायत ही संवेदनहीन है।
हालाँकि, पुलिस-प्रशासन 22 मौतों की बात ही कबूल कर रहा है लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स में पूर्वी चम्पारण के अलग-अलग इलाकों में पिछले 3 दिनों में 30 मौतों की खबरें सामने आई हैं। सीएम नीतीश कुमार ने सीधा फरमान जारी कर दिया है कि अगर मृतकों के परिवार वाले कह दें कि ‘साहब, हमलोग शराबबंदी के पक्ष में हैं’, शराब पीना बुरी बात है और ‘हम दूसरों को भी प्रेरित करेंगे कि वो शराब न पिएँ’ – तभी उन्हें बिहार सरकार की तरफ से 4 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।
बिहार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भूल कर संवेदनहीन बयान दे रहे CM नीतीश कुमार
नीतीश कुमार का ये बयान दिखाता है कि बिहार की आर्थिक-समाजिक परिस्थिति से अवगत होने के बावजूद वो अपने जिद और राजनीति के लिए इस तरह की बातें कर रहे हैं। मृतकों में अधिकतर गरीब परिवार के लोग हैं। अब उन पर कमाने-खाने का संकट पैदा हो गया है, ऐसे में वो अपने लिए भोजन का इंतजाम करेंगे कि शराबबंदी के पक्ष में लोगों को प्रेरित करते फिरेंगे? मृतकों के पीछे जो छूट गए, भला उनकी क्या गलती है?
#WATCH | Motihari hooch tragedy: This is a sad incident. We'll provide Rs 4 lakhs to the families of the deceased, from CM relief fund but they should provide in writing that they are in favour of alcohol ban in the state & that they're against drinking alcohol: Bihar CM N Kumar pic.twitter.com/7t5EXSavOf
— ANI (@ANI) April 17, 2023
बिहार एक गरीब राज्य है। ज़हरीली शराब से जितनी भी मौतें होती हैं, उनमें अधिकतर पिछड़े और गरीब ही होते हैं। वो शिक्षित नहीं होते हैं। उन्हें अच्छे और बुरे शराब का भेद तक नहीं पता होता है। शराबबंदी के कारण ब्रांडेड शराब तो मिल नहीं रही है, ऐसे में उनके पास जो आता है वो पी लेते हैं। सरकार ये कह कर नहीं बच सकती कि हमने दारू बैन कर दिया है कि इसकी तस्करी के लिए भी आम जनता ही जिम्मेदार है।
क्या आपने कभी सुना है कि कोई नेता या कारोबारी ज़हरीली शराब से मर गया? कभी बॉलीवुड सेलेब्रिटीज की पार्टी में जहरीली दारू से मौत की खबरें आती हैं? शराब का सेवन खतरनाक है और इसमें कोई शक नहीं है कि शराब की पहली बूँद से ही व्यक्ति के शरीर को नुकसान पहुँचने लगता है। डॉक्टर भी शराब का सेवन न करने की सलाह देते हैं। लेकिन, बिहार जैसे राज्य में कलम से एक फरमान जारी कर के सब कुछ अचानक नहीं किया जा सकता।
शराबबंदी से मरने वाले और उनके परिवार पीड़ित हैं, अपराधी नहीं। अगर ज़हरीले शराब के सेवन से किसी की जान चली गई, ऐसे में उसकी विधवा को प्रताड़ित करने का क्या फायदा? उसके माता-पिता से सरकार कैसे बदला ले सकती है? उसके बच्चों के सामने कैसे शर्तें रखी जा सकती हैं? गरीब परिवार में एक व्यक्ति के मरने से कमाई बंद हो जाती है और खाने का संकट पैदा हो जाता है, ऐसे में पीड़ित परिवार के सामने शर्तें रखना कहाँ तक उचित है?
एक तो भ्रष्टाचार और नौकरशाही से पीड़ित बिहार जैसे राज्य में साधारण मुआवजे के लिए भी लोगों को सरकारी दफ्तरों की इतनी दौड़-धूप करनी पड़ती है कि पूछिए मत। गरीब तो छोड़िए, माध्यम वर्ग भी इससे अछूता नहीं है। ऐसे में एक तो घर में किसी की मौत हो जाए, ऊपर से महिलाओं-बच्चों या बुजुर्ग माता-पिता को सरकार की शर्तों को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़े और उनके साथ अपराधी की तरह व्यवहार किया जाए, तो इसे जायज कैसे ठहराया जा सकता है?
शराबबंदी का कानून तो बना दिया, ज़हरीली शराब की सप्लाई रोकना सरकार का काम नहीं?
शराब और ज़हरीले शराब में अंतर है। शराबबंदी के प्रावधानों से शराब की दुकानें बंद हो गईं। लेकिन, ज़हरीली शराब की सप्लाई रोकना सरकार का काम है, आम जनता का नहीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बड़ी चालाकी से शराब और ज़हर को एक साथ देख रहे हैं। जहाँ शराब पर प्रतिबंध नहीं है, वहाँ भी ज़हरीली शराब से मौतें होती हैं और इसकी जिम्मेदारी सरकार पर ही आती है, पुलिस-प्रशासन पर ही आती है, आम जनता पर नहीं।
ये कुछ वैसा ही है, जैसे बाजार में ज़हरीले मसले की पुड़िया बिकनी लगे और उसे खा कर लोग बीमार पड़ने लगें, उनकी मौत होनी लगे। फिर खाद्य विभाग या फिर पुलिस-प्रशासन किसलिए है? राज्य सरकार कह देगी कि हमने फलाँ कानून बना दिया है, मरने वाले और उनके परिवार खुद दोषी हैं। ऐसा कहीं नहीं चलता है। ज़हरीली शराब बाजार में कहाँ से आ रही है, कहाँ बन रही है और लोग इसे कैसे खरीद रहे हैं, कौन लोग इसे बेच रहे हैं – ये देखना पुलिस-प्रशासन का काम है।
अगर किसी गरीब के हाथ में ज़हरीली शराब पहुँच गई है तो ये पुलिस-प्रशासन की नाकामी है, आम जनता की नहीं। इसकी सज़ा मृतक के परिवार वालों को नहीं दी जा सकती। ये वही नीतीश कुमार हैं, जिन्होंने सारण में ज़हरीली शराब से हुई मौतों पर ‘जो पिएगा, वो मरेगा’ वाला बयान देते हुए एक रुपया भी मुआवजा देने से इनकार कर दिया था। अब वही नीतीश कुमार कह रहे हैं कि हमारी ये-ये शर्तें मानो, तभी मुआवजा दिया जाएगा।
याद दिला दें कि दिसंबर 2022 के मध्य में बिहार के सारण जिले में ज़हरीली शराब से 70 से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी। CID को इसकी जाँच सौंप दी गई थी। 2016 में बिहार में शराबबंदी का निर्णय लागू होने के बाद ये इस तरह का सबसे बड़ा हादसा था। जहाँ बिहार सरकार ने 38 मौतों का आधिकारिक आँकड़ा दिया था, विपक्षी भाजपा ने ये संख्या 100 से भी ज़्यादा होने का दावा किया था। मोतिहारी (पूर्वी चम्पारण) वाले मामले में भी यही हो रहा है।
नीतीश कुमार कहते रहे हैं कि शराबबंदी महिलाओं के हित को ध्यान में रख कर की गई है। शराब से होने वाली मौतों के कारण आज वही महिलाएँ सबसे ज़्यादा रोती-बिलखती हुई दिखती हैं, क्योंकि घर में कमाने-खाने का कोई जरिया नहीं बचता। उन्हीं महिलाओं से बिहार सरकार कहती है कि तुम फलाँ चीजें लिख कर दो, तब तुम्हें मुआवजा देंगे। ये संवेदनहीनता नहीं तो क्या है? सरकार को तो मृतकों के घर पहुँच कर उन्हें सांत्वना देनी चाहिए, मुआवजे के लिए अधिकारियों को त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।
गरीबों में जागरूकता ज़रूरी, मृतकों के परिवार वालों से अपराधियों वाला व्यवहार क्यों?
जब देश भर में पोलियो ने पाँव पसारा हुआ था, तब केंद्र और राज्य सरकारों ने मिल कर पहल की। पोलियो की दवा समय-समय पर बच्चों को पिलाने के लिए बड़े स्तर पर कर्मचारी लगाए गए। इसके लिए रेडियो से लेकर टीवी और अख़बार तक के माध्यम से जागरूकता अभियान चलाया गया। पोलियो की दवाओं को लेकर गरीब और अशिक्षित वर्ग में एक प्रकार का भय था, जिसे दूर करने के लिए व्यापक प्रचार-प्रसार और जागरूकता अभियान का सहारा लिया गया।
लोकप्रिय अभिनेता अमिताभ बच्चन को इस अभियान का ब्रांड एम्बेस्डर बनाया गया। तब जाकर कई वर्षों के कई चरणों के अभियान के बाद ये सफल हुआ। अगर सरकार सिर्फ ये कानून बना देती कि पोलियो की दवा पिलाना अनिवार्य है, तो क्या इससे समस्या हल हो जाती? पोलियो से हुई मौतों पर ये कहा जाता कि ये तुम्हारी गलती है, मृतक का परिवार अपराधी है – तो या ये अभियान इतिहास बना पाता? बिलकुल भी नहीं।
फिर बिहार की तो अधिकतर आबादी गरीबी के संकट से ग्रस्त है। उन्हें पलायन करना पड़ता है, क्योंकि राज्य में काम नहीं मिलता। स्किल डेवेलोपमेंट की कोई ट्रेनिंग मिल नहीं पाती। जो बिहार में काम करते हैं, वो कम पैसों में गुजरे को मजबूर हैं। उनमें जागरूकता का अभाव होता है, ऐसे में सरकार को शराबबंदी से पहले चाहिए था कि एक व्यापक जागरूकता अभियान चलाए। महिलाओं-बच्चों-बुजुर्गों को समझाया जाए, फिर घर-घर में लोगों को शराब के खिलाफ जागरूक किया जाए।
इसके अलावा ज़हरीली शराब के नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए एक व्यापक कार्ययोजना बनाई जाती। इसके बाद अगर शराबबंदी होती, तब कहीं ये सफल हो पाती। लेकिन, अब क्या हो रहा है? मोतिहारी शराब काण्ड में एक बीमार व्यक्ति को इलाज कराने की बजाए कार्रवाई के लिए कोट-कचहरी घुमाया जाता रहा, जिससे उसकी मौत हो गई। पुलिस कहती रही कि ये जेल जाएगा। पिटाई का भी आरोप है। ऐसी संवेदनशीन पुलिस और मुख्यमंत्री से हम कैसे अपेक्षा करें कि सही फैसले लिए जा रहे हैं।
प्रावधान इतने कड़े कर दिए गए हैं कि ज़हरीली शराब से बीमारी या मौत होने के बाद भी कोई परिवार खुले तौर पर इसे स्वीकार नहीं करता। कारण – पुलिस उन्हें परेशान करेगी और इलाज/मुआवजे की जगह कार्रवाई पर ही जोर दिया जाएगा। जब नीतीश कुमार से इस संबंध में सवाल पूछा जाता है तो वो ये कह कर इतिश्री कर लेते हैं कि शराब गलत चीज है। क्या ज़हरीली शराब पीने वाले व्यक्ति को पता होता है कि ये ज़हरीली है? ऐसा तो किसी भी खाने-पीने वाली चीजों के साथ हो सकता है। इस पर लगाम लगाने के लिए ही तो तमाम सरकारी विभाग हैं।
कुल मिला कर बात ये है कि शराबबंदी के फैसले से कुछ नहीं होगा, व्यापक जागरूकता अभियान ज़रूरी है। ज़हरीली शराब से हो रही मौतों के बाद परिवार को अपराधी बनाना बंद किया जाए। मुआवजे के लिए उन पर अतिरिक्त भार न लादा जाए। ज़हरीली शराब की तस्करी और खरीद-बेच रोकना सरकार का काम है, आम लोगों का नहीं। शराब और ज़हरीली शराब में अंतर है। मुआवजे को लेकर हर घटना के बाद सीएम अलग-अलग बयान दे रहे, जो खुद उनके कन्फ्यूजन की स्थिति की ओर इशारा करता है।