इससे पहले कि हेडलाइन पढ़कर मुझे पत्रकारिता के आदर्शों की बात आप बताने लगें, मैं बताना चाहूँगा कि यह एक (कम) प्रचलित कहावत है, जो मैंने ही ऐसे ख़ास मौक़ों के लिए ईजाद की है। दूसरी बात, मैं लुट्यन दिल्ली का पत्रकार नहीं हूँ कि अंग्रेज़ी में लिखने के चक्कर में सामने पड़े पत्र में BSF को CRPF पढ़ लूँ, या फिर बेगैरतों की तरह आँख में चमक लेकर यह स्वीकार लूँ कि आतंकी हमलों पर मैं ख़ुश हो जाता हूँ। जो इस तरह की तुच्छ हरक़त करेगा, उसके लिए मुहावरे भी ऐसे ही इस्तेमाल होंगे, और बाय गॉड, हिन्दी में नीचता के लिए मुहावरों की कमी नहीं है।
हुआ यूँ कि पुलवामा आतंकी हमले पर ‘छप्पन इंच’ और ‘हाउ इज़ द जैश’ की नौटंकी के बाद जब ‘कश्मीरियों को पीटा जा रहा है’ का नैरेटिव भी फुस्स हो गया, तो राजदीप ने किसी सैकात दत्ता नामक पत्रकार का एक ट्वीट अपने ज्ञानगंगा की कुछ बूँदों के साथ पब्लिक में परोसा। जो भी हो, उद्देश्य यही है कि ‘लोन वूल्फ़’ अटैक का ठीकरा किसी भी तरह से सरकार पर फोड़ा जाए, और उसके लिए जितना गिरा जा सकता है, गिर जाएँगे।
द एक्सेलेंट स्टोरी डूड ईदर डजन्ट नो व्हाट एक्सेलेंट मीन्स, ऑर द फ़ैक्ट दैट BSF एण्ड CRPF आर नॉट द सेम इवन इफ़ दे यूज द लेटर ‘एफ़’। pic.twitter.com/3KuzInnRbX
— Ajeet Bharti (@ajeetbharti) February 17, 2019
बिल्लौरी चमक के साथ, धूर्तों वाली मुस्कान लिए (मैं उनकी इसी रूप में कल्पना कर पाता हूँ) राजदीप ने लिखा कि सरकारों के पास चमकीले सरकारी विज्ञापनों के लिए अथाह पैसा है, लेकिन हमारे जवानों को बाहर लाने के लिए हेलिकॉप्टर या वायुयान के लिए नहीं! उसके बाद सबको पढ़ने की नसीहत देते हुए राजदीप ने ‘एंटी-नेशनल’ की डुगडुगी बजाते हुए अपना फ़र्ज़ीवाड़ा पब्लिक में बेचने की कोशिश की।
ज़माना अब टीवी वाला तो रहा नहीं लेकिन काइयाँ पत्रकार, जिसकी दुम स्टूडियो में कुर्सी पर बैठते-बैठते टेढ़ी हो चुकी हो, वो तो यही सोचेगा कि इनके शब्दबाण तो स्पीकर से निकल गए, तो निकल गए। लेकिन सोशल मीडिया के ज़माने में लोग पकड़ लेते हैं, तीन सेकेंड में। राजदीप भी धर लिए गए, और सैकात दत्ता का तो सैराट झाला जी हो गया।
As reported day before yesterday in @asiatimesonline — BSF and CRPF were asking for helicopters to transport their troops. Government turned them down. (See document)
— Saikat Datta (@saikatd) February 17, 2019
Link to full story here:https://t.co/CPJqhTLVqF pic.twitter.com/c7zqQi8JNA
दरअसल, सैकात ने एक डॉक्यूमेंट शेयर किया जिसमें बीएसएफ़ की तरफ़ से ‘छूट गए/फँसे हुए’ जवानों के लिए एयरलिफ्टिंग (यानी, हवाई मार्ग से उन्हें बाहर निकालने की बात) के लिए गृह मंत्रालय को आवेदन भेजा गया था। यहाँ तक तो ठीक था, लेकिन जब आप उस डॉक्यूमेंट को पढ़ेंगे तो उसमें मंत्रालय ने साफ़-साफ़ लिखा है कि बीएसएफ़ के ही एयर विंग के साथ बात करने के बाद यह फ़ैसला लिया गया है कि जनवरी और फ़रवरी के दो महीनों में C17 हेलिकॉप्टर का इस्तेमाल ‘फीजीबल’ (व्यवहार्य, संभव, तर्क संगत) नहीं लगता।
इसी पत्र के दूसरे बिंदु पर मंत्रालय ने लिखा कि बीएसएफ़ चाहे तो एयरफ़ोर्स से इस संदर्भ में बात करते हुए, उनके यानों के प्रयोग की अनुमति हेतु आवेदन कर सकता है अगर ऐसी ज़रूरत आन पड़े तो। ये दोनों बातें बीएसएफ़ के संदर्भ में है। और मंत्रालय ने बीएसएफ़ के ही एयर विंग से सलाह करने के बाद हेलिकॉप्टर इस्तेमाल की अनुमति देने में अपनी असमर्थता जताई।
स्टूडियो में बैठे पत्रकारों को लगता है कि जैसे ‘ये जो कैलाश है, वो एक पर्वत है’ की ही तरह ‘ये जो हेलिकॉप्टर होता है, वो हवा में उड़ता है’ कोई सीधी-सी बात है। इसके अलावा, वो और कुछ नहीं सुनना चाहते। उन्हें ये जानने में कोई रुचि नहीं कि हो सकता है मौसम ख़राब होने के कारण इन दो महीनों में उड़ान संभव नहीं। हो सकता है कि सिक्योरिटी थ्रेट हो जिसके कारण हवाई उड़ान संभव नहीं। या, और भी कोई कारण रहें हों।
अगली बात यह है कि ये पूरा का पूरा संदर्भ बीएसएफ़ के लिए था, न कि सीआरपीएफ़ के लिए। उसमें भी, अगर राजदीप ने अपने बुज़ुर्ग होते दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डाला होता तो याद कर पाते कि 2500 जवानों को पुलवामा आतंकी हमले के दिन ले जाया जा रहा था। और, इस डॉक्यूमेंट में ‘स्ट्रैंडेड पर्सनल’ यानी ‘छूट गए/फँसे हुए’ बीएसएफ़ जवानों के लिए एयरलिफ़्ट की मदद माँगी गई थी।
लेकिन, इतना कौन देखता है। जब ‘होम मिनिस्ट्री’, ‘ऑफिशियल डॉक्यूमेंट’, ‘हेलिकॉप्टर नहीं दे सकते’ आदि बातें आपको चरमसुख दे रही हों तो ट्वीट टाइप करने में रैज़डीप्स टाइप लोग फ़ैक्ट तो छोड़िए बेसिक इंग्लिश भी भूल जाते हैं। राजदीप ने चरमसुख के चक्कर में न तो आर्टिकल पढ़ा, न ये देखा कि उस लेटर में किस फ़ोर्स का ज़िक्र है, न यह कन्फर्म करने की कोशिश की कि क्या 2500 जवानों को ऐसे ख़राब मौसम में एयरलिफ़्ट करना संभव है।
आर्टिकल के भीतर जाकर पढ़ने पर मीडिया का पुराना खेल देखने को मिला जिसमें ‘सूत्रों के हवाले’ से कुछ भी लिखा जा सकता है। भीतर में एक जगह पर किसी ‘अधिकारी’ ने कहा कि अगर हेलिकॉप्टर दे दिए जाते तो ‘शायद’ ऐसा होने से बचाया जा सकता था। हालाँकि, सीआरपीएफ़ पर स्टोरी करने वाले सैकात भी पीले डॉक्यूमेंट का रंग देखकर भूल गए कि वो बीएसएफ़ के लिए था और चालीस दिन पहले का (जनवरी 7) था जिसमें ‘विंटर सीज़न’ का ज़िक्र है।
आगे उनकी ही स्टोरी में उसी अधिकारी ने यह भी माना है कि यह (हेलिकॉप्टर न मिलना) आतंकी हमले का असली कारण नहीं था। उस स्टोरी में ऐसा कहीं ज़िक्र नहीं है कि सीआरपीएफ़ ने भी कभी हेलिकॉप्टर से एयरलिफ़्ट करने का आवेदन किया था। हो सकता है किया हो, पर इस डॉक्यूमेंट में तो ऐसा नहीं है, न ही सैकात के ग्राउंड रिपोर्ट में।
ख़ैर, आगे बढ़ते हैं और समझने की कोशिश करते हैं कि पत्रकारों का जो ये समुदाय विशेष है, ये जो धूर्तों का गिरोह है, ये जो शातिर लम्पटमंडली है, वो आख़िर कब तक लोगों को ‘कौआ कान लेकर भाग गया’ कहकर दौड़ाती रहेगी? आज बरखा दत्त ने ऐसे ही लिख दिया कि कश्मीरी विद्यार्थियों पर देशभर में हमले हो रहे हैं, और उसे ‘टेरर अटैक’ तक कह दिया। जबकि, ऐसा कोई केस नहीं दिखा है कि किसी भी कश्मीरी पर कहीं भी ‘हमला’ हुआ हो। कुछ जगहों पर उनके द्वारा पुलवामा आतंकी हमले पर जश्न मनाने या आपत्तिजनक बातें कहने पर पुलिस ने संज्ञान ज़रूर लिया है।
सैकात ने लिखा कि वो देखो कौआ, राजदीप ने भी ज़ोर से कहा कि कौआ कान लेकर भाग रहा है, लेकिन ट्विटर वाले अब चालाक हो गए हैं। उन्होंने राजदीप को न सिर्फ़ उनके बेकार अंग्रेज़ी की समझ पर सवाल किए बल्कि यह भी बताया कि वो जिसको कौआ बोल रहे हैं, वो उन्हीं के सर पर बैठा है और झूठ बोलने पर काट लेगा। बहुतों ने उन्हें आज काटा, ये बात और है कि सिसिफस और प्रोमिथियस की तरह इस आदमी ने आजकल अपने दैनिक दुखों में ही आनंद लेना शुरू कर दिया है।
ये सब भी हटा लें, तो राजदीप जैसे लोग क्या क्लेम करना चाहते हैं? सरकार जागरुकता के लिए विज्ञापन देना बंद करे दे जबकि ‘स्वच्छता अभियान’ से लेकर ‘बेटी बचाओ, बेची पढ़ाओ’ जैसे जीवन बदलने वाले सरकारी अभियानों की सफलता प्रचार पर बहुत हद तक निर्भर करती है। क्या ‘हेलिकॉप्टर हैं और उसका इस्तेमाल किया जा सकता था’ का मतलब यह है कि किसी आतंकी द्वारा ट्रक से विस्फोटकों से लदी कार भिड़ा दी जाए?
मोदी विरोध में ऐसे मानसिक रूप से विक्षिप्त हो चुके पत्रकार तर्क की कौन-सी शाखा से चलते हैं कि वो इस तरह की बातें खोज लाते हैं? अमरनाथ यात्रा पर भी हमला हुआ था, उनको भी हेलिकॉप्टर से उठा लेते? उरी में सेना के कैंप पर हमला हुआ था, उसको शायद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर शिफ्ट किया जा सकता था? क्योंकि सरकार के पास विज्ञापनों पर ख़र्च करने के लिए बहुत पैसा है!
आप सोचिए भला कि किस तरह से नैरेटिव बनाया जा रहा है। हमला होने के आधे घंटे में सरकार की क़ाबिलियत से लेकर उसकी गम्भीरता और प्रतिकार की क्षमता पर सवाल उठाए जाने लगे थे। उसके बाद जब मोदी सरकार ने पाकिस्तान से ‘मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन’ का स्टेटस वापस लिया, अलगाववादियों की सुरक्षा हटा ली, इंटरनेशनल प्रेशर बनाना शुरू किया, सेना को स्वतंत्रता दे दी कि योजना बना कर निपटे, राजनयिकों को तलब किया, तो इस गिरोह को लगा कि ये आदमी तो सीरियस ही हो गया!
तब इन्होंने ‘शांति’ की अपील करनी शुरु की लेकिन देश में अभी वैसा माहौल है नहीं कि शांति की बात कोई भी राष्ट्रभक्त व्यक्ति सुनना चाह रहा हो। मैं युद्ध के ख़िलाफ़ हूँ, लेकिन शांति की बात पाकिस्तान से तो नहीं ही कर सकता। उसके बाद मीडिया का गिरोह सक्रिय होकर आतंकी और उसके माँ-बाप को ऐसे दिखाने लगा जैसे वो लोग आम भारतीय नागरिकों की तरह आईपीएल देखा करते थे। टेररिस्ट के बाप को यह कहते दिखाया गया कि उनका दुःख उस जवान के परिवार के दुःख के समान ही है!
बात यहीं तक नहीं रुकी, राजदीप ने अपने घर के दरवाज़े कश्मीरियों के लिए खोल दिए और बरखा ने ट्विटर पर एक मैनुफ़ैक्चर्ड झूठ के आधार पर कश्मीरियों पर देश में ‘टेरर अटैक’ होता दिखा दिया। शेहला रशीद जैसे फ़्रीलान्स बेसिस पर विरोध प्रदर्शन करने वाली महिला ने 15-20 लड़कियों को देहरादून के किसी संस्थान में बंधक बनवा दिया जिसे पुलिस निकाल नहीं पा रही थी!
नैरेटिव को ‘पुलवामा में एक आतंकी ने 40 जवानों की नृशंस हत्या कर दी, जिनके चिता की अग्नि अभी ठंडी न हुई हो और कब्र की मिट्टी ठीक से दबी न हो’, वहाँ से उठाकर ‘कश्मीरियों को ‘भारत’ में मारा जा रहा है’ बनाने की कोशिश की गई। भला हो सोशल मीडिया का कि पुलिस सक्रिय होकर ऐसे लोगों पर एफआईआर कर रही है। और, जैसा कि होना था कार्डों में श्रेष्ठ ‘विक्टिम कार्ड’ को लेकर बेचारी शेहला ने कश्मीरियत के लिए अपने आप को एक बार फिर से क़ुर्बान कर दिया। पिछली बार जब किया था, तब उन पर कठुआ पीड़िता के फ़ंड के हरे-फेर का आरोप लगा था।
इसलिए, आप यह मत देखिए कि मैं एक ट्वीट पर इतना लिख रहा हूँ। आप यह सोचिए कि इन लोगों का एक ट्वीट ही कितना घातक होता है। इन लोगों के द्वारा ट्वीट की गई एक फ़र्ज़ी ख़बर पूरे भारत का सर बिग बीसी टाइप के प्रोपेगेंडा पोर्टलों पर स्माइली के साथ नीचा करा देती है। ये लोग वाक़ई में बहुत ही निम्न स्तर के ट्रोल हैं जिन्होंने कई साल तथाकथित पत्रकारिता की थी।
इसलिए, इनके एक ट्वीट पर, इनके हर शब्द का सही मतलब निकाल कर, तह दर तह छील देना है। जब तक इन्हें छीलेंगे नहीं, ये अपनी हरक़तों से बाज़ नहीं आएँगे। इसलिए, इनके ट्वीट तो छोड़िए, एपिडर्मिस, इन्डोडर्मिस से लेकर डीएनए तक खँगालते रहिए क्योंकि बाय गॉड, ये लोग बहुत ही बेहूदे क़िस्म के हैं।