ओसामा एक अच्छा पिता था, बुरहान वनी का बाप हेडमास्टर था, अफ़ज़ल गुरू का बेटा बारहवीं में इतने नंबर लाया, अहमद डार को आर्मी वाले ने पीटा था, आर्मी के लोगों के कारण आतंकी बनते हैं… ऐसे हेडलाइन आपको पत्रकारिता के समुदाय विशेष से लगातार मिलते रहेंगे। हमेशा इनकी लाइन यही रहती है कि जिसने इतनी जानें ले लीं, वो कितना अच्छा आदमी था, और उसकी बुराई की ज़िम्मेदारी भी पीड़ितों पर ही है।
ये यहीं तक नहीं रुकता, क्योंकि ये वो लोग हैं जो पाकिस्तान का अजेंडा भारत में चलाते हैं जिसे पाकिस्तान अपने बचाव में इस्तेमाल करता है। देखा जाए तो इस तरह की बातें, ऐसे मौक़ों पर करना यह बताता है कि ये लोग उन आतंकियों की विचारधारा के लिए मस्जिद के ऊपर लगे लाउडस्पीकर हैं जो इसे एम्प्लिफाय करते हैं। इनके लेखों से यही निकल कर आता है जैसे कि जवानों की नृशंस हत्या के पीछे उन्हीं का हाथ था, और आतंकियों का नहीं।
ऐसी घटनाओं के बाद भी ‘दूसरा एंगल’ तलाश लेना, या हमेशा ही ऐसे ही एंगल तलाशने की कोशिश करना बताता है कि इनकी संवेदना कहाँ है। अपने हेडलाइन में बलिदान के लिए ‘मरे’, आतंकियों के लिए ‘लोकल यूथ’, पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराने के लिए ‘ब्लेम’ और ‘अक्यूज’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं तो पता चलता है कि आपको पाकिस्तानी तथा आतंकी विचारधारा भी बेचनी है, और अपने आप को भारतीयता का मुखौटा भी पहनना है।
इनमें से कुछ तो आदत से लाचार और लगातार एक ही तरह की बेहूदगी करने वाले लोग हैं। चाहे वो बरखा दत्त का ‘हेडमास्टर बाप’ हो, क्विंट का ‘अच्छा पिता ओसामा’ हो, या स्क्रॉल का ‘मौलवी बनने की चाह रखने वाला’ पुलवामा आतंकी अहमद डार हो, ये लोग हमेशा बताने में रहते हैं कि ऐसे घातक आतंकवादी कितने अच्छे और सुशील लोग थे।
Indian paper ‘The Quint’ had in one of its stories accepted the truth that Kulbhushan Jadhav was a spy and that some RAW officials had reservations about his appointment.
— Govt of Pakistan (@pid_gov) January 6, 2018
~Foreign Office Spokesperson Dr. Muhammad Faisal pic.twitter.com/EBPqLwGwvP
ऐसी ही मानसिक विक्षिप्तता का परिचय कोर्ट से कई बार डाँट सुन चुके वकील प्रशांत भूषण ने लिखा कि आर्मी ने कभी अहमद डार को किसी कारण से पीटा था, इसलिए वो आतंकी बन गया। साथ ही, भूषण ने यह भी लिखा कि इसी तरह की हरकतों के कारण लोग आतंकी बन जाते हैं। ये अपने आप में एक अलग लेवल की नग्नता है। अगर आर्मी वाले ने उसे पीटा भी हो, तो क्या राह चलते उसे बिना कारण के पीट दिया? क्या प्रशांत भूषण ने ये पता करने की कोशिश की कि क्या अहमद डार आर्मी पर पत्थर चला रहा था, या उनके काम में बाधा पहुँचा रहा था, या राष्ट्रविरोधी आंदोलन में साथ दे रहा था? इस पर चुप्पी है क्योंकि ट्वीट में 280 कैरेक्टर ही होते हैं, और प्रशांत भूषण जैसे वकील तो तो साँस लेने के भी पैसे माँग लेते हैं!
पिछले दिनों में आपको अधिकांश मीडिया हाउस जवानों के परिवारों से मिल कर, उनकी कहानियाँ दिखा रहा है कि अकारण हुए इस बलिदान से कितने लोग आहत हैं। लोगों तक ऐसे हृदयविदारक कहानियाँ लाई जा रहीं हैं जिसे सुनकर हमारे शरीर में सिहरन होने लगती है। टीवी पर एंकर तक अपने आप को इस भावुक क्षण में रोक नहीं पातीं, उनके आँसू छलक जाते हैं। जवानों के परिवारों के लोग बता रहे हैं कि किसी की शादी होने वाली थी, कोई फोन पर बात कर रहा था जब धमाका हुआ, किसी ने कहा था कि छुट्टी पर आते ही वो घर बनवाएगा…
ये वो लोग हैं जिनके परिवार आर्थिक रूप से उतने सक्षम नहीं हैं, उनके लिए घर का चिराग़ एक ही था। ग़ौरतलब यह भी है कि यही क्विंट, स्क्रॉल, एनडीटीवी और भूषण अपनी ज़रूरत के हिसाब से दलितों, वंचितों और पिछड़ों की बात करते हुए रुआँसे हो जाते हैं, और ये वही लोग हैं जिन्हें उसी सामाजिक स्तर के लोगों के बलिदान पर यह याद आता है कि जिस आतंकी ने 44 लोगों की जान ले ली, उसके पास एक ज़ायज कारण था!
आप कहने को स्वतंत्र हैं कि पत्रकार ने वही लिखा जो उसके माँ-बाप ने कहा। लेकिन, ऐसी बातें छापना यह नहीं बताता कि आप उस आतंकी की विचारधारा को हवा दे रहे हैं? आप कहीं न कहीं जस्टिफाय करने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर किसी स्कूली बच्चे को कोई पीटे, डाँटे, मुर्गा बना दे, तो वो तीन सौ किलो विस्फोटक लेकर सेना की गाड़ियों से टकरा दे?
या, आपको लगता है कि ख़बर पढ़ने वाले इतने मूर्ख हैं कि उन्हें लगेगा कि ये महज़ रिपोर्टिंग है? ये रिपोर्टिंग छोड़कर सब कुछ है। ये बताता है कि पत्रकारिता में संवेदनहीनता का चरम स्तर क्या है। जैसे कि संसद पर हुए हमले की बात सुनकर राजदीप जैसों की बाँछें खिल जाती हैं। जैसे कि बुरहान वनी जैसे आतंकियों के परिवार की कहानी बताकर बरखा दत्त दुनिया को यह बताना चाहती हैं कि उसका बाप हेडमास्टर था, और उसके आतंकी बनने के पीछे भारत सरकार की ट्रेनिंग शामिल थी!
चौबीसों घंटे टीवी और मीडिया साइट्स के दौर में हिट्स और क्लिक्स के लिए पत्रकार हमेशा नया एंगल ढूँढते रहते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं। लेकिन नया एंगल पाने की चाहत में विशुद्ध नीचता पर उतर आना और देश के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाली शक्तियों को ‘मानवता का पक्षधर’ बताने की कोशिश आखिर क्या कहती है?
राष्ट्रवाद को ज़हर बताने तक की कोशिश करने वाले आखिर अपनी लाइन कब खींचेंगे? क्या कुछ न्यूनतम स्तर है राष्ट्रवादी होने का? या देश की चिंता करना, उसके जवानों के बलिदान पर आहत महसूस करना, देश के समर्थन में नारे लगाना अपराध है, और कथित तौर पर आर्मी द्वारा बच्चे को डाँटने पर, मामूली सजा देने पर आरडीएक्स से भरी गाड़ी लेकर 40 जवानों की हत्या करना उचित कार्य?
ये बेहूदगी है कि उनके परिवार का भी बच्चा मर गया। शर्म आनी चाहिए ऐसे माँ और बाप को जो इस कुकृत्य को किसी भी तरीके से सही ठहराने की कोशिश कर रहा है। कम से कम इतनी हया तो रहनी चाहिए कि सीधा कह दो कि तुम और तुम्हारा परिवार भारत के ख़िलाफ़ है, न कि यह कि उसे आर्मी वाले ने एक दिन पीटा था तो उसने ऐसा कर दिया! ये किस तरह की परवरिश है?
क्या एक बलात्कारी का पिता और ये मीडिया वाले उसके पक्ष में यह कह कर खड़े हो जाएँगे कि उसे उस लड़की ने ठुकरा दिया था? क्या लड़की पर एसिड फेंकने वाले के माँ-बाप यह कह देंगे कि उनके बेटे के गुलाब को लड़की ने फेंक दिया था? बलात्कारी एक फ़्रस्ट्रेटेड व्यक्ति था, और उसके हेडमास्टर बाप ने कहा है कि उसे भी उसके बेटे से अलग रहने का गम है क्योंकि वो जेल में है? क्या ये भी ख़बर का नया एंगल है?
ऐसी हर बेहयाई के केन्द्र में ये यूजूअल सस्पैक्ट्स आते हैं, भारतीय पत्रकारिता के समुदाय विशेष, गिद्धों का गिरोह जिसे जवानों के बलिदान की चिंता नहीं, उन्हें नया और अलग एंगल चाहिए कि बाकी लोग जवानों के परिवार से मिल रहे हैं, हम आतंकियों के घरवालों से मिल लेते हैं! उसके बाद क्या? उसके बाद यह कहना कि दोनों के माँ-बाप एक ही तरह के दुःख से गुजर रहे हैं?
ऐसे संवेदनहीन रिपोर्ट और इस तरह की सोच बताती है कि ये लोग सिर्फ पत्रकारिता नहीं कर रहे, ये आतंकियों की विचारधारा के लिए मल्टीप्लायर हैं, ये उनकी बातों को, उनके जिहादी विचारों को सूक्ष्म स्तर पर, सहज तरीके से वैसे लोगों तक पहुँचाते हैं जो इन्हें पढ़ने के बाद धीरे-धीरे अपने देश की उसी सेना पर सवाल करने लगते हैं जिनकी वजह से जिहाद का ज़हर उनकी सोसायटी और शहर तक नहीं पहुँचा है।