Monday, December 23, 2024
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मोहम्मद अशफाक, शाहीन फिरदौस, फरहत खान, इफ्तखारुद्दीन… सरकारी मशीनरी में मध्ययुगीन विध्वंसक कलपुर्जे

क्या सरकारी पदों पर बैठे ‘विशेष प्रकार के वर्ग’ का यह आचरण किसी ट्रेंड विशेष को स्पष्ट नहीं करता? क्या यह भारत के इस्लामीकरण के अनेक स्तरों पर जारी प्रयासों की ही एक सामान्य झलक है, जिसमें सारी कड़ियाँ आपस में जुड़ी हुई रही हैं और राजनीति, प्रशासन, खेल, सिनेमा, साहित्य, मीडिया तक ये विस्तृत हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकलांगों को दिव्यांग कहने का नया चलन एक नई दृष्टि विकसित करने के लिए किया। उन्हीं की पहल पर मानसिक रोगियों के पुनर्वास के लिए देश के पहले राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य पुनर्वास संस्थान (NIMHR) की कल्पना की गई। तीन साल पहले 25 एकड़ भूमि पर 181 करोड़ की लागत से इसे बनाने के लिए मध्य प्रदेश में भोपाल से सटे सीहोर जिले को चुना गया। चार साल बाद यह संस्थान एक विचित्र कारण से विवाद में है, जिसकी शिकायत स्वयं प्रधानमंत्री तक गई और जाँच शुरू हुई।

विवाद के मूल में है प्रोबेशन पर यहाँ नियुक्त हुए डिप्टी रजिस्ट्रार मोहम्मद अशफाक, जिनके कारनामे केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय में चर्चा में हैं। दिल्ली से दूर केंद्र सरकार का यह संस्थान एक प्रकार से लावारिस पाकर अशफाक ने अपने ढंग से चलाना शुरू किया। उसका काम केवल कार्यालयीन प्रबंधन का था, लेकिन वह तीन कोर्स की क्लासों में नियमित पढ़ाने लगा। उसकी दिव्य दृष्टि में ‘महाभारत’ विकलांगों की महागाथा है, जिसमें धृतराष्ट्र अंधा है और रानी ने अंधत्व ओढ़ लिया है। शकुनी तो विकलांग है ही। द्रौपदी ने चीरहरण के समय प्रतिकार न करके यह बताया कि वह मंदबुद्धि है। जब अति हुई तो विद्यार्थियों ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री वीरेंद्र खटीक को एक पत्र के माध्यम से इस महाज्ञान के विषय में अवगत कराया। अशफाक की कार्यशैली पर कई प्रश्न खड़े किए और बताया कि वह एक मदरसे की तरह इस महत्वपूर्ण संस्थान को चला रहा है। उसका हुलिया तबलीगी है और कार्यालय में ही नमाज चल रही है। पीएफआई या किसी जमात से उसके संबंधों की जाँच की माँग की गई।

जाँच हुई तो उसकी बहादुरी के कई और कारनामे उजागर हुए। वह निजी सीसीटीवी कैमरों से निगरानी करता हुआ मिला। मनमाने भुगतान खुद को ही करता रहा। विद्यार्थियों ने बताया कि उसके आने के बाद विशेष प्रकार के समुदाय के लोगों की आवक आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई। ऐसा क्या हुआ कि अचानक समुदाय विशेष में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी? मध्य प्रदेश के मुख्य धारा के मीडिया में यह विषय लगभग गायब है। अशफाक को हटाया नहीं गया है। NIMHR केंद्र का निदेशक एक आईएएस अफसर होता है, जिसने कभी आकर देखा तक नहीं कि यहाँ चल क्या रहा है? अपनी नाकामी को छिपाने के लिए अब जाँच के नाम पर लीपापोती जारी है।

दो सीएम राइज स्कूल के ऐसे ही प्रकरण इन्हीं दिनों विवादों में आए। विदिशा जिले के एक स्कूल में प्राचार्य शाहीन फिरदौस ने स्कूल प्रांगण में मजार बनवा दी, जबकि वहाँ कोई दफन नहीं है। जाँच में पता चला कि स्कूल की दो बीघा जमीन पर बगल के कब्रिस्तान का कब्जा होने दिया और नपती होने पर भी फेंसिंग नहीं कराई। उसे केवल निलंबित करके बचा लिया गया। शिक्षा विभाग कब्रिस्तान के माईबापों से वक्फ बोर्ड में उलझा हुआ है। राजधानी भोपाल के ही एक सीएम राइज स्कूल के बारे में दैनिक भास्कर के रिपोर्टर अनूप दुबोलिया की फ्रंट पेज खबर है कि वर्ग विशेष के आचार्य क्लास रूम में ही नमाज फरमा रहे हैं और किसी विवाद में उलझने की बजाए ‘नेत्रहीन’ प्राचार्य का कथन है कि उसने तो कभी देखा ही नहीं! कुछ ही महीनों पहले भोपाल के सेंट्रल स्कूल में कब्र बनाकर नाजायज कब्जे का विवाद सामने चुका है।

पुरातत्व विभाग ने एक ऐतिहासिक संकुल के कुछ केयरटेकर्स को पिछले साल हटाया है। पता यह चला कि इनमें से एक पुरानी मस्जिद पर नियुक्त केयरटेकर कोई और नहीं, देवबंद से निकला एक मौलवी है जो बिला नागा पाँचों वक्त की नमाज के इंतजाम करता है। वह समझता है कि उसे इसी काम का वेतन मिलता है। इस संकुल में सवा करोड़ रुपए शासन ने कुछ वर्षों में स्वीकृत किए थे। इसमें से आधी से ज्यादा राशि केवल इसी मस्जिद परिसर को चमकाने में फूँक दी गई, जबकि वहाँ पर्यटकों की चहलपहल न के बराबर थी। यह शुभ कार्य भी ऐसे ही किसी मोहम्मद अशफाक या शाहीन फिरदौस जैसे एक सज्जन की कृपा से चलता रहा।

इंदौर के शासकीय नवीन विधि कॉलेज में फरहत खान की किताब को लेकर प्राचार्य इनामुर्रहमान, प्रो. मोजिज बेग और प्रकाशक पर केस दर्ज हुआ था। फरहत फरारी में कहीं इलाज कराते हुए पुणे में पाई गई थीं। ऐसा लगता है कि किसी ने बिना पढ़े-देखे ही किताब कॉलेज में लगा दी थी।

उत्तर प्रदेश में कमिश्नर के पद पर पहुँचे एक आईएएस अफसर का वीडियो पूरे देश ने देखा था कि वह किस तरह सरकारी बंगले पर जमाती मुखिया की तरह मीटिंग ले रहा है। मीडिया में उसका नाम इफ्तिखारुद्दीन बताया गया था। वह बड़े उत्साह से अपने गुर्गों को प्रेरित कर रहा था कि दीन के काम में किस तेजी से लगना चाहिए और किस तरह लोगों को नए रंग में रंगना चाहिए? वह धर्मांतरण के लिए प्रेरक तैयार कर रहा था। एक वीडियाे ने उसके मिशन का लोकार्पण कर दिया था। हम नहीं जानते कि लोकसेवा में आने के बाद से अपनी 25 साल की सेवाओं के दौरान वह किस-किस प्रकार से दीन की खिदमत करता रहा होगा!

निश्चित ही ऐसे मामले अन्य राज्यों में भी होंगे। जम्मू-कश्मीर में तो सरकारी परिसरों में ही पाँच वक्त की नमाजों के लिए इंतजाम कर लिए गए थे। पुलिस समेत कई विभागों के कर्मचारी राडार पर आए, जो दीन की ‘धमाकेदार खिदमत’ करने वालों के साथ मिले हुए थे।

जब मीडिया में विवाद प्रकाशित होते हैं, तब संभवत: इन पर समग्र दृष्टि नहीं जाती। वह हर दिन होने वाली सड़क दुर्घटनाओं जैसी सामान्य कवरेज लगती है। लेकिन दुर्घटनाएँ यह तो बताती ही हैं कि देश की सड़कें चरमराई हुई हैं। यातायात प्रबंधन कबाड़ हो चुका है। क्या सरकारी पदों पर बैठे ‘विशेष प्रकार के वर्ग’ का यह आचरण किसी ट्रेंड विशेष को स्पष्ट नहीं करता? क्या यह भारत के इस्लामीकरण के अनेक स्तरों पर जारी प्रयासों की ही एक सामान्य झलक है, जिसमें सारी कड़ियाँ आपस में जुड़ी हुई रही हैं और राजनीति, प्रशासन, खेल, सिनेमा, साहित्य, मीडिया तक ये विस्तृत हैं। क्या जैश और लश्कर समेत सारी जमातें, हुर्रियतें और लीगें मिलकर बचे-खुचे भारत को खरोंचने-खींचने-खसोटने में लगे हैं? क्या ऐसे लोककसेवक सेवा के योग्य हैं?

मोहम्मद अशफाक, शाहीन फिरदौस, फरहत खान, इफ्तिखारुद्दीन या इनामुर्रहमान को यह भान भी नहीं होगा कि वे अपने आचरण से स्वयं को विध्वंसक विचार की मध्ययुगीन मेगा मशीन के गंदे कलपुर्जे बनाए हुए हैं!

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विजय मनोहर तिवारी
विजय मनोहर तिवारी
25 साल मीडिया में रहे। प्रिंट और टीवी दोनों में काम। 11 किताबें प्रकाशित। पांच साल तक भारत की लगातार आठ यात्राएँ की हैं। वर्तमान में भारत में इस्लाम के फैलाव पर शोध और लेखन जारी। गरुड़ प्रकाशन से पहला भाग छपा है।

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