क्या भीड़ का कोई मजहब नहीं होता? क्या भीड़ को कपड़ों से नहीं पहचाना जा सकता? क्या भीड़ में शामिल लोगों के इरादे समान नहीं होते? हम ये सवाल इसीलिए पूछ रहे हैं क्योंकि राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में हिन्दुओं की शोभा यात्रा पर हुए हमले के 18 मुस्लिम आरोपितों को राजस्थान उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी है। इस दौरान हाईकोर्ट के जज फरजंद अली ने कहा कि भीड़ का कोई मजहब नहीं होता, कई बार निर्दोष फँस जाते हैं और असली अपराधी भाग निकलते हैं।
इस पर बहस ज़रूरी है, क्योंकि हमला हिन्दुओं की शोभा यात्रा पर हुआ था और हमलावर इस्लामी कट्टरपंथी थे। अगर हम दिल्ली से लेकर पश्चिम बंगाल तक के पैटर्न की बात करें तो आरोपित सिर्फ तमाशा देखने के लिए घटनास्थल के पास आए होंगे, ऐसे तो नहीं लगता। खैर, जज साहब का कहना है कि कई लोग उत्सुकतावश तो कई डर से भी घटना को देखने जाते हैं। जस्टिस फरजंद अली ने कह दिया कि आरोपितों को जेल में रखे जाने का कोई कारण नहीं है। मामले को समझने से पहले जानिए चारभुजा नाथ के बारे में, जिनकी यात्रा निकाली जा रही थी।
मेवाड़-मारवाड़ के आराध्य चारभुजा नाथ, जिनकी निकलती है यात्रा
मेवाड़ और मारवाड़ के आराध्य देवता हैं – चारभुजा नाथ, जिनका मुख्य मंदिर कुम्भलगढ़ तहसील के गढ़बोर गाँव में स्थित है। राजस्थान के राजसमंद में स्थित ये मंदिर ऐतिहासिक है, प्राचीन है। इसकी कथा महाभारत तक जाती है। सन् 1444 में राजा गंग सिंह ने यहाँ भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। इस गाँव का नाम गढ़बोर इसीलिए है, क्योंकि यहाँ ‘बोर’ राजपूतों ने मंदिर का निर्माण कार्य करवाया। पांडवों ने अपने अंतिम दिनों में हिमालय की यात्रा से पहले यहाँ दर्शन किया था, ऐसी भी मान्यता है।
भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में ‘देवझूलनी’ एकादशी के दिन यहाँ भव्य मेला लगता है, जहाँ दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। सोने-चाँदी की पालकी में ठाकुर जी को बिठा कर उनकी यात्रा निकाली जाती है। गाजे-बाजे और रंग-गुलाल के साथ उत्सव का माहौल होता है। नृत्य-संगीत और श्रृंगार-इत्र वाला माहौल रहता है। 1000 गुर्जर परिवार इस मंदिर के पुजारी हैं। हर अमावस्या पुजारी बदलता है। इस दौरान पुजारी को कठिन तप एवं साधना के नियमों का पालन करना पड़ता है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से लेकर राजस्थान की मुख्यमंत्री रहीं वसुंधरा राजे तक यहाँ दर्शन-पूजन कर चुकी हैं। भगवान श्रीकृष्ण के चतुर्भज स्वरूप को समर्पित इस मंदिर में जब किसी पुजारी की पाली आती है तो वो सगे-संबंधियों की मौत होने के बाद भी अपनी अवधि पूरा होने तक नहीं उठ सकते। कइयों की बारी 48-50 साल बाद आती है, यानी जीवन में एक मौका। इस दौरान उन्हें हर प्रकार के व्यसन से दूर मंदिर में ही रहना पड़ता है।
इससे इतना तो आप समझ ही गए होंगे कि ये मंदिर न सिर्फ वैष्णव, बल्कि पूरे हिन्दू समाज, खासकर राजस्थान के हिन्दू समाज के लिए बड़ी महत्ता रखता है। मंदिर में कई जगह स्वर्ण-पत्र जड़े हुए हैं, सोने के दरवाजे में चाँदी के पत्र जड़े हुए हैं। मंदिर के पास एक छतरी में गरुड़ जी की 5 मूर्तियाँ हैं। मंदिर के सामने विशाल नक्कारखाना है। राजस्थान में अन्य स्थानों पर भी समय-समय पर चारभुजा नाथ की यात्रा निकाली जाती है, जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। चित्तौड़गढ़ में उनकी ही यात्रा निकाली जा रही थी, जिस पर हमला हुआ।
चित्तौड़गढ़ में हिन्दुओं की शोभा यात्रा पर हमला
आइए, अब जानते हैं कि चित्तौड़गढ़ में हुआ क्या था। घटना मंगलवार (19 मार्च, 2024) की है। चारभुजा नाथ यात्रा पर हमला किया गया, जिसमें श्याम छिपा नामक एक व्यक्ति की मौत हो गई। मौके पर ही उनकी दुकान थी। घटना राशमी थाना क्षेत्र के पहुना गाँव की है, जहाँ दशमी के अवसर पर चारभुजा नाथ की यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान ढोल बजाते हुए ग्रामीण गाँव के विभिन्न हिस्सों से होकर निकलते हैं। लेकिन, कस्बे के मुख्य बाजार स्थित दरगाह पर पहुँचते ही शोभा यात्रा पर हमला हो गया।
इस घटना में नवीन जैन समेत कई लोग घायल भी हुए थे। वहीं 55 वर्षीय श्याम छिपा को भीलवाड़ा रेफर किया गया लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका था। दरगाह के सामने से जैसे ही शोभा यात्रा निकली, वहाँ मौजूद मुस्लिम इससे आपत्ति जताने लगे। भले ही सड़क सार्वजनिक संपत्ति हो, ये कई जगह देखने को मिलता है कि इस्लामी संरचनाओं के सामने से शोभा यात्रा निकलते ही हमले होते हैं। चित्तौड़गढ़ में भी पत्थरबाजी शुरू हो गई। एक दर्जन से भी अधिक लोग घायल हुए, पुलिस को स्थिति सँभालनी पड़ी।
बड़ी खबर: चारभुजानाथ की दशमी शोभा यात्रा पर इस्लामवादियों के हमले के बाद राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में अब बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक अशांति फैल गई है।
— हम लोग We The People 🇮🇳 (@ajaychauhan41) March 20, 2024
ऐसी खबरें हैं कि एक व्यक्ति की मौत हो गई है. आगजनी और पथराव की भी खबरें हैं. कुल 8-10 लोग घायल हुए हैं.
विवरण की प्रतीक्षा है.… pic.twitter.com/azmmHvzGJr
इसी क्रम में पुलिस ने 18 आरोपितों को चिह्नित करते हुए उन्हें गिरफ्तार किया था। न सिर्फ गाली-गलौज और पत्थरबाजी हुई, बल्कि श्रद्धालुओं को पीटा भी गया और आगजनी भी की गई। गाड़ियों और दुकानों में आग लगा दी गई। रात के समय हुए इस हमले का वीडियो भी सोशल मीडिया पर सामने आया था। वीडियो में इस्लामी टोपी पहने लोग हंगामा करते हुए स्पष्ट दिख रहे हैं। उस समय रमजान का पाक महीना चल रहा था। राजस्थान में सरकार बदल गई लेकिन इस्लामी कट्टरपंथियों का हौसला वही रहा।
जज फरजंद अली ने 18 आरोपितों को जमानत देते हुए क्या कहा
24 वर्षीय बाबू मोहम्मद सहित अन्य आरोपितों ने हाईकोर्ट का रुख किया था, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका ख़ारिज कर दी थी। वहीं इस मामले में राजस्थान सरकार समेत पीड़ित हिन्दुओं को भी पक्षकार बनाया गया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उनका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं है और उन्हें झूठा फँसाया गया है। इन्होंने दावा किया कि मौत का कारण हार्ट अटैक था और मृतक के शरीर में कोई जख्म नहीं था। साथ ही इस मामले में SC/ST एक्ट हटाने की अपील भी की गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ‘लंबे समय’ से जेल में हैं। ‘लंबे समय’, मतलब 2 महीना। जबकि पुलिस का स्पष्ट कहना था कि पूर्व से रची हुई साजिश के तहत हिन्दुओं के शांतिपूर्ण शोभा यात्रा पर हमला किया गया, वो भी खतरनाक हथियारों के साथ। जज साहब ने ये तक कह दिया कि इस हिंसा में कौन-कौन लोग शामिल थे इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। यानी, हमला दरगाह के सामने हुआ और पीड़ित हिन्दू श्रद्धालु थे, फिर भी जज साहब को शक था कि कौन लोग इसमें शामिल थे।
जज फरजंद अली ने कहा कि भीड़ में निर्दोषों और हमलावरों को अलग-अलग चिह्नित करना बड़ा मुश्किल है, अपराधी भाग जाते हैं और निर्दोष फँस जाते हैं। आरोपितों के दोषी होने से लेकर उन पर SC/ST एक्ट के तहत मामला चलाने तक, अदालत हर मामले में संशय में दिखी। चूँकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में घुटने पर जख्म की बात है, ऐसे में मीलॉर्ड को ये भी नहीं लगता कि मौत हमले के कारण हुई है। उन्हें ये हार्ट अटैक का संभावित मामला लगता है क्योंकि खून नहीं निकल रहा था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा गया कि आरोपित अगर सुनवाई में नियमित रूप से उपस्थित रहते हैं तो ये अदालत के ऊपर है कि वो उन्हें अपने परिवार के साथ खाने, सोने और रहने की अनुमति देती है या नहीं। जज साहब ने इसके बाद निजी मुचलकों पर इन्हें जमानत दे दी, निचली अदालत ने फैसला पलट दिया। भारत में न्याय कुछ इसी तरह होता है। भीड़ का नहीं, हमलावरों का मजहब देखा जाता है। हाँ, अगर नूपुर शर्मा हों आरोपित तो सुप्रीम कोर्ट तक से कड़ी टिप्पणी की जाती है।
मीलॉर्डस, आपको कितने उदाहरण चाहिए ‘भीड़ का मजहब’ होने के?
चित्तौड़गढ़ में चारभुजा नाथ शोभा यात्रा निकाल रहे हिन्दुओं पर हमला करने वाले भीड़, जो दरगाह से निकली, उसका मजहब था। आइए, राजस्थान की ही बात कर लेते हैं अधिक दूर जाने से पहले। राजस्थान के करौली में अप्रैल 2022 में दंगे भड़के थे। नव-संवत्सर पर बाइक रैली आयोजित की गई थी, जिस पर हमला हुआ। हटवारा बाजार में जिस भीड़ ने इस रैली पर पत्थरबाजी की, उनका मजहब था। इसके बाद गाड़ियों, दुकानों और घरों में आगजनी हुई थी।
इसके अगले ही महीने जोधपुर में परशुराम जयंती के मौके पर शोभा यात्रा निकली और जालोरी गेट चौराहे पर झंडा लगाया गया, उस दौरान भी जिस भीड़ ने हिन्दू युवक के साथ मारपीट की और झंडा लगाने का विरोध किया, उस भीड़ का मजहब था। उससे 1 वर्ष पहले, यानी जुलाई 2021 में झालावाड़ में हिंसा भड़की, तब भी भीड़ का मजहब था। टोंक में अक्टूबर 2019 में दशहरा की रैली पर मालपुरा कस्बे में जिन लोगों का पथराव किया, उनका भी मजहब था।
जज साहब को समझना चाहिए कि पिछले 1400 वर्षों से हिंसक भीड़ का मजहब है। ज्यादा पीछे क्यों जाना, इसी साल रामनवमी के दौरान अप्रैल में जगह-जगह हिन्दुओं की शोभा यात्राओं पर हमले हुए। ये हमले करने वाले जैन, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी या फिर यहूदी नहीं थे। लेकिन, इन भीड़ का मजहब था। मुर्शिदाबाद में जहाँ हमले हुए, वहाँ दो तिहाई जनसंख्या जिनकी है उनका एक खास मजहब है। पिछले साल भी कुछ ऐसा ही हुआ था, हर साल होता है।
मार्च 2023 में उत्तर दिनाजपुर के दालखोला में रामनवमी की शोभा यात्रा पर हुए हमले के मामले में NIA को जाँच सौंपनी पड़ी। फरवरी 2024 में जिन 16 लोगों को NIA ने गिरफ्तार किया, उनका भी मजहब था। दिल्ली में फरवरी 2020 में जो दंगे हुए थे, उस दौरान जिस भीड़ ने 51 वर्षीय विनोद कुमार पर ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का नारा लगाते हुए उन्हें मार डाला, उस भीड़ का भी मजहब था। उनके बेटे मोनू को भी गंभीर चोटें आई थीं। वो मोहल्ला आज भी जिस डर में जीता है, उसके पीछे एक भीड़ का खौफ है और उस भीड़ का मजहब है।
CAA के खिलाफ देश भर में जो दंगे हुए, हर एक दंगे में भीड़ का मजहब था। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा था कि जो लोग आग लगा रहे हैं और TV पर उनके जो दृश्य आ रहे हैं, ये आग लगाने वाले कौन हैं ये उनके कपड़ों से ही पता चल जाता है। नूपुर शर्मा के बयान (जो उन्होंने हदीथ से उद्धरण दिया था) को पैगंबर मुहम्मद का अपमान बता कर पश्चिम बंगाल के नदिया में रेलवे स्टेशन को क्षतिग्रस्त करने वाली भीड़ का भी मजहब था। लेकिन, जज साहब को ये सब नहीं दिखता।
इस्लामी कट्टरपंथी विचारधारा को लेकर न्यायपालिका नरम क्यों?
नूपुर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट के जजों ने पूरे देश में आग लगाने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया, जबकि ये काम वही मजहब वाली भीड़ कर रही थी। उसी मजहब के लोगों ने उदयपुर में कन्हैया लाल तेली और अमरावती में उमेश कोल्हे का गला रेता। उसी भीड़ ने नरसिंहानंद सरस्वती के खिलाफ भी ‘सर तन से जुदा’ का पोस्टर लेकर सड़कों को जाम किया। इसी भीड़ को हमने पाकिस्तान में मंदिरों को ध्वस्त करते, लंदन की सड़कों पर आतंकी संगठन हमास का समर्थन करते और बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के पंडालों पर हमला करते हुए देखा है।
काशी विश्वनाथ मंदिर, अयोध्या का राम मंदिर और मथुरा के श्रीकृष्ण मंदिर को सैकड़ों वर्ष पूर्व ध्वस्त किए जाने के पीछे यही मानसिकता थी, मजहब वाली। आज जो ‘लव जिहाद’ की घटनाएँ हो रही हैं, उसके पीछे भी वही मानसिकता है। अगर न्यायपालिका ने समय रहते इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ कड़ा रख नहीं अपनाया तो इसका खामियाजा उन्हें भी और पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। जजों को तो आरोपितों को जमानत देने की बजाय उल्टा सरकारों को आदेश देना चाहिए कि वो हिन्दू पर्व-त्योहारों पर सुरक्षा मुहैया कराए।
हिन्दू धर्म-ग्रंथों का अपमान करने वालों पर कार्रवाई नहीं होती और दंगे करने वालों को जमानत मिल जाती है, इससे उस मजहब वाली भीड़ को प्रोत्साहन मिलता है। ISIS भी इसी भीड़ की तरह ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का नारा लगाते हुए गला रेतता है और वीडियो बनाता है। साल बदलते हैं, स्थान बदलता है – मानसिकता वही रहती है। जब क्रिया की प्रतिक्रिया होती है या फिर आत्मरक्षा में बल प्रयोग करता है पीड़ित पक्ष, तो इसे ‘हिन्दू आतंकवाद’ बता कर प्रचारित किया जाता है।
कौन हैं राजस्थान हाईकोर्ट के जज फरजंद अली
राजस्थान हाईकोर्ट के जज फरजंद अली सितंबर 1992 से लॉ की प्रैक्टिस बतौर वकील करते रहे हैं। उन्हें अक्टूबर 2021 में राजस्थान उच्च न्यायालय का जज नियुक्त किया गया था। कॉन्ग्रेस सरकार ने उन्हें 2019 में अपना सरकारी जज बनाया था। जज नियुक्त होने के बाद उन्होंने अजमेर स्थित ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जियारत की थी। नवंबर 2023 में कॉन्ग्रेस उम्मीदवार मेवाराम जैन को ED ने समन भेजा था तो उन्होंने इस इस समन को रद्द किया था।
इतना ही नहीं, जज फरजंद अली ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन SFJ (सिख फॉर जस्टिस) के 2 खालिस्तानियों को जमानत भी दे दी थी। जजों की नियुक्ति जज ही करते हैं, उनकी नियुक्ति भी तत्कालीन CJI रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले पैनल ने की थी। न्यायपालिका में सुधार समय की ज़रूरत है, समय-समय पर सरकारों के प्रयासों पर न्यायपालिका ही अड़ंगा लगाती आई है। कॉलेजियम सिस्टम विवादित है, लेकिन चल रहा है। यही स्थिति रही तो कल को देश के सारे दंगाई सड़क पर खुला घूम रहे होंगे।