महाराष्ट्र विधानसभा में रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी के खिलाफ़ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाया गया था। अब इस मुद्दे पर न्यायपालिका और विधायिका के टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। महाराष्ट्र के दोनों सदनों में पारित किए गए एक प्रस्ताव में कहा गया है कि अर्णब गोस्वामी प्रकरण में सदन हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी नोटिस का न तो जवाब देगा और न ही संज्ञान लेगा।
यह प्रस्ताव शीत सत्र के अंतिम दिन मंगलवार (15 दिसंबर 2020) को पारित हुआ। दोनों प्रस्तावों के मुताबिक़ न्यायालय के नोटिस का जवाब देने का मतलब है कि न्यायपालिका विधायिका पर नज़र रख रहा है। यह संवैधानिक प्रक्रिया के खिलाफ़ होगा। विधानसभा स्पीकर नाना पटोले ने इस प्रस्ताव के पारित होने पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस और समन जारी किया है। विधानसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर नरहरि जिरवाल इसका जवाब नहीं देंगे।
विधान परिषद में भी प्रस्ताव एकमत से पारित हुआ। विधान परिषद के अध्यक्ष रामराजे नाइक निंबलकर ने प्रस्ताव के पारित होने का ऐलान किया। इस सदन में भी यही कहा गया कि अगर अर्णब गोस्वामी द्वारा विशेषाधिकार उल्लंघन की कार्रवाई को न्यायपालिका में चुनौती दी जाती है तो सदन हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के नोटिस का जवाब नहीं देगा।
इसके अलावा विधानसभा स्पीकर नाना पटोले का यह भी कहना था कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का दायरा तय है। सभी को इस दायरे का ध्यान रखते हुए ही आगे बढ़ना चाहिए, इनमें से कोई भी एक-दूसरे की कार्रवाई में दखल नहीं दे सकते हैं। वहीं विधान परिषद अध्यक्ष निंबलकर के मुताबिक़ विधायिका या प्रशासनिक अधिकारी न्यायालय के नोटिस का जवाब देता है तो इसका मतलब यह हुआ कि वह न्यायपालिका को विधायिका की कार्यप्रणाली में दखल देने का अधिकार दे रहे हैं। यह संविधान के मूलभूत ढाँचे के खिलाफ़ है।
प्रस्ताव को लेकर दोनों ही सदनों में किसी भी तरह का विरोध नहीं हुआ। हालाँकि भाजपा विधायक राहुल नरवरेकर ने कहा कि यह प्रस्ताव सामाजिक और राजनीतिक लिहाज़ से नकारात्मक उदाहरण पेश करेगा। शिवसेना के प्रताप सरनाइक ने 8 सितंबर को अर्णब गोस्वामी के खिलाफ यह प्रस्ताव पेश किया था। उन्होंने अर्णब पर आरोप लगाते हुए कहा था कि वह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी मुखिया के लिए अभद्र भाषा का उपयोग करते हैं। सरनाइक के मुताबिक़ अर्णब अपने टीवी शो में मंत्रियों और सांसदों का भी अपमान करते हैं। इस संबंध में अर्णब गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था, इसके बाद 26 नवंबर को विधानसभा स्पीकर को नोटिस भेज कर जवाब माँगा गया था।