Monday, December 23, 2024
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बिहार में बीजेपी का CM, नीतीश NDA के संयोजक… फाॅर्मूला तो है तैयार, पर सहमति बनने की संभावना कितनी

अचानक से जिस तरह पटना से दिल्ली तक का मौसम एक जैसा होता दिख रहा है, उससे लालू यादव के शब्दों में कहें तो लगता नहीं कि नीतीश कुमार इस बार नया चमड़ा धारण करने के लिए 2 साल की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। केंचुल छोड़ने में वे अधिक से अधिक दो दिनों का समय लें।

अल्ताफ राजा के एक लोकप्रिय गाने के बोल कुछ इस तरह हैं,
जब तुम से इत्तेफ़ाकन मेरी नज़र मिली थी
अब याद आ रहा है शायद वो जनवरी थी
तुम यूं मिलीं दुबारा फिर माह-ए-फ़रवरी में
जैसे कि हमसफ़र हो तुम राह-ए-ज़िंदगी में

वैसे तो इसे आशिकों का गाना माना जाता है। लेकिन बिहार के लिए लग रहे राजनीतिक कयासों से ऐसा लगता है कि इस ‘अमर गीत’ की रचना किसी ऐसे ही दिन के लिए की गई होगी।

पटना से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक गलियारे में हलचल मची हुई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बार फिर से पाला बदलने की अटकलें जोरों पर है। सूत्र तरह-तरह के शिगूफे छोड़ रहे हैं। ऐसे ही एक शिगूफों में से एक यह है कि इस बार जदयू के एनडीए में लौटने के बाद बिहार का मुख्यमंत्री बीजेपी कोटे से होगा। फिलहाल नीतीश कुमार एनडीए की संयोजक की भूमिका में आ जाएँगे। जिस सूत्र ने यह जानकारी दी है उसने ऑपइंडिया को यह भी बताया है कि इस पर नीतीश कुमार और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच सहमति बननी शेष है। इस पर अंतिम निर्णय दिल्ली में होगा।

जब राजनीति में सारे पक्ष ‘कोई मतभेद नहीं है, सब कुछ ठीक है’ जैसा रटा-रटाया जवाब देने लगे तो सूत्र बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। क्योंकि सूत्र से तार हाथ लगने के कुछ घंटों के बाद यह खबर सामने आती है कि नीतीश कुमार पटना से दिल्ली के लिए उड़ान भर चुके हैं। उसी विमान से बीजेपी के बिहार अध्यक्ष सम्राट चैधरी सहित पार्टी के अन्य नेता भी दिल्ली आ रहे हैं। बिहार से आने वाले कैबिनेट मंत्रियों को भी दिल्ली तलब कर लिया गया है।

बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच कोई खिचड़ी पकती है या नहीं? खिचड़ी किन शर्तों पर पकती है? इन सवालों के जवाब समय के गर्भ में हैं। लेकिन पिछले कई दिनों से ऐसे संकेत दिए जा रहे हैं जिनसे यह तो पता चलता ही है कि बिहार की सत्ता में बदलाव की बयार यूँ ही नहीं बही है।

‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर निकले काॅन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की पूर्णिया रैली से नीतीश कुमार के कन्नी काटने की खबर भले अब आई हो पर INDI गठबंधन से उनकी नाराजगी की खबरें काफी पहले से चल रही हैं। शुरुआत में कहा गया कि विपक्षी गठबंधन का संयोजक नहीं बनाए जाने से नीतीश कुमार नाराज हैं। हालाँकि बाद में यह प्रस्ताव आया पर नीतीश ने उसे ठुकरा दिया। इसके बाद बिहार में अचानक से जदयू लोकसभा सीटों की संख्या को लेकर मुखर हो गई। बार-बार राजद, काॅन्ग्रेस सहित अन्य साझेदारों को यह बताने की कोशिश की गई कि JDU अपने हिस्से की सीटें कम नहीं करेगी।

फिर एक इंटरव्यू में जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से नीतीश कुमार को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने दरवाजे खुले होने के संकेत दिए। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि अगस्त 2022 में जब एनडीए को छोड़ नीतीश कुमार राजद के साथ गए थे, उसके बाद इस तरह के सवाल कई बार बीजेपी नेताओं से पूछे गए थे। लेकिन जवाब में वे दोबारा नीतीश के साथ किसी तरह के गठबंधन को खारिज करते रहे।

इसके बाद से नीतीश कुमार की घर वापसी को लेकर संकेतों का सिलसिला चल पड़ा। रामचरितमानस को लेकर लगातार विवादित बयान देने वाले राजद कोटे से मंत्री प्रोफेसर चंद्रशेखर का विभाग बदला गया। कैबिनेट बैठक मिनटों में समाप्त की गई। लालू यादव के कृपा पात्र माने जाने वाले कई अधिकारी इधर से उधर किए गए। कर्पूरी ठाकुर को ‘भारत रत्न’ दिए जाने का श्रेय नीतीश कुमार के हिस्से में भी जाए इसका ख्याल रखा गया। नीतीश कुमार ने भी ट्वीट डिलीट कर इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देने में कंजूसी नहीं की।

कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने यह कहकर कि कुछ लोग राजनीति में केवल अपने परिवार को आगे बढ़ाते हैं घर वापसी की कयासों को और बल दिया। फिर लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने चंद मिनटों के भीतर तीन ऐसे ट्वीट किए जिन्हें नीतीश कुमार पर निशाना माना गया। हालाँकि बाद में रोहिणी ने ये ट्वीट डिलीट कर दिए। लेकिन इसने राजद और जदयू की निकाह के दिन पूरे होने के संकेत दे दिए। बता दिया कि तलाक तलाक तलाक कभी भी मुमकिन है।

यही कारण है कि भले बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि नीतीश कुमार की घर वापसी की शर्ते अभी फाइनल नहीं हुई हैं, लेकिन राजद की तरफ से खुद लालू प्रसाद यादव ने मोर्चा सँभाल लिया है। उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पार्टी नेताओं के साथ बैठकों में व्यस्त हैं, वहीं लालू के लिए कहा जा रहा है कि वे बिना नीतीश कुमार के भी सरकार बनाने की संभावनाओं को टटोल रहे हैं।

बिहार विधानसभा की जो मौजूदा स्थिति है उसमें राजद, काॅन्ग्रेस, वाम दल और निर्दलीय मिलाकर 115 विधायक होते हैं। बहुमत का आँकड़ा 122 है। यदि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के इकलौते विधायक का समर्थन भी राजद को मिल जाए तो भी उसे सरकार बनाने के लिए कम से कम 6 विधायकों का जुगाड़ करना ही होगा। दूसरी ओर सहमति बनने पर बीजेपी, जदयू और जीतनराम मांझी की पार्टी HUM 127 विधायकों के साथ आसानी से सरकार बना सकती है।

जाहिर है कि बिहार के सारे समीकरणों के केंद्र में अभी भी नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू ही है। इसी हुनर ने उन्हें डेढ़ दशक से ज्यादा समय से बिहार की राजनीति में प्रासंगिक बना रखा। इसी हुनर के कारण 2020 विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद बड़ी पार्टी होने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार कर लिया था। लेकिन सूत्रों का कहना है कि इस बार बीजेपी शायद ही राज्य में उनकी सदारत में सरकार कबूल करने को तैयार होगी।

पर नीतीश कुमार की सियासत को समझना इतना भी आसान नहीं है। खुद लालू यादव कहते रहे हैं कि नीतीश कुमार के पेट में दाँत है। 2017 में जब नीतीश राजद को छोड़ एनडीए में चले गए थे तब लालू यादव ने कहा था, “नीतीश साँप है। जैसे साँप केंचुल छोड़ता है, वैसे ही नीतीश भी केंचुल छोड़ता है और हर 2 साल में साँप की तरह नया चमड़ा धारण कर लेता है। किसी को शक?”

अचानक से जिस तरह पटना से दिल्ली तक का मौसम एक जैसा होता दिख रहा है, उससे लालू यादव के शब्दों में कहें तो लगता नहीं कि नीतीश कुमार इस बार नया चमड़ा धारण करने के लिए 2 साल की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। केंचुल छोड़ने में वे अधिक से अधिक दो दिनों का समय लें। किसी को शक?

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अजीत झा
अजीत झा
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