बसपा सुप्रीमो मायावती का भीम-मीम की सियासत से विश्वास उठ गया है। दलितों और वंचितों का दावा करने वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने आगे से मुस्लिम उम्मीदवारों को सोच समझ कर मौक़ा देने की बात कही है। उत्तर प्रदेश के भीतर बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों की हार को देख कर साफ़ हो गया है कि यह भीम-मीम का फॉर्मूला तभी सफल है जब इसमें मुस्लिम वोटरों को अपना फायदा दिखता हो। इस बार उन्हें बसपा से फायदा नहीं दिखा, इसलिए बसपा के अपने समाज के उम्मीदवारों को भी किनारे कर दिया गया।
इस बात को बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी माना है। बसपा सुप्रीमो ने हताशाजनक परिणाम के बाद एक पत्र जारी किया गया है। इसमें का कहा गया है कि बसपा ने इस चुनाव में मुस्लिमों को काफी मौका दिया लेकिन मुस्लिम समाज उन्हें समझ नहीं पाया, ऐसे में वह पार्टी आगे सोच-समझ कर उनकी राजनीतिक भागीदारी पर निर्णय लेगी। यह एक तरह से बसपा का मुस्लिम राजनीति से दुराव का संकेत है, जिसको पत्र में स्पष्ट रूप से प्रकट किया गया है।
05-06-2024-BSP PRESS NOTE- LOK SABHA POLL RESULT REACTION pic.twitter.com/iUYELFPnCM
— Mayawati (@Mayawati) June 5, 2024
बसपा ने सबसे अधिक मुस्लिम उतारे, सभी हारे
बसपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश के भीतर सबसे अधिक मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे। बसपा ने उत्तर प्रदेश में कई मुस्लिम बहुत और कई सामान्य सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे। बसपा ने लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश के भीतर 19 मुस्लिमों को टिकट दिया था। उसने देश भर में 35 मुस्लिमों को टिकट दिया था। उसके सभी मुस्लिम उम्मीदवार हार गए हैं। उत्तर प्रदेश में उसके कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार चुनावी लड़ाई में दूसरे नम्बर पर तक नहीं आ सके हैं।
कई सीटों पर उसके उम्मीदवारों को 1 लाख से भी कम वोट हासिल हुए हैं। इसके बाद ही बसपा सुप्रीमो का यह पत्र सामने आया है जिसमें उन्होंने मुस्लिम समाज के प्रति अपने गिले शिकवे कहे हैं। उनके इस पत्र से साफ़ है कि बसपा अब राजनीति का ट्रैक बदलेगी और उसमें मुस्लिमों का हिस्सा पहले से कम होगा।
मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर भी हारे बसपा के उम्मीदवार
बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार उन सीटों पर भी हार गए हैं जिन्हें बसपा के प्रभाव वाली माना जाता है। उत्तर प्रदेश के भीतर संभल, रामपुर, मुरादाबाद, सहारनपुर, अमरोहा, आजमगढ़, और पीलीभीत जैसी मुस्लिम प्रभाव वाली सीटों पर भी मुस्लिम उम्मीदवार दिए थे। यहाँ भी इसके कोई उम्मीदवार नहीं जीत सके। इन सभी सीटों पर बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार तीसरे नम्बर पर रहे। वह कहीं टक्कर में भी नहीं आ सके।
पीलीभीत, सहारनपुर और अमरोहा छोड़ का कोई बाकी सारी मुस्लिम प्रभाव वाली सीटें सपा के खाते में गईं, जो दिखाता है कि मुस्लिमों ने इस चुनाव में काफी रणनीतिक तरीके से सपा को अपना वोट दिया। इसके अलावा बसपा के मुस्लिम उम्मीदवार वहाँ भी चुनाव नहीं जीत पाए जहाँ उनके सामने सपा ने हिन्दू उम्मीदवार दिए। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुरादाबाद की सीट है। यहाँ से सपा ने रूचि वीरा को टिकट दिया जबकि बसपा ने मोहम्मद इरफ़ान को, इस चुनावी लड़ाई में रूचि वीरा जीत गईं जबकि इरफ़ान बुरी तरह से हारे।
यह दिखाता है कि बसपा के भीम-मीम फॉर्मूला को नकारते हुए मुस्लिमों ने अपने पुराने मुस्लिम-यादव फॉर्मूला को बढ़त दिलाई। बसपा भी इस बात को समझ गई है कि दलितों को मुस्लिमों के साथ जोड़ने की सोशल इंजीनियरिंग उसके काम नहीं आने वाली और स्पष्ट रूप से उसने आगे से ऐसा करने से मना भी कर दिया है।