जब से महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कॉन्ग्रेस गठबंधन की सरकार बनी है, सालों पुराने एक सपने के पूरा होने पर ग्रहण लगता नजर आ रहा है। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार ने अब तक जो संकेत दिए हैं उससे बुलेट ट्रेन परियोजना के अधर में लटकने की आशंका बढ़ गई है। भले ही मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन का परिचालन शुरू करने की परियोजना की नींव मोदी सरकार ने डाली हो, लेकिन इस सपने को पंख तब लगे थे जब मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए-1 सरकार चल रही थी। उस समय राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव रेल मंत्री हुआ करते थे।
वही लालू जो आजकल चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं। रेल मंत्री रहते लालू जापान की यात्रा पर गए थे। बुलेट ट्रेन की सवारी की। इतने प्रभावित हुए कि जनवरी 2009 में ऐलान किया कि देश में हाई स्पीड ट्रेनों के परिचालन पर सरकार गंभीरता से पहल कर रही है। उन्होंने कहा था, “वह दिन दूर नहीं जब देश में बुलेट ट्रेन दौड़ेगी। कुछ मार्गों पर बुलेट ट्रेन सेवा शुरू करने के लिए वैश्विक स्तर पर निविदाएँ आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।”
उस जमाने में भी लालू आज ही की तरह कॉन्ग्रेस के भरोसेमंद साथी हुआ करते थे। उस समय भी कॉन्ग्रेस की कमान उन्हीं सोनिया गॉंधी के हाथों में थी जिनके पास आज है। अंतर केवल इतना ही है कि उस समय सोनिया पर्दे के पीछे से सरकार चला रही थी और आज विपक्ष में बैठी हैं। लालू ने केवल बुलेट ट्रेन की ही बात नहीं की थी। इसके संभावित मार्गों में मुंबई-अहमदाबाद रूट का जिक्र भी किया था। उन्होंने कहा था, “हम मुंबई-अहमदाबाद, दिल्ली-चंडीगढ़ और दिल्ली-पटना जैसे कुछ रूटों पर इस ट्रेन के परिचालन की संभावनाओं की पड़ताल कर रहे हैं।” बुलेट ट्रेन में सफर के अपने अनुभवों को लेकर उन्होंने कहा था, “यह बहुत अच्छा था। जापान में बुलेट ट्रेन का परिचालन बेहतरीन तरीके से हो रहा है।”
फरवरी में 2009-10 का रेल बजट पेश करते हुए लालू ने फिर से बुलेट ट्रेन का जिक्र किया। उन्होंने सदन में कहा, “मैंने जापान, जर्मनी और फ्रांस में 300 से 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली ट्रेनों को देखा है। 2007-08 के बजट में मैंने घोषणा की थी कि आवश्यकता, व्यवहारिकता को ध्यान में रख कर देश के विभिन्न इलाकों में बुलेट ट्रेन का परिचालन शुरू करने के लिए अध्ययन किया जाएगा। दिल्ली-अमृतसर, अहमदाबाद-मुंबई-पुणे, हैदराबाद-विजयवाड़ा-चेन्न्ई, चेन्न्ई- बेंगलुरु-एर्नाकुलम और हावड़ा-हल्दिया के बीच बुलेट ट्रेन परिचालन की व्यवहारिकता का अध्ययन करने के लिए कदम उठाए गए हैं।” उन्होंने कहा, “सम्मानित सदस्यों को यह बताते हुए मुझे खुशी हो रही है कि जल्द ही दिल्ली-पटना रूट पर बुलेट ट्रेन चलाने की संभावनाओं की पड़ताल के लिए अध्ययन शुरू किया जाएगा।”
न केवल रेल मंत्री लालू, बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी बुलेट की ट्रेन की संभावनाओं को लेकर उत्साहित थे। जून 2012 में तो उनकी सरकार द्वारा मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाने की बात भी सामने आई थी।
रेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से न्यूज एजेंसी पीटीआई ने बताया था कि मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हाई स्पीड रेल कॉरिडोर को लेकर एक उच्च स्तरीय बैठक हुई। इसमें मुंबई-अहमदाबाद रूट पर पहला बुलेट ट्रेन चलाने के प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाई गई। अधिकारी के मुताबिक इस कॉरिडोर का आगे जाकर पुणे तक विस्तार किया जाना था। अधिकारी ने यह भी बताया था कि इस परियोजना पर 60,000 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। धन जुटाने के तमाम विकल्पों पर सरकार गौर कर रही है। अधिकारी के अनुसार दो विकल्प उभरकर सामने आए थे। पहला, पीपीपी मॉडल। दूसरा, किसी अन्य देश के साथ इस संबंध में समझौता।
यूपीए सरकार में वो तमाम दल शामिल थे, जिन्हें आज बुलेट ट्रेन से परेशानी है। ज्यादातर विपक्षी दल तो उसी दिन से इस परियोजना के पीछे पड़े हैं जब मोदी सरकार ने इसकी नींव डाली। लेकिन, तब इन दलों को इससे कोई समस्या नहीं थी जब मनमोहन सिंह पीएम और लालू रेल मंत्री थे। ऐसे में उनका विरोध राजनीतिक ओछेपन के अलावा कुछ नहीं है। उन्हें बुलेट ट्रेन से समस्या नहीं है। उनको दिक्कत इस बात से है कि यदि यह परियोजना समय पर पूरी हो जाएगी तो इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को जाएगा।
2009 में रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने कहा था कि जल्द ही देश में बुलेट ट्रेन दौड़ेगी। एक दशक बाद जब हम इस रास्ते आगे बढ़ रहे हैं तो कॉन्ग्रेस और अन्य विपक्षी दल परियोजना में ब्रेक लगाने की ताक में हैं। मनमोहन सिंह की ‘मौन’ वफादारी और हर मौसम में साथ टिके रहने की लालू की प्रतिबद्धता के बावजूद सोनिया गॉंधी बुलेट ट्रेन दौड़ने के उनके सपने में ब्रेकर बनी खड़ी हैं!