Saturday, November 16, 2024
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कॉन्ग्रेसी राज में पॉटी पोछने वाला एक पेपर 4000 रुपए में खरीदने का होता था ‘खेल’… इसलिए PM मोदी ने कहा – भ्रष्टाचार से करो लड़ाई

2840 रुपए की अलमारी खरीदी गई 7655 रुपए में। पॉटी-सूसू पोछने वाला टॉयलेट पेपर रोल 4000 रुपए प्रति पीस की दर से खरीदे गए। ये सब कुछ भारत में ही हुआ है... कॉन्ग्रेसी राज में। इसलिए भ्रष्टाचार के विरुद्ध बड़ी लड़ाई की बात PM मोदी ने की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से बोलते हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक लड़ाई का आह्वान किया है। पीएम मोदी ने भ्रष्टाचार और परिवारवाद पर फोकस करते हुए कहा कि यदि इन दोनों विकृतियों का समय रहते समाधान नहीं किया गया तो यह विकराल रूप ले सकती हैं।

देश के प्रधानमंत्री को लाल किले से भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई की हुंकार भरनी आखिर क्यों पड़ी? देशवासियों से क्यों आग्रह करना पड़ा उनको भ्रष्टाचार के खात्मे का? वजह है अपने ही देश में हुए ऐसे-ऐसे भ्रष्टाचार, जिनके आँकड़े सामने आते ही हैरान कर देते हैं।

हम बात कर रहे हैं साल 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) और उसमें हुए घोटाले की। वास्तव में यह आयोजन, भारत द्वारा किसी अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के आयोजन की मेजबानी के लिए देश की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला होना चाहिए था। लेकिन, करोड़ों रुपए के घोटालों के कारण यह पूरा आयोजन हँसी का पात्र बन गया।

कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 में हुए इतने बड़े स्तर के घोटाले की खबरों ने सार्वजनिक आक्रोश पैदा किया था। इसी आक्रोश ने साल 2014 के लोकसभा चुनावों में कॉन्ग्रेस पार्टी को सत्ता के गलियारों से बाहर निकालने का मार्ग प्रशस्त किया।

कॉमनवेल्थ घोटाले की जाँच हाई लेवल कमिटी को

इस विश्वस्तरीय आयोजन के लिए किए गए गुणवत्ताहीन निर्माण कार्यों, कुर्सियों, टॉयलेट पेपर्स जैसी वस्तुओं की खरीद में हुई अनियमितताओं ने लोगों को आक्रोश से भर दिया था। कॉमनवेल्थ गेम्स की समाप्ति के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार पर दबाव पड़ा और जाँच करवाने पर उन्हें मजबूर होना पड़ा।

इस मामले की जाँच के लिए पूर्व महालेखा परीक्षक वीके शुंगलू की अध्यक्षता में एक हाई लेवल कमिटी की नियुक्ति की गई थी। इस कमिटी को राष्ट्रमंडल खेलों की आयोजन समिति के सभी पहलुओं की जाँच करने और तीन महीने के भीतर प्रधानमंत्री कार्यालय को रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा गया था।

कॉमनवेल्थ घोटाले में मुख्य भूमिका में थे कॉन्ग्रेस के नेता

केंद्र ने उच्च स्तरीय समिति के अलावा केंद्रीय सतर्कता समिति (सीवीसी), आईटी विभाग, सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को भी स्वतंत्र जाँच करने का आदेश दिया था। इस जाँच के दौरान यह पाया गया कि कॉन्ग्रेस नेता सुरेश कलमाड़ी (Suresh Kalmadi) ने पूरे आयोजन में बड़ी वित्तीय अनियमितता की थी। इस आयोजन समिति के सदस्य कलमाड़ी पर मुख्य रूप से स्विस टाइमिंग कंपनी को बढ़े हुए दामों पर समय, स्कोर और परिणाम दिखाने का सिस्टम सेट करने का ठेका देने का आरोप है।

इस पूरे घोटाले की जाँच में यह पता चला कि कलमाड़ी ने टीआरएस सिस्टम खरीदने के लिए स्विस टाइमिंग कम्पनी को 141 ​​करोड़ रुपए का भुगतान किया था। जबकि नीलामी में शामिल हुई एक अन्य कम्पनी एमएसएल स्पेन ने 95 करोड़ रुपए कम की बोली लगाई थी। 

कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले से जुड़ी दिलचस्प बात यह है कि इस आयोजन के लिए बोली 4 नवंबर 2009 को आयोजित की गई थी। लेकिन इसके पहले ही 12 अक्टूबर 2009 को स्विस टाइमिंग कम्पनी को कॉन्ट्रेक्ट दे दिया गया था।

सुरेश कलमाड़ी की गिरफ्तारी, जाना पड़ा जेल

कॉन्ग्रेस सरकार में हुए इस घोटाले की जाँच के दौरान किए गए खुलासे के बाद, सुरेश कलमाड़ी को सीबीआई ने 25 अप्रैल 2011 को टाइमिंग-स्कोरिंग-रिजल्ट (टीएसआर) मामले में उनकी भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था। इसके बाद 20 मई 2011 को आयोजन समिति के महासचिव ललित भनोट, महानिदेशक वीके वर्मा सहित आठ अन्य के खिलाफ आपराधिक साजिश, दस्तावेजों में बदलाव करने और उन्हें असली के रूप में दिखाने के आरोप लगाए गए थे।

इन सभी आरोपियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120B, धारा 420, 467, 468, और 471 के तहत आरोप दर्ज किए गए थे। इस आरोप में आरोपित 10 महीने की जेल की हवा भी खा चुके हैं और फिलहाल जमानत पर हैं।

मनमाने ढंग से की गई खरीदारी और खर्च

घोटाले की जाँच कर रही जाँच समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा था कि कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति ने तैयारी और सामानों की खरीद के लिए बाजार मूल्य से कहीं अधिक राशि का भुगतान किया है। इस घोटाले की सबसे बड़ी बात यह थी कि भारत में इस आयोजन के लिए प्रारंभिक अनुमान 296 करोड़ रुपए था। लेकिन सभी भुगतान होने के बाद अंतरिम रूप से यह राशि 28054 करोड़ रुपए तक पहुँच गई थी। यह मूल अनुमान से लगभग 100 गुना अधिक थी।

इसके अलावा, इस आयोजन में सड़कों की सजावट के लिए 100 करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए थे जबकि इसमें खर्च करीब 70 करोड़ रुपए का ही था। यही नहीं, ऐसी कई वस्तुएँ थीं, जिन्हें मनमाने दाम में खरीदा गया था। उदाहरण के लिए, फर्स्ट ऐड किट 3934 रुपए से 4741 रुपए के बीच खरीदी गई थी। टिशू पेपर 1580 रुपए प्रति पैक की कीमत पर खरीदे गए थे। पानी निकालने की एक मशीन की कीमत 11852 रुपए बताई गई थी। 

घोटाले में हुई अन्य खरीद पर नजर डालें तो किताब रखने के लिए खरीदी गई अलमारी 7655 रुपए की बताई गई थी जबकि इसकी कीमत 2840 रुपए थी। स्टैकेबल कुर्सियों को 1542 रुपए प्रति पीस में खरीदा गया था जबकि वास्तविक कीमत 720 रुपए थी। दिलचस्प बात यह है कि टॉयलेट पेपर रोल 4000 रुपए प्रति पीस की दर से खरीदे गए थे। टॉयलेट पेपर्स के लिए 4000 रुपए एक ऐसी कीमत है, जिस पर ऐसे टॉयलेट पेपर्स खरीदे जा सकते हैं जिन पर चांदी का कवर हो।

आप में से बहुत लोगों को यह याद होगा कि कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी जब अंतिम चरण में चल रही थी, उसी दौरान एक फुटओवर ब्रिज टूट कर गिर गया था। इस घटना के बाद मीडिया में काफी हो-हल्ला मचा था। फुटओवर ब्रिज हालाँकि बाद में बन गया था लेकिन इसके लिए सेना से सहायता लेनी पड़ी थी।

अभी भी लंबित हैं 50 से अधिक मामले, आरटीआई में हुआ खुलासा

साल 2010 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स को अब 12 साल से अधिक का समय हो रहा है। हालाँकि, इसके बाद भी इससे जुड़े कई मामले अब भी अदालत में लंबित हैं। इंडियन एक्सप्रेस द्वारा साल 2020 में दायर की गई एक आरटीआई में यह खुलासा हुआ था कि कॉमनवेल्थ गेम्स में हुए घोटालों में 50 से अधिक मामले अभी भी लंबित हैं।

आरटीआई में भारत सरकार ने बताया था कि 31 मार्च 2020 तक मध्यस्थों को लगभग 6.92 करोड़ रुपए का भुगतान किया जा चुका है। इस मामले में सूत्रों का हवाला देते हुए इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि लगभग 700 करोड़ रुपए के कॉन्ट्रेक्ट विवादों का निपटारा होना अब भी बाकी है।

इसके अलावा, आरटीआई में यह भी कहा गया है कि 50 मामलों में 33 विक्रेता, अधिकारी और व्यक्ति शामिल थे। कुछ फर्मों में स्विस टाइमिंग (135.27 करोड़ रुपए के अनुबंध), नुस्ली इंडिया (140 करोड़ रुपए) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (346 करोड़ रुपए) भी शामिल हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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