Friday, November 15, 2024
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राहुल गाँधी जी माना आप हाथरस पर ‘राजनीति’ नहीं कर रहे, पर संदेशखाली से लेकर तमिलनाडु में जहरीली शराब से मौतों तक पर आपकी चुप्पी क्या?

कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी को अगर वाकई लोगों की मौत पर राजनीति नहीं करना थी तो वो संदेशखाली में हुए महिलाओं के अत्याचार पर क्यों चुप थे। इसके अलावा तमिलनाडु में जहरीली शराब से जो लोग मरे उनके रोते-बिलखते परिजनों से मिलने वो क्यों नहीं पहुँचे।

उत्तर प्रदेश के हाथरस में भगदड़ से गई 121 लोगों की जान मामले में यूपी प्रशासन जाँच करके एक्शन लेने में जुटा है। प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद हालातों पर नजर बनाए हुए हैं। वो लगातार पुलिस से उनके एक्शन के बारे में पूछ रहे हैं लेकिन इस बीच विपक्ष बयानबाजी देने में सक्रिय हो गया है… आज सुबह ही खबर आई थी कि कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी हाथरस में भगदड़ में मरे लोगों के परिजनों से मिलने गए। यहाँ जाकर उन्होंने कहा कि हादसे पर राजनीति नहीं होनी। अपनी इसी बात के साथ राहुल गाँधी ने कुछ चीजें कहीं जो बताती हैं कि राहुल गाँधी भले ही कैमरे पर राजनीति करने की बातें कर रहे हों, लेकिन उनका अलीगढ़ पहुँचना उनकी राजनीति का ही हिस्सा है।

ये जानते हुए कि इस पूरे केस को योगी सरकार सख्ती से डील कर रही है राहुल गाँधी पीड़ितों से मिलकर कैमरे पर कहते दिखे कि पीड़ित परिजनों को दिल खोलकर मुआवजा मिले। इसके साथ ये कहकर कि ‘मामले पर राजनीति नहीं होनी चाहिए’ उन्होंने कहा कि पुलिस व्यवस्था की कमी थी अगर प्रशासन वहाँ जिम्मेदारी लेता तो ऐसी घटना नहीं होती। उनकी इन बातों से साफ है कि वो अलीगढ़ में पीड़ित परिवार से मिलने सिर्फ इसलिए गए थे ताकि उनकी राजनीति सधे। अगर ऐसा नहीं है और वाकई उन्हें मृतकों के दुख से लेना देना है तो फिर उनका ये दुख सिलेक्टिव घटनाओं पर ही क्यों है।

ज्यादा वक्त नहीं बीता, भारत में संदेशखाली का मामला खुला था। महिलाएँ चीख-चीखकर अपने पर हुए अत्याचार की कहानी बता रही थीं। पूरा देश उनकी आपबीती सुन सन्न था, लेकिन राहुल गाँधी तो क्या कॉन्ग्रेस के किसी प्रत्याशी के दिमाग में उन पीड़ितों से मिलने का ख्याल तक नहीं आया। इसके साथ अभी पिछले दिनों तमिलनाडु के कुल्लाकुरिची में जहरीली शराब के कारण 65 लोगों की मौत हुई थी… राहुल गाँधी की संवेदनाएँ एक भी बार मृतकों के परिवारों से मिलने के लिए नहीं उमड़ीं। न उन्होंने वहाँ जाना जरूरी समझा न ही पीड़ित परिजनों का हाल जानना।

इन मामलों पर चुप्पी और यूपी के हर मामले में उनकी सक्रियता दिखाती है कि उनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ राजनीति है। हाँ! इस मामले में वो सीधा-सीधा हमलावर नहीं हो सकते क्योंकि अगर होंगे तो उनके गठबंधन के साथी अखिलेश यादव सवालों के घेरे में आएँगे, इसलिए वे पहले एक ‘नोट‘ की तरह अपनी सफाई दे दे रहे हैं कि इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए उसके बाद वो योगी सरकार के खिलाफ माहौल बनाने के लिए अपनी राजनीति करते हैं। ( बता दें कि अखिलेश यादव के बाबा से कनेक्शन होने की बात में दो राय है । उनकी ऐसी वीडियो और पोस्ट वायरल हैं जिसमें वो कह रहे बाबा की जय जयकार कर रहे हैं)

ये कहना कि पुलिस अगर घटना के समय वहाँ होती तो ये सब नहीं होता- कितना उचित है वो भी तब जब मीडिया में हर जगह ये बात हो कि बाबा के सेवादार किसी पुलिस प्रशासन को भीड़ को कंट्रोल नहीं करने देते थे, वो अपनी आर्मी बनाकर खुद ही भीड़ हैंडल करने की बात करते थे। उनका ये दबदबा इतना था कि चाहे आम जन हो या नेता बाबा से मिलने जाते थे सबको सिक्योरिटी पीछे करनी पड़ती थी।

घटना वाले दिन भी यही हुआ था…जब बाबा ने अपनी जगह छोड़ी तो सारे लोग पीछे भागे, सेवादारों ने उन लोगों से धक्का-मुक्की की। जब कुछ उनमें से गिर गए तो उनकी मदद करने ग्रामीण और पुलिस वाले आगे आने लगे, मगर उस समय उन सेवादारों ने किसी की मदद करने से भी पुलिस को रोक दिया… सिर्फ ये कहते रहे कि बाबा की कृपा से सब ठीक हो जाएँगे। हालाँकि बाद में मौत का आँकड़ा बढ़ता देख उन सेवादारों ने सबूत मिटाने शुरू कर दिए। मीडिया को वीडियो बनाने से रोका और मृतकों के सामान फेंकने शुरू हुए और अंत में आरोपित फरार हो गए।

ये सारा खेल क्यों हुआ ये एक बड़ा सवाल है। पुलिस जाँच करने में जुटी है लेकिन उससे भी बड़ा सवाल राहुल गाँधी का सिलेक्टिव ढंग से पीड़ितों से मिलना है। सोचकर देखिए कि जिनका अपना कोई दुनिया छोड़ गया हो उसके पास इतना समय होता है कि वो राजनेताओं की राजनीति समझ सके। सामने आई तस्वीरों में पीड़ित परिजन उनसे लिपट कर रो रहे है, उन्हें पता तक नहीं है कि वो एक टूल की तरह प्रयोग किए जा रहे हैं जिससे राहुल गाँधी की छवि का निर्माण होगा…अगर ये मिलना इंसानियत के नाते होता तो दर्द तमिलनाडु के पीड़ितों के लिए उमड़ता और संदेशखाली व उन तमाम जगहों के लिए उमड़ता जहाँ किसी किसी कारणवश लोगों की जान चली जाती है।

हाथरस की घटना दुखद है और वाकई राहुल गाँधी को समझना चाहिए कि इसपर ‘राजनीति नहीं करनी चाहिए’ कहकर राजनीति न करें। इससे पहले भी वो हाथरस से जुड़े केस में एक परिवार से मिलने गए थे। वहाँ जाकर उन्होंने मृतिका के परिजनों को सांत्वना दी थी। बाद में वीडियो आई तो पता चला कि उस जगह पहुँचने से पहले कैसे राहुल गाँधी चिल कर रहे थे। उस वीडियो को देख बिलकुल नहीं लग रहा था कि राहुल गाँधी को कोई दुख है और अगर दुख नहीं है तो क्या राहुल गाँधी के ऐसे दौरों को राजनीति से प्रेरित और दिखावा नहीं कहा जाना चाहिए।

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