Tuesday, November 5, 2024
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चीन, हुआवेई, न्यूजक्लिक और कॉन्ग्रेस: भाजपा सांसद जेठमलानी ने जयराम रमेश पर उठाए सवाल, खेल में सामने आया ‘सिंघम’

कॉन्ग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के बीच हुए एमओयू पर तत्कालीन कॉन्ग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने दस्तखत किए थे। चीनी पक्ष की ओर से इस पर किसी और ने नहीं, बल्कि खुद चीन क राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दस्तखत किए थे। जिनपिंग उस वक्त सीपीसी के उपाध्यक्ष एवं पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य थे।

भाजपा के राज्यसभा सांसद महेश जेठमलानी ने मानसून सत्र के दौरान 8 अगस्त 2023 को कॉन्ग्रेस और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के रिश्तों पर सवाल उठाया है। उन्होंने पूछा कि क्या सीसीपी का भारत में कॉन्ग्रेस से कोई कोई रिश्ता है?

एक्स (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट में उन्होंने खुलासा किया कि न्यूज़क्लिक विवाद के केंद्र में जो नेविल रॉय सिंघम हैं, उन्होंने 2001-2008 तक चीनी दूरसंचार दिग्गज हुआवेई के चीफ टेक्निकल ऑफिसर के तौर पर भी काम किया था। चीनी टेलीकॉम दिग्गज हुआवेई को सीसीपी के साथ रिश्तों और सुरक्षा मुद्दों पर दुनिया भर की कई सरकारों ने घेरा था।

चीन की हुआवेई कंपनी को साल 2019 में अमेरिका ने प्रतिबंधित कर दिया गया था। इसी तरह साल 2020 में सुरक्षा चिंताओं की वजह से हुआवेई को यूके के 5G नेटवर्क से प्रतिबंधित कर दिया गया था। अक्सर इसका जिक्र चीनी सरकार के काबू में रहने वाली कंपनी के तौर पर किया जाता है।

जेठमलानी ने 2006 में कहा था कि कॉन्ग्रेस के राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने एक किताब CHINDIA प्रकाशित की थी, जिसमें उन्होंने पहली बार हुआवेई की तारीफ के पुल बाँधे थे।” उन्होंने आगे कहा कि यूपीए 2 शासन में पर्यावरण मंत्री के तौर हुआवेई के फायदों के लिए उसकी पैरवी जारी रही थी।

इसके अलावा, जेठमलानी ने कहा कि कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी ने कॉन्ग्रेस नेता सोनिया गाँधी की मौजूदगी में साल 2008 में सीसीपी के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर दस्तखत की थी। जेठमलानी ने कहा, “यह सब हुआवेई के साथ सिंघम के कार्यकाल के दौरान हुआ था।”

उन्होंने ये सवाल भी किया, “क्या उनमें से कोई एक या दोनों, हुआवेई में नौकरी के दौरान या उसके बाद सिंघम से कभी मिले थे? उनके आपसी लिंक क्या थे? क्या एनआईए को जाँच नहीं करना चाहिए?”

क्या है न्यूज़क्लिक विवाद ?

न्यूयॉर्क टाइम्स ने 5 अगस्त को एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया। इसमें एक अमेरिकी कारोबारी के चीनी सरकार के साथ रिश्तों और न्यूज़क्लिक नामक भारतीय वामपंथी प्रचार आउटलेट को वित्तीय मदद देने का खुलासा किया गया था। अमेरिकी अखबार के मुताबिक, नेविल रॉय सिंघम नाम का करोड़पति चीन के प्रोपेगेंडा को बढ़ावा देने के लिए भारत सहित दुनिया भर में कई समाचार प्रकाशनों को फंडिंग कर रहा है।

लेख में कहा गया है, “जो बात कम पता है और गैर-लाभकारी समूहों एवं शेल कंपनियों की उलझन के बीच छिपी हुई है, वह यह है कि सिंघम चीन की सरकारी मीडिया मशीनरी के साथ मिलकर काम करते हैं और दुनिया भर में इसके प्रोपेगेंडा के लिए फंडिंग करते हैं।”

न्यूयॉर्क टाइम्स ने ये भी बताया कि सिंघम ने भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में ‘प्रगतिशील एडवोकेसी’ के बहाने चीनी सरकार की बातों को सफलतापूर्वक पहुँचाया। नेविल रॉय सिंघम ने न्यूज़क्लिक नामक भारत में मौजूद वामपंथी प्रचार आउटलेट को फंडिग की थी। इसमें कहा गया है कि न्यूज आउटलेट ने अतीत में सीसीपी की बातों को दोहराया है।

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, “नई दिल्ली में कॉर्पोरेट फाइलिंग से खुलासा हुआ है कि सिंघम के नेटवर्क ने एक न्यूज साइट, न्यूज़क्लिक को वित्तपोषित किया।” न्यूयॉर्क टाइम्स ने नोट किया कि इस न्यूज आउटलेट ने अपनी एक वीडियो कवरेज में ‘चीन का इतिहास अभी भी श्रमिक वर्ग को प्रेरणा देता है’ की बात की।

नेविल सिंघम और हुआवेई का गठजोड़

नेविल सिंघम और हुआवेई के गठजोड़ की पोल न्यू लाइन्स मैगजीन की एक रिपोर्ट ने खोली है। न्यू लाइन्स मैगजीन की जनवरी 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंघम ने चीनी रिक्रूटमेंट प्लेटफॉर्म बॉस जिपिन के साथ सिंघम ने 2001 से 2008 तक हुआवेई के साथ रणनीतिक तकनीकी सलाहकार के तौर पर काम किया।

फॉर्च्यून मैगजीन के सीनियर एडिटर डेविड किर्कपैट्रिक से बात करते हुए सिंघम ने चीन की जमकर तारीफों के पुल बाँधे थे। उन्होंने कहा, “चीन पश्चिम को सिखा रहा है कि मुक्त-बाज़ार समायोजन और दीर्घकालिक योजना, इस दोहरी प्रणाली के साथ दुनिया बेहतर है।”

थॉटवर्क्स की अक्टूबर 2010 में आयोजित की गई पाँचवी एजाइल सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कॉन्फ्रेंस के दौरान नेवल रॉय सिंघम का शुरुआती भाषण चीन के साथ उनके रिश्तों पर रोशनी डालने के लिए काफी है। इसमें सिंघम ने कहा था कि उन्होंने कैसे एजाइल के जरिए कई चीनी कंपनियों पर अपना असर डाला था।

उस सम्मेलन पर थॉटवर्क्स की एक प्रेस रिलीज में कहा गया है, “सिंघम ने बताया कि चीन में एजाइल के प्रचार का चाइना मोबाइल, हुआवेई, बाइ़ेडयू, अलीबाबा और नोकिया-सीमेंस जैसे उद्यमों और संगठनों के टॉप मैनेजमेंट पर गहरा असर पड़ा।”

उन्होंने कहा कि इन सबने अपने संगठनों के प्रबंधन और संस्कृतियों में एजाइल के विकास को सक्रिय तौर से प्रभावित करने के लिए बारीकी से ध्यान देना शुरू कर दिया है सिंघम ने न केवल हुआवेई, बल्कि अन्य बड़ी चीनी कंपनियों का नाम लिया गया, जो सभी प्लेटफार्मों पर उनकी गहरी पहुँच की तरफ इशारा करता है।

जयराम रमेश की किताब में बाँधे गए हुआवेई की तारीफों के पुल

इससे पहले भी जनवरी 2023 में बीजेपी एमपी महेश जेठमलानी ने जयराम रमेश से चीनी कंपनी हुआवेई के साथ अपने रिश्तों पर सफाई देने का अनुरोध किया था। एक्स पर एक पोस्ट में, जेठमलानी ने कहा, “2005 से जयराम रमेश भारत में चीनी टेलीकॉम कंपनी हुआवेई की गतिविधियों की पैरवी कर रहे हैं। हुआवेई को सुरक्षा खतरे के तौर पर लेते हुए कई देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। जयराम अब चीन को लेकर भारत सरकार के रुख पर सवाल उठा रहे हैं। यह उनका दायित्व है कि वह अपने हुआवेई संबंधों का खुलासा करे।”

जेठमलानी ने अपने पोस्ट में एक स्क्रीनशॉट शेयर किया था, वह 2005 में रिलीज़ हुई जयराम रमेश की किताब ‘मेकिंग सेंस ऑफ चिंडिया: रिफ्लेक्शन्स ऑन चाइना एंड इंडिया’ से लिया गया था। किताब में जयराम रमेश ने चीन के इतिहास, संस्कृति और अन्य पहलुओं में अपनी रुचि का जिक्र किया है।

उन्होंने इस पुस्तक में बताया है कि कैसे प्रतिस्पर्धा और कई मौकों पर टकराव से भारत और चीन स्वाभाविक दुश्मन नहीं बन जाते और भारत एवं चीन के बीच संबंध कैसे फायदेमंद हो सकते हैं। दिलचस्प बात यह है कि 130 पन्नों की किताब में हुआवेई का जिक्र चार बार हुआ है।

महेश जेठमलानी ने जयराम की किताब का जब पहला जिक्र किया था और उसे शेयर किया था, वो किताब के चैप्टर “द सी-आई-ए ट्राएंगल” से था। इसमें भारत और अमेरिका बनाम चीन के रिश्तों पर स्पष्टता की बात की गई है। इसमें जयराम ने बताया कि कैसे अमेरिका-भारत सौदे होने के बावजूद, भारत और चीन के बीच व्यापार में उछाल आया।

उन्होंने इस चैप्टर में खास तौर से हुआवेई का जिक्र किया और कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारा विदेश कार्यालय चीन से सावधान है और जनवरी 2003 में जसवन्त सिंह ने कूटनीति को किनारे रख दिया और चीनी आँकड़ों को मूखर्तापूर्ण बताया।”

जेठमलानी ने कहा, “चीनियों को लगता है कि भारत व्यापार वीसा देने और चीनी एफडीआई एवं सार्वजनिक निविदाओं में जीते गए अनुबंधों को मंजूरी देने में गैर-जरूरी बाधा डाल रहा है। चीनी नेटवर्किंग चीफ हुआवेई टेक्नोलॉजीज की बेंगलुरु में बड़ी मौजूदगी है और वह विस्तार करना चाहती है, जिससे भारतीय सुरक्षा एजेंसियाँ काफी असहज हैं।”

उन्होंने आगे कहा, “बाद में ‘वाजपेयी चीन गए’ टाइटल वाले चैप्टर में जयराम रमेश ने द्विपक्षीय और क्षेत्रीय पहलों के मद्देनजर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की चीन यात्रा पर चर्चा की। उन्होंने चीनी कंपनियों, खासकर हुआवेई को भारत में हतोत्साहित करने के बारे में भी बात की, जबकि कंपनी पहले से ही बेंगलुरु में 500 से अधिक भारतीय इंजीनियरों को रोजगार दे रही है।”

जेठमलानी ने आगे कहा, “चैप्टर ग्रोइंग एम्बिवलेंस में उन्होंने फिर से जिक्र किया कि हुआवेई ने 500 भारतीय इंजीनियरों को रोजगार दिया और निराशा जताई की कि भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठानों ने इस कंपनी को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने लिखा कि जब भारत में चीनी निवेश की बात आती है तो हम पुरानी मानसिकता के कैदी जैसे लगते हैं।”

एफडीआई संशोधनवाद (FDI Revisionism) चैप्टर में जयराम रमेश ने अन्य चीनी कंपनियों के साथ फिर हुआवेई का जिक्र किया और इशारा किया कि चीन ने अपनी वैश्विक मौजूदगी का तेजी से विस्तार किया है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में विदेशी निवेश के खिलाफ लॉबी की वजह से विदेशी कंपनियाँ चीन की तरफ आकर्षित हुईं।

जयराम रमेश और उनका चीन से इश्क

चीनी कंपनी हुआवेई के लिए जयराम रमेश का प्यार 2010 में सुर्खियों में आया था। ध्यान देने वाली बात यह है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत में हुआवेई के निवेश के संबंध में तब उनके एक बयान पर नाराजगी जाहिर की थी।

तत्कालीन पर्यावरण और वन राज्यमंत्री जयराम रमेश ने 8 मई 2010 को अपनी चीन यात्रा के दौरान कहा था कि चीनी कंपनियों और प्रोजेक्ट्स के प्रति भारतीय गृह मंत्रालय की चिंताजनक और व्याकुलतापूर्ण नीतियाँ दोनों देशों के बीच संबंधों के लिए खतरा हैं।

उन्होंने कहा कि ड्रैगन के साथ जलवायु सहयोग पर “संदिग्ध” सुरक्षा और रक्षा प्रतिष्ठान के विरोध का सामना उन्हें करना पड़ा। उन्होंने हुआवेई जैसी चीनी कंपनियों के लिए गृह मंत्रालय की कथित “अत्यधिक रक्षात्मक” नीतियों पर सवाल उठाया, क्योंकि ये कंपनी सुरक्षा कारणों से आयात प्रतिबंध का सामना कर रही थी।

सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी का सीसीपी के साथ एमओयू

कॉन्ग्रेस नेता राहुल गाँधी और सोनिया गाँधी ने 2008 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर दस्तखत किए थे। ये घटना पड़ोसी देशों के दो राजनीतिक दलों के निजी विकास पर राष्ट्रीय हितों को परे व्यक्तिगत हितों पर ध्यान केंद्रित करने के आरोपों की वजह रडार पर आई थी। समझौता ज्ञापन (एमओयू) ने दोनों पक्षों को महत्वपूर्ण द्विपक्षीय वार्ता, क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक-दूसरे से परामर्श करने के लिए कहा गया था।

दिलचस्प बात यह है कि इस एमओयू पर तत्कालीन कॉन्ग्रेस महासचिव राहुल गाँधी ने दस्तखत किए थे। चीनी पक्ष की ओर से इस पर किसी और ने नहीं, बल्कि खुद चीन क राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दस्तखत किए थे। जिनपिंग उस वक्त सीपीसी के उपाध्यक्ष एवं पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति के सदस्य थे।

एमओयू पर सोनिय गाँधी और राहुल गाँधी, दोनों ने दस्तखत किए थे। दस्तखत करने से पहले, तत्कालीन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उनके बेटे राहुल गाँधी ने आपसी हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिए शी जिनपिंग और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ एक लंबी बैठक की थी।

सोनिया गाँधी ने 2008 में ओलंपिक खेलों के उद्घाटन में भाग लेने के लिए राहुल, बेटी प्रियंका, दामाद रॉबर्ट वाड्रा और उनके दो बच्चों के साथ बीजिंग का दौरा किया था। इससे एक साल पहले सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी ने चीन में कॉन्ग्रेस पार्टी के एक प्रतिनिधिमंडल का भी नेतृत्व किया था।

सीसीपी और कॉन्ग्रेस के बीच 2008 का ये समझौता ज्ञापन उस वक्त हुआ, जब भारत में वामपंथी दलों ने कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-1 सरकार में विश्वास की कमी जताई थी। इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि भले ही चीन को भारत के राजनीतिक परिदृश्य के बारे में जानकारी थी, लेकिन तब भी शी जिनपिंग ने आगे बढ़कर कॉन्ग्रेस के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए, क्योंकि सीसीपी कॉन्ग्रेस के साथ, खासकर गाँधी परिवार के साथ गहरे रिश्ते रखना चाहती थी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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