Sunday, November 17, 2024
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मोदी सरकार ने वैक्सीन विदेश क्यों भेजी और अब क्यों नहीं दे रहे की माँग? कॉन्ग्रेस का रुख राहुल गाँधी से ज्यादा कन्फ्यूज

"जब डब्ल्यूएचओ की एक वरिष्ठ अधिकारी, एक प्रतिष्ठित भारतीय कहती हैं कि भारत द्वारा वैक्सीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से 91 देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है, तो विश्वगुरु को (सरकार) अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।"

कॉन्ग्रेस और राहुल गाँधी द्वारा ‘वैक्सीन मैत्री’ कार्यक्रम को लेकर भारत सरकार पर निशाना साधने के बाद, अब पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर कोरोना वैक्सीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं।

शशि थरूर ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन की एक टिप्पणी का हवाला देते हुए कहा कि सरकार को कोविड-19 वैक्सीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के लिए शर्म से सिर झुका लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “जब डब्ल्यूएचओ की एक वरिष्ठ अधिकारी, एक प्रतिष्ठित भारतीय कहती हैं कि भारत द्वारा वैक्सीन के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के फैसले से 91 देशों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है, तो विश्वगुरु को (सरकार) अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए।”

डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने कहा है कि वैक्सीन की सप्लाई में कमी के कारण 91 देशों में आपूर्ति बाधित हुई है। उन्होंने NDTV से कहा कि 91 देश आपूर्ति की कमी से प्रभावित हैं, खासकर तब से जब एस्ट्राजेनेका अपनी सहयोगी कंपनी सीरम से आई खुराक की कमी की भरपाई करने में सक्षम नहीं है।

विडंबना यह है कि प्रियंका गाँधी टीकों के निर्यात को लेकर हमेशा प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर रही हैं। उनका कहना है कि पीएम मोदी भारतीय बच्चों की वैक्सीन विदेश भेज रहे हैं।

इसी मुद्दे को लेकर राहुल गाँधी भी सरकार पर निशाना साधते रहे हैं।

इन परिस्थितियों को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि शशि थरूर और उनकी कॉन्ग्रेस पार्टी मोदी सरकार को जबरन घेर रही है। जहाँ एक ओर राहुल और प्रियंका वैक्सीन के निर्यात को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर शशि थरूर उनसे भी चार कदम आगे जाकर वैक्सीन के प्रतिबंध को लेकर भारत सरकार पर हमलावर हो रहे हैं।

भारत के “विदेशों में वैक्सीन की खुराक भेजने” का पूरा नैरेटिव गलत है, क्योंकि ‘वैक्सीन मैत्री’ के तहत मित्र राष्ट्रों को भेजी जाने वाली वैक्सीन की खुराक भारत द्वारा अपने नागरिकों को पहले से ही उपलब्ध कराई गई डोज का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है। साथ ही ‘वैक्सीन मैत्री’ पहल ने भारत के लिए बड़े स्तर पर अंतरराष्ट्रीय सद्भावना का निर्माण किया है, जो देश की उदारता को प्रकट करता है कि किस प्रकार वह कोरोना संकटकाल में अन्य देशों की मदद के लिए आगे आ रहा है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत ने अनुदान के तौर पर अब तक एक करोड़ 7 लाख 15 हजार टीके अनुदान में दिए हैं। जिन देशों को 1 लाख टीकों से ज्यादा की खेप अनुदान में यानी तोहफे के तौर पर दी उनकी संख्या 19 है। इन देशों में भी सबसे बड़ा हिस्सा पाने वाले अधिकतर भारत के पड़ोसी हैं। यदि अनुदान की हिस्सेदारी देखें तो 75 लाख टीके सार्क के पड़ोसी मुल्कों को दिए गए हैं। मालूम हो कि भारत 20 करोड़ से ज्यादा लोगों को कोविड टीका लगाने वाला अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा देश बन गया है।

लेकिन फिर भी कॉन्ग्रेस पार्टी द्वारा इस पहल की कड़ी आलोचना की गई, जबकि अब वह कहती है कि भारत सरकार को शर्म से सिर झुका लेना चाहिए। एनडीटीवी की रिपोर्ट में भी बेहद अजीबोगरीब अंदाज में वैक्सीन मैत्री पर हमला करते हुए सरकार पर निर्यात रोकने का आरोप लगाया गया है।

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, “पिछले साल न केवल भारत अपने नागरिकों के लिए बड़ी संख्या में ऑर्डर देने में विफल रहा, बल्कि इस साल 16 अप्रैल 2021 तक लगभग 66.3 मिलियन खुराक का निर्यात किया गया, जिसे वैक्सीन मैत्री के रूप में जाना जाता है। ये भारत को दुनिया के वैक्सीन-निर्माण केंद्र के रूप में दिखाते हुए मित्र राष्ट्रों की मदद करने का प्रयास है।”

कोरोना की दूसरी लहर में सबसे अधिक प्रभावित होने पर नई दिल्ली ने वैक्सीन के निर्यात पर तुरंत प्रतिबंध लगा दिया। देश के भीतर राज्यों को फिर से निर्देश दिया कि टीकाकरण कार्यक्रम को प्राथमिकता वाले आयु वर्ग (18 से 44 वर्ष) के लिए खोल दिया है। इस प्रक्रिया में गावी के माध्यम से दर्जनों देशों को आपूर्ति के आधार पर हाई और ड्राई छोड़ दिया गया था।

यहाँ आईने की तरह पूरी तरह से साफ है कि ‘अगर हेड आया तो मैं जीता हूँ और टेल आया तो आप हारे हैं’ यानी यही स्थिति भारत सरकार के खिलाफ एजेंडे के तहत आलोचना करने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी पर लागू होती है। इसके अलावा, कॉन्गेस पार्टी फ्लिप-फ्लॉप में उलझी हुई है, जो किसी को भी शर्मसार कर देगी। अन्य ‘पत्रकार’ भी आलोचना करने के लिए इस मौके का फायदा उठा रहे हैं, जिसका शायद ही कोई मतलब है।

हालाँकि, यह सच है कि अफ्रीकी देशों को पर्याप्त मात्रा में टीके नहीं मिले हैं, लेकिन इसके लिए विकसित पश्चिमी देशों की बजाए भारत को दोष देना मूर्खतापूर्ण लगता है, जिनमें से कुछ वैक्सीन की जमाखोरी में लिप्त हैं।

यह स्पष्ट रूप से भारत की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का प्रयास है। कॉन्ग्रेस पार्टी भारत की प्रतिष्ठा की परवाह किए बिना इसमें सक्रिय भूमिका निभा रही है। कोरोना की दूसरी लहर बेहद घातक साबित हो रही है। इस दौरान टीकों के उपलब्ध न होने और वैक्सीन मैत्री लेकर सरकार की कड़ी आलोचना की गई थी। अब, वही लोग उसी के निर्यात को रोकने के लिए सरकार पर आरोप लगा रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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