Saturday, July 27, 2024
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जो राहुल गाँधी OBC सचिवों की संख्या गिना रहे थे… उनके कॉन्ग्रेसी राज्यों में गिनती है शून्य, I.N.D.I. गठबंधन वाले राज्यों में अधिकांश ऊँची जातियों से

कॉन्ग्रेस शासित छतीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में राज्य के मुख्य सचिव सामान्य वर्ग से आते हैं। कॉन्ग्रेस के सहयोगियों द्वारा शासित राज्यों में भी तमिलनाडु को छोड़ कर सभी राज्यों में मुख्य सचिव सामान्य वर्ग से हैं।

कॉन्ग्रेस और विपक्ष के अन्य दलों के शासन वाले राज्यों में अधिकांश नौकरशाह (मुख्य सचिव, सचिव) सामान्य वर्ग से हैं। कॉन्ग्रेस द्वारा स्वयं शासित किसी भी राज्य में मुख्य सचिव पिछड़ी जातियों से नहीं है, एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है। यह खुलासा राहुल गाँधी के ओबीसी वर्ग से आने वाले नौकरशाहों को लेकर किए गए दावों के बाद हुआ है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कॉन्ग्रेस शासित छतीसगढ़, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में राज्य के मुख्य सचिव सामान्य वर्ग से आते हैं। इसके अतिरिक्त, कॉन्ग्रेस के सहयोगियों द्वारा शासित राज्यों में भी तमिलनाडु को छोड़ कर सभी राज्यों में मुख्य सचिव सामान्य वर्ग से हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में प्रबोध शर्मा, छतीसगढ़ में अमिताभ जैन, कर्नाटक में वन्दिता शर्मा और राजस्थान में ऊषा शर्मा मुख्य सचिव हैं। इन सभी राज्यों में कॉन्ग्रेस की अपने दम पर बहुमत की सरकार है।

वहीं, कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाले I.N.D.I. गठबंधन वाले राज्यों- बिहार में आमिर सुबहानी, झारखंड में सुखदेव सिंह, पश्चिम बंगाल में एचके द्विवेदी और पंजाब में अनुराग वर्मा तथा केरल में वीएन वेणु को मुख्य सचिव बनाया गया है। तमिलनाडु मात्र एक ऐसा राज्य है, जहाँ शिव दास मीणा (अनुसूचित जनजाति) से आने वाले मुख्य सचिव हैं।

कॉन्ग्रेस नेता और सांसद राहुल गाँधी ने हाल ही में महिला आरक्षण बिल के संसद से पारित होने पर ओबीसी आरक्षण का मुद्दा उठाया था और कहा था कि केंद्र सरकार में ओबीसी नौकरशाहों को नियुक्ति नहीं मिल रही है। राहुल ने कहा था कि केंद्र के 90 सचिवों में से मात्र 3 ओबीसी हैं।

गौरतलब है कि मुख्य सचिव किसी भी राज्य का सबसे बड़ा नौकरशाह होता है। अधिकांश सरकारें अपने पसंद के आईएएस अधिकारियों की नियुक्ति मुख्य सचिव के तौर पर करती हैं। ऐसे में कॉन्ग्रेस ओबीसी नौकरशाहों की नियुक्ति क्यों नहीं कर रही, राहुल गाँधी को अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्रियों से यह प्रश्न पूछना चाहिए।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ राज्यों में ही कॉन्ग्रेस ने ओबीसी नौकरशाहों को अनदेखा किया हो, बल्कि जब केंद्र की सत्ता में कॉन्ग्रेस काबिज थी तब भी उसने पिछड़े वर्गों से आने वाले अधिकारियों को कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी थी। कॉन्ग्रेसी प्रधानमंत्रियों के निजी और प्रधान सचिव भी ऊँची जातियों से ही आते रहे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार में प्रधान सचिव रहे TKA नायर और पुलोक चैटर्जी भी सामान्य वर्ग से आते थे। इससे पहले राजीव गाँधी के प्रधान सचिव रहे पीसी अलेक्जेंडर भी ओबीसी नहीं थे। राजीव गाँधी के शासन में प्रधान सचिव रही सरला ग्रेवाल और बीजी गणेश भी पिछड़े वर्ग के नहीं थे।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के प्रधान सचिव एलके झा और पीएन धर भी सामान्य वर्ग से थे जबकि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के प्रमुख सचिव रहे हीरूभाई पटेल भी सामान्य वर्ग से थे।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट से यह भी खुलासा हुआ है कि वर्ष 1985 से 1989 के बीच जब राजीव गाँधी प्रधानमंत्री थे, तब केंद्र सरकार का कोई भी सचिव आरक्षित वर्ग से नहीं था जबकि वर्तमान में 7 सचिव आरक्षित वर्ग से आते हैं। इसके अलावा 2014 तक केंद्र में ओबीसी वर्ग से आने वाले संयुक्त सचिव/अतिरिक्त सचिवों की संख्या मात्र 2 थी जो कि अब 63 पहुँच चुकी है।

पीएमओ में मंत्री जितेन्द्र सिंह ने इस मामले पर कहा है कि किसी भी आईएएस अधिकारी को सचिव के स्तर पर पहुँचने के लिए कम से कम ढाई दशक लगते हैं। ओबीसी वर्ग के नौकरशाहों की पहली भर्ती वर्ष 1995 में हुई थी। ऐसे में अब धीमे धीमे उनकी नियुक्ति सचिव के पदों पर हो रही है।

जितेन्द्र सिंह ने यह भी कहा कि केंद्र में नियुक्तियाँ सभी तरह के मूल्यांकन के बाद होती हैं, जबकि कॉन्ग्रेस सरकार वाले राज्यों में नियुक्तियाँ राजनीति से प्रेरित होती होती हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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