यूक्रेन और रूस युद्ध बीच भारत सरकार लगातार अपने नागरिकों को यूक्रेन से निकालने में जुटी है। इस काम के लिए उनकी तारीफ और आलोचना दोनों हो रही है। इस बीच विपक्ष भी लगातार भारत की मोदी सरकार पर हमलावर है, लेकिन वे खुद यूक्रेन की स्थिति पर कुछ नहीं बोल रहे। इसी बात का जिक्र करंट पुष्पम प्रिया की द प्लूरल्स पार्टी ने कॉन्ग्रेस पर निशाना साधा है और उनकी इस चुप्पी के पीछे रूसी फंडिंग को जिम्मेदार बताया है।
अपने ट्वीट में पुष्पम प्रिया चौधरी की द प्लूरल्स पार्टी ने लिखा, “यूक्रेन आक्रमण पर सरकार की दुविधा तो फिर भी समझ में आती है। लेकिन लिबरल होने का ढोंग रचने वाले कॉन्ग्रेस सहित विपक्ष की चुप्पी हास्यास्पद है। बौद्धिक और नैतिक दरिद्रता है या चुनाव के लिए रूसी फ़ंडिंग का असर?”
यूक्रेन आक्रमण पर सरकार की दुविधा तो फिर भी समझ में आती है। लेकिन लिबरल होने का ढोंग रचने वाले कॉंग्रेस सहित विपक्ष की चुप्पी हास्यास्पद है। बौद्धिक और नैतिक दरिद्रता है या चुनाव के लिए रूसी फ़ंडिंग का असर? @INCIndia @RahulGandhi #UkraineUnderAttack
— The Plurals Party | TPP | दप्पा (@pluralsbharat) March 1, 2022
कॉन्ग्रेस पर विदेशी फंडिंग का भार
बता दें कि कॉन्ग्रेस पर विदेश से फंड लेने के आरोप कोई नई बात नहीं हैं। पार्टी का इतिहास देख कर ही समय-समय पर लोग कॉन्ग्रेस को विदेशी फंडिंग पर घेरते हैं। और ये जानना दिलचस्प है कि ये खेल इंदिरा काल से चला आ रहा है।
ऑपइंडिया ने आपको अपनी पहले की रिपोर्ट में बता ही रखा है कि कैसे इंदिरा गाँधी के समय में सोवियत संघ की खुफिया एजेंसी केजीबी (कोमितेत गोसुदर्स्त्वेन्नोय बेज़ोप्स्नोस्ति) कॉन्ग्रेस नेताओं को पैसा मुहैया कराती थी। इस संबंध में खुद अमेरिकी एजेंसी सीआईए ने गोपनीय दस्तावेज सार्वजनिक करके दावा किया था कि इंदिरा गाँधी के जमाने में कॉन्ग्रेस के 40 फीसद सांसदों को सोवियत संघ से पैसा मिलता था।
इसके अलावा, साल 2005 में केजीबी के ही एक पूर्व जासूस वासिली मित्रोकिन (Vasili Mitrokhin) की किताब आई थी। इसमें तो बकायदा बताया गया है कि खुद इंदिरा गाँधी को सूटकेसों में भरकर पैसे भेजे गए थे। वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर ने कुछ वक्त पहले ऑपइंडिया को बताया था कि जो तथ्य सार्वजनिक हैं उससे जाहिर होता है कि 1967 के आम चुनाव के वक्त कॉन्ग्रेस सहित देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों को विदेश से पैसा मिला था। उन्होंने बताया था कि शीत युद्ध के जमाने में कम्युनिस्ट देश जहाँ भारत में साम्यवाद के फैलाव के लिए पैसे खर्च कर रहे थे, तो पूँजीवादी देश साम्यवाद को रोकने के लिए। ऐसे में जब सत्ताधारी दल का नेता ही बिकने को तैयार हो तो विदेशी ताकतों के लिए चीजें आसान हो जाती है।
सोवियत संघ से फंडिंग का कैसे खुला राज
मित्रोकिन की किताब के चलते सबसे दिलचस्प बात इतने सालों बाद ये हुई कि वर्षों तक जिन तथ्यों को कॉन्ग्रेस छिपाती रही उसे मित्रोकिन ने 2005 में दुनिया के सामने ला दिया। बताया जाता है कि मित्रोकिन सोवियत संघ जमाने के हजारों गोपनीय दस्तावेज चुराकर देश से बाहर ले गए थे। बाद में इसके आधार पर क्रिस्टोफर एंड्रयू (Christopher Andrew) के साथ मिलकर किताबें लिखी। द वर्ल्ड वॉज गोइंग आवर वे (The World Was Going Our Way) नामक किताब में कहा गया है कि केजीबी ने 1970 के दशक में पूर्व रक्षा मंत्री वीके मेनन के अलावा चार अन्य केंद्रीय मंत्रियों को भी चुनाव प्रचार के लिए फंड दिया था।
इंदिरा काल के बाद भी विदेश से पैसा लेने की कॉन्ग्रेस की आदत में सुधार नहीं आया सोवियत संघ से पैसा लेने का जो सिलसिला इंदिरा गाँधी के जमाने में शुरू हुआ था वह राजीव गाँधी के जमाने में भी जारी रहा। हालॉंकि इस दौर में सोवियत संघ का प्रभाव कुछ सीमित करने की कोशिश भी हुई थी। लेकिन सोवियत संघ की पकड़ सिर्फ राजनीति में नहीं थी। उन्होंने मीडिया पर भी अपना कब्जा किया हुआ था। मित्रोकिन की किताब अनुसार भारत में सोवियत संघ का प्रोपेगेंडा चलाने के लिए 40-50 पत्रकार थे जो बाद में 200-300 हो गए थे।
विदेशी फंडिंग का मुद्दा उठाने वाली पुष्पम प्रिया कौन हैं?
उल्लेखनीय है कि एक बार फिर से कॉन्ग्रेस पार्टी पर फंडिंग के आरोप मढ़ने वाली द प्लूरल्स पार्टी की अध्यक्ष पुष्पम प्रिया चौधरी हैं जो साल 2020 में बिहार चुनावों में खासी चर्चा में थीं। उन्होंने विदेश में डेवलपमेंट स्टडीज की पढ़ाई की। साल 2019 में वह बिहार लौटीं इस आशा के साथ कि राजनीति में आकर वह पूरे बिहार की सूरत को बदल देंगी। हालाँकि ऐसा नहीं हो सका। बिहार को 2025 तक भारत की और 2030 तक विश्व की सबसे बेहतर बनाने का उनका सपना 2020 के बिहार चुनाव के समय धराशायी हुआ जब तमाम प्रचार के बाद भी उनकी पार्टी को राज्य में जगह बनाने में असफल हुई। अपनी हार देखते हुए पुष्पम प्रिया ने इसका जिम्मा ईवीएम पर लगाया और वोट न मिलने पर दावा किया कि जहाँ उनके कार्यकर्ता उनके सामने बूथ में गए वहाँ भी उन्हें जीरो वोट मिले।