निर्भया कांड की आठवीं वर्षगाँठ और सोनिया गाँधी के 74 वें जन्मदिन के अवसर पर देश में बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए कठोर बलात्कार से संबंधित कानूनी फ्रेमवर्क को लागू करने में कॉन्ग्रेस पार्टी के लापरवाही भरे दृष्टिकोण पर फिर से गौर करना आवश्यक है।
महिला आबादी के बचाव और सुरक्षा के प्रति देश की अंतरात्मा को झकझोर देने वाले भीषण निर्भया मामले के बाद कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए- 2 सरकार ने CJI वर्मा (रिटायर्ड) की अगुवाई में तीन सदस्यीय टीम का गठन किया, जिसमें बदलावों की जाँच और कानूनी फ्रेमवर्क में बदलाव के सुझाव दिए गए, जिससे कि बलात्कार की बढ़ती घटनाओं को कम करने में मदद मिल सके। समिति द्वारा 23 जनवरी, 2013 को रिपोर्ट सबमिट की गई थी।
कॉन्ग्रेस के प्रतिनिधि आधी रात को जस्टिस वर्मा के घर गए
इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में न्यायमूर्ति वर्मा ने खुलासा किया कि एक कॉन्ग्रेस सदस्य 5 जनवरी की आधी रात को उनके घर आया था। उन्होंने पार्टी के सुझावों को व्यक्तिगत रूप से समिति को सौंपने पर जोर दिया था। कथित तौर पर उस व्यक्ति को जनार्दन द्विवेदी ने भेजा था।
न्यायमूर्ति वर्मा ने पत्र को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कॉन्ग्रेस सदस्य को पत्र को या तो गेट पर छोड़ने को कहा या फिर अगले दिन विज्ञान भवन में समिति के कार्यालय में देने के लिए कहा।
स्वाभाविक रूप से एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के प्रतिनिधि के अस्थिर व्यवहार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश को संशय में डाल दिया। उन्होंने इस घटना को कॉन्ग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के संज्ञान में लाया और फिर इसके प्रति अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। इस घटना के बाद, सोनिया गाँधी ने जस्टिस वर्मा को फोन किया और व्यक्तिगत रूप से अपनी पार्टी के प्रतिनिधि के दुर्व्यवहार के लिए माफी माँगी।
सुशील कुमार शिंदे ने समिति की रिपोर्ट प्राप्त करने की जहमत नहीं उठाई: न्यायमूर्ति वर्मा
पूर्व CJI ने यह भी खुलासा किया था कि तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे, जिन्होंने समिति को नियुक्त किया था, ने समिति के साथ एक बार भी बातचीत नहीं की थी। कमेटी की रिपोर्ट के बारे में कॉन्ग्रेस पार्टी इतनी बेपरवाह थी कि रिपोर्ट को स्वीकार करने के लिए न तो सुशील कुमार शिंदे और न ही केंद्रीय गृह सचिव आर के सिंह मौजूद थे। रिपोर्ट को मंत्रालय में संयुक्त सचिव द्वारा स्वीकार किया गया था।