परिवारवाद में कॉन्ग्रेस किस कदर डूबी है, इसकी बानगी तो राहुल गाँधी के पैरों में गिरकर उनसे अध्यक्ष पद न छोड़ने की पार्टी की चिरौरी से ही दिख गई थी। लेकिन अब पार्टी परिवार की मुराद में इतना डूब गई है कि इतिहास को भी बदलने पर आमादा है। राजीव गाँधी को पार्टी की वेबसाइट पर मरते समय भारत का तत्कालीन प्रधानमंत्री बताया गया है जबकि सच्चाई यह है कि उस समय भारत के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर हुआ करते थे। इसके अलावा पार्टी की वेबसाइट पर पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी को पार्टी के अध्यक्षों की सूची से भी हटा दिया गया है।
राहुल गाँधी की जीवनी में बताया राजीव को तत्कालीन प्रधानमंत्री
अपने (नि?)वर्तमान अध्यक्ष और राजीव गाँधी के बेटे राहुल गाँधी की पार्टी वेबसाइट पर प्रकाशित जीवनी में कॉन्ग्रेस ने लिखा है कि अपनी मृत्यु के समय (21 मई, 1991 को) राहुल के पिता राजीव गाँधी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री थे। यह पूरी तरह गलत है। राजीव की हत्या के समय उनकी सरकार न केवल जा चुकी थी बल्कि उसके बाद प्रधानमंत्री बनने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह की भी सरकार गिर कर चंद्रशेखर की सरकार आ गई थी, जिसे पहले तो राजीव गाँधी का ही समर्थन जिलाए हुए था, और बाद में राजीव गाँधी ने समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद देश में नई लोकसभा के निर्वाचन की प्रक्रिया चल रही थी। उसी दौरान प्रचार करते हुए राजीव गाँधी की लिट्टे के दहशतगर्दों ने हत्या कर दी थी।
और ऐसा भी नहीं है कि यह कोई टाइपिंग की गलती, क्लेरिकल मिस्टेक या तथ्यों की ग़लतफ़हमी हो- क्योंकि ऐसा कुछ तो केवल एक बार हो सकता है, बार-बार नहीं। जबकि कॉन्ग्रेस की वेबसाइट पर एक बार नहीं बल्कि दो बार राजीव गाँधी को उनकी हत्या के समय भारत का तत्कालीन प्रधानमंत्री बताया गया है।
न खाता न बही, कॉन्ग्रेस से केसरी की याद मिटी
कॉन्ग्रेस में सीताराम केसरी का 1996 से 1998 तक कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष होना आज गाँधी परिवार की आँखों में चाहे जितना खटके मगर यह एक ऐतिहासिक तथ्य है- उतना ही जितना कि यह कि सोनिया गाँधी को पार्टी अध्यक्षा बनाने के लिए 14 मार्च 1998 को केसरी को एक कमरे में बंद कर एक तरह से जबरदस्ती, गुंडागर्दी का सहारा लिया गया था। और अब कॉन्ग्रेस इस आँखों के काँटे को मिटा कर तारीख बदलने की कोशिश कर रही है।
पार्टी के 1990 के बाद के अध्यक्षों की सूची में से सीताराम केसरी का नाम गायब है।
दोनों घटनाएँ संयोग, या कुछ और?
इन दोनों घटनाओं का इतने आस-पास होना, वह भी उस समय जब कॉन्ग्रेस और देश में ‘गाँधी’ उपनाम की महत्ता पर गंभीर प्रश्नचिह्न हैं, महज संयोग है? या फिर कॉन्ग्रेस के इतिहास से (और भारत के भी इतिहास से) गाँधी के इतर चरित्रों को आधिकारिक तौर पर हटाने की कोशिश? यह तो तय है कि कॉन्ग्रेस की वेबसाइट पर राजीव गाँधी के कार्यकाल का ‘विस्तार’ कर दिए जाने से न इस देश का इतिहास पुनर्लिखित कर वीपी सिंह और चंद्रशेखर को भुला दिया जाएगा, न ही सीताराम केसरी को बाकी पार्टियाँ और देश मिटा देगा। लेकिन क्या इससे यह संदेश दिए जाने की कोशिश हो रही है कि “गाँधी इज़ कॉन्ग्रेस, कॉन्ग्रेस इज़ गाँधी”? क्या कॉन्ग्रेस अपने कैडर में राहुल गाँधी के हटने की उम्मीद में महत्वाकांक्षा पाले क्षत्रपों (शशि थरूर लोकसभा में कॉन्ग्रेस के मुखिया बनने की इच्छा जाहिर कर चुके हैं करण थापर को इंटरव्यू में) को यह संदेश दे रही है कि कॉन्ग्रेस के लिए नेहरू-गाँधी-वाड्रा परिवार इतना जरूरी है कि उसे बनाए रखने के लिए पार्टी इतिहास पुनर्लिखित भी करेगी, अगर जरूरी हुआ- इसलिए क्षत्रप सब्जबाग न पालें…