Thursday, April 25, 2024
Homeराजनीतिराजीव गाँधी: PM जो मर कर वापस हुआ 'ज़िंदा', जिसे कॉन्ग्रेस ही नहीं दिला...

राजीव गाँधी: PM जो मर कर वापस हुआ ‘ज़िंदा’, जिसे कॉन्ग्रेस ही नहीं दिला सकी ‘न्याय’

चुनाव खत्म हुए ठीक से दिन भर भी नहीं बीत पाया कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने ऐलान कर दिया कि बस राज्यपाल साइन भर कर दें, उनकी सरकार राजीव गाँधी के कातिलों को रिहा करने के लिए तैयार बैठी है। ऐलान भी उनकी हत्या की तिथि 21 मई की पूर्व-संध्या को।

इन चुनावों में राजीव गाँधी यकायक मुद्दा बन गए- चुनावी भी, चर्चा का भी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें भ्रष्टाचारी कहा, शेखर गुप्ता ने ‘डैशिंग, बाल-बच्चों वाला, युवा प्रधानमंत्री’, और सैम पित्रोदा के अनुसार उनकी जिंदगी में अर्थ ही राजीव गाँधी के भारत में इंटरनेट लाने से आया।

कभी 19 साल तक शेखर गुप्ता इंडियन एक्सप्रेस के सम्पादक रहे थे, उसी इंडियन एक्सप्रेस के, जिसने राजीव गाँधी की आईएनएस विराट पर छुट्टियों का खुलासा किया, और बदले में उसके ऑफिस पर इनकम टैक्स के नाम पर सैन्य छापेमारी जैसी रेड पड़ी। उन पर इंडियन एक्सप्रेस के इसी ‘दुस्साहस’ के बदले कर्मचारियों को यूनियनबाजी के लिए उकसा कर अख़बार ठप करवाने की कोशिश का भी संदेह किया जाता है। सिख दंगों के भी दाग उन पर हैं।

राफ़ेल पर जब भी कॉन्ग्रेस आक्रामक हुई, उसके सामने पलट कर राजीव के समय का बोफोर्स घोटाला मुँह बाए खड़ा रहा। अगस्ता वेस्टलैंड भी कई लोगों को बोफोर्स 2.0 लगा, और जब क्रिश्चियन मिशेल को भारत लाया गया तो लगा कि काश इसी तरह मरहूम क्वात्रोची को भी पकड़ कर राज़ उगलवाए जा सकते!

और चुनाव खत्म हुए ठीक से दिन भर भी नहीं बीत पाया कि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने ऐलान कर दिया कि बस राज्यपाल साइन भर कर दें, उनकी सरकार राजीव गाँधी के कातिलों को रिहा करने के लिए तैयार बैठी है। ऐलान भी उनकी हत्या की तिथि 21 मई की पूर्व-संध्या को। मात्र दुर्योग, या राजनीतिक इशारा?

कातिलों की कानून के साथ कबड्डी

अगर राजीव गाँधी की हत्या के मुकदमे का इतिहास पढ़ा जाए तो यह न्याय कम, न्याय का मखौल ज्यादा लगेगा। पहले तो सुप्रीम कोर्ट में मृत्युदंड पाए 4 मुख्य अभियुक्तों में से नलिनी श्रीहरन के मृत्युदंड को उम्रकैद में केवल इसलिए बदल दिया गया कि वह महिला है, और उसने एक बच्ची को जन्म दिया था। उसकी पैरवी भी किसी और ने नहीं, राजीव की पत्नी श्रीमती सोनिया गाँधी ने की। तीन अन्य आरोपियों के मृत्युदंड को सुप्रीम कोर्ट ने खुद उम्रकैद में बदल दिया था

उसके बाद लगभग 20 साल तक कानून से लुका-छिपी खेलने के बाद बाकी तीन अभियुक्तों मुरुगन, संतन, पेरारीवालन ने अपने मृत्युदंड में देरी के लिए कानून और सरकार को दोषी ठहराते हुए अपना मृत्युदंड भी माफ़ किए जाने की माँग की। तर्क यह दिया कि हम बीस साल कैद पहले ही काट चुके हैं, यह तो एक उम्रकैद के बराबर हो ही गया है। ऊपर से बीस साल से पता नहीं, जिंदगी मिलेगी या मौत इस डर ने जिंदगी और मानसिक संतुलन को तबाह कर दिया है- ऐसे में हमें मृत्यदंड दिया जाना अन्याय होगा। 2014 में उनकी बात मानते हुए अदालत ने उन्हें भी उम्रकैद में डाल दिया

उसके बाद शुरू हुई असली कबड्डी। जिस नलिनी को अगर रहम न मिलता महिला होने के नाते, जिन तीन कातिलों को अगर समय पर मृत्यदंड दे दिया गया होता तो आज होते ही न ज़िंदा, वह अब यह माँग कर रहे हैं कि उन्होंने एक उम्रकैद भर का समय काट लिया है तो उन्हें आज़ाद कर दिया जाए। और उनकी यह माँग पूरी करने के लिए तमिलनाडु की सरकार आतुर दिख रही है। आड़ ले रही है जनभावनाओं की।

सवाल  

पहला सवाल यह कि क्या एक उम्रकैद पूरी कर छूट जाने की सुविधा उन कैदियों को भी मिलनी चाहिए जिन्हें पहले मृत्युदंड मिला था और बाद में फाँसी में देर होने के चलते रहम खा कर उम्रकैद में डाल दिया गया। इस तरह तो उनके लिए दो बार रहम की गुंजाईश हो गई (जबकि आम, सीधे उम्रकैद पाए अपराधी को एक ही बार रहम मिलता है, बीस साल पूरे होने पर), जबकि उन्हें मृत्युदंड दिया ही इसलिए गया क्योंकि उनका अपराध किसी रहम के लायक नहीं समझा गया। यानि कम क्रूर तरीके से हत्या (जिसपर सीधे केवल उम्रकैद होगी) पर केवल एक बार सजा में कमी का मौका, और ज्यादा क्रूर तरीके से हत्या (जिसपर मृत्युदंड होगा) में दो बार सजा में कमी का मौका? क्या यही संदेश देना चाहती है समाज में तमिलनाडु सरकार?

दूसरा सवाल यह कि यह ‘जनभावना’ के आधार पर कातिलों, आतंकियों की रिहाई का क्या मतलब है? यह ऐसी खतरनाक नज़ीर है जिसे कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाके वाले, जेएनयू जैसे अर्बन नक्सलियों के गढ़ वाले देश में कैसे दुरुपयोग में लाया जाएगा, यह बताने की जरूरत नहीं है।

और तीसरा सवाल यह कि जरा पलानिस्वामी खुद को राजीव गाँधी, या उस हमले में मारे गए 13 अन्य बेगुनाहों की जगह रख कर देखें? अगर उनके साथ ऐसा कुछ हो जाए, तो क्या वह अपने कातिलों का ऐसे बच निकलना पसंद करेंगे? राजीव गाँधी भ्रष्ट थे, इस ओर इशारा करने वाले पर्याप्त सबूत हैं। उनपर सिख दंगों समेत बहुत सारे ऐसे आरोप हैं जिनके लिए शायद वह जेल में होते अगर जिन्दा होते। लेकिन इस मामले में वह एक न्याय माँगते पीड़ित हैं, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री हैं। इतिहास अगर उन्हें उनके गुनाहों के लिए नहीं माफ़ करेगा तो हमें भी उनके कातिलों को ऐसे बच जाने देने के लिए जवाबदेह ठहराएगा।

नोट: मैं व्यक्तिगत तौर पर मृत्युदंड का विरोधी हूँ। पर यहाँ सवाल मृत्युदंड बनाम उम्रकैद का नहीं है। यहाँ सवाल है कम गंभीर अपराध और ज्यादा गंभीर अपराध के न्याय में विसंगति का।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

मुंबई के मशहूर सोमैया स्कूल की प्रिंसिपल परवीन शेख को हिंदुओं से नफरत, PM मोदी की तुलना कुत्ते से… पसंद है हमास और इस्लामी...

परवीन शेख मुंबई के मशहूर स्कूल द सोमैया स्कूल की प्रिंसिपल हैं। ये स्कूल मुंबई के घाटकोपर-ईस्ट इलाके में आने वाले विद्या विहार में स्थित है। परवीन शेख 12 साल से स्कूल से जुड़ी हुई हैं, जिनमें से 7 साल वो बतौर प्रिंसिपल काम कर चुकी हैं।

कर्नाटक में सारे मुस्लिमों को आरक्षण मिलने से संतुष्ट नहीं पिछड़ा आयोग, कॉन्ग्रेस की सरकार को भेजा जाएगा समन: लोग भी उठा रहे सवाल

कर्नाटक राज्य में सारे मुस्लिमों को आरक्षण देने का मामला शांत नहीं है। NCBC अध्यक्ष ने कहा है कि वो इस पर जल्द ही मुख्य सचिव को समन भेजेंगे।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe