केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने एक टीवी चैनल को दिए अपने साक्षात्कार में कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारे घोषणापत्र का हिस्सा है, सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होना चाहिए। साथ ही गृह मंत्री शाह ने देश विरोधी गतिविधियों को लेकर भी अपना रुख एक बार फिर स्पष्ट करते हुए कहा है कि देश विरोधी नारे लगाने को उनकी पार्टी कतई स्वीकार नहीं करती, उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने देश के खिलाफ आवाज़ उठाई उन्हें हमारी ही सरकार ने जेल में डाल दिया मगर जब इसकी अदालती कार्रवाई में दिल्ली सरकार से मंजूरी माँगी गई तो उन्होंने इसमें मंजूरी देने से मना कर दिया।
#ShahOnRepublic | यूनिफॉर्म सिविल कोड हमारे घोषणापत्र का हिस्सा है, सभी नागरिकों के लिए एक ही कानून होना चाहिए: गृह मंत्री अमित शाह
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बता दें कि दिल्ली सरकार की ओर से अरविन्द केजरीवाल ने इस घटना को लेकर केंद्र पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने जैसा आरोप लगाते हुए पर सवाल किए थे वहीं तत्कालीन कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस पूरी घटना को लेकर केंद्र सरकार को घेरने की कोशिश की थी, इसी के बाद कॉन्ग्रेस पार्टी जेएनयू में देशविरोधी नारे लगाने वाले छात्रों के समर्थन में उतर गई थी।
अभिव्यक्ति के सन्दर्भ में अमित शाह ने विस्तार से बात करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी ज़रूर होनी चाहिए, आप सरकार की आलोचना कर सकते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना कर सकते हैं, मेरी पार्टी की जितनी भर्त्सना कर सकते हैं कर लीजिए इससे हमें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन अगर कोई देश के टुकड़े करने की बात करेगा या देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होकर नारेबाजी करने उतरेगा तो निश्चित रूपसे उसके खिलाफ कार्रवाई होगी और उसे जेल में जाना ही होगा। गृहमंत्री अमित शाह ने यहाँ तक कह दिया कि आप मुझे गाली दे दीजिए लेकिन इस देश को तोड़ने की स्वतंत्रता किसी को नहीं है।
#ShahOnRepublic | ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’… राहुल और केजरीवाल ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी कहा लेकिन हमने कहा हमें गाली दे दीजिए लेकिन देश के टुकड़ें की बात करने वालों को जेल जाना होगा: अमित शाह
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वहीं कॉन्ग्रेस पर वार करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि कई एतिहसिक भूलें ऐसी हैं जिनसे कॉन्ग्रेस पार्टी कभी पीछा नहीं छुड़ा सकती कॉन्ग्रेस। उन्होंने पंडित नेहरु के नेतृत्व वाली कॉन्ग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए भारत और पाकिस्तान के युद्ध का उदहारण देते हुए कहा कि जिस वक़्त देश युद्ध जीतने की ओर बढ़ रहा था और जवानों ने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे उस वक़्त युद्ध को थामकर यूएन में जाने की क्या आवश्यकता थी?
बता दें कि आज़ादी के बाद हुए भारत-पाक के पहले युद्ध में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरु ने युद्ध-विराम की घोषणा कर मामले मामले को संयुक्त राष्ट्र ले जाने की घोषणा कर दी थी। इसी दौरान पाकिस्तान ने हिंदुस्तान के कश्मीर के एक हिस्से में कब्ज़ा कर लिया था जो आज पाक अधिकृत कश्मीर यानि पीओके कहलाता है। 1948 के युद्ध में पाकिस्तान के आक्रमण से शुरू हुए भारत को कश्मीर का एक हिस्सा गँवाना पड़ा था, जिसके बाद से कश्मीर की समस्या भारत के लिए एक नासूर बन गई थी, बहुत से इतिहासकार भी कश्मीर की कश्मीर समस्या के लिए प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु और उनकी नीतियों को ज़िम्मेदार मानते हैं।