23 मई को लोकसभा चुनावी नतीजों की तस्वीर साफ होते ही एक बार फिर कॉन्ग्रेस की बुरी हार देखने को मिली। इसके बाद एक बार फिर कॉन्ग्रेस के अंदर इस्तीफ़ा देने और अस्वीकार करने का कार्यक्रम किसी रिवाज की तरह दोहराया जाना स्वाभाविक है। एक बार फिर कॉन्ग्रेस में वर्ष 2014 की तरह ही इस्तीफ़ा देने और अस्वीकार कर दिए जाने का शिष्टाचार निभाया गया है। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी द्वारा कॉन्ग्रेस कार्यकारिणी समिति को इस्तीफ़ा को इस्तीफ़ा सौंपा गया और कमेटी द्वारा इसे नामंजूर कर दिया गया है।
Sources: Congress President Rahul Gandhi offers his resignation at CWC, but it has not been accepted by the Committee. pic.twitter.com/Imw1m4ypbQ
— ANI (@ANI) May 25, 2019
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गाँधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के कॉन्ग्रेस की हार की जिम्मेदारी स्वीकार की थी। उसके कुछ देर बाद ही मीडिया में खबर आई कि राहुल गाँधी ने सोनिया गाँधी के सामने इस्तीफे की पेशकश की है और सोनिया गाँधी ने उनके इस्तीफे को ठुकरा दिया है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने इस खबर का खंडन किया था और कहा कि पूरी पार्टी अपने नेतृत्व के साथ मजबूती के साथ खड़ी है।
राहुल गाँधी के इस्तीफे को नामंजूर कर के कॉन्ग्रेस ने एक बार फिर सन्देश देने का प्रयास किया है कि चाहे वो कॉन्ग्रेस के वंशवाद की नीति को कितनी ही बार क्यों न ठुकरा दे, लेकिन कॉन्ग्रेस और उनके कार्यकर्ताओं के लिए राजनीति के इस खानदान विशेष से बाहर सोच पाना अभी भी मुश्किल है। इस प्रकार जनता के सन्देश को नकारने की मानसिकता अभी भी कॉन्ग्रेस में मौजूद नजर आ रही। सोशल मीडिया पर लोगों को यह भी कहते देखा जा रहा है कि कॉन्ग्रेस में खुद को खुद ही भारत रत्न देना और खुद ही खुद को इस्तीफ़ा देकर नामंजूर कर देने का इतिहास बहुत पुराना है।